9.8.21

Rejections Acceptance and Success

    
तुम्हें उस  माउंट एवरेस्ट पर देखना चाहता था ,शिखर पर चढ़ने के दायित्व को  बोझ समझने की चुगली तुम्हारा बर्ताव कर देता है।
     इस चोटी पर चढ़ना है  रास्ता आसान नहीं है और तो और अवरोधों से भी अटा पड़ा है । कभी किसी पर्वतारोही से पूछो..... वह बताएगा कि  बेस कैंप से बाहर निकलो और पूछो कि मैं तुम्हारी चोटी पर आना चाहता हूं । तो पर्वत बताता है कि नहीं लौट जाओ यह आसान नहीं है। पर्वतारोही बताता है कि
- दशरथ मांझी ने तो ऐसे घमंडी पर्वत को बीच से चीर दिया था याद है ना...!
   दशरथ मांझी को कोई कंफ्यूजन नहीं था एवरेस्ट पर चढ़ने वालों को कोई कंफ्यूजन नहीं होता। और जो कंफ्यूज होते हैं उनके संकल्प नहीं होते बल्कि वे खुद से मजाक करते नजर आते हैं।
   जो लोग दुनिया को फेस करना जानते हैं वही सफलता का शिखर पा सकते हैं। *एक्सेप्टेंस और रिजेक्शन* में ही सफलता के राज छिपे हुए हैं । रिजेक्शन सबसे पहला पार्ट है। सबसे पहले हम खुद को रिजेक्ट करते हैं फिर दो चार लोग फिर एक लंबी भी आपको रिजेक्ट करती है। तब कहीं जाकर भीड़ से कोई आकर कहता है - "*वाह क्या बात है..!*"
    आइए मैं अपने आप को आपके सामने खोल देता हूं। रिजेक्टेड माल हूँ... कब एक्सेप्ट हो गया पता नहीं कुछ दिन तक किया था फिर भूल गया। हुआ यूं था कि बीकॉम सेकंड ईयर में कॉलेज के किसी लड़के ने अपनी एग्जामिनेशन डेस्क बदलने के लिए इन्वेंजुलेटर से निवेदन किया।
वीक्षक ने जब यह पूछा-" भाई तुम्हें क्या तकलीफ है क्या यहां लाइट नहीं आ रहा है या यह डेस्क खुरदुरी है..? गिरीश क्या तुम्हें भी परेशानी है..?
नहीं मुझे कोई परेशानी नहीं है मैंने कहा था । और उसने कहा था-" गिरीश ही मेरी समस्या है..!"
   अब तक में संदिग्ध हो चुका था वीक्षक की नजर में। वीक्षक को लगा कि मैं उस साथी की नकल कर रहा हूं या उसे डिस्टर्ब कर रहा हूं।
   उस लड़के ने जो कहा वह मेरी आंखों से गंगा जमुना बहाने के लिए पर्याप्त था ।
   जानते हैं क्या कहा जी तो नहीं  चाह रहा था कहने को पर कहना इसलिए पड़ेगा कि कोई भी किसी को रिजेक्ट करने के पहले समझने की कोशिश करें ।
  हां तो उसने एक तर्क दिया था कि गिरीश को पोलियो है इसके साथ बैठने से मुझे भी यह बीमारी लग जाएगी और मुझे इसके साथ नहीं बैठना है मुझे यह पसंद नहीं है।
   ऐसा रिजेक्शन मेरी कल्पना से बाहर था। हां इसके पहले भी हुआ था तब जबकि पॉलिटेक्निक कॉलेज में मैं अपनी मार्कशीट लेकर गया। तब एडमिशन करने वाला व्यक्ति मुझे कह रहा था देखो बहुत तुम डिप्लोमा इंजीनियर बनकर क्या करोगे तुमसे तो वह काम होंगे नहीं जो एक डिप्लोमा इंजीनियर को करने होते हैं।
  बिना किसी को कुछ बताएं मैंने यह तय कर लिया था कि अब किसी भी कॉलेज में एडमिशन लेने की जरूरत नहीं भगवान नामक तत्व मुझे मदद करेगा। भगवान कौन है क्या है मुझे क्या मालूम कैसा दिखता है यह भी नहीं जानता। पर आस्तिक जरूर हूं आज भी उतना ही।
   घर के सामने दुबे जी जो डीएन जैन कॉलेज में सेकंड ईयर के स्टूडेंट थे ने मुझे बबन भैया से मिलाया पवन भैया स्टूडेंट यूनियन के नेता थे नेता तो दुबे जी भी थे शायद ज्वाइंट सेक्रेट्री थे । और मुझे जबरदस्ती डीएन जैन कॉलेज ले जाया गया। और कहा तुम्हें एडमिशन नहीं लेना है कॉलेज में बैठा हूं फर्स्ट ईयर में सारे प्रोफेसर से पहचान करा दी प्रिंसिपल साहब से मिलवा दिया और मुफ्त में मैं बैठने लगा।
     एक रिजेक्शन के बाद मिला एक्सेप्टेंस फर्स्ट ईयर प्राइवेट करने के बाद सेकंड ईयर में मैंने एडमिशन जरूर ले लिया वातावरण मेरे अनुकूल हो गया था । पर कुछ रिजेक्शन अभी भी थे एक प्रोफेसर क्यों व्यक्तिगत रूप से मुझसे नफरत करते थे वजह क्या थी मुझे नहीं मालूम पर मुझे पता चला कि वह बाकी प्रोफ़ेसर्स द्वारा मुझे पसंद करने के कारण मुझसे चिढ़ते हैं ।
    हां तो वह स्टूडेंट जिसने नई जगह मांगी थी उसे  वीक्षक ने बुरी तरह डपट दिया और मुझे एक बहुत बेहतर जगह दी।
   रिजेक्शन के साथ एक्सेप्टेंस अगर तुरंत मिल जाता है तो शायद उत्साह दुगुना हो जाता है और साहस भी आत्म साहस में बदल जाता है। उधर सबको मुझ पर संवेदनाएं लुटाते हुए देख मैंने सब से यह अनुरोध किया कि मुझे यह भी रिजेक्शन की तरह ही लगता है तुम सब मुझे दोस्त के नजरिए से देखो। हुआ भी वही दोस्त बना दोस्तों का और फिर मित्रों को लीड भी किया। यहां पूरी कहानी बताने का अर्थ यह है कि भाई शिखर पर चढ़ने के लिए रिजेक्शन मिले तो भी कोशिश करना मत छोड़ना। और आज भी जब कोई रिजेक्शन मेरे पास आता है तो हिम्मत दुगनी बढ़ जाती है। कैसा लगा मेरा जीवन अनुभव यह क्या तुम्हारी आंखों में आंसू अरे भाई इतना तो मैं भी नहीं रोया रोने की जरूरत ही क्या है रिजेक्ट तो तुम्हें भी किया होगा किसी ने पर ध्यान रहे स्वीकृत भी बहुत लोग करते हैं और शिखर पर चढ़ने का एकमात्र यही तरीका है दूसरा कोई नहीं।
  

8.8.21

नीरज चोपड़ा की जीत से सबा नक्वी को तकलीफ हुई है...!

एक शर्मनाक और दिल को चोट पहुंचा देने वाली टिप्पणी की है सबा नक्वी ने। जी हां और कोई मुद्दा होता तो शायद इन्हें क्षमा भी कर दिया जाता परंतु सबा नक्वी ने नीरज चोपड़ा की जीत खासकर गोल्ड मेडल जीतने पर एक बड़ी अभद्र टिप्पणी की है .
देखेंगे क्या लिखती हैं
Just the way we are all celebrating one gold shows how starved we were for it..
वे मानती हैं कि हम गोल्ड मेडल के सोने के लिए कितने लालची हैं तभी तो हम जश्न मना रहे हैं। एक पत्रकार टिप्पणीकार विचारक का यह अशोभनीय ट्वीट देख कर बहुत दुख हुआ।

  और दूसरी और मैं बहुत खुश हूं इस वतन की हर एक उस इंसान के साथ जो सिर से पांव तक गौरव का अनुभव कर रहा है। हर हिंदुस्तानी के मन में नीरज के लिए सम्मान जाग उठा है। ऐसी हजारों लाखों प्रतिभाएं भारत की गली कूचे मोहल्लों में अब तक अवसर न मिलने के कारण जब जाया करती थी लेकिन आप कुछ वर्षों से उस सुबह का आगाज हो चुका है जो सुबह अपनी उजली किरणों से भारत को रोशन करती है . अवसर तो अब मिल रहे हैं पर समूचे देश में एक प्रभावी खेल नीति की भी जरूरत है। आज सुबह सुबह ट्विटर के स्पेस में चर्चा चल रही थी कि दक्षिण एशियाई देशों में स्वर्ण पदक कम क्यों आते हैं ?
  संवादों से निकले निष्कर्ष थे...
[  ] अखंड भारत महा क्षेत्र में भारत को छोड़कर अन्य किसी देश में खेलों के प्रति सकारात्मक वातावरण नहीं है
[  ] लोगों का यह भी मानना था कि प्रत्येक देश की अपनी प्राथमिकताएं हैं और प्रतिभाओं के संरक्षण और प्रोत्साहन जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकताओं में छिप जाती है या कम है।
[  ] कैनेडियन वक्ता ने कहा कि-" भारत को छोड़ दिया जाए तो शेष दक्षिण एशियाई देश न केवल इकोनॉमिकली कमजोर हैं बल्कि उनकी बौद्धिक क्षमता भी कमजोर है। "
[  ] एक पाकिस्तानी मूल के वक्ता ने अपने देश की प्रतिभाओं को ना पहचानने के लिए वहां के समाज और सरकारी दोनों पक्षों को दोषी करार दिया है।
मित्रों यह बात सही है कि भारत का लोकतंत्र बेहद प्रभावी और परिपक्व होता नजर आ रहा है परंतु बाहरी यानी आयातित विचार शैली के कारण जनता के मन मानस में भटकाव है।
   सुधि पाठको.... भारत के युवा अब सम्मान के महत्व को समझने लगे हैं और वह अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए सजग होते जा रहे हैं। उसी का परिणाम है कि टोक्यो ओलंपिक 2020 जो अपने समय से 1 वर्ष बाद यानी 2021 में खेला जा रहा है में भारत के युवा खिलाड़ियों ने एक स्वर्ण दो रजत और चार कांस्य पदक हासिल किए हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने जीते हुए खिलाड़ियों को जहां एक और बधाई दी वहीं दूसरी ओर उन्होंने पदक ना पानी वाली टीम के मनोबल को बढ़ाने के लिए उन से टेलीफोन पर बातचीत की उन्हें ढांढस बंधाया ताकि वे भविष्य में निराशा के अंधेरे में अपने लक्ष्य से ना भटक जाएं। और दूसरी ओर मेजर ध्यानचंद के नाम पर राष्ट्रीय खेल पुरस्कार देने के मुद्दे पर राजनीति की परोपकारों और राष्ट्र के प्रति नकारात्मक भाव रखने वाली सबा नक्वी जैसे व्यक्तियों के सीने पर सांप भी लोटा है ।
मित्रों जब देश की सेना एयर स्ट्राइक करती है तो उनसे सबूत मांगा जाता है ऐसे अविश्वास फैलाने वाली ताकतों और अपने गलत नैरेटिव को स्थापित करने वाली ताकतों की मस्तिष्क को खोलने की जरूरत है। उन्हें समझाना होगा कि वे जिस थाली में भोजन करें कम से कम उसमें छेद तो ना करें। समूचे भारत को बधाई स्वर्ण रजत कांस्य पदक विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएं

2.8.21

चाणक्य की अर्थवत्ता लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया

【 लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया, मध्यप्रदेश शासन में संयुक्त कलेक्टर के पद पर जबलपुर में कार्यरत हैं । उनकी फेसबुक वॉल से साभार आपकी समीक्षा आर्टिकल प्रस्तुत है ] 

चाणक्य नाम मन:पटल पर आते ही मौर्ययुगीन आचार्य विष्णुगुप्त या कौटिल्य का चित्र उभर कर सामने आता है। चणक ऋषि के पुत्र होने के कारण आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य कहलाए। चाणक्य का शाब्दिक अर्थ प्रतीति कराता है- जो चार नीतियों का विशेषज्ञ हो। बुंदेलखंड में आज भी चतुर लोगों को कहते हैं- बड़ा चणी आदमी है। यद्यपि शब्दकोश में इस प्रकार का अर्थ नहीं मिलता परंतु जबलपुर जिले के संस्कृत के प्रकांड पंडित आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी से जब चर्चा की उन्होंने भी चाणक्य के शाब्दिक अर्थ को मेरे मतानुसार पुष्ट किया। अतः इससे यह तो तय होता है कि "चा" यानि चार तथा "नक्य" यानी नीति। इस प्रकार चाणक्य चार नीतियों के विशेषज्ञ के रूप में ही प्रकट होते हैं। चार नीतियां हैं- साम, दाम, दंड एवं भेद। यहां साम का तात्पर्य विनय या प्रार्थना से है। दाम का अर्थ प्रलोभन या लालच से लिया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास मानस में लिखते है- "बहु दाम संवारहिं धाम जती" अर्थात दाम से अनेकों धाम भी संवर जाते है और कहीं न कहीं वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में सर्वाधिक उपक्रम इसी नीति पर आधारित है। दंड का अर्थ सजा देना है एवं भेद की पृष्ठभूमि मन से संबंधित है। यह नीति का ऐसा प्रयोग है जिसमें मनभेद कर दूसरे के प्रति एक स्थाई भाव मन में उतपन्न किया जाता है। भेद नीति को रहस्योद्घाटन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा किसी प्रिय या संबंधी के प्रति मन में विद्वेष उत्पन्न किया जाता है।
इतिहास के पन्ने पलटने पर आचार्य विष्णुगुप्त चारों नीतियों के विशिष्ट विद्वान दिखाई देते हैं। परंतु आचार्य विष्णुगुप्त के पूर्व भी यह नाम अस्तित्व में था बिलकुल वैसे ही जैसे राम के पूर्व जामदग्नेय परशुराम भी राम के रूप में जाने जाते थे। तो क्या आचार्य विष्णुगुप्त को चारों नीतियों का एकमात्र ज्ञाता या श्रेष्ठ आचार्य मान लिया जाए?? मन इसे स्वीकारने को तैयार नहीं था। आज अचानक सुंदरकांड पढ़ते हुए दशानन एवं हनुमान जी के सुंदर संवाद पर विशेष ध्यान गया, तो पाया कि आचार्य विष्णुगुप्त तो पृथक-पृथक समय पर चारों नीतियों का प्रयोग करते थे, परंतु नीतिवान श्रीराम के दूत मतिमान हनुमान तो एक ही समय एवं स्थान पर इन नीतियों का प्रयोग करने में पूर्ण दक्ष एवं कुशल थे।
सुंदरकांड के 21वें दोहे में वह श्री राम की प्रभुता का वर्णन करने के साथ-साथ लंकेश से पृथम नीति विनय का प्रयोग करते हैं। जब दशानन विनय से आंजनेय की बात नहीं मानता है तो वह श्रीराम की शरण में आने के परिणाम बताते हुए कहते हैं कि- लंकेश यदि तुम प्रभु श्री राम की शरण में आते हो तो वह तुम्हें क्षमा कर देंगे। इसके उपरांत तुम लंका में अविचल राज्य करना। इस प्रकार हनुमान जी दाम नीति के तहत अविचल राज्य का प्रलोभन देते हैं। जब दशानन इन नीतियों के प्रभाव में नहीं आता है तो वह दंड नीति का प्रयोग करते हुए श्री राम के बल का वर्णन करते हुए दशग्रीव को राम से युद्ध के परिणाम के रूप में कहते हैं, कि राम के विमुख होने पर हजारों विष्णु, शंकर एवं ब्रह्मा भी तुम्हें नहीं बचा सकते। हनुमान जी केवल दंड का उपदेश ही नही देते अपितु अतुलित बल के स्वामी जगदीश्वर श्री राम के दूत या अतुलित बल के धाम होने के कारण दंड का प्रयोग कर लंका विध्वंस भी कर डालते हैं। रामदूत की चतुरता इसी में है कि वह दंड नीति के प्रयोग के पूर्व ही विभीषण से अपने पक्ष की बात कहलवाकर रावण के मन में भेद नीति का बीजारोपण कर देते हैं।
इस प्रकार मतिमान हनुमान एक ही स्थान एवं समय में चारों नीतियों का प्रयोग कर चाणक्य शब्द को वास्तविक अर्थवत्ता प्रदान करते हैं।
देखें-
1- बिनती करउँ जोरि कर रावन।
    सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।( साम नीति)

2- राम चरण पंकज उर धरहु।
   लंका अचल राज तुम्ह करहूं।।
(दाम नीति)

3- संकट सहस विश्नु अज तोहि।
    सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।
               अथवा 
    उलट-पुलट लंका सब जारी।
    कूद परा पुन सिंधु मझारी।।
(दंड नीति)

4- नाय सीस करि विनय बहूता।
    नीति विरोध न मारिअ दूता।।
    आन दंड कछु करिअ गोसाईं।
    सवहीं कहा मंत्र भल भाई।।
(भेद नीति)

1.8.21

भाई तो खून का नाता है सिरफ़...! दोस्त वरदान ज़िंदगी के लिए.. !

*भाई तो खून का नाता है सिरफ़*
*दोस्त वरदान ज़िंदगी के लिए.. !*
     दोस्ती के नए फार्मूले में भले ही यह कहा हो कि हर एक दोस्त क मीना होता है। परंतु मित्रता एक सदाबहार पर्व है। मैत्री भाव सबसे अलग ऐसा अनोखा भाव है जो सबकी आंतरिक चेतना में पाया जाता है। परंतु यह वो दौर नहीं है ।
भारतीय इतिहास में मैत्री भाव का सबसे बड़ा उदाहरण कृष्ण और सुदामा मैत्री था। तो भामाशाह और महाराणा प्रताप की मैत्री भाव को कैसे भूला जा सकता है। आपको याद होगा और अगर ना भी हो तो विश्वास कीजिए यही मैत्री भाव राजा दाहिर ने परिभाषित किया था। इस्लाम के अभ्युदय के समय हिंदू राजा दाहिर का बलिदान इस्लाम के प्रवर्तक के प्रति मैत्री भाव का सर्वोच्च उदाहरण है। कवि चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान की अटूट मैत्री विश्व जानता है। यह अलग बात है कि राजा दाहिर के त्याग के बावजूद भारतीय मैत्री भाव का मूल्यांकन आयातित विचारधारा नहीं कर सकी है। भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के आत्मउत्सर्ग के आधार पर हुए मैत्री भाव ने देश के सम्मान के लिए क्या कुछ नहीं किया। मैत्री भाव में आयु ज्ञान ओहदा पद प्रतिष्ठा सब कुछ द्वितीयक हो जाती है। मैत्री भाव राजनीति और रक्त संबंध से परे है। मित्रों मैत्री भाव लिंग भेद नस्लभेद जातिभेद से परे होता है। जो मित्र इन सभी सीमाओं को किनारे रखकर मित्रता करते हैं उन सभी मित्रों को मित्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं बधाई वंदे मातरम
*गिरीश बिल्लोरे मूकुल*

25.7.21

Story of Mahjabeen Bano | Josh Talks Hindi thanks Narendra Modi ji ............ thanks national balbhavan.......

 



नेशनल बालभवन की कला साधिका की कहानी जो रुलाती भी है  तो प्रेरणादायक भी है ।  इस बेटी ने दिल्ली में खुद को साबित कर दिया । दिव्यांग महिला मेहजबीन को मुख्तार अब्बास नकवी एवम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जो सहृदयता दिखाई शायद उसका गौरव भी आप अवश्य महसूस करेंगे ।

आजाद जबलपुर आए थे...प्रो आनंद राणा




इतिहास  संकलन समिति महाकोशल प्रांत की ओर से शोध के आलोक जबलपुर के इतिहास में पहली बार यह तथ्य सामने आया कि महा महारथी श्रीयुत चंद्रशेखर आजाद जबलपुर गुप्त प्रवास पर महा महारथी श्रीयुत प्रणवेश चटर्जी के यहाँ आए 🙏🙏.. इस चित्र पंडित जी की शहादत के बाद क्रांतिकारियों ने "आजाद मंदिर" के नाम से बनाया था..


 महारथी रामप्रसाद बिस्मिल पंक्तियाँ कितनी सटीक बैठती हैं.. "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है.. देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है".. काकोरी कांड या षड्यंत्र नहीं है या लूट नहीं है (जैंसा कि अंग्रेजी इतिहासकारों और उन पर आश्रित कांग्रेस पोषित कतिपय भारतीय इतिहासकार और मार्क्सवादी इतिहासकारों ने लिखा है..इन लोगों ज्यादती तो देखिये कि इन लोगों ने क्रांतिकारियों को आतंकवादी कह डाला ) काकोरी यज्ञ है जिसमें क्रांतिकारियों ने लुटेरे अंग्रेजों से अपनी पवित्र आहुतियां देकर धन का अधिग्रहण कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया..


पंडित जी ने..भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम सेना बनायी (एच. एस. आर. ए.).. आजाद के नेतृत्व में लाला जी के हत्यारे का साण्डर्स का वध.. असेंबली में बम..सरदार भगतसिंह और रूस जाने के संबंध में आनंद भवन में नेहरू जी से मिले.. कुछ देर बाद ही इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में नाट बावर और पूरी कंपनी के साथ से घेराव.. युद्ध का आरंभ 27 फरवरी 1931.. एक घंटे की जंग फिर केवल एक पिस्तौल में 8 कारतूस और एक मैग्जीन 8 कारतूस.. 15 फायर 1इंस्पेक्टर और 14 पुलिस वालों का सफाया.. घायल महारथी 1गोली और स्वयं शहीद.. आगे प्रश्न बहुत हैं फिर कभी विचार करेंगे.. अभी तो प्रसन्नता का अवसर है 
🙏 🙏 
अवतरण दिवस 23 जुलाई  पर शत् शत् नमन है 
🙏🙏🙏
डॉ आनंद सिंह राणा, इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत
 🙏🙏🙏


 

24.7.21

जल बिन तरसे मीन जैसे गुरु बिन तरसूं मैं

अपने अनंत गुरुओं को शत शत नमन करते हुए आप सब को सुप्रभात ।
    मित्रों और सुधि पाठक जन आप सब मेरे गुरु हैं। अगर कोई मेरा शत्रु है तो उसे मैं अपने सबसे बड़े गुरु के रूप में मानता हूं स्वीकारता भी हूं...! चलिए यह तो लौकिक बात हुई। वास्तविकता यह है कि जीवन को अचानक बदल देने वाला गुरु अलौकिक रूप से मेरे साथ है। लौकिक रूप से शिवाय जनेऊ संस्कार के आज तक मैंने आध्यात्मिक दीक्षा नहीं ली है। परंतु अलौकिक गुरु के रूप में सबसे पहले मेरा परिचय स्वामी शुद्धानंद नाथ से हुआ । उनके विषय में बहुत अधिक जानकारी यहां नहीं दूंगा। इतना जानिए कि वे ना मिले होते तो शायद हम प्रपंच में अध्यात्म के योग को नहीं समझ पाते। स्वामी जी अतिशय स्नेह रखते थे । आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उनके सूत्रों से समझ पड़ता है कि वह क्या कहना चाहते थे। स्वामी जी ने हमारे जैसे कई मध्यवर्गीय परिवारों को आध्यात्मिक चिंतन दीया। बहुत छोटा था मैं जब उनसे स्पर्श दीक्षा मिली। स्वामी जी अद्भुत चमत्कारी योगी नहीं थे बल्कि वे कर्म और कर्म फल के सिद्धांत को आलोकित और परिभाषित करते रहे।

 उनका परिचय जानना चाहते हो तो आपको बता दूं ग्वारीघाट में अग्रवाल धर्मशाला के पहले उनके भाई साहब का आश्रम श्रीपाद आश्रम के नाम से जाना जाता है। दोनों ही भाई फॉरेस्ट कंजरवेटर के पुत्र थे और दोनों ही अध्यात्म मार्ग पर चल निकले। शत शत नमन

     दूसरे गुरुदेव के रूप में स्वामी शिवदत्त महाराज से गोसलपुर जिला जबलपुर में किशोरावस्था में संपर्क हुआ । उनके साथ कई चमत्कारिक अनुभव हुए हैं। उन्हें शत-शत नमन
  तीसरे गुरु  स्वामी विवेकानंद के रूप में मेरे साथ हैं...! स्वामी विवेकानंद ने जीवन को एकदम बदल दिया। और यह वह अवस्था थी जब युवा अक्सर भ्रमित रहता है। लेकिन स्वामी जी के उपदेशों ने जीवन का क्रम ही बदल दिया। युवा अवस्था में उनसे अलौकिक साक्षात्कार कई बार हुए हैं और अभी भी जब उनकी किताबों को पढ़ते हैं तब उनसे वार्ता का आभास होता है।
ब्रह्मलीन पूज्य मूलानंद ब्रह्मचारी स्वामी जी शुद्धानंद जी के शिष्य के पिताजी के गुरु भाई और मेरे ब्रह्मचारी जी कई बार हम उन्हें चाचा जी का संबोधन भी देते थे। ब्रह्मचारी जी को शत शत नमन
   पिछले 3 वर्षों से आयुर्वेदिक वैज्ञानिक एवं महान सन्यासी जो लगभग 275 वर्ष की आयु के आसपास महायात्रा पर है जी हां मैं बर्फानी दादाजी की बात कर रहा हूं का संपर्क रहा। पूज्य बर्फानी दादाजी को शत शत नमन ।
    अपने कुलगुरू, तथा जीवन के  पहले मां और पिताजी को शत शत प्रणाम आज भौतिक रूप से पिताजी के अलावा किसी गुरु के चरणों को स्पर्श नहीं कर पाऊंगा परंतु मानसिक रूप से सभी गुरुओं को नमन
गुरु के बिना मन कैसा महसूस करता है इस गीत में लिखने की कोशिश बचपन में ही की थी यह गीत आंशिक बदलाव के साथ बावरे फकीरा एल्बम में आभास ने गाया है
जल बिन तरसे बिन जैसे
गुरु बिन गुरु बिन तरसूं मैं ।
***
ना बदलना अवनि सहारा
न जल थल अंबर का प्यारा
रोते-रोते नैना रीते.......
किस विधि बरसूं मैं ।।
***
गहन तिमिर तू ज्योति समर दे
राह भ्रमित मोहे उचित डगर दे
दर्प-शिला रज-चरण असर दे ,
हरसूँ बरसूं मैं....!
***

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...