12.12.15

ओशो तुम ठहरे गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ.

ओशो 1990 में देह त्याग 
हम 1990 में देह के साथ  
जीवन भर के लिए कुछ तय तो किया था पर पता नहीं ऐसा क्या हुआ हुआ कि अपने आपको असहज पा रहा हूँ . मुझे जो मिला आसानी से कभी नहीं मिला मिलता भी कैसे जो चाहिए मज़दूर को उसके लिए मज़दूरी तो करना ही चाहिए न . मुफ्त जो मिला वो तो पचेगा नहीं न .. नियति ने जो छीना उससे अधिक दे दिया कभी देने से रुका नहीं परमेश्वर मैं भी लुटाने से खुद को क्यों रोकूँ..? बताओ भला. अरे जो मुझे हासिल हुआ है वो सच में मेरा नहीं उसका दिया है . 

एक बार बचपने में एक आध्यात्मोत्प्रेरित कविता लिखी थी 

काश हममें सामर्थ्य होता 
अवरोधों में बढ़ने का 
नए स्वप्न गढ़ने का 
और पूछने का 
यदि तू ही है दाता 
तो बता कौन है तेरा दाता ?
          कविता लिख गई कैसे लिखी क्यों किया इतना बड़ा सवाल जो परमेश्वर से अन्य किसी कठोर मतावलंबी करता तो उसे ईश-निंदा का दंड भोगना होता.. पर बालपन में इस कविता का लिखा जाना परमेश्वर से सवाल करना मुझे रोमांचित कर रहा है .. पर एक दिन जब डी एन जैन कालेज के सभागार में पंडित हरिकृष्ण त्रिपाठी जी ने कहा-"अप्प दीपो भव " तब जाना की परमेश्वर से किया सवाल वास्तव में मुझे इस बात के लिए प्रेरित कर रहा था कि - परमेश्वर तक कैसे जाना है...? इसी सवाल में छिपा है जीवन का रहस्य ... मुझे कुछ काम मिले हैं मुझे  करने को, कुछ सुख मिले हैं भोगने को, कुछ धड़कन मिलीं हैं ...... यानी सब तो मिला है... तो मिला नहीं है एक ज़वाब दाता के दाता कौन..?
दाता के दाता को जानने दाता तक जाना होगा .... मारकर न भाई जीते जी उसी में मग्न होना होगा. कोई तब उसका होता है जब उसके करीब जाता है .. उसके करीबी जाने कोई बिचौलिया मुला-पंडित नहीं होता पादरी भी नहीं ये सब धार्मिक  प्रक्रिया कराते हैं उनका अधिकार है जो सामाजिक व्यवस्था ने दिया . मुझको कोई रास्ता नहीं दिखा सकता ... मेरा रास्ता मुझे चुनना है उसके पहे खोजना है .. इस जन्म में नहीं मिला ... मिलता भी कैसे इस जन्म में मैंने जीवन के सुख को सुख से दुःख को दुःख से भोगा है... होना ये था कि दौनों ही स्थितियों को निर्विकार तटस्थ भाव स्वीकारना था . तब कहीं जाकर परमेश्वर का पथ दिखाने वाली कंदील मेरे हाथ होती . 
ओशो तुम ठहरे रायसेन के बाद गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ. तुम्हारा पीछा करते करते जबलपुर तक तो आ गया हूँ .... पर तुम आगे निकल गए . मैं अभी पीछे हूँ और रहूँगा भी . असल में तुमको जो मिला उससे अधिक मुझ पर सदगुरु ने उडेला परन्तु तुम समूचा पा गए मेरे हाथ ठहर न पाया वो अमिय.. !
अभी दो जन्म बाद फिर मिलते हैं तब जब केवल मैं और मेरा पथ तुम और तुम्हारा पथ होगा .. परमेश्वर से मिलने के लिए. ये बिचौलिये दूर दूर तक न होंगें न तुमको कोई टार्च-विक्रेता कहेगा न मुझसे कोई प्रतिस्पर्धा रखेगा. मेरे पास विचार संचिंचित हैं तुम्हारे पास अथाह ज्ञान भी विचार भी ..... मैं सदगुरु से पा न सहा तुमसे मिल न सका ...... बच्चा था न .... 1990 तक तुम इतने दूर हो चले थे कि मैं अकिंचन कैसे मिलता...? 
अरे हाँ याद आया ....... आपके शिष्यों से स्नेहियों से खबरें मिलतीं हैं कि तुम क्या थे ...... डी एन जैन कालेज वाले अरविन्द सर से भी जानने की कोशिश की थी पर उनने मुझे बहला दिया था .. पर  तुम्हारे समकालीन बी एस  अधौलिया जी के बेटे डा. विनोद जी  ने मुझे बेहद स्नेह से तुम्हारे बारे में बताया था .. अदभुत सम्मोहन था तुममें  वो मुझमें भी है पर अभी ज्ञान कम है जो है वो सूचनाएं हैं उसे ज्ञान नहीं कहते परमपूज्य गुरुदेव शुद्धानंद जी ने जो ज्ञान दिया वो मानस में हैं पर उस कमरे में जिसका रास्ता मुझे नहीं नज़र आ रहा आएगा पर तब जब कि मेरे हाथ में टार्च होगी .. टार्च खरीदूंगा नहीं क्योंकि परसाईपुरा वाले हंसेंगें .. जमानी हरदा टिमरनी सिराली  सब आस पास तो हैं ही काहे अनावश्यक बैरभाव बढे आनंद से अमृतघट से अमृत छक लूं फिर टार्च बनालूँगा अथवा कंदील हाथ में लेके उस कमरे को खोज ही लूंगा . फिर उस कमरे में लुकछिप के गुम हो जाऊँगा .... सब सोचेंगे मर गया तब सच मैं ज्ञान के सागर में जल क्रीडारत पाउँगा खुद को .. 
तुम
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है 
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर 
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा !!
                      चलते चलते एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि - दुनियाँ कायरों से अटी पड़ी है . सब कुछ अनुबंधित है ..... किसी को दर है कि उसके भगवान को दूसरा ख़त्म कर देगा तो कोई प्रतिक्रियावश गुर्राता है.. ऐसों के साथ अपना गुज़ारा संभव नहीं अब बेहतर है कि......... सम्पूर्ण शुद्धि हो ..... फिर सब के सब मिल कर पूछें - 
यदि तू ही है दाता 
तो बता कौन है तेरा दाता ?         

बेटी बचाओ के साथ साथ बेटी दुलारो भी कहना होगा डा कुमारेन्द्र सिंग सेंगर

रंगोली ने कहा ’’सेवगर्ल चाइल्ड‘‘

   जबलपुर / महिला सशक्तिकरण संचालनालय म0प्र0 शासन द्वारा संचालित संभागीय बाल भवन  द्वारा लाडो अभियान अंर्तगत आयोजित रंगों की उड़ान कार्यक्रम  अंर्तगत  जबलपुर में  उरई जिला जालोन (उत्तरप्रदेश), से पधारे बेटी-बचाओ अभियान (बिटोली कार्यक्रम के सूत्रधार एवं संचालक ) मुख्य अतिथि डा. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर   एवं ख्याति प्राप्त संगीत निर्देशक  अमित चक्रवर्ती की अध्यक्षता में रंगो की उड़ान अंर्तगत रांगोली प्रतियोगिता का  शुभारंभ किया गया ।
                                                          मुख्य अतिथि के रूप में  डा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर  ने बच्चों द्वारा बनायी गयी रांगोली की सराहना करते हुए कहा कि अब से तो बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ भ्रूण हत्या रोको  जैसे लाड़ो अभियान  कार्यक्रम म0प्र0 शासन द्वारा चलाए जा रहे है जो बेशक सराहनीय है। अब इसको आगे  बेटी को को प्यार करो  का नारा देना ही होगा। सांस्कृतिक तरीके  से बालभवन द्वारा जिस तरह शासकीय योजनाओं का प्रचार प्रसार करने  का प्रयास किया जा रहा है यह एक अनूठी कोशिश है जो बेहद सराहनीय है । अध्यक्षता करते हुए  श्री चक्रवर्ती जी  ने कहा कि  मुझे  छोटे छोटे  बच्चों की बड़ी बड़ी कोशिशें  बेहद अच्छी लगी । बच्चे रंग संयोजन में व्यस्त होते हुए  कहीं सामाजिक विषयों  भूण हत्या , कहीं लाड़ली लक्ष्मी पर बातें  कर रहे । बच्चो जब इस विषय पर बात कर रहे जो शासन के लिए यह बात सराहनीय कार्य है । 
उक्त प्रतियोगिता बाल भवन संचालक गिरीश बिल्लोरे  के दिशा निर्देशन  एवं चित्रकला अनुदेशिका रेणु पांडे के संयोजन में आयोजित की गयी । इस प्रतियोगिता में 180 बच्चों पुरूषों एवं महिलाओ के पंजीयन कराया बड़े उत्साह एवं उमंग के साथ प्रतियोगिता संपन्न हुई। इस कार्यक्रम मे बाल भवन की संगीत अनुदेशिका सुश्री शिप्रा सुल्लेरे, लोकनृत्य कार्यशाला प्रशिक्षक इन्द्रपांडे, खेल अनुदेशक देवेन्द्र यादव, संगतकार  सोमनाथ सोनी  मीना सोनी, टेकराम डेहरिया, एवं बाल भवन के सीनियर एल्युमीनियाई सदस्य शुभम जैन, अक्षय ठाकुर,   कु0 शालिनी अहिरवार, कु0 मनीषा तिवारी, रोहित गुप्ता, तरूण ठाकुर, यशी पचौरी, तान्या बड़कुल, सेजल तपा, मुस्कान सोनी, समीक्षा विश्वकर्मा, रिया ठाकुर का विशेष सहयोग रहा  ।


11.12.15

~~ लाड़ो अभियान अंतर्गत ~~ रंगो की उड़ान





                                      ~~ लाड़ो अभियान अंतर्गत ~~
रंगो की उड़ान
प्रतियोगिताओं हेतु प्रविष्टियों के लिए
आमंत्रण
आयोजक संचालक संभागीय
बाल-भवन
, महिला बाल विकास विभाग
( महिला सशक्तिकरण
संचालनालय )
गढ़ाफाटक जबलपुर
फोन 0761-2401584 ,
09479756905
, 07722902503, 8109666349, 09179700804
जबलपुर दिनांक 09/12/2015           
      रांगोली
प्रतियोगिता :- दिनांक
11 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन
         समूह विभाजन
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए   
6
से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष  ( कुल 4
                                                      ग्रुप )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए          6 से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
(
कुल 3 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए   
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए           18 वर्ष से अधिक  ( कुल 01 ग्रुप )
      पोस्टर  प्रतियोगिता :- दिनांक 16 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन
          पोस्टर महिलाओं
एवं बच्चों के सकारात्मक विकास पर केन्द्रित हों । जैसे बाल-विवाह रोकने
लाडो-अभियान
,  लाड़ली-लक्ष्मी योजना, महिला के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा  एवं उत्पीढ़न रोकने , उनके अधिकार ,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्मार्ट-सिटी,
डिजिटल-इंडिया
, स्वच्छ-भारत-मिशन,
मेक-इन-इंडिया
, पर्यावरण सुरक्षा  आदि में से किसी एक विषय पर तैयार करें ।
               पोस्टर का आकार  हाफ इंपीरियर साइज़ 22 इंच गुना 14 इंच  के ड्राइंग शीट तैयार कर दिनांक 16 दिसंबर 2015  शाम 5:00 बजे तक स्थान :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक,
जबलपुर में जमा करनी होगी 
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए   
6
से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष 
                                                  
( कुल
4
ग्रुप )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए           6 से 8 वर्ष ,
9
से 11, 12 से 16,
(
कुल 3 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए   
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए         18 वर्ष से अधिक    ( कुल 01 ग्रुप )
      कार्टून
प्रतियोगिता :- दिनांक
17 दिसंबर 2015 स्थान :- संभागीय बाल-भवन
          पोस्टर महिलाओं एवं
बच्चों के सकारात्मक विकास पर केन्द्रित हों । बाल-विवाह रोकने लाडो-अभियान
,  लाड़ली-लक्ष्मी योजना, महिला के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा  एवं उत्पीढ़न रोकने , उनके अधिकार ,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्मार्ट-सिटी,
डिजिटल-इंडिया
, स्वच्छ-भारत-मिशन,
मेक-इन-इंडिया
, पर्यावरण सुरक्षा  आदि में से किसी एक विषय पर तैयार करें । ।
पोस्टर का आकार  हाफ इंपीरियर साइज़
22 इंच गुना 14 इंच  के ड्राइंग शीट तैयार कर दिनांक 17 दिसंबर 2015  शाम 5:00 बजे तक स्थान :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक, जबलपुर में जमा करनी होगी ।
        
समूह (ग्रुप )
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष  ( कुल 3 )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए      , 9 से 11,
12
से 16, ( कुल 2 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए         18 वर्ष से अधिक  ( कुल 01 ग्रुप )
      पेंटिंग  प्रतियोगिता :- दिनांक17 दिसंबर 2015 स्थान :- :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक,
जबलपुर
          बाल-विवाह रोकने
लाडो-अभियान
,  लाड़ली-लक्ष्मी योजना, महिला के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा  एवं उत्पीढ़न रोकने , उनके अधिकार ,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्मार्ट-सिटी,
डिजिटल-इंडिया
, स्वच्छ-भारत-मिशन,
मेक-इन-इंडिया
, पर्यावरण सुरक्षा  आदि में से किसी एक विषय पर तैयार करें ।.
प्रविष्टि का साइज़ हाफ-इंपीरियर आकार ड्राइंग शीट , 
      अंतिम-तिथि:-
दिनांक
17 दिसंबर 2015  शाम 5:00 बजे तक स्थान :- संभागीय बाल-भवन, गढ़ा-फाटक, जबलपुर में जमा करनी होगी ।
        
        ग्रुप अ
बालिकाओं के लिए
9
से 11, 12 से 16,
16
से 18 वर्ष  ( कुल 3 )
        ग्रुप ब   बालकों के लिए      , 9 से 11,
12
से 16, ( कुल 2 ग्रुप )
        ग्रुप स   महिलाओं  के लिए
18
वर्ष से अधिक  (
कुल
01 ग्रुप )
        ग्रुप द   पुरुषों  के लिए         18 वर्ष से अधिक  ( कुल 01 ग्रुप )
पुरस्कार एवं प्रशस्ति
              प्रत्येक वर्ग के प्रथम 05  प्रतिभागियों को समारोह में पदक
प्रशस्ति पत्र दिए जावेंगे
,
शेष 05 को प्रमाण-पत्र, दिए जावेंगे.तथा समस्त प्रविष्ठियों को
(रंगोली स्पर्धा को छोड़)  शेष सभी
श्रेणी कार्टून, पेंटिंग्स  एवं पोस्टर
, रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर में दिनांक 22-12-2015 से 23-12-2015 प्रदर्शित किया जावेगा  यहाँ यह स्पष्ट हो की प्रत्येक वर्ग से 10-10 श्रेष्ठ प्रतिभागी पुरस्कृत
होंगे जबकि सभी प्रतियोगिता  की श्रेष्ठ
10-10 प्रविष्टियों को प्रदर्शित किया जावेगा । साथ ही
प्रत्येक वर्ग से
प्रथम
10-10 चयनित प्रविष्ठियां  स्कैन  कराकर मध्यप्रदेश के अन्य  जिलों में योजनाओं के प्रचार-प्रसार हेतु
प्रयोग में लाए जाने हेतु आयुक्त
, महिला सशक्तिकरण
संचालनालय मध्य-प्रदेश भोपाल
, एवं संचालक  जवाहर बाल भवन भोपाल  सकेंगें जहां से चयनित होकर प्रदेश के सभी
जिलों  में चयनित कृति का अनुप्रयोग हो
सकता है ।
 

अन्य-नियम
1.   
प्रत्येक प्रतिभागी को अपना विवरण निर्धारित फ़ार्म में भरकर देना होगा
2.   
आयु वर्ग के अनुसार ही प्रतियोगिताओं भाग लीजिये, आयु की पुष्टि हेतु अपने फ़ार्म के साथ कोई प्रमाण अवश्य लगाएं 
3.   
प्रतियोगिता हेतु आवश्यक साधन जैसे रंगोली, कलर , शीट,
पेन्सिल, रबर आदि पर  स्वयं
ही व्यय करना होगा.
4.   
निर्णायक मण्डल का निर्णय सर्वमान्य होगा । .


7.12.15

संतूर ईरान से कश्मीर होते हुए सम्पूर्ण भारत में



भारत में संतूर मूलत: काश्मीर का तार वाद्य है किन्तु इसका जन्म 1800 साल पहले  ईरान में हुआ था । इसे वाद्य का प्रयोग  सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था अब यह एशिया सहित पश्चिमी देशों में भी किसी न किसी स्वरुप में प्रचलित हुआ जिन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति  के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन किए ।  संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं । एक सुर से मिलाये गये  के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 100 होती है । संतूर अखरोट की लकड़ी से बजाया जाता है जो आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है । यद्यपि संतूर का ज़िक्र  वेदों में इस वाद्ययंत्र का ज़िक्र है शततंत्री वीणा  । काश्मीर भजन सपोरी, अभय सपोरी, रुस्तम सपोरी ने इस वाद्य को बजाने अपनी ऐसी शैली को अपनाया जो  बनारस घराने के पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा की शैली से ज़रा हटकर है. जिन्हौने सम्पूर्ण देश में संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप में स्थापित कर दिया है .
मध्यप्रदेश  से श्रीमती श्रुति अधिकारी भोपाल,  एवं श्री हरिजिंदर सिंह जी जबलपुर, श्री राहुल शर्मा (श्री शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र ) पंडित शर्मा के प्रमुख एवं सफल शिष्य कहे जाते हैं. इसके अतिरिक्त सुश्री  वर्षा अग्रवाल एवं श्री तरुण भट्टाचार्य  भी संतूर के प्रमुख वादक हैं .

 पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1938 में जम्मू में पंडित उमा दत्त शर्मा के घर हुआ था जो स्वयं तत्समय के स्वर्ग कहे जाने वाले काश्मीर के  बेहद लोकप्रिय गायक थे. पंडित शिव कुमार शर्मा के पिता ने सूफी एवं लोक संगीत के लिए प्रयुक्त संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप में अनुप्रयोग में लाने के लिए अथक परिश्रम किया. उन्हौने अपने 13 वर्षीय  पुत्र  एवं शिष्य  शिवकुमार शर्मा को धरोहर स्वरुप इस वाद्य को शास्त्रीय संगीत के वाद्य के अनुरूप कर सौंपा. पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा ने भी पिता से मिली धरोहर एवं गुरु के ज्ञान का संरक्षण एवं संवर्धन उसी निष्ठा से किया जैसा हमारी सामाजिक परम्पराओं में है .  1955 में पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा ने अपना पहला सार्वजनिक संतूर वादन का कार्यक्रम दिया. 1965  में वी शांताराम निर्देशित फिल्म “झनक झनक पायल बाजे” के साथ ही संतूर का प्रवेश पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा ने ही कराया. तदुपरांत शिव-हरी की जोड़ी   (जिसमे श्रीयुत हरिप्रसाद चौरसिया एवं पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा शामिल हैं ) ने सिलसिला [1980], फासले [1985], चांदनी[1989], लम्हे [1991], डर [1993],  संगीत दिया है.
श्रीमती श्रुति अधिकारी ने बालभवन जबलपुर में प्रस्तुति के दौरान पलपल इंडिया को बताया कि – “संतूर के स्वरों को न केवल लोक एवं सूफी गायकी तक सीमित रखना वाद्य में विस्तार की संभावना को रोकना होता तभी तो पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा के पिता ने अथक परिश्रम कर नए स्वरुप में इस यंत्र को शास्त्रीय संगीत के अनुकूलित किया जिससे पिछले पचास –साथ वर्षों में इस वाद्य के वादन के लिए संगीतकार आकृष्ट हुए हैं ”
एक सवाल के जवाब में बताया – “बच्चे एवं युवाओं को अपनी ओर तेज़ी से आकृष्ट करने की अभूतपूर्व क्षमता है. ”     



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अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...