18.8.17

life sketch of legendary poetess late Subhadra Kumari Chauhan



#Mila_Tez_Se_Tez is the  Short Musical Play & #compilation of emotional patriotic story  Based on life sketch of  legendary poetess late  Subhadra Kumari Chauhan Directed and Scripted by Mr. Sanjay Garg Assistant Director Manisha  Tiwari (Ex Student of Dn. BalBhavan Jabalpur M.P. )
Music Director :-  Dr. Shipra Sullere
Music Pit & Singers  :- Sameer Sarate,   Muskaan Soni, Shreya Thakur, Ishita Tiwari, Ranjana Nishad, Ayush Rajak, Harsh Soundiya, Sajal Soni & Akrsh Jain   
ARTISTS: Palak Gupta Shreya Khandelwal Prageet Sharma, Vaishnavi Barsaiyan,Vaishali barsaiyan,Shifali Suhane, Sneha Gupta, Anjali Gupta, Shreya Tiwari, Ashutosh Rajak, Unnati Tiwari, Sparsh Shrivas, Manasi Soni, Prathamesh Bakshi, Raj Gupta, Sonu Ben, Rajavardhan Patel, Ananya Vishvakarma, Sagar Soni, Priyanka Soni, Riddhi Shukla, Himanshi Vishvakarma, Anamol Vishvakarma, Avanshika Burman, Of  Balbhavan Jabalpur
Back Stage :- Davindar Sing Grover, Rajkumar Gupta , Akshay Singh Thakur, Ravindra Murahar, Sanjay Pateriya, Mr. Prem, Vinay Sharma, Indra Pandey Ruchi Kesharvani,
First Show :- On 16.08.2017At Shri Janaki Raman College Jabalpur
With the Assistance of Sahity-Parishad Government Of Madhy-Pradesh Bhopal .
Special Thanks to :- Smt. Tripti Tripathi,  Director Jawahar Balbhavan Bhopal. Smt.Manisha Lumba, Dy Director Women Empowerment, Jabalpur Division,

Creation & Production :- Girish Billore, Director Divisional Balbhavan, Jabalpur M.P   

for more clips visit :- Girish Billore 

https://www.youtube.com/watch?v=z95THUG0W_o


https://www.youtube.com/watch?v=Moj7c2Oj8CA


https://www.youtube.com/watch?v=eKuZKdMoWB8


https://www.youtube.com/watch?v=UaxaCPDjhhU


https://www.youtube.com/watch?v=ZT-IkgynUIw

15.8.17

स्वतंत्रता सेनानी श्री गोपीकृष्ण जोशी : दिनेश पारे

आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुझे अपने नानाजी की याद आ रही है। वे स्वतंत्रता आंदोलन के एक वीर सिपाही थे। आईए आज मैं आप सभी को एक आलेख के द्वारा उनका जीवन परिचय करवाता हूँ।
अंग्रेजी राज में नार्मदीय समाज के एक साधारण कृषक परिवार का नौजवान लड़का सरकारी नौकरी छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कूद जाए, ऐसा अपवाद स्वरूप ही होता था, लेकिन हरदा के पास मसनगाँव रेलवे स्टेशन के स्व. श्री रामकरण जोशी के सुपुत्र श्री गोपीकृष्ण जोशी ने २४ साल की कच्ची उम्र में ऐसा साहस कर दिखाया था। यह आज से लगभग ७५ साल पुरानी बात है। श्री जोशी को रेलवे में सिग्नेलर की नौकरी को ज़्यादा समय भी नहीं हुआ था कि रेलवे में हुई एक हड़ताल को निमित्त बनाकर उन्होंने सरकारी वर्दी उतारकर खादी धारण की और आज़ादी के सिपाही बन गए। तब कांग्रेस आज की तरह एक राजनीतिक दल भर नही था, बल्कि भारत की स्वाधीनता के लिए चलाया जा रहा सशक्त आंदोलन था। अगस्त १९४७ में भारत को स्वतंत्रता मिलने तक वे कांग्रेस की तरफ से गाँव-गाँव घूमकर आज़ादी की अलख जगाते थे और हिंदी-अंग्रेजी व मराठी में धाराप्रवाह भाषण देते थे। अंग्रेज़ो की खिलाफत करने और आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के फलस्वरूप उन्हें बार-बार सज़ा होती। उन्होंने होशंगाबाद, जबलपुर और नागपुर की जेलों में लगभग आठ माह बिताये।हरदा नगर की मिडिल स्कूल में मेन गेट के पास स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में बने स्तंभ पर आज़ादी के सिपाहियों में स्व. श्री गोपीकृष्ण जोशी का नाम अंकित है। भारत की आज़ादी के बाद वे जीवन पर्यन्त कांग्रेस में रहकर लोकल बोर्ड, जनपद आदि में सदस्य व चेयरमैन रहे। मसनगाँव ग्राम पंचायत के वे लंबे समय तक सरपंच भी रहे। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भगवंतराव मंडलोई और पूर्व मंत्री स्व. मिश्रीलाल गंगवाल से उनकी घनिष्ठता थी। दरअसल श्री गंगवाल जब प्रजा मंडल के आंदोलन में पुलिस से बचने के लिए भूमिगत होते थे, तब वे श्री जोशी के पास मसनगाँव आ जाते थे। दिसम्बर १९८० में उनका देहावसान हुआ।

14.8.17

एडवोकेट विवेक पांडे के ’आईडिया’ को शिकागो यूनिवर्सिटी ने पब्लिश किया : ज़हीर अंसारी

दुनिया में मैथ्स, फिजिक्स, केमेस्ट्री व इकानॉमिक आदि के स्थापित सिद्धांत है| इन सिद्धांतों के आधार पर शिक्षण तथा अविष्कारिक अनुसंधान किए जाते है| जैसे गणित का सिद्धांत है कि दो और दो चार होंगे| यानि पूरे दुनिया में यही फार्मूला प्रचलन में है अर्थात दो और दो चार ही होंगे तीन या पांच नहीं| मगर विधि और न्याय शास्त्र में ऐसा कोई एकीकृत सिद्धांत नहीं है जो समूची दुनिया में मान्य हो| देश, काल, परिस्थिति और धर्म के अनुसार सबका अपना-अपना विधि और न्याय शास्त्र है| इस विसंगति को दूर करने और एकरुपता स्थापित करने का प्रयास विश्व के शीर्ष विद्वान काफी दिनों से कर रहे हैं लेकिन अब तक किसी को सफलता नहीं मिली है|
सारी दुनिया के विद्वान इस विषय पर माथा खपा रहे हैं, ऐसे में जबलपुर शहर के पेशेवर वकील विवेक रंजन पांडे ने कल्याणकारी विधि-न्याय शास्त्र के सिद्धांत का आईडियाकोई 7-8 बरस पहले तैयार कर लिया था| विवेक रंजन पांडे लगातार इस सिद्धांत को सर्वमान्य बनाने के लिए प्रयासरत रहे| चूंकि भारत में किसी भी विषय के सैद्धांतिकरण को गंभीरता से नहीं लिया जाता लिहाजा उनके आईडियाको यहां महत्व नहीं मिला| विवेक रंजन पांडे ने जब अपना यह आईडियाकिसी वरिष्ठ विद्वान के जरिये अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी भेजा तो उन्हें यह आईडियापसंद आया| शिकागो यूनिवर्सिटी ने इंवीटेशन के साथ वीजा भेजकर उन्हें आमंत्रित कर लिया| एडवोकेट पांडे ने अपने इस आईडियाका प्रजेंटेशन यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र और गणित शास्त्र के विद्वानों के समक्ष दिया तो उन्हें कल्याणकारी विधि शास्त्र का यह आईडियापसंद आया| एडवोकेट पांडे ने अपने इस आईडियाका शीर्षक कानून के आर्थिक विश्लेषण में कल्याणकारी न्याय शास्त्रदिया है|
पारंपरिक न्याय के किसी सिद्धांत में न्याय का कोई पुख़्ता सिद्धान्त नहीं है। पारंपरिक न्याय भावनात्मक विचार अथवा प्रभु शक्ति द्वारा शासन करने की धमकी या डर के आधार पर होता है जबकि कल्याण न्याय शास्त्र अवधारण यह कि मनुष्य के कल्याण के अच्छे स्तर के लिए ऐसा सिद्धांत बनाया जाए जिसमें विधि और न्याय के सिद्धांत एकजुट हों जो लोगों की भलाई में मलहम का काम करे। एडवोकेट विवेक रंजन पांडे के इस आईडियाको अहमियत देते हुए यूनिवर्सिटी आफ शिकागो लॉ स्कूल विस्तृत सिद्धांत प्रतिपादित करने का दायित्व सौंपा है| उनके इस कार्य में अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े विद्वान सहयोग प्रदान करेंगे| इस कार्य को प्रमोट करने के लिए यूनिवर्सिटी आफ शिकागो लॉ स्कूल ने कमिटमेंट किया है| एडवोकेट पांडे ने जो पहला पेपर तैयार किया था उसे यूनिवर्सिटी आफ शिकागो लॉ स्कूल ने WORKING PAPER ON THE WELFAREJURISPUDENCE IN ECONOMIC ANALYSIS OF LAW अपनी वेब साईट पर लोड कर दिया है| इसे विवेक रंजन पांडे के नाम से गूगल पर भी सर्च किया जा सकता है| इस पब्लिकेशन के बाद अब विवेक पांडे को विस्तृत थ्योरी तैयार करना होगा|
यहां यह बताना जरुरी है कि विवेक रंजन पांडे एमपी हाईकोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं| अच्छे वकील के साथ अच्छे स्कालर्स भी हैं| यहां उनकी क्षमताओं को अंडर स्टीमेट किया जाता रहा है| वजह साफ थी कि जिस वैश्विक विचार को मतलब थ्योरी आफ लॉ और थ्योरी आफ जस्टिस को एकीकृत करने की सोच को अधिकांशत: लोग समझ नहीं पाए|

विवेक रंजन पांडे की इस उपलब्धि में उन्हें अनंत शुभकामनाएं | उन्होंने जबलपुर के नाम को गौरवान्वित किया है।

12.8.17

65 हज़ार से अधिक पाठक जुड़े वृक्षों के साथ राखी त्यौहार की रिपोर्ट से

मित्रो मेरे ब्लॉग मिसफिट पर प्रकाशित "प्रभावी रहा पेडों को राखी बांधने में छिपा संदेश" शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट जो बालभवन में आयोजित पेड़ों को  राखी बांधने के कार्यक्रम पर केन्द्रित थी को 65 हज़ार से अधिक पाठकों ने क्लिक किया. जिसका यू आर एल निम्नानुसार है   http://sanskaardhani.blogspot.in/2017/08/blog-post_5.html
                         इसके अलावा "भारत के राष्ट्रवाद को हिन्दू राष्ट्रवाद कहना चीन की सबसे बड़ी अन्यायपूर्ण अभिव्यक्ति" ( http://sanskaardhani.blogspot.in/2017/07/blog-post_26.html ) को 7791  पाठक मिले . 

       हिन्दी ब्लागिंग की शुरुआत मैनें 2007 से की थी .  चिट्ठाकारी एक स्वांत: सुखाय रचना कर्म  है फिर भी हमें सबसे रिलिवेंट एवं सामयिक विषयों  पर लिखना होता है . मुझे इतनी सफलता घर बैठकर उत्तराखंड के खटीमा में हो रही ब्लागर्स मीट की लाइव  वेबकास्टिंग के लिए मिली थी . 
        परन्तु हिन्दी में  टेक्स्ट ब्लागिंग को 5 अगस्त 17 को लिखने के 4 दिन बाद इतने पाठक मिलना मेरे लिए रोमांचक खबर है. 
         लेखकों को समझना होगा कि इंटरनेट पर  टैक्स्ट कन्टेंट की ज़रूरत है ताकि भाषानुवाद एवं भाषा के विकास को पर्याप्त वैश्विक स्तर पर अवसर सुलभ हैं. साथ ही इस बात  से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हिन्दी भाषा अब केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रह गई है उसे तकनीकी के इस वैश्विक स्वरुप की आवश्यकता भी है.   

11.8.17

सिद्ध हनुमान मंदिर में तीन युवतियों एवम एक युवक का हंगामा



जबलपुर के रानीताल स्थित सिद्ध हनुमान मंदिर में तीन युवतियों  एवम एक युवक ने जमकर हंगामा किया लड़कियां खुद को देवी कह रहीं थीं ।  चारों ने मिलकर न केवल जमकर हंगामा किया बल्कि मंदिर के सामान को भी उठाके फैंकते  देखा जा सकता है .
उनके इस कार्य से क्रुद्ध  होकर  स्थानीय लोगो ने मंदिर के भीतर हंगामा  कर रहे युवक युवतियों की जमकर की धुनाई कर पुलिस के हवाले कर दिया ।
                      सूत्रों   बतातें हैं कि उक्त लड़कियां अपने भाई का  जो मनोरोगी इलाज़ कर रहीं थीं . स्थानीय लोगों ने उनको ऐसा करने से रोका तो उनने हंगामा किया.
 देखने में लड़कियां पढ़ी लिखीं नज़र आ रहीं हैं . किन्तु मनोरोगी का इस तरह इलाज़ करना आज के समय में कोई भी स्वीकार्य नहीं करेगा.

रिपोर्ट : श्री हरीश दुबे

7.8.17

कृष्ण की अंगुली को बचाया था द्रोपदी ने : फ़िरदौस ख़ान


रक्षाबंधन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है. यह त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन बांधकर उनकी लंबी उम्र और कामयाबी की कामना करती हैं. भाई भी अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं.
रक्षाबंधन के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं. भविष्य पुराण में कहा गया है
कि एक बार जब देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हो रहा था तो दानवों ने देवताओं को पछाड़ना शुरू कर दिया. देवताओं को कमज़ोर पड़ता देख स्वर्ग के राजा इंद्र देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास गए और उनसे मदद मांगी. तभी वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने मंत्रों का जाप कर एक धागा अपने पति के हाथ पर बांध दिया. इस युद्ध में देवताओं को जीत हासिल हुई. उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी. तभी से श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा शुरू हो गई. अनेक धार्मिक ग्रंथों में रक्षा बंधन का ज़िक्र मिलता है. जब सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की अंगुली ज़ख़्मी हो गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी. बाद में श्रीकृष्ण ने कौरवों की सभा में चीरहरण के वक़्त द्रौपदी की रक्षा कर उस आंचल के टुकड़े का मान रखा था. मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुग़ल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना थी . राखी का मान रखते हुए हुमायूं ने मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह से युद्ध कर कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की थी.
विभिन्न संस्कृतियों के देश भारत के सभी राज्यों में पारंपरिक रूप से यह त्यौहार मनाया जाता है. उत्तरांचल में रक्षा बंधन को श्रावणी के नाम से जाना जाता है. महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा और श्रावणी कहते हैं, बाकि दक्षिण भारतीय राज्यों में इसे अवनि अवित्तम कहते हैं. रक्षाबंधन का धार्मिक ही नहीं, सामाजिक महत्व भी है. भारत में दूसरे धर्मों के लोग भी इस पावन पर्व में शामिल होते हैं.


रक्षाबंधन ने भारतीय सिनेमा जगत को भी ख़ूब लुभाया है. कई फ़िल्मों में रक्षाबंधन के त्यौहार और इसके महत्व को दर्शाया गया है. रक्षाबंधन को लेकर अनेक कर्णप्रिय गीत प्रसिद्ध हुए हैं. भारत सरकार के डाक-तार विभाग ने भी रक्षाबंधन पर विशेष सुविधाएं शुरू कर रखी हैं. अब तो वाटरप्रूफ़ लिफ़ाफ़े भी उपलब्ध हैं. कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिए अलग से बॉक्स भी लगाए जाते हैं. राज्य सरकारें भी रक्षाबंधन के दिन अपनी रोडवेज़ बसों में महिलाओं के लिए मुफ़्त यातायात सुविधा मुहैया कराती है.

आधुनिकता की बयार में सबकुछ बदल गया है. रीति-रिवाजों और गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के प्रतीक पारंपरिक त्योहारों का स्वरूप भी अब पहले जैसा नहीं रहा है. आज के ग्लोबल माहौल में रक्षाबंधन भी हाईटेक हो गया है. वक़्त के साथ-साथ भाई-बहन के पवित्र बंधन के इस पावन पर्व को मनाने के तौर-तरीकों में विविधता आई है. दरअसल, व्यस्तता के इस दौर में त्योहार महज़ रस्म अदायगी तक ही सीमित होकर रह गए हैं.

यह विडंबना ही है कि एक ओर जहां त्योहार व्यवसायीकरण के शिकार हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इससे संबंधित जनमानस की भावनाएं विलुप्त होती जा रही हैं. अब महिलाओं को राखी बांधने के लिए बाबुल या प्यारे भईया के घर जाने की ज़रूरत भी नहीं रही. रक्षाबंधन से पहले की तैयारियां और मायके जाकर अपने अज़ीज़ों से मिलने के इंतज़ार में बीते लम्हों का मीठा अहसास अब भला कितनी महिलाओं को होगा. देश-विदेश में भाई-बहन को राखी भेजना अब बेहद आसान हो गया है. इंटरनेट के ज़रिये कुछ ही पलों में वर्चुअल राखी दुनिया के किसी भी कोने में बैठे भाई तक पहुंचाई जा सकती है. डाक और कोरियर की सेवा तो देहात तक में उपलब्ध है. शुभकामनाओं के लिए शब्द तलाशने की भी ज़रूरत नहीं. गैलरियों में एक्सप्रेशंस, पेपर रोज़, आर्चीज, हॉल मार्क सहित कई देसी कंपनियों केग्रीटिंग कार्ड की श्रृंख्लाएं मौजूद हैं. इतना ही नहीं फ़ैशन के इस दौर में राखी भी कई बदलावों से गुज़र कर नई साज-सज्जा के साथ हाज़िर हैं. देश की राजधानी दिल्ली और कला की सरज़मीं कलकत्ता में ख़ास तौर पर तैयार होने वाली राखियां बेहिसाब वैरायटी और इंद्रधनुषी दिलकश रंगों में उपलब्ध हैं. हर साल की तरह इस साल भी सबसे ज़्यादा मांग है रेशम और ज़री की मीडियम साइज़ राखियों की. रेशम या ज़री की डोर के साथ कलाबत्तू को सजाया जाता है, चाहे वह जरी की बेल-बूटी हो, मोती हो या देवी-देवताओं की प्रतिमा. इसी अंदाज़ में वैरायटी के लिए जूट से बनी राखियां भी उपलब्ध हैं, जो बेहद आकर्षक लगती हैं. कुछ कंपनियों ने ज्वैलरी राखी की श्रृंख्ला भी पेश की हैं. सोने और चांदी की ज़ंजीरों में कलात्मक आकृतियों के रूप में सजी ये क़ीमती राखियां धनाढय वर्ग को अपनी ओर खींच रही हैं. यहीं नहीं मुंह मीठा कराने के लिए पारंपरिक दूध से बनी मिठाइयों की जगह अब चॉकलेट के इस्तेमाल का चलन शुरू हो गया है. बाज़ार में रंग-बिरंगे काग़ज़ों से सजे चॉकलेटों के आकर्षक डिब्बों को ख़ासा पसंद किया जा रहा है.

कवयित्री इंदुप्रभा कहती हैं कि आज पहले जैसा माहौल नहीं रहा. पहले संयुक्त परिवार होते थे. सभी भाई मिलजुल कर रहते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. नौकरी या अन्य कारोबार के सिलसिले में लोगों को दूर-दराज के इलाक़ों में बसना पड़ता है. इसके कारण संयुक्त परिवार बिखरकर एकल हो गए हैं. ऐसी स्थिति में बहनें रक्षाबंधन के दिन अलग-अलग शहरों में रह रहे भाइयों को राखी नहीं बांध सकतीं. महंगाई के इस दौर में जब यातायात के सभी साधनों का किराया काफ़ी ज़्यादा हो गया है, तो सीमित आय अर्जित करने वाले लोगों के लिए परिवार सहित दूसरे शहर जाना और भी मुश्किल काम है. ऐसे में भाई-बहन को किसी न किसी साधन के ज़रिये भाई को राखी भेजनी पड़ेगी. बाज़ार से जुड़े लोग मानते हैं कि भौतिकतावादी इस युग में जब आपसी रिश्तों को बांधे रखने वाली भावना की डोर बाज़ार होती जा रही है, तो ऐसे में दूरसंचार के आधुनिक साधन ही एक-दूसरे के बीच फ़ासलों को कम किए हुए हैं. आज के समय में जब कि सारे रिश्ते-नाते टूट रहे हैं, सांसारिक दबाव को झेल पाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं. ऐसे में रक्षाबंधन का त्यौहार हमें भाई- बहन के प्यारे बंधन को हरा- भरा करने का मौक़ा देता है. साथ ही दुनिया के सबसे प्यारे बंधन को भूलने से भी रोकता है.

6.8.17

प्रभावी रहा पेडों को राखी बांधने में छिपा संदेश

नवाचार के ज़रिये छोटे छोटे प्रयोग करना बेहद असरदार होता है. जबलपुर बालभवन में ऐसा ही एक  छोटा प्रयोग किया जो  बड़ा असरदार साबित हुआ . यह प्रयोग न केवल शिक्षाप्रद रहा वरन इससे जनजन जो सन्देश विस्तारित हुआ वह  भी समुदाय के लिए चिंतन का विषय बन गया बालभवन जबलपुर  के संचालक रूप में लगभग एक माह पूर्व विचार किया कि क्यों न हम बालभवन में राखी पर्व में एक नवाचार करें जिससे समाज को नया सन्देश मिले तभी उन पौधों का स्मरण हुआ जो हमने 5 जुलाई 2017 को लगाए थे बस फिर क्या था हमने बच्चों और उनके शिक्षकों से परामर्श कर तय किया कि इस बार हम पेड़ पौधों को राखी बांधेंगे. 
जी हाँ वे पौधे जिनको बच्चों ने नाम भी दिए हैं .. झमरू, हिन्दुस्तान , आदि आदि . पेड़ पौधों के लिए राखी बनाने का काम कराया रेशम ठाकुर ने जो इन दिनों बालभवन में बच्चों की कला शिक्षक हैं.  
          नन्हें पौधों एवं वृक्षों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार बेहद उत्साह के साथ मनाया गया . महिला बाल विकास विभाग के महिला सशक्तिकरण संचालनालय द्वारा संचालित संभागीय बालभवन के बच्चों ने वृक्षों एवं पेड़-पौधों के साथ जीवन के अंतर्संबंधों को रेखांकित करने वाले कार्यक्रम की आवश्यकता पर को स्पष्ट करते हुए संचालक बालभवन गिरीष बिल्लोरे ने बताया – *“किसी भी संदेश को कैसे समाज के लिए असरदार हो सकते हैं पेड़ पौधों को राखी बांधने के इस प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है !*
अध्यक्षता करते हुए श्रीमती मनीषा लुम्बा उपसंचालक महिलासशक्तिकरण ने आयोजन के उद्देश्य की प्रसंशा करते हुए कहा कि – “समाज को यह सन्देश देना बेहद जरूरी है कि पेड़ पौधे हमारे रक्षक हैं तथा वे किसी न किसी रूप में हमें सहायता ही नहीं देते बल्कि उनसे हमारा जीता जगता सम्बन्ध है तथा वे हमारे रक्षक भी हैं
मुक्ति फाउनडेशन के डा विवेक जैन ने कार्यक्रम को सबसे प्रभावकारी एवं समाज को सन्देश देने वाला कार्यक्रम निरूपित किया. कार्यक्रम में श्रीमती हर्षिता , श्रीमति अजय जैन, श्री पुनीत मारवाह, श्री एस ए सिद्दीकी, श्री रमाकांत गौतम, श्री संजय गर्ग बतौर अतिथि उपस्थित रहे. 
पौधों एवं वृक्षों के साथ रक्षाबंधन कार्यक्रम में प्रयुक्त राखियों का निर्माण सुश्री रेशम ठाकुर के निर्देशन में बालभवन के बच्चों अनमोल विश्वकर्मा राखी विश्वकर्मा, रूद्र गुप्ता, अंजली, हिमान्शु रजक हर्षिता रजक ने किया . 
पौधों एवं वृक्षों के साथ रक्षाबंधन के साथ साथ डाक्टर शिप्रा सुल्लेरे के निर्देशन में बाल कलाकारों क्रमश: वैशाली बरसैंया, उन्नति तिवारी, आयुष राजक, इशिता तिवारी सोनम गुप्ता, सजल ताम्रकार, आकर्ष जैन, हर्ष सौंधिया, अमन बेन, राज गुप्ता ने कजरी-गीत गाकर माहौल को बेहद प्रभावी बनाया. 
कार्यक्रम का संचालन बाल-अभिनेत्री कुमारी श्रेया खंडेलवाल ने किया. आयोजन में नृत्यगुरु श्री इंद्र पांडे, श्री देवेन्द्र यादव, श्रीमती मीना सोनी श्री सोमनाथ सोनी , राजेन्द्र श्रीवास्तव, श्री टी आर डेहरिया, श्री धर्मेन्द्र श्रीमती सीता देवी ठाकुर मनीषा तिवारी मुस्कान सोनी का अविस्मरणीय सहयोग रहा.
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                          संभागीय बालभवन में “पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ” का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. प्रत्येक पौधे की देखभाल 5-5  बच्चों के समूह द्वारा की जा रही है. वे प्रतिदिन अपने अपने पेड़ों की देखभाल स्वयमेव करतें हैं. इतना ही नहीं बच्चों ने पेड़ों के झमरू, छोटू , सरगम, हिन्दुस्तान, भारत, गजानन, घुँघरू, कीवी, चेरी, शिखा, नटवर, पप्पू  आदि नाम तक  रखें  है .
             बाल-भवन के खेल अनुदेशक एवं वृक्षारोपण प्रभारी   श्री देवेन्द्र यादव के अनुसार "पौधे लगाना ठीक है पर उनको सम्हालना कठिन काम है  बच्चे अपनी बाटल से पेड़ों में पानी देते हैं उनसे बात करते हैं  तथा उनके लिए बच्चों  थरे (सर्किल) भी बनाएं गएँ हैं   पेड़ों की देखभाल से 15 बाल समूह जुड़े हुए हैं .
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