26.9.18

माओ के मवाद को साफ़ करना ही होगा

आतंकवादी 
वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे
       बेतरतीब बेढंगे
नकारात्मक विचारो का सैलाब
   शुष्क पथरीली संवेदना
कटीले विचारो से लहू-लुहान
सूखी-बंज़र भावनाओ का निर्मम 
            "प्रहार "
कोरी भावुकता रिश्ते रेत सामान
हरियाली असमय वीरान
उजड़ता घरोंदा बिखरते अरमान
  टूटती-उखड़ती साँसे जीवन
             " बेज़ान  "
स्वयं से डरी सहमी अंतरात्मा
        औरो को डराती
शुष्क पथरीली पिशाची आत्मा का
          " अठ्ठाहास  "
वृथा कल्पनाओ से डरे सहमे बेतरतीब
       बेढंगे आतंकवादी
    सब के सब एक सामान
         आतंकवादी.......
  भगवानदास गुहा, रायपुर छत्तीसगढ़   

मैं खामोश बस्तर हूँ,लेकिन आज बोल रहा हूँ।
अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ।
मैं उड़ीसा,आंध्र,महाराष्ट्र की सीमा से टकराता हूँ।
लेकिन कभी नहीं घबराता हूँ
दरिन्दे सीमा पार करके मेरी छाती में आते हैं।
लेकिन महुआ नहीं लहू पीकर जाते हैं।
मैं अपनी खूबसूरत वादियों को टटोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा  हूँ।
गुंडाधूर को आजादी के लिए मैने ही जन्म दिया था।
इंद्रावती का पानी तो भगवान राम ने पीया था।
भोले आदिवासी तो भाला और धनुष बाण
चलाना जानते थे।
विदेशी हथियार तो उनकी समझ में भी नहीं आते थे।
ये विकास की कैसी रेखा खींची गयी,
मेरी छाती पे लैंड माईन्स बीछ गयी।
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब 
लेकिन बोल रहा हूँ
मेरी संताने एक कपड़े से तन ढकती थी।
हंसती थी,गाती थी,मुस्कुराती थी।
बस्तर दशहरा में रावण नहीं मरता है।
मुझे तो पता ही नहीं था
रावण मेरे चप्पे चप्पे में पलता है।
भाई साहब अब तो मेरी संताने भी
मुखौटे लगाने लगी हैं।
लेकिन ये नहीं जानती हैं कि
बहेलियों ने जाल फ़ेंका है।
मैने कल मां दंतेश्वरी को भी
रोते हुए देखा है।
मैं लाशों के टुकड़ों को जोड़ रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ..
नक्सलवाद मेरी आत्मा का एक छाला था
फ़िर धीरे-धीर नासूर हुआ,
और इतना बढा-इतना बढा कि
बढकर इतना क्रूर हुआ
चित्रकूट कराह रहा है,कुटुमसर चुप है
बारसूर में अंधेरा घुप्प है,क्योंकि हर पेड़ के पीछे एक बंदुक है।
और बंदुक नहीं है तो उन्होने कोई रक्खी है।
अरे उन्होने तो अंगुलियों को भी
पिस्तौल की शक्ल में मोड़ रखी है।
सन 1703 में मैथिल पंडित भगवान मिश्र ने जिस दंतेश्वरी का यशगान लिखा,
उसका शब्द शब्द मौन है।
अरे कांगेरघाटी,दंतेवाड़ा,
बीजापूर,ओरछा,सूकमा कोंटा में
छुपे हुए लोग कौन हैं?
मेरी संताने क्यों उनके झांसे में आती हैं।
ये इतनी बात इनकी समझ में क्युं नहीं आती है।
सड़क और बिजली काट देने से तरक्की कभी गांव में नहीं आती है।
मैं अपने पुत्रों की आंखे खोल रहा हूँ,
*मैं खामोश बस्तर हूं भाई साहब लेकिन आज बोल रहा हूँ।*
6 अप्रेल को 76 जवान दंतेवाड़ा में शहीद होते हैं,
8 मई को 8 लोग शहादत से नाता जोड़ते हैं।
23 जून को 29 जवान शहीद होते हैं,
27 जून को 21 जवान शहीद होते हैं।
11 मार्च को 16 जवान शहीद होते है..  
अप्रैल 16 जवान शहीद होते है ....
कल फिर सुकमा में 26 जवान शहीद हो गये ......
*मैं शहीदों की माताओं के आगे  हाथ जोड़ रहा हूँ..*
*मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब लेकिन बोल रहा हूँ...*
इंजीनियर सुनील पारे , विजय नगर जबलपुर    

बस्तर  की आज़ादी के नारे लगाता
जे एन यू.. जाधवपुर का हुजूम......
व्यवस्था के खिलाफ
बरसों से पाली जा रही
आयातित विचारधाराओं की विष बेलें
सहिष्णुता के नाम पर
डेमोक्रेसी के धुर्रे उडाती
माओ की विवादी जमात
पूर्वोत्तर में पलती कुंठा
एक असभ्य अभ्यास
सुनी है न
रवीश की बेतरतीब रिपोर्ट   
शहादत पर  
शब्दों का व्यापार करते
बेरहम लोग...
सुना है एवार्ड वापस नहीं हो रहे
माओ के मवाद
को
साफ़ करना ही होगा
कैसे ..........?
यही सोच रहे हैं ....... सब ........
वो भी जड़ से .........
जड़ कहाँ है
तुमको मालूम है न ?
गिरीश बिल्लोरे मुकुल , जबलपुर    


सोशल-मीडिया पर छील देते हैं मित्र सलिल समाधिया


            
 सलिल समाधिया 
  स्वभाव गत बेबाक ,  
 सलिल समाधिया  मेरी मित्रसूची में सर्वोपरी हैं. सोशल मीडिया के जबलपुरिया  लिक्खाड़ इन दिनों स्तब्ध नि:शब्द से जान पडतें हैं. सलिल फ़िज़ूल बातों से दूर अपनी मौज की रौ में बह रहे हैं.  आइये हम देखें एक ज़बरदस्त पोस्ट .. 
कल एक मित्र ने पूछा , "आप, सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर क्यों नहीं लिखते हो ?
अब जवाब सुनिए,
         हाँ, मैं नहीं लिखता ..रेप पर , मॉब लिंचिंग पर, राजनीति पर, गरीबों की व्यथा पर ,
क्योंकिं... मैं नहीं चाहता की मैं अपनी पीड़ा और आक्रोश का लावा शब्दों के जाम में उडेलूं और उसे सोशल मीडिया पर शराब की तरह पिया जाए...
क्योंकि ..बोल लेने से , बक लेने से
बुझ जाती है ..आग
चुक जाता है ..वीर्य
कुंठित हो जाता है ..पुंसत्व !
इसीलिए तॊ ये देश , क्लीवों का देश हो गया है !
..
क्योंकि , चित्रों , नाटकों और कविताओं ने सोख ली है ...ज़ेहन की गर्मियां और कसी मुट्ठियों की आग !
हां , मैं प्रेम बांटता हूं , और आग संजो के रखता हूं ,
इस क़दर कि ,
काट सकूं , अस्मत पे बढ़ते हाथ !
रुदन बना सकूं , राक्षसी अट्टहास को !
प्रेम , श्रंगार, सौंदर्य के मामलों में मैं कवि हूं ,
पाप और अन्याय के मामलों में मैं फ़ौजी हूं !
     ये आत्मश्लाघा नहीं है , किन्तु हमारे मित्र , परिचित , और विशेषकर महिला मित्र इस बात को भली तरह जानते हैं कि ...अन्याय के विरुद्ध , कैसी - कैसी ताक़तों से हम .लोहा लिए हैं !
लेकिन समाजिक विषयों पर लेख लिखना , मुझे बिल्कुल नहीं भाता , .
...
बहुत से कारण हैं , चलिए एक उदाहरण देता हूं कि मैं स्त्री - विमर्श पे क्यों नहीं लिखता ...
बहुत खरा और कड़वा लिखूंगा , टॉलरेट कर लीजिएगा !
कहीं दूर नहीं , अपने ही मित्रों की बात करूंगा , जिनमें प्रोफ़ेसर , क्लास वन ऑफिसर्स , वक़ील , कलाकार सब शमिल हैं !
पहले ये जान लीजिए कि भारत के पुरुषों का ' माइंड सेट ' क्या है ? भारत का पुरूष निहायत ही छिछोरा , लम्पट और घोर पुरुषवादी सोच का है !
     भारत में 10 में से 7 पुरुष आपको ऐसे मिलेंगे जो अपनी प्रेमिका को 'सेटिंग ' और मिलन को 'काम लगा दिया ' जैसे शब्दों से सुशोभित करते हैं ! अपनी पत्नियों के बारे में भी बाहर बहुत भौंडे शब्दों का प्रयोग करते हैं
वो स्त्री , जो प्रेम में अपना सर्वस्व उत्सर्ग कर देती है , उसके लिए सेटिंग और सामान जैसे शब्द ..? बेशक ये शब्द भारत के पुरुष के अवचेतन (..sub - conscious ) में छिपे भावों का पता देते हैं ! जहां प्रेम.... है ही नहीं , बस गंदी , लिजलिजी वासना का राक्षस खड़ा है !
अब ऐसे छिछोरे वीर्य कणों से जो संतानें पैदा होंगी , वे निहायत ही पुरुषवादी , स्त्री को भोग और दासी समझने वाली न होंगी , ऐसा सोचना , आँख पे पट्टी बांध लेना ही है !
ये सामूहिक मनसिकता सब ओर संचारित है ! और यही प्रकट होती है बच्चों , स्त्रियों पे गिद्धों की तरह !
           अब आप लाख सोशल मीडिया पे निर्भया कठुआ ,मंदसौर करते रहिए , मगर जब तक आपके घर के पुरुषों के रक्त में ये कुंठित पुरुषवाद दौड़ रहा है आपके लेख , कविताओं , चित्रों से कुछ नहीं उखड़ने वाला !
           आपमें साहस है तॊ स्पॉट पे प्रहार करें ! लेकिन वो तॊ तब होगा न , जब नसों में लावा बह रहा होगा ,
आप तॊ कविताएं , लेख , टिप्पणी लिखकर नदारत हो जाने वालों में से हैं न ! !
               इन छिछोरों से आप प्रेम की , रोमांस की , भावनाओं की गहराई की अपेक्षा करते रहिए , मैं नहीं कर सकता !
.....
जी हाँ , मैं इसीलिए नहीं लिखता इन विषयों पर ! !
साइकोलोजिस्ट कहते हैं कि अगर आत्महत्या करने वाला व्यक्ति , एक पेज़ से लम्बा सुसाइड नोट लिख ले , तॊ फिर उसके सुसाइड करने कि संभावना ख़त्म हो जाती हैं ! ...क्योंकि उसका अवचेतन सब उगलकर शान्त हो जाता है !
             भारत में कोई क्रांति नहीं हो सकती , क्योंकि सोशल मीडिया पे सामाजिक सरोकारों के लेख , चित्र , कविताएं ..सब गर्मी और आक्रोश को सोख लेते हैं !
छिनाल पन से भरे चित्त , रेप के विरोध में लिख रहे हैं !
आकंठ भ्रष्टाचारी , ईमानदारी और परिवर्तन की बातें करते हैं !
स्वयं क्रूरता से भरे तमाशबीन लोग , .. स्त्री अत्याचार , मॉब लिन्चिन्ग , दलित उत्पीड़न पर लिख रहे हैं !
नहीं , मैं कभी भी इस .नकली जमात में खड़ा नहीं हो सकता ! मैं नहीं चाहता कि मेरा वीर्य , सोशल मीडिआ के अक्षर सोख लें !
...
मैं इस दिव्य असंतोष के लावे के तेज से दैदीप्यमान हूं ,
...इसीलिए, ' स्पॉट ' पे जूझता हूं , ' पोस्ट , पे नहीं !


24.9.18

Daughters Day बेटी के इरादों से ऊंचा नहीं है एफिल टावर

#Daughters_Day 
बेटी के इरादों से ऊंचा नहीं है एफिल टावर
मेरे कांधे पर जिस बेटी का सिर है वह है Shivani Billore बेटियों पर गर्व करना यह सारी बेटियां अब काम कर रही हैं मुझे गर्व है कि मेरी बड़ी बेटी शिवानी अगले दो-तीन दिनों में कंपनी की ओर से पुनः एक बार विदेश यात्रा पर होगी इस बार शिवानी जा रही है बेल्जियम के ब्रुसेल्स शहर में जो बेल्जियम की राजधानी है बीच में उसे उसे दुबई भी जाना था किंतु कंपनी की जो भी परिस्थिति रही हो शिवानी Ey में सीनियर एसोसिएट के पद पर पदस्थ है।
गर्व है और कृतज्ञ हूं शिवानी के गुरुजनों का जॉय किंडर गार्डन के श्री प्रवीण मेबैन जो मेरे मित्र भी हैं के स्कूल में शिवानी की शिक्षा प्रारंभ हुई कठोर अनुशासन मेहनत लगन के साथ श्री प्रवीण मेंबेन ने शिवानी में आत्मविश्वास जगाया तो फिर आगे की जिम्मेदारी निभाई जॉय सीनियर सेकेंडरी स्कूल ने जहां इसकी बुनियाद मजबूत हुई । शिवानी ने मुझे 9 वीं क्लास में ही बता दिया था कि पापा मुझे साइंस नहीं पढ़ना है ।
काफी समझाने के बाद शिवानी ने अपने तर्कों के जरिए मुझे इस बात के लिए कन्वेंस करा लिया कि वह साइंस तो नहीं पड़ेगी और मैं संतुष्ट भी था लेकिन परिवार और समाज के काफी सारी लोग यह समझते थे कि साइंस लेकर पढ़ना ही समय की मांग पता नहीं कैसे शिवानी ने कैलकुलेट किया कि उसे कॉमर्स लेकर पढ़ना चाहिए और वह दृढ़ रही उस के संकल्प के आगे मैं नतमस्तक था मुझे उसका फैसला मंजूर था यह अलग बात है उन सब को बहुत दुख हुआ जिनके सुझाव बेकार चले गए काफी सारे तर्क थे सलाह देने वालों के सभी तर्कों से बचते बचाते शिवानी ने लोगों की सलाह को भी ताक में रख दिया हालांकि हमारे घर में सब कोई साथ नहीं है जहां पर सलाह रखी जा सके मुझे तो लगता है उसे पुर्जे पुर्जे करके उड़ा दिया ।
बच्चे जब समझदार होते हैं तो वे तय करने की क्षमता अपने आप में पनपा लेते हैं सक्षम हो जाते हैं अपने निर्णय क्षमता को मजबूत बनाने में और आपको अभिभावक की हैसियत से सिर्फ इतना देखना होता है कि वास्तव में बच्चा क्या कह रहा है ?
बच्चों को कमतर आंकना वर्तमान परिदृश्य में ठीक नहीं है आप जब भी हम मुखर कम्युनिकेशन कर सकते हैं तो हमने भी उतना ही जबरदस्त कन्वेंट सिंह पावर होना चाहिए जितना उस बच्चे में है और बच्चे को उसकी सोच के अनुसार अवसर देना बहुत जरूरी है बहुतेरे मिडिल क्लास परिवार अपने बच्चों को कोई बात सिखाते हैं और वह बच्चा नहीं मानता तो या तो उदास हो जाते हैं अथवा बच्चे को उदास कर देते हैं दोनों ही स्थिति में नुकसान बच्चे का ही होता है मेरा मानना है कि निर्णय लेने की स्थिति में जब बच्चे आ जाते हैं तो उसे निर्णय लेने दिया जाए परंतु उसके निर्णय को भी समझ लिया जाए और यथासंभव से आप सपोर्ट करें मजबूती दे ।
शिवानी तुम्हारे  इरादों से बड़ा
नहीं है एफिल टावर

एक दौर था जब बेटियों को पांचवें दर्जे तक पढ़ाया जाता था घरेलू कामकाज मैं पारंगत होने की शिक्षा मां बहन दिया करते थे लेकिन समय में बदलाव आया स्त्री शिक्षा के महत्व को सब ने समझा अब उसे निर्णय लेने की क्षमता भी दे देनी मध्यम वर्ग के लिए किफायती ही होगी बीजिंग के महिला सम्मेलन में आज से कुछ दशक पहले यह तय किया था की महिलाओं को निर्णय लेने की क्षमता के अधिकार से वंचित नहीं करने देना चाहिए भारत में इस सम्मेलन की अनुशंसा ओं को जिस तरह से प्रभावी ढंग से लागू किया और सामाजिक स्तर पर भारत की बेटियां सुदृढ़ होती नजर आ रही है वैसा दक्षिण एशिया में केवल चीन कर पाया है और दोनों ही देशों में आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत बेशक बढ़ता जा रहा है क्योंकि मैं सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन भी करता हूं पता है मुझे विश्व महिला सम्मेलन की यह अनुशंसा सबसे प्रिय और प्रभावी लगी थी तदनुसार मैंने कई बार इस बात की कोशिश की कि मैं अपनी पत्नी और बच्चियों के प्रस्तावों को स्वीकारो अगर स्वीकारने योग ना हो तो भी समझने की  कोशिश करो और  इनके निर्णय अधिकांश उत्तम ही होते हैं यह सोच शिवानी को उसके निर्णय के अनुसार विषय चुनने का अधिकार दे चुका था । शिवानी कंपनी में सिर्फ बी. कॉम. ऑनर्स अर्थात सामान्य सा कॉमर्स ग्रेजुएशन के दौरान ही Ey द्वारा कैंपस के जरिए सिलेक्ट कर ली गई ।
               शिवानी Ey ग्लोबल में एसोसिएट चुनी गई मध्य प्रदेश से केवल दो बेटियां चुनी गई थी कुछ बच्चों का यह मानना है कि कॉमर्स में बहुत ज्यादा स्कोप नहीं होती परंतु ऐसा नहीं है भाग्य और उससे पहले अपनी मेहनत तथा सब के आशीर्वाद से आप  खाते में जो लिखा है जो आपने अपने खाते में अपनी मेहनत से जो भी कुछ जमा कर  पाते हैं  उसकी बदौलत आप सब कुछ हासिल कर सकते हैं शिवानी छह माह के बाद फिर वापस आएगी साल में कम से कम एक बार 6 माह के लिए उसे विदेश में कहीं ना कहीं जाने का यह दूसरा अवसर है

                मित्रों बेटियों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें अवसर देने की जरूरत है और उससे ज्यादा जरूरत है उन पर विश्वास करने की मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था परंतु मैंने शिक्षण संस्था का चुनाव करने से पहले अपनी बेटी को यह समझा दिया था कि अगर आईपीएस इंदौर में मुझे कोई विशेषता ना दिखी तो हमें जबलपुर वापस किसी सरकारी कॉलेज में प्रवेश लेना होगा बेटी ने सहमति दी इंदौर के कई कॉलेजेस में मैंने विजिट किए  एक कॉलेज ने मुझे बताया कि उनके कॉलेज में अभिषेक बच्चन आते हैं तो मेरा प्रतिप्रश्न था कि क्या आपका कॉलेज दंत मंजन है या कोई प्रोडक्ट जिसमें हम जैसे मध्यम वर्गीय लोगों को आकर्षित करने के लिए आप फिल्म स्टारों को बुलाते हैं मुझे लगता है कि आपका कॉलेज मेरी बेटी के लायक नहीं है यह सुनकर ऐडमिशन इन चार्ज मुझे बाहर तक मनाने की कोशिश करने आए किंतु मेरा दृढ़ निश्चय था कि ऐसे संस्थान जहां यह कोशिश की जाती होगी सीटों को बेचने के लिए विभिन्न तरह के हथकंडे अपनाकर अभिभावकों को मोहित करना और बेवकूफ बनाना उनका मौलिक सिद्धांत हो उन कॉलेजेस में संस्थानों में बच्चों को प्रवेश दिलाने की जरूरत क्या है । फिर  अन्य  कालेजों में भ्रमण किया.  वहां के बच्चों का ज्ञान स्तर नापा उन से चर्चा करके अंत में जब आईपीएस अकादमी पहुंचा तो लगा . सोचा ऐसा ही कुछ होगा  यह भी एजुकेशनल मार्केट का एक शो-रूम सरीखा  ?
                बे मन से   अपनी श्रीमती और बेटी से कहा तुम लोग फार्म खरीद कर लाओ तब तक मैं बच्चों से बात करता हूं ।  फिर बच्चों से बातों का सिलसिला शुरू किया  उनसे  भारत की इकोनामिक फॉरेन पॉलिसी पर चर्चा की ।  भारत के इकोनामिक डेवलपमेंट पर साथ ही साथ भारत की व्यवसायिक एवं वित्तीय स्थिति पर चर्चा में बच्चों ने बेहद उत्साह के साथ सटीक  जवाब दिए तब जा कर मैं मैंने अपनी बेटी का दाखिला कराने का मन बना लिया ।
                    अपने बुजुर्गों के आशीर्वाद का मेरी मातोश्री स्वर्गीय सब्यसाची प्रमिला देवी बिल्लौरे पिताश्री काशीनाथ जी बिल्लौरे सभी बुजुर्गों का का आशीर्वाद है मेरी दोनों बेटियां बेटों से कम नहीं इतना ही नहीं मेरी बेटियां मेरे कार्य क्षेत्र में भी मौजूद है एक से एक संघर्षशील और अपने कार्य के प्रति सजग आत्मविश्वास से भरी हुई बेटियाँ 
मुझे बालभवन में भी  मिलती है..... प्रयास यही  किया है कि जितना ज्यादा सबल  हम बेटियों को बनाएंगे उतना अधिक यह देश तरक्की करेगा विजन बिल्कुल साफ है महिला सशक्तिकरण की बात से पहले अपनी बेटी को सक्षम बनाने की सोच को विकसित करने की जरूरत है ।
मुझे विश्वास है कि ना सिर्फ आप शिवानी को आशीर्वाद देंगे बल्कि आप भी अगर कहीं कमजोर महसूस करते हैं की बेटी है तो उसे एक्स्ट्रा संरक्षण की जरूरत है मुझे नहीं लगता की बेटियां कमजोर है यदि आप उसे एम्पावर्ड करें तो ।
आपको उस से संबल देते रहना होगा और उसे जीवन प्रबंधन की स्किल से भर देना होगा ......!!

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...