5.10.19

भारत की आत्मा धर्म में बसती है ..तॊ आप ग़लत हैं ! : Salil Samadhiya

लेखक : सलिल 
अगर आप सोचते हैं कि भारत की आत्मा धर्म में बसती है ..तॊ आप ग़लत हैं !
वह अध्यात्म , तप और  त्याग में भी नही बसती !
  वह उत्सव, तीज , त्योहारों में भी नही बसती !!
वह सिर्फ़ एक ही चीज़ में बसती  है ..
और वह है   "दिखावा "  !!

....इसे आप ध्यान से समझ लें!
पूरे भारत की  आत्मा में जो तत्व गहरे समाया है,   वह 'सत्य' या 'परमात्मा' नही है!
 वह है -  "मैं क्या चीज़ हूं !"

यहां हर व्यक्ति इस जुगत लगा है कि,
  किसी भी तरह से , किसी भी क्षेत्र में सफ़ल होकर,  दूसरों को बता सके कि  "देख , मैं क्या चीज हूं "
यही दिखाने के लिए वह पैसा कमा रहा हैं ,
यही दिखाने के लिए वह  नेतागिरी कर रहा है , यही दिखाने के लिए वह अधिकारी बना है ,
यही दिखाने के लिऐ वह कविता कर रहा है, लिख रहा है !

यह महज़ जीविकोपार्जन का मामला नही है !
यह नुमाईश का मामला है !
अपनी हैसियत के प्रदर्शन का मामला है !
 यही दिखाने के लिए वह नाच रहा है ..गा रहा है  या ..अन्य उद्यम कर रहा है  !!
जब तक ये  "दिखावावाद" जिंदा हैं भारत में ,
आप भूल जाईये  कि यहां कोई उत्थान हो सकता है !
न साम्यवाद , न समाजवाद, न राष्ट्रवाद !

अभी सौ वर्षों तक यहां जो "वाद" चलेंगे वो हैं  -
 "अहंवाद"  "मैं वाद",  "स्वार्थवाद" ,  "परिवारवाद", "लूटखसोट वाद "
और जब तक ये "वाद" हैं , तब तक किसी भी तरह का उत्थान भारत में परम असंभवना है !
वह इसलिए , क्योंकि यहां खून के एक खरबवें  हिस्से में भी जो विष भरा है ..वह है  ""वी.आई.पी.वाद", 
""वर्गभेद वाद " का  विष !

यहां आलम ये है कि एक स्कूल , एक क्लास में पढ़े बालसखा भी  ग्रुपों में बँट जाते हैं !
जो सफ़ल हैं ..वो स्वयं को एलीट मानने लगते हैं और अन्यों को दोयम !
भारत में शायद ही ऐसा अधिकारी देखने मिलेगा जो अपने मातहतों  को हिक़ारत से ना देखता हो!
  शायद ही ऐसे लोग मिलेंगे जो घर में  काम करने वाली बाई , मजदूर,  प्लम्बर , इलेक्ट्रिशियन  या  स्वीपर को तुच्छता  से ना देखते हों !
 शायद ही ऐसा नेता मिलेगा जिसके आस-पास 4-6 छर्रे न मँडराते हों ...और वह अपने आप को आलमगीर  न समझता हो !
फ्लाइट से कहीं जाने वाला व्यक्ति .. जब तक 10-20 बार  अनेक लोगों के बीच ये ना बक ले कि  "मेरी कल सुबह 10 बजे की फ्लाइट है"  या ,
 "मैं कल 5 बजे की फ्लाइट से वापिस लौटा!" ..उसे लगता हैं कि  मेरा आना जाना  सफ़ल नही हुआ !
छुटभैये बिल्डर ज़रा सा पैसा आते ही मोटी मोटी सोने  की चेन  और कड़ा  पहनकर अपने सफ़ल होने की भौंडी  नुमाईश करते  मिलेंगे !
नव धनाड्य हर साल कारें बदल कर अपने अमीर होने की पुनर्रुदघोषणा करते हैं  !

कुल मिलाकर ..जिस एक भाव से पूरा भारतवर्ष आविष्ट  हैं ..वह है -
"देख , मैं क्या हूं , और तू क्या है ?"

..यह दिखावावाद ही  वह खाद है.. जिस पर लहलहा रही हैं  भ्रष्टाचार की फसलें ,
वर्ग भेद के पौधे !
 और इन पर भिनभिना रहे हैं उच्चता  और निम्नतावाद  के कीड़े !
इसी के कारण सब रोगी हैं,  तनाव ग्रस्त हैं , कुंठित हैं ,  मनोविषादी हैं !

..यही कारण है कि  भारत डायबिटीज , हृदयरोग , ब्लड प्रेशर ,  कैंसर जैसी सभी प्रमुख बीमारियों का हब बना हुआ है !
और इन बीमारियों के निवारणार्थ  गली -गली में उग रहे हैं ..धर्म गुरु , ज्योतिषी , आयुर्वेदा,  योगा  के स्वयं-भू कमअक़्ल लपोसड़  विद्वान !

पूरा भारत भरा पड़ा है जग्गी-फग्गी , श्री-फ्री, आबाओं-बाबाओं और  चंगाई सभाओं से !
..कहीं सुबह गार्डन में नकली हास्यासन हों रहे है ..,
तॊ कहीं  जिन्नाद उतारे जा रहे हैं !

उधर ..पति पैसा कमाने की मशीन हुआ जा रहा है ..इधर पत्नि नकली जीवन की घुटन और नैराश्य से तिल तिल मर रही है !

जिस दिन ये श्रेष्ठता साबित करने  का जिन्न  उतर जाएगा भारत के सिर से, उस दिन  सब दुरुस्त होने लगेगा ..शरीर भी , स्वास्थ्य भी  धर्म भी , अध्यात्म भी !
...नकली बाबा , हकीम,  वैद्य , डाक्टर भी !

मगर इस नुमायशी आदमी के रहते साम्यवाद भी एक  सपना है  और राष्ट्रवाद भी दूर की कौड़ी है  !
...क्योंकि जब "मैं" मिटता है  और  "दूसरा" दिखता है ..
तब साम्यवाद भी संभावना है ..
जब "मैं" मिटता है और  "राष्ट्र" दिखता है ..तब राष्ट्रवाद भी संभावना है !

...लेकिन जब तक ये एलीट होने की विष्ठा भरी है दिमाग़ में ..और उच्चता -निम्नता  की पेशाब बह रही है रगों में ..तब तक इस देश में कोई संभावना नही है !

बचपन में एक कविता पढ़ी थी स्कूल में !

"दो आदमी  एक कमरे में ,
कमरा..  घर में
    घर , मुहल्ले में
        मुहल्ला.. शहर में
           शहर.. प्रदेश में
              प्रदेश , देश में

...ऐसे बढ़ते हुए वो बात  ब्रहांड तक जाती थी !

इस ब्रहांड में रेत के एक कण के खरबवें हिस्से से भी कम हैसियत है पृथ्वी की !
 हम-आपकी तॊ बिसात ही क्या ??
जब तक इस बोध से अनुप्राणित ना होंगे प्राण ..तब तक कोई संभावना नही है !

हाथ में सोने का कड़ा पहनने से कोई एलीट नही हॊता !
एलीट हॊता है आदमी , चेतना के उत्थान से !
एलीट हॊता है वो ..जिसकी आंखें सौम्य हों ,
जिसका ललाट भव्य हो ,
जिसकी भावना उद्दात हो ,
जिसके हृदय में प्रेम हो

मनुष्य एलीट हॊता है ..चेतना के विस्तार से ,
वस्तुओं के संग्रहण से नही !
ब्रह्मआत्म ऐक्य बोध से ,
दिखावे से नही !!
ये पूरब की उद्घोषणा थी !

मगर अब हम उस ऊंचाई से बहुत गहरी गर्त में आ गिरे हैं !

##सलिल ##

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