कुंठावानों
आपका जितना भी ज्ञान था कुंठा की क्यारियों में रोप आये हैं. आपके बारे कहा जाता है कि -”उनके पास अब तो शब्द भी चुक गये हैं . गाली गुफ़्तार एवम शारीरिक अक्षमता तक पर टिप्पणी करने लगे हैं.”
आप के सर पर जिन लोगों का हाथ है वे स्वयम कुंठा के सागर में हिलोरें लेतें हैं.आप को ब्लाग पर गलीच शब्दों का स्तेमाल करने का कोई अधिकार न था न है. जब किसी विवाद में खुद को फंसे देखते है तुरंत ही मित्रवत पोस्ट लिखने का दावा करवाते है, इन रीढ़ हीनों का वैयक्तिक-चरित्र क्या होगा ? यह सब जान-समझ सकतें है, विवाद जो नहीं था दिनेश जी यदी यह सत्य है तो सब सोच रहे हैं कि यकीनन ये सब कुछ आपसी मिली-भगत थी. जो लोग मौज लेने के लिये किया करतें हैं......?वैसे यह स्वयं लेखक कहते तो गले उतरती ...! समकाल पर आई यह पोस्ट वास्तव में लीपा पोती का एक असफ़ल प्रयास है. इस आरोप को मैं अंगद की तरह पुष्ट मान रहा हूं. वैसे तो देशनामा पर स्पष्ट संकेत मिल गये होंगे. ट्राल किस्म के लोगों को समझ लेना चाहिये. कि ब्लागिंग भी सरस्वती साधना ही तो है. वर्ना हम तो यही गाते रहेंगे
- क्या मानसिक हलचल पर आई पोस्ट उचित थी
- क्या समीक्षा इसे कहते हैं
- क्या बेनामींयों को जो गलीच भाषा का प्रयोग करतें हैं को इग्नोर करें
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इनका आभार
अविनाश भैया सच आपकी बात को कैसे टालूं सोच रहा था वापस आ गया
साथ ही इन मित्रों स्नेही जनो का आभार आनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी.यशवन्त मेहता "यश",नीरज रोहिल्ला, मिथिलेश दुबे,'अदा', राजकुमार सोनी, नरेश सोनी,जी.के. अवधिया, एम.वर्मा ,अजय कुमार झा, महेन्द्र मिश्र,राधे, अन्तर सोहिल,शिखा वार्ष्णेय , डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,विजय तिवारी 'किसलय ', 'उदय', सुलभ § सतरंगी,कविता रावत,राज भाटिय़ा,संजीत त्रिपाठी ,शरद कोकास, उन्मुक्त,Kumar Jaljala, हर्षिता,बवाल,
ललित भाई की पोस्ट ने मन में उछाह वापसी की तो श्याम भाई ने भी खूब हंसाया सो मित्रो मै लौट आया अमरकंटक से अपनी बहन शोभना के स्नेह से अभीभूत हूं.
अन्त में समीर जी को बता दूं इग्नोर करना ऐसी भयानक स्थितियों का मार्ग देना है. इग्नोरेन्स की सीमा होनी चाहिये