मित्रों और सुधि पाठक जन आप सब मेरे गुरु हैं। अगर कोई मेरा शत्रु है तो उसे मैं अपने सबसे बड़े गुरु के रूप में मानता हूं स्वीकारता भी हूं...! चलिए यह तो लौकिक बात हुई। वास्तविकता यह है कि जीवन को अचानक बदल देने वाला गुरु अलौकिक रूप से मेरे साथ है। लौकिक रूप से शिवाय जनेऊ संस्कार के आज तक मैंने आध्यात्मिक दीक्षा नहीं ली है। परंतु अलौकिक गुरु के रूप में सबसे पहले मेरा परिचय स्वामी शुद्धानंद नाथ से हुआ । उनके विषय में बहुत अधिक जानकारी यहां नहीं दूंगा। इतना जानिए कि वे ना मिले होते तो शायद हम प्रपंच में अध्यात्म के योग को नहीं समझ पाते। स्वामी जी अतिशय स्नेह रखते थे । आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उनके सूत्रों से समझ पड़ता है कि वह क्या कहना चाहते थे। स्वामी जी ने हमारे जैसे कई मध्यवर्गीय परिवारों को आध्यात्मिक चिंतन दीया। बहुत छोटा था मैं जब उनसे स्पर्श दीक्षा मिली। स्वामी जी अद्भुत चमत्कारी योगी नहीं थे बल्कि वे कर्म और कर्म फल के सिद्धांत को आलोकित और परिभाषित करते रहे।
उनका परिचय जानना चाहते हो तो आपको बता दूं ग्वारीघाट में अग्रवाल धर्मशाला के पहले उनके भाई साहब का आश्रम श्रीपाद आश्रम के नाम से जाना जाता है। दोनों ही भाई फॉरेस्ट कंजरवेटर के पुत्र थे और दोनों ही अध्यात्म मार्ग पर चल निकले। शत शत नमन
दूसरे गुरुदेव के रूप में स्वामी शिवदत्त महाराज से गोसलपुर जिला जबलपुर में किशोरावस्था में संपर्क हुआ । उनके साथ कई चमत्कारिक अनुभव हुए हैं। उन्हें शत-शत नमन
तीसरे गुरु स्वामी विवेकानंद के रूप में मेरे साथ हैं...! स्वामी विवेकानंद ने जीवन को एकदम बदल दिया। और यह वह अवस्था थी जब युवा अक्सर भ्रमित रहता है। लेकिन स्वामी जी के उपदेशों ने जीवन का क्रम ही बदल दिया। युवा अवस्था में उनसे अलौकिक साक्षात्कार कई बार हुए हैं और अभी भी जब उनकी किताबों को पढ़ते हैं तब उनसे वार्ता का आभास होता है।
ब्रह्मलीन पूज्य मूलानंद ब्रह्मचारी स्वामी जी शुद्धानंद जी के शिष्य के पिताजी के गुरु भाई और मेरे ब्रह्मचारी जी कई बार हम उन्हें चाचा जी का संबोधन भी देते थे। ब्रह्मचारी जी को शत शत नमन
पिछले 3 वर्षों से आयुर्वेदिक वैज्ञानिक एवं महान सन्यासी जो लगभग 275 वर्ष की आयु के आसपास महायात्रा पर है जी हां मैं बर्फानी दादाजी की बात कर रहा हूं का संपर्क रहा। पूज्य बर्फानी दादाजी को शत शत नमन ।
अपने कुलगुरू, तथा जीवन के पहले मां और पिताजी को शत शत प्रणाम आज भौतिक रूप से पिताजी के अलावा किसी गुरु के चरणों को स्पर्श नहीं कर पाऊंगा परंतु मानसिक रूप से सभी गुरुओं को नमन
गुरु के बिना मन कैसा महसूस करता है इस गीत में लिखने की कोशिश बचपन में ही की थी यह गीत आंशिक बदलाव के साथ बावरे फकीरा एल्बम में आभास ने गाया है
जल बिन तरसे बिन जैसे
गुरु बिन गुरु बिन तरसूं मैं ।
***
ना बदलना अवनि सहारा
न जल थल अंबर का प्यारा
रोते-रोते नैना रीते.......
किस विधि बरसूं मैं ।।
***
गहन तिमिर तू ज्योति समर दे
राह भ्रमित मोहे उचित डगर दे
दर्प-शिला रज-चरण असर दे ,
हरसूँ बरसूं मैं....!
***