पाठ्य क्रम का प्रथम पाठ भारतीय सरकारी व्यवस्था और उत्कोच के बीच एक ऐसा समीकरण है जिसे हर सामान्य बुद्धि वाला प्राणी समझ लेता है. इस पोस्ट की आधार पोस्ट में कहा गया है एक सिविल सेवा प्रशिक्षण में गए उनके मित्र को सेलरी-स्लिप का पांच सौ रुपया देना पडा ? मित्र इधर वो बेचारा बाबू किस किस को छोडेगा अब इस बात को सीधे प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम में कैसे शामिल करेगा कोई संस्थान सो बाबू साहब ने इसे "घूस-विग्यान:आओ करके सीखें" की शैली में सिखा दिया.अब भैया आप ही बताईये इस तरह की घूसखोरी के अलावा कौनसा उदाहरण जहां "समाजवाद" का अर्थ समझाया जा सके बच्चों को ...?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Wow.....New
अलबरूनी का भारत : समीक्षा
"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार औसत नवबौद्धों की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाल...
-
सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
-
संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
-
मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...
4 टिप्पणियां:
बह्त सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
स्थिति नाज़ुक है,,बढ़िया प्रसंग..धन्यवाद!!!
बह्त सुंदर लिखा धन्यवाद...
शुक्रिया जी
आप सभी का .
आभार ब्लाग बांचने के लिए
टिप्पणी के लिए
एक टिप्पणी भेजें