23.3.15

कौन है किलर झपाटा किधर गया किलर झपाटा




              हिन्दी ब्लागिंग के  स्वर्णकाल कहे गए दौर में एक ऐसा चरित्र भी सक्रिय  था  जिसकी हर किसी से कहा-सुनी खुले आप हो जाया करती थी जिसका नाम है "किलर-झपाटा" ।
           किलर झपाटे  के झापड़ कब किसे पड़ जाएँ किसी को जानकारी नहीं होती थी । ऐसा नहीं कि किलर झपाटा किसी से भी उलझता था पर उलझता अवश्य ही था । किसी भी ब्लाग लेखक से खूता मोल तब तक न लिया जाता था जब तक उसे लगता था कि उसका लेखन सार्थक है ज़रा भी बेसऊर  लेखन दिखा तो भाई टिपिया आते थे मातृ-भगनी अलंकरण से भी पीछे नहीं रहते । 
         किलर झपाटा के बहाने बता दूँ कि उस दौर में खोमचे बाजी शिखर पर थी टांग खिंचाई , आलेख की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रति लेखन देख कर लगता था कि नेट पर नेटिया साहित्य समाज में एक महान  क्रान्ति को जनने (जन्म देने ) वाला है ।   हिन्दी में  ब्लागिंग में दो सूत्र  बड़े अहम  थे एक - इग्नोर करो ... दूसरा - मौज लीजिये ..... जो इन अहम सूत्रों में से किसी एक का भी पालन करते  थे हमेशा  खुश रहते थे ...... जिसने अपनी अपनी चलाई उसका रूमाल महफूज बाबा के रूमाल की तरह सदा गीला ही रहता था ।   चलिये किलर झपाटे पर लौटते हैं ........ इनका मोटो है - "
I want to wrestle with all rubbish things of the world.
दुनिया भर की फ़ालतू चीज़ों और बातों से, ज़बरदस्त
कुश्ती लड़ने का मन है……….. "
                          काफी दिनों से इनकी एक लंबी गुमशुदगी से लग रहा किलर बाबू  जिन   rubbish things से लाड़ना चाहते हैं या तो वो खत्म हो गईं अथवा किलर-झपाटा खुद चुक गए हैं .... ! जो भी हो किलर झपाटे जी मुझे मालूम है कि आप कुछ एक को छोड़कर कइयों को एन उनके घर में झपाटा लगा चुके हो चुके तो न होगे  न ही दुनियाँ से   rubbish things चुकी हैं .................. तो फिर तुम 
तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ?
गुमसुम क्यों हो  कारण क्या है


जलते देख रहे हो तुम भी प्रश्न व्यवस्था के परवत पर
क्यों कर तापस वेश बना के, जा बैठै बरगद के तट पर  
हां मंथन का अवसर है ये  स्थिर क्यों हो कारण क्या है...?

                                                (गीत यहाँ मिलेगा :- "तुम चुप क्यों हो .... कारण क्या है ")
 बहरहाल एक बात बता दूँ कि  अभी भी किलर झपाटा मौजूद है सोशल-मीडिया पर 


  1. फेसबुक पर "किलर झपाटा "
  2. यू ट्यूब पर  "किलर झपाटा "
  3. गूगल प्लस पर "किलर-झपाटा"
  4. ट्विटर @KILLER_JHAPATA  

21.3.15

‘जल ही जीवन है’ स्लोगन सार्थक बनाने के लिए सम्यक् प्रयास जरूरी : रीता विश्वकर्मा

रीता विश्वकर्मा
प्राणियों के जीवन हेतु तीन मूलभूत एवं जरूरी आवश्यकताएँ हैं, जिनमें आक्सीजन (वायु), जल एवं भोजन प्रमुख है। इन तीनों में आक्सीजन शत प्रतिशत, जल 70 प्रतिशत और भोजन 30 प्रतिशत के अनुपात में आवश्यक माने जाते हैं। साथ ही इन तीनों आवश्यकताओं का शुद्ध होना भी परम आवश्क है। अशुद्ध व प्रदूषित प्राणवायु, जीवन जल व खाद्य पदार्थों को ग्र्रहण करने से प्राणियों के शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के फैलने की आशंका बनी रहती है, और रोग ग्रस्त होने पर जीवन संकटमय बन जाता है। यहाँ हम जल संरक्षण की बहस पर यदि किसी भी प्रकार की टिप्पणी करना चाहें, तो यही कहेंगे शुद्ध पेयजल की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उम्मीदें करना बेमानी ही होगी। 
जल ही जीवन है, इसे हम मात्र एक स्लोगन के रूप में ही देखते हैं। जल की शुद्धता एवं संरक्षण, संचयन के प्रति हमारा ध्यान कम ही जाता है। मानव- इस प्राणी को जीने के लिए जल की महत्ता का कितना आभास है, यह कह पाना मुुश्किल है। मानवीय गतिविधियों से निकलने वाले विभिन्न प्रकार के खतरनाक व प्राणघातक रसायन जीवन के लिए आवश्यक जल में जहर घोल रहे हैं। परिणाम स्वरूप भूगर्भ जल में संक्रामक रोगों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियाँ पनपने लगी हैं। गाँव से लेकर कंकरीट के सघन जंगलों में रहने वाले मानवों के लिए वर्तमान में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता किसी निशक्त के लिए एवरेस्ट फतह करने के समान है। 
मानव अपने जीने की प्रमुख आवश्यकता जल की शुद्धता को बनाए रखने में स्वयं को जिम्मेदार नहीं मान रहा है, और न ही अपनी भूमिका तय कर पा रहा है। ग्लोबल सर्वे से पता चलता है कि भूगर्भ जल को दूषित करने में औद्योगिक इकाइयों से लेकर सीवेज तथा अन्य गन्दगी व रसायन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दूषित पेयजल का दायरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। शहरों और गाँवों में सीवर प्लाण्टों व शौचालयों की व्यवस्था न होने से वहाँ से निकलने वाली गन्दगी व दूषित जल नदी-नालों के रास्ते भूगर्भ में जाकर जल को दूषित कर रही हैं। शहरों में घनी आबादी व कालोनियों का विकास तेजी से हो रहा है किन्तु जल स्रोतों को दूषित होने से बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार शुद्ध जल दो भाग हाइड्रोजन तथा एक भाग आक्सीजन के संयोग से बनता है। जिस जल में किसी भी प्रकार की भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक अशुद्धियाँ न हो और उसका स्वाद अच्छा हो उसे शुद्ध जल की परिभाषा दी जाती है। कुल मिलाकर शुद्ध जल वही कहा जाएगा जो रंगहीन, गंधहीन व स्वादहीन हो। जल के शुद्धीकरण की जाँच के लिए विश्व के समस्त देशों में अनेकों संगठन बनाए गए हैं। जिनके द्वारा इसकी विभिन्न प्रकार से जाँचें की जाती हैं। इसमें टी.डी.एस. (टोटल डिजॉल्ब्ड सॉल्ट्स) के जरिए जीवन जल में घुले हुए ठोस पदार्थों की मात्रा तथा पी.एच. जाँच में जल की अम्लीय व क्षारीय प्रकृति का परीक्षण किया जाता है। हार्ड वाटर यानि कठोर जल जो मानव शरीर के लिए कम आवश्यक है, उसकी वजह है कैल्शियम, मैग्नीशियम, क्लोराइड एवं सल्फेट जैसे तत्वों, यौगिकों का जल में मिला होना। 
कठोर जल आम जीवन के साथ-साथ उद्योगों में उपयोग किए जाने योग्य नहीं होता है। विज्ञानियों के अनुसार जल में सोडियम, व पोटैशियम क्लोराइड जैसे सॉल्ट्स घुले हुए सामान्य तौर पर पाए जाते हैं। जल में विलेय इन लवणों की मात्रा बढ़ने पर इसका स्वाद नमकीन हो जाता है। इसके अलावा जल में फ्लोराइड की मात्रा हड्डियों तथा दाँतों की मजबूती तथा दाँत के रोगों से रक्षा प्रदान करती है। जल में विलय इस लवण की निर्धारित मात्रा 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर है। इससे अधिक होने पर फ्लोराइड युक्त जल मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इन्हीं जानकारों के अनुसार लौह तत्व की जल में अधिकता से उसका रंग लाल हो जाता है साथ ही उससे दुर्गन्ध भी आने लगती है। ऐसे जल में खतरनाक रोग फैलाने वाले वैक्टीरिया विकसित होने लगते हैं। 
अवशेष क्लोरीन, नाईट्राइट व क्षारीयता की अधिकता नुकसानदेह है। नाईट्राइट की अधिकता से बच्चों में ब्लूबेबी बीमारी तथा महिलाओं में गर्भपात की स्थिति पैदा कर सकता है। विषाणुगत जल से हैजा, टाइफाइड, पीलिया, पोलिया तथा दस्त आदि रोगों के पनपने का खतरा बना रहता है। दूषित पानी त्वचा कैंसर से लेकर हाजमा, हड्डियों को कमजोर करने समेत तमाम बीमारियों को जन्म देता है। यहाँ बताना आवश्यक है कि अपने यहाँ जल की जाँच करने के लिए प्रमुख संगठन, जल निगम सक्रिय हैं, जिनके द्वारा गाँवों व शहरों में की गई जाँच से पता चला है कि अधिकांश इलाकों में भूगर्भ में 50 फीट तक स्थित पेयजल उपयोग करने लायक नहीं रह गया है। साथ ही 100 फीट तक की गहराई के जल में घुले रसायनों की अधिकता ने शुद्ध पानी में जहर घोल दिया है। 
ग्रामीणांचलों के भूगर्भ जल की जाँच में पता चला है कि इसमें फ्लोराइड, आयरन (लौह तत्व) की अधिकता है, जो एक तरह से मानव जीवन के लिए खतरे की घण्टी है। प्रदूषण के रोकथाम से सम्बन्धित वार्ता करने पर शहर/नगर पालिका के प्रभारियों व अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों का कहना है कि दूषित जल निकासी के लिए प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। छोटी नगर पालिका व नगर पंचायतों में तो स्थिति यह है कि वहाँ आबाद लोगों के घरों के गन्दे जल की निकासी के लिए सीवर प्लाण्ट की स्थापना तक नहीं है। कूड़ा निस्तारण की प्रक्रिया भी माशा अल्लाह है। हालाँकि प्रदूषण अधिकारियों द्वारा स्पष्ट रूप से यह कहा जाता है कि उनके विभाग/संगठन द्वारा औद्योगिक इकाइयों की जाँच कर नोटिस जारी की जाती है। प्रदूषण फैलाने के मामले आने पर नियमानुसार वैधानिक कार्रवाई भी की जाती है। कुछ भी हो जब जल ही जीवन है तब जल संरक्षण आवश्यक हो गया है।
                मानव शुद्ध पानी की बूँद-बूँद को न तरसे इसके लिए भूगर्भ जल की शुद्धता बनाये रखने के साथ ही उसे संक्रामक रोगों व गम्भीर बीमारियाँ फैलाने वाले वैक्टीरिया, विषाणु आदि से मुक्त रखने की आवश्यकता है। आमजन, स्वयंसेवी संस्थाओं (एन.जी.ओ.), सम्बन्धित संगठन और प्रशासनिक मशीनरी को सम्यक् रूप से जल प्रदूषण को लेकर सचेत होना पड़ेगा, तभी मानव शुद्ध जल प्राप्त कर अपना जीवन सुरक्षित रख सकेगा, साथ ही साथ जल ही जीवन हैजैसा स्लोगन अपने शाब्दिक अर्थ की सार्थकता को सिद्ध कर सकेगा।

15.3.15

यह अवसान हमें स्वीकार्य नहीं कदापि नहीं



आध्यात्मिक चैतन्य के सहारे जीवन जीने की कला कम लोग ही जानते हैं । उनमें एक नाम डा. अनुराधा उपरीत का भी है । प्रोफेसर योगेश उपरीत की सहचरी स्वर्गीय श्रीमती अनुराधा उपरीत का जन्म 1 सितंबर 1947 को स्वर्गीय श्रीयुत बाबूलाल जी चौरे   सिवनी-मालवा के घर हुआ । उनकी जन्म स्थली यानी  सिवनी मालवा की शुक्ला गली  आध्यात्मिक चिंतन की पाठशाला सी हुआ करती थी । समकालीन सामाजिक व्यवस्था आज की अपेक्षा अधिक सहिष्णु एवं सामाष्ठिक सरोकारों के  तानेबानों में कसी  हुई हुआ करती थी । सभी जानते हैं कि तब नारी के रूप में जन्म लेते ही एक तयशुदा सीमारेखा में रहना अवश्यंभावी होता था ।  परंतु उस काल में भी स्वर्गीय बाबूलाल जी चौरे बेटियों के लिए बेहतर शिक्षा दीक्षा के मायने समझते थे । बेटी के लिए शिक्षा के मुद्दे पर उनकी सकारात्मक सोच के आगे कोई बाधा कैसे आती ? श्रीमती अनुराधा उपरीत की गंभीर अध्ययन प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करते पिता एवं स्वर्गीय माता श्रीमती काशी बाई के आशीर्वाद एवं अपने  अथक परिश्रम से श्रीमती उपरीत का नाम  प्रदेश की  प्रावीण्य सूची में  मैट्रिक के नतीजों में था ।
          विवाह के उपरांत अध्ययन का सिलसिला रुकता भी कैसे .... ? प्रो. उपरीत  ने सहधर्मिणी की  अध्ययन की रुचि को बढ़ावा ही दिया एशिएन्ट हिस्ट्री से स्नातकोत्तर की उपाधि के बाद उन्हौने होमियोपैथी की डिग्री भी प्राप्त की । नवागत बहुओं की उच्च शिक्षा के लिए अक्सर ससुराल पक्ष सबसे अधिक बाधक होता है किन्तु मोहनपुर का उपरीत परिवार सर्वथा बेटों की तरह बेटियों-बहुओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करता है  जिसका सबसे पहला  उत्कृष्ट उदाहरण श्रीमती अनुराधा उपरीत बनीं        
         अपने शैक्षिक स्तर में वृद्धि करना उद्देश्य न था उनका वरन सभी से ये कहते उनको सहज ही ये कहते  सुना जा सकता था कि – “महिलाओं को जितना अधिक संभव हो ज्ञान हासिल कराते रहना चाहिए । दुनिया  भी तो एक यूनिवर्सिटी ही है जो जीवन को   ज्ञान का अक्षय भंडार उपलब्ध कराती है ”
          जीवन अवसान के एक दिन पूर्व तक श्रीमती ने अपने परिजनों / परिचितों को फोन कर कर के हितकारणी  के जॉब-फेयर के बारे में सूचना दी जो उनके  सामाजिक चैतन्य  का हालिया उदाहरण ही था ।
                   पति की व्यस्तता के बावजूद अक्सर वे सामाजिक रिश्तों को न भूलने देतीं थी । जब प्रो. उपरीत को समय मिलता दूसरों के दु:ख सुख बांटने जोड़े से निकला करतीं थीं 
           उनका सामाजिक चिंतन को   एक कमिटमेंट कहना बेहतर है  । वे सब जो श्रीमती अनुराधा जी को  करीब से जानते हैं  वे इस आलेख में दर्ज़ सभी बिन्दुओं से सहमत ही होंगे ।
                   श्रीमती अनुराधा उपरीत जी के पुत्र अर्चित ने बताया  - कि मम्मी ने  हमको रिश्ते निबाहने की शिक्षा   क्रिया के रूप में सिखाई आज हम उन “क्रियाओं” का अर्थ समझ पा रहे हैं ।
                श्रीमती अनुराधा जी में संगठनात्मक संयोजना का अदभुत गुण था । अपनी योग्यता एवं क्षमताओं के अहंकार से दूर समाज के सबसे छोटे अकिंचन परिवार को भी आदर सहित स्वीकारना आज के दौर में सबसे कठिन विषय है पर ये सब उनके लिए सरल एवं सहज  इस कारण था क्योंकि वे सर्वदर्शी थीं । नेत्रहीन कन्याओं के बीच जब प्रोफेसर उपरीत का जन्म दिवस मनाया गया तब उनके  करुणामय हृदय  को बेहद तृप्ति मिली थी ।
                भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक जीवन दर्शन एक ऐसा फलसफा है जिसमें आध्यात्मिकता को सर्वोपरि स्थान मिलता है । जैसे ही आप अपने बच्चों में सकारात्मकता का बीजारोपण करेंगे वैसे ही आप भारतीय सामाजिक एवं  सांस्कृतिक  वैभव को सहज समाज पाएंगे । समकालीन परिस्थितियाँ आध्यात्मिकता के लिए अनुकूल रही थी तभी  स्वर्गीया अनुराधा उपरीत ने  विकास के साथ जीवन के  मूल्यों को को बचाने की कला को स्वयं में विकसित कर लिया था । कारण मात्र यह था कि – उनका बचपन एक ऐसे कुटुंब में हुआ जहां “सबसे सबके सरोकार” को महत्व मिलता है । सिवनी-मालवा के  देवल मोहल्ले की शुक्ला गली ........... मुहल्ला तो कभी महसूस ही नहीं होता पूरा बड़ा भरा पूरा परिवार सा दृश्य नज़र आता था वहाँ । चूल्हे भले अलग अलग जलें पर कौन किस घर में खाना खाएगा ये कभी भी तय न हो सका था । फिर मोहनपुर यानी श्रीमती अनुराधा उपरीत के ससुराल में भी सामाजिक समदृष्टि का अभाव न होना श्रीमती उपरीत के व्यक्तित्व को निखारने में कम सहायक न था ।
          अपने 47 वर्ष के वैवाहिक जीवन का अर्थ बताते हुए प्रो. उपरीत भरे गले से  कहते हैं - “ जीवन के हर उतार चढ़ाव के साथ साथ समूचे मित्र परिवारों / रिश्तेदारों / परिचितों  के लिए सकारात्मक चिंतन  वही रख सकता है जिसमे सबके लिए सहज सहिष्णुता हो । 
              अपनी दौनो  पुत्रियों को क्रमश: श्रीमती जया और प्रिया को सतत शिक्षा से जुड़े रहने की सलाह देने वाली , एक विशाल हृदय वाली देवी श्रीमती अनुराधा उपरीत को नार्मदीय ब्राह्मण समाज की महिलाओं ने सामाजिक महिला संगठन की बागडोर दो बरस पहले सौंपी थी वे एक एक परिवार से व्यक्तिगत रूप से जुड़ गईं जुड़ी तो पहले भी पर इस बार सबके बच्चों खासकर बेटियों से जुड़ाव अदभुत अनुकरणीय स्थिति को दर्शा रहा था  । देवलोक गमन तक वे अपने दायित्व का सुचारू निर्वाहन करतीं रहीं  अपने नि:धन के दो दिन पूर्व तक घर घर फोन कर हितकारणी सभा के जॉब फेयर की सूचना देतीं रहीं 
         नियति से हम असहमत भी कैसे हों ? पर आज बार बार मन यही कहता है हे ईश्वर यह अवसान हमें स्वीकार्य नहीं कदापि नहीं ................
ॐ शांति शांति शांति

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...