भारत में संतूर मूलत: काश्मीर का तार वाद्य है किन्तु इसका
जन्म 1800 साल पहले ईरान में हुआ था । इसे वाद्य का प्रयोग सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था अब यह
एशिया सहित पश्चिमी देशों में भी किसी न किसी स्वरुप में प्रचलित हुआ जिन्होंने अपनी-अपनी
सभ्यता और संस्कृति के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन किए । संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार
बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं । एक सुर
से मिलाये गये के चार
तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 100 होती
है । संतूर अखरोट की लकड़ी से बजाया जाता है जो आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे
बजाया जाता है । यद्यपि संतूर का ज़िक्र वेदों
में इस वाद्ययंत्र का ज़िक्र है शततंत्री वीणा । काश्मीर भजन सपोरी, अभय सपोरी, रुस्तम सपोरी ने इस वाद्य को बजाने अपनी
ऐसी शैली को अपनाया जो बनारस घराने के पंडित
श्रीयुत शिवकुमार शर्मा की शैली से ज़रा हटकर है. जिन्हौने सम्पूर्ण देश में संतूर
को शास्त्रीय वाद्य के रूप में स्थापित कर दिया है .
मध्यप्रदेश से श्रीमती
श्रुति अधिकारी भोपाल, एवं श्री हरिजिंदर सिंह जी जबलपुर, श्री राहुल शर्मा (श्री शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र
) पंडित शर्मा के प्रमुख एवं सफल शिष्य कहे जाते हैं. इसके अतिरिक्त सुश्री वर्षा अग्रवाल एवं श्री तरुण भट्टाचार्य भी संतूर के प्रमुख वादक हैं .
पंडित श्रीयुत शिवकुमार
शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1938 में जम्मू में पंडित उमा दत्त शर्मा के घर हुआ था
जो स्वयं तत्समय के स्वर्ग कहे जाने वाले काश्मीर के बेहद लोकप्रिय गायक थे. पंडित शिव कुमार शर्मा
के पिता ने सूफी एवं लोक संगीत के लिए प्रयुक्त संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप
में अनुप्रयोग में लाने के लिए अथक परिश्रम किया. उन्हौने अपने 13 वर्षीय पुत्र एवं
शिष्य शिवकुमार शर्मा को धरोहर स्वरुप इस
वाद्य को शास्त्रीय संगीत के वाद्य के अनुरूप कर सौंपा. पंडित श्रीयुत शिवकुमार
शर्मा ने भी पिता से मिली धरोहर एवं गुरु के ज्ञान का संरक्षण एवं संवर्धन उसी
निष्ठा से किया जैसा हमारी सामाजिक परम्पराओं में है . 1955 में पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा ने अपना
पहला सार्वजनिक संतूर वादन का कार्यक्रम दिया. 1965 में वी शांताराम निर्देशित फिल्म “झनक झनक पायल
बाजे” के साथ ही संतूर का प्रवेश पंडित श्रीयुत शिवकुमार शर्मा ने ही कराया.
तदुपरांत शिव-हरी की जोड़ी (जिसमे श्रीयुत हरिप्रसाद चौरसिया एवं पंडित
श्रीयुत शिवकुमार शर्मा शामिल हैं ) ने सिलसिला [1980], फासले [1985], चांदनी[1989],
लम्हे [1991], डर [1993], संगीत दिया है.
श्रीमती श्रुति अधिकारी ने बालभवन जबलपुर में प्रस्तुति के
दौरान पलपल इंडिया को बताया कि – “संतूर के स्वरों को न केवल लोक एवं सूफी गायकी
तक सीमित रखना वाद्य में विस्तार की संभावना को रोकना होता तभी तो पूज्य गुरुदेव पंडित
श्रीयुत शिवकुमार शर्मा के पिता ने अथक परिश्रम कर नए स्वरुप में इस यंत्र को
शास्त्रीय संगीत के अनुकूलित किया जिससे पिछले पचास –साथ वर्षों में इस वाद्य के
वादन के लिए संगीतकार आकृष्ट हुए हैं ”
एक सवाल के जवाब में बताया – “बच्चे एवं युवाओं को अपनी ओर
तेज़ी से आकृष्ट करने की अभूतपूर्व क्षमता है. ”