1.7.15

झुर्रियों वाले चेहरे पे गज़ब की रौनक

संगमरमर को काट के निकलीं
बूंद निकली तो ठाट से निकलीं 
🌺🌺
शाम की बस से बेटी लौटी है !
मिलने सखियों को ठाट से निकली !!
🌺🌺
बंद ताबूत में थी इक चाहत” !
एक आवाज़ काठ से निकली !!
🌺🌺
बद्दुआएं लबों पे सबके है -
नेकियां किसकी गांठ से निकली !!
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एक है रब सभी को है यकीं 
गोली फिर किस के हाथ से निकली ?
🌺🌺
झुर्रियों वाले चेहरे पे गज़ब की रौनक
मोहल्ले भर में ईदी, वो बाँट के निकली !!
🌺🌺
 शाम की बस से बेटी लौटी है !
 मिलने सखियों से ठाट से निकली !!

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