लेखक : सलिल |
वह अध्यात्म , तप और त्याग में भी नही बसती !
वह उत्सव, तीज , त्योहारों में भी नही बसती !!
वह सिर्फ़ एक ही चीज़ में बसती है ..
और वह है "दिखावा " !!
....इसे आप ध्यान से समझ लें!
पूरे भारत की आत्मा में जो तत्व गहरे समाया है, वह 'सत्य' या 'परमात्मा' नही है!
वह है - "मैं क्या चीज़ हूं !"
यहां हर व्यक्ति इस जुगत लगा है कि,
किसी भी तरह से , किसी भी क्षेत्र में सफ़ल होकर, दूसरों को बता सके कि "देख , मैं क्या चीज हूं "
यही दिखाने के लिए वह पैसा कमा रहा हैं ,
यही दिखाने के लिए वह नेतागिरी कर रहा है , यही दिखाने के लिए वह अधिकारी बना है ,
यही दिखाने के लिऐ वह कविता कर रहा है, लिख रहा है !
यह महज़ जीविकोपार्जन का मामला नही है !
यह नुमाईश का मामला है !
अपनी हैसियत के प्रदर्शन का मामला है !
यही दिखाने के लिए वह नाच रहा है ..गा रहा है या ..अन्य उद्यम कर रहा है !!
जब तक ये "दिखावावाद" जिंदा हैं भारत में ,
आप भूल जाईये कि यहां कोई उत्थान हो सकता है !
न साम्यवाद , न समाजवाद, न राष्ट्रवाद !
अभी सौ वर्षों तक यहां जो "वाद" चलेंगे वो हैं -
"अहंवाद" "मैं वाद", "स्वार्थवाद" , "परिवारवाद", "लूटखसोट वाद "
और जब तक ये "वाद" हैं , तब तक किसी भी तरह का उत्थान भारत में परम असंभवना है !
वह इसलिए , क्योंकि यहां खून के एक खरबवें हिस्से में भी जो विष भरा है ..वह है ""वी.आई.पी.वाद",
""वर्गभेद वाद " का विष !
यहां आलम ये है कि एक स्कूल , एक क्लास में पढ़े बालसखा भी ग्रुपों में बँट जाते हैं !
जो सफ़ल हैं ..वो स्वयं को एलीट मानने लगते हैं और अन्यों को दोयम !
भारत में शायद ही ऐसा अधिकारी देखने मिलेगा जो अपने मातहतों को हिक़ारत से ना देखता हो!
शायद ही ऐसे लोग मिलेंगे जो घर में काम करने वाली बाई , मजदूर, प्लम्बर , इलेक्ट्रिशियन या स्वीपर को तुच्छता से ना देखते हों !
शायद ही ऐसा नेता मिलेगा जिसके आस-पास 4-6 छर्रे न मँडराते हों ...और वह अपने आप को आलमगीर न समझता हो !
फ्लाइट से कहीं जाने वाला व्यक्ति .. जब तक 10-20 बार अनेक लोगों के बीच ये ना बक ले कि "मेरी कल सुबह 10 बजे की फ्लाइट है" या ,
"मैं कल 5 बजे की फ्लाइट से वापिस लौटा!" ..उसे लगता हैं कि मेरा आना जाना सफ़ल नही हुआ !
छुटभैये बिल्डर ज़रा सा पैसा आते ही मोटी मोटी सोने की चेन और कड़ा पहनकर अपने सफ़ल होने की भौंडी नुमाईश करते मिलेंगे !
नव धनाड्य हर साल कारें बदल कर अपने अमीर होने की पुनर्रुदघोषणा करते हैं !
कुल मिलाकर ..जिस एक भाव से पूरा भारतवर्ष आविष्ट हैं ..वह है -
"देख , मैं क्या हूं , और तू क्या है ?"
..यह दिखावावाद ही वह खाद है.. जिस पर लहलहा रही हैं भ्रष्टाचार की फसलें ,
वर्ग भेद के पौधे !
और इन पर भिनभिना रहे हैं उच्चता और निम्नतावाद के कीड़े !
इसी के कारण सब रोगी हैं, तनाव ग्रस्त हैं , कुंठित हैं , मनोविषादी हैं !
..यही कारण है कि भारत डायबिटीज , हृदयरोग , ब्लड प्रेशर , कैंसर जैसी सभी प्रमुख बीमारियों का हब बना हुआ है !
और इन बीमारियों के निवारणार्थ गली -गली में उग रहे हैं ..धर्म गुरु , ज्योतिषी , आयुर्वेदा, योगा के स्वयं-भू कमअक़्ल लपोसड़ विद्वान !
पूरा भारत भरा पड़ा है जग्गी-फग्गी , श्री-फ्री, आबाओं-बाबाओं और चंगाई सभाओं से !
..कहीं सुबह गार्डन में नकली हास्यासन हों रहे है ..,
तॊ कहीं जिन्नाद उतारे जा रहे हैं !
उधर ..पति पैसा कमाने की मशीन हुआ जा रहा है ..इधर पत्नि नकली जीवन की घुटन और नैराश्य से तिल तिल मर रही है !
जिस दिन ये श्रेष्ठता साबित करने का जिन्न उतर जाएगा भारत के सिर से, उस दिन सब दुरुस्त होने लगेगा ..शरीर भी , स्वास्थ्य भी धर्म भी , अध्यात्म भी !
...नकली बाबा , हकीम, वैद्य , डाक्टर भी !
मगर इस नुमायशी आदमी के रहते साम्यवाद भी एक सपना है और राष्ट्रवाद भी दूर की कौड़ी है !
...क्योंकि जब "मैं" मिटता है और "दूसरा" दिखता है ..
तब साम्यवाद भी संभावना है ..
जब "मैं" मिटता है और "राष्ट्र" दिखता है ..तब राष्ट्रवाद भी संभावना है !
...लेकिन जब तक ये एलीट होने की विष्ठा भरी है दिमाग़ में ..और उच्चता -निम्नता की पेशाब बह रही है रगों में ..तब तक इस देश में कोई संभावना नही है !
बचपन में एक कविता पढ़ी थी स्कूल में !
"दो आदमी एक कमरे में ,
कमरा.. घर में
घर , मुहल्ले में
मुहल्ला.. शहर में
शहर.. प्रदेश में
प्रदेश , देश में
...ऐसे बढ़ते हुए वो बात ब्रहांड तक जाती थी !
इस ब्रहांड में रेत के एक कण के खरबवें हिस्से से भी कम हैसियत है पृथ्वी की !
हम-आपकी तॊ बिसात ही क्या ??
जब तक इस बोध से अनुप्राणित ना होंगे प्राण ..तब तक कोई संभावना नही है !
हाथ में सोने का कड़ा पहनने से कोई एलीट नही हॊता !
एलीट हॊता है आदमी , चेतना के उत्थान से !
एलीट हॊता है वो ..जिसकी आंखें सौम्य हों ,
जिसका ललाट भव्य हो ,
जिसकी भावना उद्दात हो ,
जिसके हृदय में प्रेम हो
मनुष्य एलीट हॊता है ..चेतना के विस्तार से ,
वस्तुओं के संग्रहण से नही !
ब्रह्मआत्म ऐक्य बोध से ,
दिखावे से नही !!
ये पूरब की उद्घोषणा थी !
मगर अब हम उस ऊंचाई से बहुत गहरी गर्त में आ गिरे हैं !
##सलिल ##