15.8.17

स्वतंत्रता सेनानी श्री गोपीकृष्ण जोशी : दिनेश पारे

आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुझे अपने नानाजी की याद आ रही है। वे स्वतंत्रता आंदोलन के एक वीर सिपाही थे। आईए आज मैं आप सभी को एक आलेख के द्वारा उनका जीवन परिचय करवाता हूँ।
अंग्रेजी राज में नार्मदीय समाज के एक साधारण कृषक परिवार का नौजवान लड़का सरकारी नौकरी छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कूद जाए, ऐसा अपवाद स्वरूप ही होता था, लेकिन हरदा के पास मसनगाँव रेलवे स्टेशन के स्व. श्री रामकरण जोशी के सुपुत्र श्री गोपीकृष्ण जोशी ने २४ साल की कच्ची उम्र में ऐसा साहस कर दिखाया था। यह आज से लगभग ७५ साल पुरानी बात है। श्री जोशी को रेलवे में सिग्नेलर की नौकरी को ज़्यादा समय भी नहीं हुआ था कि रेलवे में हुई एक हड़ताल को निमित्त बनाकर उन्होंने सरकारी वर्दी उतारकर खादी धारण की और आज़ादी के सिपाही बन गए। तब कांग्रेस आज की तरह एक राजनीतिक दल भर नही था, बल्कि भारत की स्वाधीनता के लिए चलाया जा रहा सशक्त आंदोलन था। अगस्त १९४७ में भारत को स्वतंत्रता मिलने तक वे कांग्रेस की तरफ से गाँव-गाँव घूमकर आज़ादी की अलख जगाते थे और हिंदी-अंग्रेजी व मराठी में धाराप्रवाह भाषण देते थे। अंग्रेज़ो की खिलाफत करने और आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के फलस्वरूप उन्हें बार-बार सज़ा होती। उन्होंने होशंगाबाद, जबलपुर और नागपुर की जेलों में लगभग आठ माह बिताये।हरदा नगर की मिडिल स्कूल में मेन गेट के पास स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में बने स्तंभ पर आज़ादी के सिपाहियों में स्व. श्री गोपीकृष्ण जोशी का नाम अंकित है। भारत की आज़ादी के बाद वे जीवन पर्यन्त कांग्रेस में रहकर लोकल बोर्ड, जनपद आदि में सदस्य व चेयरमैन रहे। मसनगाँव ग्राम पंचायत के वे लंबे समय तक सरपंच भी रहे। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. भगवंतराव मंडलोई और पूर्व मंत्री स्व. मिश्रीलाल गंगवाल से उनकी घनिष्ठता थी। दरअसल श्री गंगवाल जब प्रजा मंडल के आंदोलन में पुलिस से बचने के लिए भूमिगत होते थे, तब वे श्री जोशी के पास मसनगाँव आ जाते थे। दिसम्बर १९८० में उनका देहावसान हुआ।

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