सोशल-मीडिया पर छील देते हैं मित्र सलिल समाधिया


            
 सलिल समाधिया 
  स्वभाव गत बेबाक ,  
 सलिल समाधिया  मेरी मित्रसूची में सर्वोपरी हैं. सोशल मीडिया के जबलपुरिया  लिक्खाड़ इन दिनों स्तब्ध नि:शब्द से जान पडतें हैं. सलिल फ़िज़ूल बातों से दूर अपनी मौज की रौ में बह रहे हैं.  आइये हम देखें एक ज़बरदस्त पोस्ट .. 
कल एक मित्र ने पूछा , "आप, सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर क्यों नहीं लिखते हो ?
अब जवाब सुनिए,
         हाँ, मैं नहीं लिखता ..रेप पर , मॉब लिंचिंग पर, राजनीति पर, गरीबों की व्यथा पर ,
क्योंकिं... मैं नहीं चाहता की मैं अपनी पीड़ा और आक्रोश का लावा शब्दों के जाम में उडेलूं और उसे सोशल मीडिया पर शराब की तरह पिया जाए...
क्योंकि ..बोल लेने से , बक लेने से
बुझ जाती है ..आग
चुक जाता है ..वीर्य
कुंठित हो जाता है ..पुंसत्व !
इसीलिए तॊ ये देश , क्लीवों का देश हो गया है !
..
क्योंकि , चित्रों , नाटकों और कविताओं ने सोख ली है ...ज़ेहन की गर्मियां और कसी मुट्ठियों की आग !
हां , मैं प्रेम बांटता हूं , और आग संजो के रखता हूं ,
इस क़दर कि ,
काट सकूं , अस्मत पे बढ़ते हाथ !
रुदन बना सकूं , राक्षसी अट्टहास को !
प्रेम , श्रंगार, सौंदर्य के मामलों में मैं कवि हूं ,
पाप और अन्याय के मामलों में मैं फ़ौजी हूं !
     ये आत्मश्लाघा नहीं है , किन्तु हमारे मित्र , परिचित , और विशेषकर महिला मित्र इस बात को भली तरह जानते हैं कि ...अन्याय के विरुद्ध , कैसी - कैसी ताक़तों से हम .लोहा लिए हैं !
लेकिन समाजिक विषयों पर लेख लिखना , मुझे बिल्कुल नहीं भाता , .
...
बहुत से कारण हैं , चलिए एक उदाहरण देता हूं कि मैं स्त्री - विमर्श पे क्यों नहीं लिखता ...
बहुत खरा और कड़वा लिखूंगा , टॉलरेट कर लीजिएगा !
कहीं दूर नहीं , अपने ही मित्रों की बात करूंगा , जिनमें प्रोफ़ेसर , क्लास वन ऑफिसर्स , वक़ील , कलाकार सब शमिल हैं !
पहले ये जान लीजिए कि भारत के पुरुषों का ' माइंड सेट ' क्या है ? भारत का पुरूष निहायत ही छिछोरा , लम्पट और घोर पुरुषवादी सोच का है !
     भारत में 10 में से 7 पुरुष आपको ऐसे मिलेंगे जो अपनी प्रेमिका को 'सेटिंग ' और मिलन को 'काम लगा दिया ' जैसे शब्दों से सुशोभित करते हैं ! अपनी पत्नियों के बारे में भी बाहर बहुत भौंडे शब्दों का प्रयोग करते हैं
वो स्त्री , जो प्रेम में अपना सर्वस्व उत्सर्ग कर देती है , उसके लिए सेटिंग और सामान जैसे शब्द ..? बेशक ये शब्द भारत के पुरुष के अवचेतन (..sub - conscious ) में छिपे भावों का पता देते हैं ! जहां प्रेम.... है ही नहीं , बस गंदी , लिजलिजी वासना का राक्षस खड़ा है !
अब ऐसे छिछोरे वीर्य कणों से जो संतानें पैदा होंगी , वे निहायत ही पुरुषवादी , स्त्री को भोग और दासी समझने वाली न होंगी , ऐसा सोचना , आँख पे पट्टी बांध लेना ही है !
ये सामूहिक मनसिकता सब ओर संचारित है ! और यही प्रकट होती है बच्चों , स्त्रियों पे गिद्धों की तरह !
           अब आप लाख सोशल मीडिया पे निर्भया कठुआ ,मंदसौर करते रहिए , मगर जब तक आपके घर के पुरुषों के रक्त में ये कुंठित पुरुषवाद दौड़ रहा है आपके लेख , कविताओं , चित्रों से कुछ नहीं उखड़ने वाला !
           आपमें साहस है तॊ स्पॉट पे प्रहार करें ! लेकिन वो तॊ तब होगा न , जब नसों में लावा बह रहा होगा ,
आप तॊ कविताएं , लेख , टिप्पणी लिखकर नदारत हो जाने वालों में से हैं न ! !
               इन छिछोरों से आप प्रेम की , रोमांस की , भावनाओं की गहराई की अपेक्षा करते रहिए , मैं नहीं कर सकता !
.....
जी हाँ , मैं इसीलिए नहीं लिखता इन विषयों पर ! !
साइकोलोजिस्ट कहते हैं कि अगर आत्महत्या करने वाला व्यक्ति , एक पेज़ से लम्बा सुसाइड नोट लिख ले , तॊ फिर उसके सुसाइड करने कि संभावना ख़त्म हो जाती हैं ! ...क्योंकि उसका अवचेतन सब उगलकर शान्त हो जाता है !
             भारत में कोई क्रांति नहीं हो सकती , क्योंकि सोशल मीडिया पे सामाजिक सरोकारों के लेख , चित्र , कविताएं ..सब गर्मी और आक्रोश को सोख लेते हैं !
छिनाल पन से भरे चित्त , रेप के विरोध में लिख रहे हैं !
आकंठ भ्रष्टाचारी , ईमानदारी और परिवर्तन की बातें करते हैं !
स्वयं क्रूरता से भरे तमाशबीन लोग , .. स्त्री अत्याचार , मॉब लिन्चिन्ग , दलित उत्पीड़न पर लिख रहे हैं !
नहीं , मैं कभी भी इस .नकली जमात में खड़ा नहीं हो सकता ! मैं नहीं चाहता कि मेरा वीर्य , सोशल मीडिआ के अक्षर सोख लें !
...
मैं इस दिव्य असंतोष के लावे के तेज से दैदीप्यमान हूं ,
...इसीलिए, ' स्पॉट ' पे जूझता हूं , ' पोस्ट , पे नहीं !


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