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सोमवार, अक्तूबर 07, 2019

दफ्न जो सदियों तले है वो खज़ाना दे दे : मुज़फ्फर वारसी



मुजफ्फर वारसी हिंदुस्तान और पाकिस्तान के मशहूर शायर है यह जितने पाकिस्तान में मकबूल रहे उससे ज्यादा मां भारती  के  बेटों से इन्हें मोहब्बतें मिली हैं।  वारसी साहब का जन्म यूं तो हिंदुस्तान में हुआ 47 के बंटवारे में वे पाकिस्तान चले गए किंतु एक फिलॉस्फर पर की तौर पर पहचाने जाने लगे । वारसी साहब की आवाज और कलाम दोनों ही अव्वल दर्जे का होने से उनकी बात सीधे दिल में उतर आया करती थी और जिन शब्दों का इस्तेमाल वह अपनी पोएट्री में करते थे वह गुलजार जैसे शायरों के लिए एक रास्ता बन गए । साथियों उस देश में जहां ना तो शायरों की कदर है ना ही कलमकारों की उनका हिंदुस्तान से जाना मेरी नजर में ठीक ना था । यह बंदूक पकड़ने  वाले कमसिनों देश बनाने की जद्दोजहद पाकिस्तानी एडमिनिस्ट्रेशन ने की है जबकि वहां के बच्चे एक सर्वे के मुताबिक भारत के बच्चों की तरह ही बेहद बड़ी बौद्धिक क्षमता वाले हुआ करते हैं परंतु पाकिस्तानी एडमिनिस्ट्रेशन ने वहां के पॉलिटिकल चिंतन ने बच्चों को सही रास्ता दिखाया होता तो दोनों मुमालिक बौद्धिक प्रतिस्पर्धा में बहुत आगे होते परंतु वहां इल्म तालीम और बौद्धिक क्षमताओं के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया और हम यह सब करते रहे ।
     साथियों किसी देश की तरक्की का आधार देश के बच्चे हैं हम कूची बांसुरी और कलम पकड़ाते हैं और वो जेहाद का पाठ पढ़ाते हैं । अंतर नजर आता है फौरी तौर पर आए ना आए दो दशक बीत जाने के बाद जब बच्चा बीस इक्कीस साल का होता है वह किसी भी देश के लिए कीमती बन जाता है इसका मीज़ान वहां के जाहिल सियासतदां नहीं लगा पाए वहां तो अब्दुल कादिर जैसा साइंटिस्ट होता है और यहां कलाम साहब जैसे सर्व पूज्य लोग होते हैं बस इतना सा फर्क है दोनों मुल्कों में तो चलिए सुनते हैं मुजफ्फर वारसी साहब को
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जन्म: 23 दिसंबर 1933, मेरठ
मृत्यु: 28 जनवरी 2011, लाहौर, पाकिस्तान

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