न रखूंगा रिक्त मैं..हिय के समंदर को कभी ।
जाने कब किस को..मंथन की ज़रूरत आ पड़े ?
जाने कब किस को..मंथन की ज़रूरत आ पड़े ?
औसतन सब ठीक है सर तप रहा पग बर्फ पर –
रोज़ छपते हैं अब कुछ इस तरह के आंकड़े !!
धुंध की रोगन वज़ह है दूर तक दिखता नहीं
पाँव भी उनके सुनहरी बेड़ियों से हैं बंधे.....!!