स्वतंत्र भारत में 15 अगस्त 1947
को प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में लाल
किले से भाषण देने की परंपरा जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी,
जो गुलजारी
लाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री,
इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई,
चरण सिंह,
राजीव गांधी, विश्व नाथ प्रताप सिंह,
चन्द्रशेखर, पी.वी. नरसिम्हाराव,
अटल बिहारी वाजपेई, एच. डी. देवगौड़ा,
इंद्र कुमार गुजराल और मनमोहन सिंह
तक की यात्रा करते हुए नरेंद्र मोदी तक आ गई है। 26
मई 2014 को शपथ लेने
वाले नरेंद्र मोदी भारत के 18वें प्रधानमंत्री हैं।
स्वतंत्रता दिवस की
वर्षगाँठ के अवसर पर लाल किले से उन्होंने अपना पहला भाषण दिया।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री द्वारा
दिये जाने
वाले भाषण को देशवासी प्रति वर्ष ही पूरी गंभीरता से सुनते रहे
हैं,
लेकिन इस बार लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को
लेकर आम
जनता में एक अलग तरह का ही रोमांच था। दिल्ली से दूर अन्य शहरों,
कस्बों
और गाँवों में रहने वाले लोग भाषण सुनने को लेकर एक सीमा से
अधिक उत्सुक
नज़र आ रहे थे। ध्वजारोहण का एक ही समय होता है,
जिससे तमाम लोग नरेंद्र
मोदी के भाषण का टीवी पर लाइव प्रसारण नहीं देख पाये,
ऐसे लोग अफ़सोस
व्यक्त करते नज़र आये। हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री के भाषण
को सुनने
को लेकर ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश की जनता को निराश नहीं
किया। अपनी
मनमोहक शैली में ही आम आदमी को संबोधित करते हुए उन्होंने विश्व
स्तरीय
भाषण दिया। उन्होंने दावे और वादे नहीं किये और न ही आम आदमी को
सपने
दिखाये। वह आम आदमी से जुड़े मुददों पर बोले ही नहीं,
बल्कि प्रत्येक
व्यक्ति से विकास के आंदोलन में जुड़ने का आह्वान किया। उनका आशय
था कि
सरकार विहीन जनता जब अंग्रेजों से राज वापस छीन सकती है,
तो विकास करना
तो जनता के लिए और भी आसान है। उन्होंने विकास को आंदोलन का रूप
देने की
पृष्ठभूमि तैयार की।
ऐसे अवसरों पर स्वतंत्रता से जुड़े आंदोलन में भाग लेने वाले
महापुरुषों
और शहीदों को याद करने की औपचारिकता निभाई जाती रही है,
लेकिन नरेंद्र
मोदी अंग्रेजी शासन से भी बहुत पीछे तक गये। उन्होंने स्पष्ट
कहा कि "यह
देश राजनेताओं ने नहीं बनाया है, यह देश शासकों ने नहीं
बनाया है,
यह देश
सरकारों ने भी नहीं बनाया है, यह देश हमारे किसानों
ने बनाया है, हमारे
मजदूरों ने बनाया है, हमारी माताओं और बहनों
ने बनाया है, हमारे नौजवानों
ने बनाया है, हमारे देश के ऋषियों ने,
मुनियों ने, आचार्यों ने,
शिक्षकों
ने, वैज्ञानिकों ने,
समाजसेवकों ने, पीढ़ी-दर-पीढ़ी कोटि-कोटि
जनों की
तपस्या से आज राष्ट्र यहाँ पहुँचा है।"
नरेंद्र मोदी यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा कि "देश
निर्माण में इस
देश के सभी प्रधान मंत्रियों का योगदान है,
इस देश की सभी सरकारों का
योगदान है, इस देश के सभी राज्यों
की सरकारों का भी योगदान है। मैं
वर्तमान भारत को उस ऊँचाई पर ले जाने का प्रयास करने वाली सभी
पूर्व
सरकारों को, सभी पूर्व प्रधान
मंत्रियों को, उनके सभी कामों को,
जिनके
कारण राष्ट्र का गौरव बढ़ा है, उन सबके प्रति इस पल
आदर का भाव व्यक्त
करना चाहता हूँ, मैं आभार की अभिव्यक्ति
करना चाहता हूं। उन्होंने विपक्ष
ही नहीं, बल्कि प्रत्येक सांसद
को भी याद किया।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने छोटी से छोटी बात को भी बड़े ही प्रभावी ढंग
से रखा। उन्होंने
कहा कि "मैं दिल्ली के लिए आउट साइडर हूं, मैं
दिल्ली
की दुनिया का
इंसान नहीं हूं। मैं यहां के राज-काज को भी नहीं जानता।
यहां की एलीट
क्लास से तो मैं बहुत अछूता रहा हूं, लेकिन
एक बाहर के
व्यक्ति ने, एक
आउट साइडर ने दिल्ली आ कर के पिछले दो महीने में, एक
इन
साइडर व्यू लिया, तो
मैं चौंक गया! बोले- यह मंच राजनीति का नहीं है,
राष्ट्रनीति का
मंच है और इसलिए मेरी बात को राजनीति के तराजू से न तौला
जाए। आगे कहा कि
ऐसा लगा जैसे एक सरकार के अंदर भी दर्जनों अलग-अलग
सरकारें चल रही
हैं। हरेक की जैसे अपनी-अपनी जागीरें बनी हुई हैं। मुझे
बिखराव नज़र आया, मुझे
टकराव नज़र आया। एक डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट
से भिड़ रहा है और
यहां तक भिड़ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे
खट-खटाकर एक ही
सरकार के दो डिपार्टमेंट आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं। यह
बिखराव, यह
टकराव, एक
ही देश के लोग! हम देश को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं?"
उन्होंने कहा कि
"इन दिनों अखबारों में चर्चा चलती है कि मोदी जी की
सरकार आ गई, अफसर
लोग समय पर ऑफिस जाते हैं, समय पर ऑफिस खुल जाते
हैं,
लोग पहुंच जाते
हैं। मैं देख रहा था, हिन्दुस्तान के नैशनल
न्यूज़ पेपर
कहे जाएं, टीवी
मीडिया कहा जाए, प्रमुख रूप से ये खबरें छप रही थीं।
सरकार के मुखिया
के नाते तो मुझे आनंद आ सकता है कि देखो भाई, सब
समय पर
चलना शुरू हो गया, सफाई
होने लगी, लेकिन
मुझे आनंद नहीं आ रहा था, मुझे
पीड़ा हो रही थी।
वह बात मैं आज पब्लिक में कहना चाहता हूं। इसलिए कहना
चाहता हूं कि इस
देश में सरकारी अफसर समय पर दफ्तर जाएं, यह
कोई न्यूज़
होती है क्या? और
अगर वह न्यूज़ बनती है, तो हम कितने नीचे गए
हैं, कितने
गिरे हैं, इसका
वह सबूत बन जाती है।"
उन्होंने सरकारी
सेवा में कार्य करने वालों को जगाने की बात कही, उन्हें
कर्तव्यपरायढ़
बनाने की बात कही। इन सब बातों को प्रधानमंत्री के स्तर का
नहीं माना जाता है, जिससे
अभी तक ऐसे बातें प्रधानमंत्री के मुंह से
लोगों को सुनने को
भी नहीं मिली।
बलात्कार की घटनाओं
पर भी वे चिंतित नज़र आये, लेकिन उन्होंने सीधे
माता-पिता से सवाल
किया। उन्हें झकझोरा कि "हर मां-बाप से पूछना चाहता
हूं कि आपके घर
में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां
और
बाप चौकन्ने रहते
हैं, हर
बात पूछते हैं कि कहां जा रही हो, कब आओगी,
पहुंचने के बाद
फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं,
लेकिन क्या कभी
मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां
जा रहे हो, क्यों
जा रहे हो, कौन दोस्त है? आखिर बलात्कार करने
वाला किसी
न किसी का बेटा तो
है। उसके भी तो कोई न कोई मां-बाप हैं। क्या मां-बाप
के नाते, हमने
अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां
जा रहे हो?
अगर हर मां-बाप तय
करे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी
बेटों पर भी डाल
कर के देखो तो सही, उसे कभी पूछो तो सही।"
वे हिंसा पर भी
बोले और कहा कि "कानून अपना काम करेगा, कठोरता
से करेगा,
लेकिन समाज के
नाते भी, हर
मां-बाप के नाते हमारा दायित्व है। कोई मुझे
कहे, यह
जो बंदूक कंधे पर उठाकर निर्दोषों को मौत के घाट उतारने वाले लोग
कोई माओवादी होंगे, कोई
आतंकवादी होंगे, वे किसी न किसी के तो बेटे हैं।
मैं उन मां-बाप से
पूछना चाहता हूं कि अपने बेटे से कभी इस रास्ते पर
जाने से पहले पूछा
था आपने? हर
मां-बाप जिम्मेवारी ले, इस गलत रास्ते पर
गया हुआ आपका बेटा
निर्दोषों की जान लेने पर उतारू है। न वह अपना भला कर
पा रहा है, न
परिवार का भला कर पा रहा है और न ही देश का भला कर पा रहा
है और मैं हिंसा
के रास्ते पर गए हुए, उन नौजवानों से कहना
चाहता हूं कि
आप जो भी आज हैं, कुछ
न कुछ तो भारत माता ने आपको दिया है, तब
पहुंचे
हैं। आप जो भी हैं, आपके
मां-बाप ने आपको कुछ तो दिया है, तब हैं। मैं
आपसे पूछना चाहता
हूं, कंधे
पर बंदूक ले करके आप धरती को लाल तो कर सकते
हो, लेकिन
कभी सोचो, अगर
कंधे पर हल होगा, तो धरती पर हरियाली
होगी,
कितनी प्यारी
लगेगी। कब तक हम इस धरती को लहूलुहान करते रहेंगे? और
हमने
पाया क्या है? हिंसा
के रास्ते ने हमें कुछ नहीं दिया है।"
उन्होंने नेपाल का
उदाहरण देते हुए कहा कि "मैं पिछले दिनों नेपाल गया
था। मैंने नेपाल
में सार्वजनिक रूप से पूरे विश्व को आकर्षित करने वाली
एक बात कही थी। एक
ज़माना था, सम्राट
अशोक जिन्होंने युद्ध का रास्ता लिया
था, लेकिन
हिंसा को देख कर के युद्ध छोड़, बुद्ध के रास्ते पर
चले गए। मैं
देख रहा हूं कि
नेपाल में कोई एक समय था, जब नौजवान हिंसा के
रास्ते पर
चल पड़े थे, लेकिन
आज वही नौजवान संविधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हीं
के साथ जुड़े लोग
संविधान के निर्माण में लगे हैं और मैंने कहा था, शस्त्र
छोड़कर शास्त्र के
रास्ते पर चलने का अगर नेपाल एक उत्तम उदाहरण देता है,
तो विश्व में
हिंसा के रास्ते पर गए हुए नौजवानों को वापस आने की प्रेरणा
दे सकता है।
उन्होंने सवाल किया कि बुद्ध की भूमि, नेपाल
अगर संदेश दे
सकती है, तो
क्या भारत की भूमि दुनिया को संदेश नहीं दे सकती है?"
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने शांति और भाईचारे की बात करते हुए जातिवाद
और सम्पद्रायवाद
को मिटाने की बात कही। उन्होंने बिगड़ते लिंगानुपात की
बात करते हुए कहा
कि "एक हजार लड़कों पर 940 बेटियाँ पैदा होती
हैं। समाज
में यह असंतुलन
कौन पैदा कर रहा है? ईश्वर तो नहीं कर रहा
है। मैं उन
डॉक्टरों से
अनुरोध करना चाहता हूं कि अपनी तिजोरी भरने के लिए किसी माँ
के गर्भ में पल
रही बेटी को मत मारिए। मैं उन माताओं, बहनों
से कहता हूं
कि आप बेटे की आस
में बेटियों को बलि मत चढ़ाइए। कभी-कभी माँ-बाप को लगता
है कि बेटा होगा, तो
बुढ़ापे में काम आएगा। मैं सामाजिक जीवन में काम करने
वाला इंसान हूं।
मैंने ऐसे परिवार देखे हैं कि पाँच बेटे हों, पाँचों
के
पास बंगले हों, घर
में दस-दस गाड़ियाँ हों, लेकिन बूढ़े माँ-बाप
ओल्ड एज
होम में रहते हैं, वृद्धाश्रम
में रहते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं।
मैंने ऐसे परिवार
भी देखे हैं, जहाँ संतान के रूप में अकेली बेटी हो, वह
बेटी अपने सपनों
की बलि चढ़ाती है, शादी नहीं करती और
बूढ़े माँ-बाप की
सेवा के लिए अपने
जीवन को खपा देती है। यह असमानता, माँ के गर्भ में
बेटियों की हत्या, इस
21वीं
सदी के मानव का मन कितना कलुषित, कलंकित,
कितना दाग भरा है, उसका
प्रदर्शन कर रहा है। हमें इससे मुक्ति लेनी होगी
और यही तो आज़ादी
के पर्व का हमारे लिए संदेश है।"
उन्होंने हाल ही
में हुए राष्ट्रमंडल खेलों का उदाहरण देते हुए कहा कि
"हमारे
करीब 64 खिलाड़ी जीते हैं। हमारे 64 खिलाड़ी
मेडल लेकर आए हैं,
लेकिन उनमें 29 बेटियाँ हैं। इस पर गर्व करें और उन बेटियों के लिए ताली
बजाएं। भारत की
आन-बान-शान में हमारी बेटियों का भी योगदान है, हम
इसको
स्वीकार करें और
उन्हें भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ लेकर चलें, तो
सामाजिक जीवन में
जो बुराइयाँ आई हैं, हम उन बुराइयों से
मुक्ति पा सकते
हैं। इसलिए एक
सामाजिक चरित्र के नाते, एक राष्ट्रीय चरित्र
के नाते हमें
उस दिशा में जाना
है। देश को आगे बढ़ाना है।"
उन्होंने सवाल
किया कि "क्या देश के नागरिकों को राष्ट्र के कल्याण के
लिए कदम उठाना
चाहिए या नहीं उठाना चाहिए? आप कल्पना कीजिए, सवा
सौ करोड़
देशवासी एक कदम
चलें, तो
यह देश सवा सौ करोड़ कदम आगे चला जाएगा।
लोकतंत्र, यह
सिर्फ सरकार चुनने का सीमित मायना नहीं है। लोकतंत्र में
सवा सौ करोड़
नागरिक और सरकार कंधे से कंधा मिला कर देश की आशा-आकांक्षाओं
की पूर्ति के लिए
काम करें, यह
लोकतंत्र का मायना है। हमें जन-भागीदारी
करनी है। पब्लिक
प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ आगे बढ़ना है। हमें जनता को
जोड़कर आगे बढ़ना
है। उसे जोड़ने में आगे बढ़ने के लिए, आप
मुझे बताइए कि आज
हमारा किसान
आत्महत्या क्यों करता है? वह साहूकार से कर्ज़
लेता है,
कर्ज़ दे नहीं सकता
है, मर
जाता है। बेटी की शादी है, गरीब आदमी साहूकार
से कर्ज़ लेता है, कर्ज़
वापस दे नहीं पाता है, जीवन भर मुसीबतों से
गुज़रता है। मेरे
उन गरीब परिवारों की रक्षा कौन करेगा?
बोले- इस आज़ादी
के पर्व पर मैं एक योजना को आगे बढ़ाने का संकल्प करने के
लिए आपके पास आया
हूँ– ‘प्रधान मंत्री जनधन योजना’।
इस ‘प्रधान
मंत्री
जनधन योजना’ के
माध्यम से हम देश के गरीब से गरीब लोगों को बैंक अकाउंट
की सुविधा से
जोड़ना चाहते हैं। आज करोड़ों-करोड़ परिवार हैं, जिनके
पास
मोबाइल फोन तो हैं, लेकिन
बैंक अकाउंट नहीं हैं। यह स्थिति हमें बदलनी
है। देश के आर्थिक
संसाधन गरीब के काम आएँ, इसकी शुरुआत यहीं से
होती है।
यही तो है, जो
खिड़की खोलता है। इसलिए ‘प्रधान मंत्री जनधन
योजना’ के
तहत
जो अकाउंट खुलेगा, उसको
डेबिट कार्ड दिया जाएगा। उस डेबिट कार्ड के साथ
हर गरीब परिवार को
एक लाख रुपए का बीमा सुनिश्चित कर दिया जाएगा, ताकि
अगर उसके जीवन में
कोई संकट आया, तो उसके परिवारजनों को एक लाख रुपए का
बीमा मिल सकता है।"
उन्होंने कहा कि
"यह देश नौजवानों का देश है। 65 प्रतिशत
देश की जनसंख्या
35 वर्ष
से कम आयु की है। हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा नौजवान देश है।
क्या हमने कभी
इसका फायदा उठाने के लिए सोचा है? आज दुनिया को स्किल्ड
वर्क फोर्स की
जरूरत है।" बोले- ‘स्किल डेवलपमेंट’ और
‘स्किल्ड
इंडिया’
यह हमारा मिशन है।"
उन्होंने इम्पोर्ट
और एक्सपोर्ट में संतुलन पैदा करने की बात करते हुए
अप्रवासी भारतीयों
से आह्वान करते हुए कहा कि “कम, मेक
इन इंडिया,” “आइए,
हिन्दुस्तान में
निर्माण कीजिए।” दुनिया के किसी भी देश में जाकर बेचिए,
लेकिन निर्माण
यहाँ कीजिए, मैन्युफैक्चर यहाँ कीजिए। हमारे पास स्किल है,
टेलेंट है, डिसिप्लिन
है, कुछ
कर गुज़रने का इरादा है। हम विश्व को एक
सानुकूल अवसर देना
चाहते हैं कि आइए, “कम, मेक
इन इंडिया” और हम विश्व को
कहें, इलेक्ट्रिकल
से ले करके इलेक्ट्रॉनिक्स तक “कम, मेक
इन इंडिया”,
केमिकल्स से ले
करके फार्मास्युटिकल्स तक “कम, मेक
इन इंडिया”,
ऑटोमोबाइल्स से ले
करके ऐग्रो वैल्यू एडीशन तक “कम, मेक
इन इंडिया”, पेपर
हो या प्लास्टिक “कम, मेक
इन इंडिया”, सैटेलाइट हो या सबमेरीन “कम, मेक
इन इंडिया”।
ताकत है हमारे देश में! आइए, मैं निमंत्रण देता
हूं।"
उन्होंने सवाल
किया कि "देश के नौजवानों को देश-सेवा करने के लिए सिर्फ
भगत सिंह की तरह
फांसी पर लटकना ही अनिवार्य है? लालबहादुर शास्त्री जी
ने “जय
जवान, जय
किसान” एक
साथ मंत्र दिया था। जवान, जो सीमा पर अपना सिर
दे देता है, उसी
की बराबरी में “जय किसान” कहा था। क्यों? क्योंकि
अन्न
के भंडार भर कर के
मेरा किसान भारत मां की उतनी ही सेवा करता है, जैसे
जवान भारत मां की
रक्षा करता है।"
उन्होंने कहा कि
"पूरे विश्व में हमारे देश के नौजवानों ने भारत की पहचान
को बदल दिया है।
विश्व भारत को क्या जानता था? ज्यादा नहीं, अभी
25-30
साल पहले तक
दुनिया के कई कोने ऐसे थे, जो हिन्दुस्तान के
लिए यही सोचते
थे कि ये तो “सपेरों
का देश” है।
ये सांप का खेल करने वाला देश है, काले
जादू वाला देश है।
भारत की सच्ची पहचान दुनिया तक पहुंची नहीं थी, लेकिन
हमारे 20-22-23 साल के नौजवान, जिन्होंने कम्प्यूटर
पर अंगुलियां
घुमाते-घुमाते
दुनिया को चकित कर दिया। विश्व में भारत की एक नई पहचान
बनाने का रास्ता
हमारे आई.टी. प्रोफेशन के नौजवानों ने कर दिया।
अगर यह
ताकत हमारे देश
में है, तो
क्या देश के लिए हम कुछ सोच सकते हैं? इसलिए
हमारा सपना “डिजिटल
इंडिया” है।
जब मैं “डिजिटल
इंडिया” कहता
हूं, तब
ये
बड़े लोगों की बात
नहीं है, यह
गरीब के लिए है। अगर ब्रॉडबेंड कनेक्टिविटी
से हिन्दुस्तान के
गांव जुड़ते हैं और गांव के आखिरी छोर के स्कूल में अगर
हम लॉन्ग डिस्टेंस
एजुकेशन दे सकते हैं, तो आप कल्पना कर सकते
हैं कि
हमारे उन गांवों
के बच्चों को कितनी अच्छी शिक्षा मिलेगी। जहां डाक्टर
नहीं पहुंच पाते, अगर
हम टेलिमेडिसिन का नेटवर्क खड़ा करें, तो
वहां पर
बैठे हुए गरीब
व्यक्ति को भी, किस प्रकार की दवाई की दिशा में जाना है,
उसका स्पष्ट
मार्गदर्शन मिल सकता है।"
प्रधानमंत्री ने
कहा कि "हम टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहते हैं। टूरिज्म से
गरीब से गरीब
व्यक्ति को रोजगार मिलता है। चना बेचने वाला भी कमाता है,
ऑटो-रिक्शा वाला
भी कमाता है, पकौड़े बेचने वाला भी कमाता है और एक चाय
बेचने वाला भी
कमाता है। जब चाय बेचने वाले की बात आती है, तो
मुझे ज़रा
अपनापन महसूस होता
है। टूरिज्म के कारण गरीब से गरीब व्यक्ति को रोज़गार
मिलता है। लेकिन
टूरिज्म के अंदर बढ़ावा देने में भी और एक राष्ट्रीय
चरित्र के रूप में
भी हमारे सामने सबसे बड़ी रुकावट है हमारे चारों तरफ
दिखाई दे रही
गंदगी । क्या आज़ादी के बाद, आज़ादी के इतने सालों
के बाद, जब
हम 21वीं
सदी के डेढ़ दशक के दरवाजे पर खड़े हैं, तब
क्या अब भी हम गंदगी
में जीना चाहते
हैं? मैंने
यहाँ सरकार में आकर पहला काम सफाई का शुरू
किया है। लोगों को
आश्चर्य हुआ कि क्या यह प्रधानमंत्री का काम है? लोगों
को लगता होगा कि
यह प्रधानमंत्री के लिए छोटा काम होगा, मेरे
लिए बहुत
बड़ा काम है। सफाई
करना बहुत बड़ा काम है। क्या हमारा देश स्वच्छ नहीं हो
सकता है? अगर
सवा सौ करोड़ देशवासी तय कर लें कि मैं कभी गंदगी नहीं
करूंगा तो दुनिया
की कौन-सी ताकत है, जो हमारे शहर, गाँव
को आकर गंदा कर
सके? क्या
हम इतना-सा संकल्प नहीं कर सकते हैं?"
उन्होंने कहा कि 2019 में महात्मा गाँधी की 150वीं
जयंती आ रही है।
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती हम कैसे मनाएँ? महात्मा
गाँधी, जिन्होंने
हमें आज़ादी दी, जिन्होंने
इतने बड़े देश को दुनिया के अंदर इतना सम्मान
दिलाया, उन
महात्मा गाँधी को हम क्या दें? महात्मा गाँधी को
सबसे प्रिय
थी– सफाई, स्वच्छता।
क्या हम तय करें कि सन् 2019 में जब हम महात्मा
गाँधी की 150वीं जयंती मनाएँगे, तो
हमारा गाँव, हमारा शहर, हमारी गली,
हमारा मोहल्ला, हमारे
स्कूल, हमारे
मंदिर, हमारे
अस्पताल, सभी
क्षेत्रों
में हम गंदगी का
नामोनिशान नहीं रहने देंगे? यह सरकार से नहीं
होता है,
जन-भागीदारी से
होता है, इसलिए
यह काम हम सबको मिल कर करना है।"
उन्होंने फिर सवाल
किया कि हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं, क्या
कभी
हमारे मन को पीड़ा
हुई कि आज भी हमारी माताओं और बहनों को खुले में शौच के
लिए जाना पड़ता है? डिग्निटी
ऑफ विमेन, क्या
यह हम सबका दायित्व नहीं है?
बेचारी गाँव की
माँ-बहनें अँधेरे का इंतजार करती हैं, जब
तक अँधेरा नहीं
आता है, वे
शौच के लिए नहीं जा पाती हैं। उसके शरीर को कितनी पीड़ा होती
होगी, कितनी
बीमारियों की जड़ें उसमें से शुरू होती होंगी! क्या हमारी
माँ-बहनों की इज्ज़त
के लिए हम कम-से-कम शौचालय का प्रबन्ध नहीं कर सकते
हैं?"
‘स्वच्छ भारत’ का
एक अभियान 2 अक्टूबर से चलाने की बात करते हुए उन्होंने
कहा कि
हिन्दुस्तान के सभी स्कूलों में टॉयलेट हो, बच्चियों
के लिए अलग
टॉयलेट हो, तभी
तो हमारी बच्चियाँ स्कूल छोड़ कर भागेंगी नहीं। उन्होंने
सांसदों से कहा कि
एमपीलैड फंड का उपयोग स्कूलों में टॉयलेट बनाने के लिए
खर्च कीजिए।
उन्होंने कॉरपोरेट सेक्टर्स का भी आह्वान किया कि वे सोशल
रिस्पांसिबिलिटी
के तहत स्कूलों में टॉयलेट बनाने को प्राथमिकता दें।
उन्होंने “सांसद
आदर्श ग्राम योजना” चलाने की बात कही, जिसके
तहत सांसद
एक गांव पसंद
करेंगे और उसे आदर्श बनायेंगे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण की
जयंती के दिन 11 अक्टूबर को इस योजना को शुभारंभ करने का आश्वासन दिया,
साथ ही अपनी गरिमा
खो चुके प्लानिंग कमीशन को बंद करने का इशारा किया।
उन्होंने लाल किले
से भाषण देते हुए महर्षि अरविंद को भी याद किया। 15
अगस्त को उनकी
जयंती होती है। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द को भी याद
किया, जो
अप्रत्याशित कहा जा सकता है।
15 अगस्त
का दिन भारत के प्रधानमंत्री के लिए अहंकार का भाव उत्पन्न करने
का होता है, लेकिन
नरेंद्र मोदी ने स्वयं को प्रधान सेवक कहा और कहा कि
अगर, आप
12 घंटे काम करोगे, तो मैं 13 घंटे करूंगा। अगर आप 14 घंटे
कर्म
करोगे, तो
मैं 15 घंटे करूंगा। क्यों? क्योंकि
मैं प्रधानमंत्री नहीं,
प्रधान सेवक के
रूप में आपके बीच आया हूं। मैं शासक के रूप में नहीं,
सेवक के रूप में
सरकार लेकर आया हूं।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का भाषण ऐतिहासिक सिर्फ इसलिए नहीं कहा जायेगा
कि उन्होंने आम
आदमी से जुड़े मुददों पर बात की। उनका भाषण इसलिए भी याद
किया जायेगा कि
उनका एक-एक शब्द भारतवासी ने गंभीरता से सुना और राष्ट्र
निर्माण में आम
आदमी के अंदर सरकार का साथ देने की एक सोच पैदा की। यह
सोच कितने दिनों
तक ठहर पाती है और कर्म में कितना परिवर्तित हो पाती है,
यह तो भविष्य में
ही पता चल सकेगा।