13.7.15

संजीव कुमार : ख़्वाबों से हक़ीक़त तक : फिरदौस खान

 एक ज़माने से देश के कोने-कोने से युवा हिंदी सिनेमा में छा जाने का ख़्वाब लिए मुंबई आते रहे हैं. इनमें से कई खु़शक़िस्मत तो सिनेमा के आसमान पर रौशन सितारा बनकर चमकने लगते हैं, तो कई नाकामी के अंधेरे में खो जाते हैं. लेकिन युवाओं के मुंबई आने का यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है. एक ऐसे ही युवा थे संजीव कुमार, जो फ़िल्मों में नायक बनने का ख़्वाब देखा करते थे. और इसी ख़्वाब को पूरा करने के लिए वह चल पड़े एक ऐसी राह पर, जहां उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना था. मगर अपने ख़्वाब को पूरा करने के लिए वह मुश्किल से मुश्किल इम्तिहान देने को तैयार थे. उनकी इसी लगन और मेहनत ने उन्हें हिंदी सिनेमा का ऐसा अभिनेता बना दिया, जो ख़ुद ही अपनी मिसाल है.
संजीव कुमार का जन्म 9 जुलाई, 1938 को मुंबई में हुआ था. उनका असली नाम हरि भाई ज़रीवाला था. उनका पैतृक निवास सूरत में था. बाद में उनका परिवार मुंबई आ गया. उन्हें बचपन से फ़िल्मों का काफ़ी शौक़ था. वह फ़िल्मों में नायक बनना चाहते थे. अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने रंगमंच का सहारा लिया. इसके बाद उन्होंने फ़िल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाख़िला ले लिया और यहां उन्होंने अभिनय की बारीकियां सीखीं. उनकी क़िस्मत अच्छी थी कि उन्हें 1960 में फ़िल्मालय बैनर की फ़िल्म हम हिंदुस्तानी में काम करने क मौक़ा मिल गया. फ़िल्म में उनका किरदार तो छोटा-सा था, वह भी सिर्फ़ दो मिनट का, लेकिन इसने उन्हें अभिनेता बनने की राह दे दी.
              1965 में बनी फ़िल्म निशान में उन्हें बतौर मुख्य अभिनेता काम करने का सुनहरा मौक़ा मिला. यह उनकी ख़ासियत थी कि उन्होंने कभी किसी भूमिका को छोटा नहीं समझा. उन्हें जो किरदार मिलता, उसे वह ख़ुशी से क़ुबूल कर लेते. 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म शिकार में उन्हें पुलिस अफ़सर की भूमिका मिली. इस फ़िल्म में मुख्य अभिनेता धर्मेंद्र थे, लेकिन संजीव कुमार ने शानदार अभिनय से आलोचकों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा. इस फ़िल्म के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर अवॊर्ड मिला. 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म संघर्ष में छोटी भूमिका होने के बावजूद वह छा गए. इस फ़िल्म में उनके सामने महान अभिनेता दिलीप कुमार भी थे, जो उनकी अभिनय प्रतिभा के क़ायल हो गए थे. उन्होंने फ़िल आशीर्वाद, राजा और रंक और अनोखी रात जैसी फ़िल्मों में अपने दमदार अभिनय की छाप छोड़ी. 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म खिलौना भी बेहद कामयाब रही. इस फ़िल्म ने संजीव कुमार को बतौर अभिनेता स्थापित कर दिया. इसी साल प्रदर्शित फ़िल्म दस्तक में सशक्त अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़े गए. फिर 1972 में प्रदर्शित फ़िल्म कोशिश में उन्होंने गूंगे बहरे का किरदार निभाकर यह साबित कर दिया कि वह किसी भी तरह की भूमिका में जान डाल सकते हैं. इस फ़िल्म को संजीव कुमार की महत्वपूर्ण फ़िल्मों में शुमार किया जाता है. फ़िल्म शोले में ठाकुर के चरित्र को उन्होंने अमर बना दिया.

                    उन्होंने 1974 में प्रदर्शित फ़िल्म नया दिन नई रात में नौ किरदार निभाए. इसमें उन्होंने विकलांग, नेत्रहीन, बूढ़े, बीमार, कोढ़ी, हिजड़े, डाकू, जवान और प्रोफ़ेसर का किरदार निभाकर अभिनय और विविधता के नए आयाम पेश किए. उन्होंने फ़िल्म आंधी में होटल कारोबारी का किरदार निभाया, जिसकी पत्नी राजनीति के लिए पति का घर छोड़कर अपने पिता के पास चली जाती है. इसमें उनकी पत्नी की भूमिका सुचित्रा सेन ने निभाई थी. इस फ़िल्म के लिए संजीव कुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अगले ही साल 1977 में उन्हें फ़िल्म अर्जुन पंडित के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला.
                                                    उनकी अन्य फ़िल्मों में पति पत्नी, स्मगलर, बादल, हुस्न और इश्क़, साथी, संघर्ष, गौरी, सत्यकाम, सच्चाई, ज्योति, जीने की राह, इंसाफ़ का मंदिर, ग़ुस्ताख़ी माफ़, धरती कहे पुकार के, चंदा और बिजली, बंधन, प्रिया, मां का आंचल, इंसान और शैतान, गुनाह और क़ानून, देवी, दस्तक, बचपन, पारस, मन मंदिर, कंगन, एक पहेली, अनुभव, सुबह और शाम, सीता और गीता, सबसे बड़ा सुख, रिवाज, परिचय, सूरज और चंदा, मनचली, दूर नहीं मंज़िल, अनामिका, अग्नि रेखा, अनहोनी, शानदार, ईमान, दावत, चौकीदार, अर्चना, मनोरंजन, हवलदार, आपकी क़सम, कुंआरा बाप, उलझन, आनंद, धोती लोटा और चौपाटी, अपने रंग हज़ार, अपने दुश्मन, आक्रमण, फ़रार, मौसम, दो लड़कियां, ज़िंदगी, विश्वासघात, पापी, दिल और पत्थर, धूप छांव, अपनापन, अंगारे, आलाप, ईमान धर्म, यही है ज़िंदगी, शतरंज के खिलाड़ी, मुक्ति, तुम्हारे लिए, तृष्णा डॊक्टर, स्वर्ग नर्क, सावन के गीत, पति पत्नी और वो, मुक़द्दर, देवता, त्रिशूल, मान अपमान, जानी दुश्मन, घर की लाज, बॊम्बे एट नाइट, हमारे तुम्हारे, गृह प्रवेश, काला पत्थर, टक्कर, स्वयंवर, पत्थर से टक्कर, बेरहम, अब्दुल्ला, ज्योति बने जवाला, हम पांच कृष्ण, सिलसिला, वक़्त की दीवार, लेडीज़ टेलर, चेहरे पे चेहरा, बीवी ओ बीवी, इतनी सी बात, दासी, विधाता, सिंदूर बने ज्वाला, श्रीमान श्रीमती, नमकीन, लोग क्या कहेंगे, खु़द्दार, अय्याश, हथकड़ी, सुराग़, सवाल, अंगूर, हीरो और यादगार शामिल हैं. उन्होंने पंजाबी फ़िल्म फ़ौजी चाचा में भी काम किया. कई फ़िल्में उनकी मौत के बाद प्रदर्शित हुईं, जिनमें बद और बदनाम, पाखंडी, मेरा दोस्त मेरा दुश्मन, लाखों की बात, ज़बरदस्त, राम तेरे कितने नाम, बात बन जाए, हाथों की लकीरें, लव एंड गॊड, कांच की दीवर, क़त्ल, प्रोफ़ेसर की पड़ौसन और राही शामिल हैं. संजीव कुमार के दौर में हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और शम्मी कपूर जैसे अभिनेताओं का बोलबाला था. इन अभिनेताओं के बीच संजीव कुमार ने अपनी अलग पहचान क़ायम की. उन्होंने अभिनेता और सहायक अभिनेता के तौर पर कई यादगार भूमिकाएं कीं.
                                   वह आजीवन अविवाहित रहे. हालांकि कई अभिनेत्रियों के साथ उनके प्रसंग सुर्ख़ियों में रहे. कहा जाता है कि पहले उनका रुझान सुलक्षणा पंडित की तरफ़ हुआ, लेकिन प्यार परवान नहीं चढ़ पाया. इसके बाद उन्होंने हेमा मालिनी से विवाह करना चाहा, लेकिन वह अभिनेता धर्मेंद्र को पसंद करती थीं, इसलिए यहां भी बात नहीं बन पाई. हेमा मालिनी ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर पहले से शादीशुदा धर्मेंद्र से शादी कर ली. धर्मेंद्र ने भी इस विवाह के लिए इस्लाम क़ुबूल किया था. यह कहना ग़लत न होगा कि ज़िंदगी में प्यार क़िस्मत से ही मिलता है. अपना अकेलापन दूर करने के लिए संजीव कुमार ने अपने भतीजे को गोद ले लिया. संजीव कुमार के परिवाए में कहा जाता था कि उनके परिवार में बड़े बेटे के दस साल का होने पर पिता की मौत हो जाती है, क्योंकि उनके दादा, पिता और भाई के साथ ऐसा हो चुका था. उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जैसे ही उनका भतीजा दस साल का हुआ 6 नवंबर, 1985 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई. यह महज़ इत्तेफ़ाक़ था या कुछ और. ज़िंदगी के कुछ रहस्य ऐसे होते हैं, जो कभी सामने नहीं आ पाते.
                                     बहरहाल, अपने अभिनय के ज़रिये संजीव कुमार खु़द को अमर कर गए. जब भी हिंदी सिनेमा और दमदार अभिनय की बात छिड़ेगी, उनका नाम ज़रूर लिया जाएगा.
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तुम पुकार लो, तुम्हारा इन्तज़ार है,
तुम पुकार लो
ख़्वाब चुन रही है रात, बेक़रार है
तुम्हारा इन्तज़ार है, तुम पुकार लो

होंठ पे लिये हुए, दिल की बात हम
जागते रहेंगे और, कितनी रात हम
होंठ पे लिये हुए, दिल की बात हम
जागते रहेंगे और, कितनी रात हम
मुख्तसर सी बात है, तुम से प्यार है
तुम्हारा इन्तज़ार है, तुम पुकार लो

दिल बहल तो जायेगा, इस ख़याल से
हाल मिल गया तुम्हारा, अपने हाल से
दिल बहल तो जायेगा, इस ख़याल से
हाल मिल गया तुम्हारा, अपने हाल से
रात ये क़रार की बेक़रार है
तुम्हारा इन्तज़ार है,
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(लेखिका :- फिरदौस खान  स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)   

12.7.15

अंतरात्मा की आवाज़

मत कहो
अंतरात्मा की आवाज़ सुनो
मैंने सुनी हैं ये आवाजें
बहुत खतरनाक हैं भयावह हैं
तुम हिल जाओगे
बचाव के रास्ते न चुन पाओगे
पहले तुम
अंतरात्मा की आवाज़ सुनो
गुणों चिंतन करो
आगे बढ़ो मुझे न सिखाओ
न मैं बिना गले वाला हूँ
मेरे पास सुर हैं संवाद है
आत्मसाहस है
जो जन्मा है मेरे साथ
बोलूंगा अवश्य अंतर आत्मा की आवाज़ पर
तुम सुन नहीं पाओगे
मेरी अंतरात्मा से निकलीं
आवाजें जो तुम्हारी हैं
भयावह भी जो तुम्हारी छवि खराब करेगी
तुम्हारे बच्चे डरेंगे मुझे इस बात की चिंता है ...
**गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”  


3.7.15

हर अपराधी के भीतर एक पीड़ित छुपा होता है- श्री श्री रविशंकर

वर्षों से कलहग्रस्त दक्षिणी अमेरिका देश कोलंबिया ने शांति के बल को नमन किया। शांति कायम करने के लिये इस देश में किये गये शांति कार्यों की गूंज कोलंबियन संसद में गूंजी और वहां की संसद के सभापति ने देश के सर्वोच्च पुरुस्कार से श्री श्री रविशंकर को सम्मानित किया। इसके अलाव वे पहले ऐसे एशियन भी बन गए हैं जिन्हें दक्षिण अमेरिका के एक और देश पेरू ने भी तीन-तीन सम्मानों से सम्मानित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्विटर के जरिए श्री श्री को इस सम्मान की बधाई दी।
                             कोलंबिया ने शांति प्रयासों के लिए दिया सर्वोच्च सम्मान

श्री श्री ने इस सम्मान लेते  हुए कहा कि -"मैं वादा करता हूं कि मैं कोलंबिया की कलह को शांत करने के लिये मेरी क्षमता के अनुरूप कार्य अवश्य करुंगा। यह पुरुस्कार श्री श्री की संस्था, आर्ट ऑफ लिविंग के माध्यम से कोलंबिया में किये गये कार्यों के लिये दिया गया है। हिंसामुक्त और तनावमुक्त विश्व निर्माण के प्रति संकल्प को दोहराते हुये, श्री श्री ने यह पुरुस्कार उन लोगों को समर्पित किया, जो अहिंसा के लिये कार्य कर रहे हैं। श्री श्री ने कहा कि जब शांति और न्याय के बीच कलह हो तो इन दोनों को मिलाने का कार्य बहुत बड़ा कार्य होता है। केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही इस स्थिति से निपटा जा सकता है ।"
 कोलंबिया के शीर्ष नेताओं ने इस सम्मान से सम्मानित होने पर श्री श्री को बधाई दी । सब का कहना था कि हमें श्री श्री के विश्वभर में शांति स्थापना के लिये किए गए कार्यों और उनके विश्व पर पड़े सकारात्मक प्रभावों पर गर्व है। श्री श्री को अपने पूर्व में लिखे पत्र में श्री फेबियो राऊल आमिन सलेम, संसद के अध्यक्ष ने कहा था, ‘‘कोलंबिया में शांति के लिये आपके 8 वर्षों में किये गये कार्यों को हमारे उत्साहित राष्ट्र ने पहचाना, हमारे देश में आर्ट ऑफ लिविंग की उपस्थिति के लिये हम आपके आभारी है। हम आपकों हिंसामुक्त समाज, के निर्माण में सहायता करने के लिये आमंत्रित करते हैं।
                     पेरू में भी सर्वोच्च सम्मान पाने वाले पहले एशियन बने श्री श्री

श्री श्री रविशंकर आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक ऐसे पहले एशियन भी बन गए  हैं, जिन्हें दक्षिण अमेरिका के पेरु देश ने भी तीन पुरुस्कारों से सम्मानित किया है।
·       उनके सामाजिक कार्यों और शांति कार्यों को देखते हुये पेरु की नेशनल कांग्रेस ने उन्हें ‘‘डिप्लोमा डि ऑनर से सम्मानित किया।
·       एंडियन पार्लियामेंट (बोलिविया, कोलंबिया, एक्युडोर और पेरु) ने उन्हें सर्वोच्च पुरुस्कार मेडाला डे ल इंटिग्रेशियन एन एल ग्रेडो डि ग्रान ऑफिशियल से जर्नल सेक्रिटेरियट लिमा, पेरु में सम्मानित किया गया। 
·       3. एना मारिया सोलार्जैनो,लिमा के मेयान ने भी श्री श्री को सम्मान से सम्मानित किया।
इस अवसर पर एंडियन सांसद, ब्रैंडो तापिया ने कहा कि, ‘‘हर किसी को इस विश्वविख्यात आध्यात्मिक गुरु को जानने का अवसर मिलना चाहिये, जिसने हर एक व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाने के लिये सहायता की है, जिसने एक बेहतर समाज, जो कि सम्मान, एकता और प्रसन्नता से भरा बनाने के लिये सेवा की है।
पुरुस्कार प्राप्त करते हुये श्री श्री ने कहा, ‘‘हमें मिलकर काम करना चाहिये ताकि यह पूरा महाद्वीप हिंसा और तनावमुक्त हो सके।‘‘ उन्होंने अपना भाषण स्पेनिश में अध्यक्ष और कांग्रेस के सभी सदस्यों को धन्यवाद देते हुये आरंभ किया और अंत ‘‘नमस्ते‘‘ कहकर किया और इसका अर्थ उन्होंने बताया‘‘मैं आपका हूं। उन्होंने कहा कि हमें तीन स्तर पर संबंध बनाने की आवश्यकता है। पहला स्वयं के साथ, दूसरा समाज के साथ और तीसरा प्रकृति के साथ।
श्री श्री ने एफएआरसी के सदस्यों को गांधीवादी सिध्दांत अपनाने के लिये मनाया
श्री श्री रविशंकर से मिलने के बाद क्यूबा के एफएआरसी (फ्यूरजस आर्मदस रिवाल्यूशनरीज़ डे कोलंबिया) नेताओं में ऐतिहासिक हृदय परिवर्तन हुआ। अपने तीन दिवसीय क्यूबा प्रवास के दौरान श्री श्री ने, एफएआरसी के नेताओं से अनेक राउंड्स में मुलाकात की, जिसमें पिछले तीन वर्षों से जारी शांति गतिरोध को समाप्त कर विश्वास कायम करने के शांति बहाली के लिये प्रयास पर खास जोर रहा। एफएआरसी ने श्री श्री से शांति प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने का अनुरोध किया था। श्री श्री ने कहा, ‘‘इस पूरी कलह में हर कोई पीड़ित है और हर अपराधी के भीतर एक पीड़ित छुपा होता है, जो कि सहायता के लिये पुकार रहा होता है।
समाचार स्रोत :- डॉ. पी . श्रीराम 


1.7.15

झुर्रियों वाले चेहरे पे गज़ब की रौनक

संगमरमर को काट के निकलीं
बूंद निकली तो ठाट से निकलीं 
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शाम की बस से बेटी लौटी है !
मिलने सखियों को ठाट से निकली !!
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बंद ताबूत में थी इक चाहत” !
एक आवाज़ काठ से निकली !!
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बद्दुआएं लबों पे सबके है -
नेकियां किसकी गांठ से निकली !!
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एक है रब सभी को है यकीं 
गोली फिर किस के हाथ से निकली ?
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झुर्रियों वाले चेहरे पे गज़ब की रौनक
मोहल्ले भर में ईदी, वो बाँट के निकली !!
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 शाम की बस से बेटी लौटी है !
 मिलने सखियों से ठाट से निकली !!

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Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...