संगमरमर को काट के निकलीं
बूंद निकली तो ठाट से निकलीं
शाम की बस से बेटी लौटी है !
मिलने सखियों को ठाट से निकली !!
बंद ताबूत में थी इक “चाहत” !
एक आवाज़ काठ से निकली !!
बद्दुआएं लबों पे सबके है -
नेकियां किसकी गांठ से निकली !!
एक है रब सभी को है यकीं
गोली फिर किस के हाथ से निकली ?
झुर्रियों वाले चेहरे पे गज़ब की रौनक
मोहल्ले भर में ईदी, वो बाँट के निकली !!
बूंद निकली तो ठाट से निकलीं
शाम की बस से बेटी लौटी है !
मिलने सखियों को ठाट से निकली !!
बंद ताबूत में थी इक “चाहत” !
एक आवाज़ काठ से निकली !!
बद्दुआएं लबों पे सबके है -
नेकियां किसकी गांठ से निकली !!
एक है रब सभी को है यकीं
गोली फिर किस के हाथ से निकली ?
झुर्रियों वाले चेहरे पे गज़ब की रौनक
मोहल्ले भर में ईदी, वो बाँट के निकली !!
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शाम की बस से बेटी लौटी है !
मिलने सखियों से ठाट से निकली
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