योजना आयोग के खात्मे के साथ भारत एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा . मेरी नज़र से
भारतीय अर्थ-व्यवस्था का सबसे विचित्र आकार योजना आयोग था जो समंकों के आधार पर
निर्णय ले रहा था. यानी आपका पांव आग में और सर बर्फ़ की सिल्ली पर रखा है तो औसतन
आप बेहतर स्थिति में हैं.. योजनाकार देश-काल-परिस्थिति के अनुमापन के बिना योजना
को आकृति देते . वस्तुत: आर्थिक विकास की धनात्मक दिशा वास्तविक उत्पादन खपत के
बीच होता पूंजी निर्माण है. जो भारत में हो न सका . मेड इन इंडिया नारे को मज़बूत करते हुए प्रधान सेवक ने "मेक
इन इंडिया " की बात की.. अर्थशास्त्री चकित तो हुए ही होंगे. विश्व से
ये आग्रह कि आओ भारत में बनाओ, भावुक बात नहीं
बल्कि भारत के श्रम को विपरीत परिस्थियों वाले मुल्कों में न भेज कर भारत
में ही मुहैया कराने की बात कही. इस वाक्य में भारत के औद्योगिक विकास को
गति देने का बिंदु भी अंतर्निहित है .
रेतीले शहर
दुबई में लोग जाकर गौरवांवित महसूस करते हैं. तो यू.के. यू. एस. ए. में हमारा युवा
खुद को पाकर आत्ममुग्ध कुछ दिन ही रह पाता है. फ़िर जब मां-बाप के चेहरे की
झुर्रियां उनको महसूस करने लगता हैं तो सोचता है कि काश, हम
घर जा पाते..? ये तो भावात्मक पहलू है
"मेक-इन-इंडिया" का परंतु एक और यथार्थ ये भी है कि प्रधान सेवक के मन
में उद्योगों की स्थापना से स्थानीय समुदाय को मिलने वाले रोज़गार की अधिक चिंता
है. पंद्रह बरस पहले जब मैं दिल्ली ट्रेनिंग में बचे समय का सदुपयोग करने गुड़गांव
गया तब मैने स्वप्न में भी न सोचा था कि वहां के लोग सामान्य नागरिक रोज़गार से
जुड़ेंगे. सोच रहा था ... दिल्ली की मानिंद ये हरियाणवी बस्ती क्या विकास करेगी.
पर सायबर सिटी ने तो कमाल ही कर दिया. वहां अब लोगों को रोज़गार के
मौके ही मौके मौज़ूद हैं वहां . आज़ादी के पहले से ही श्रम सस्ता था जो धीरे धीरे और अधिक सस्ता होता चला गया. पेट में जाने वाली रोटी, मोटा-कपड़ा, तक बमुश्किल कमाया जा पा रहा है . स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसायिक
रूप लेकर मज़दूर की पहुंच से बाहर हो गई. अब तो काम के अवसर भी निजी हाथों में हैं.
यह लक्ष्यहीन बेतरतीब आंदोलनों का दुष्परिणाम है श्रम के अधिकार में कमी
आई श्रम-प्रबंधन विद्वेष इतना बढ़ा कि हमारे उद्योग कमज़ोर होते चले गए. हम विदेशी
आपूर्ती के अधीन हो गये आज़ाद भारत में आधारभूत विकास जिसे अधोसंरचनात्मक विकास को
प्रमुखता नहीं दी गई. ऐसा नही की घोर उपेक्षा हुई बल्कि प्राथमिकता न मिलना चिंता
का विषय रहा. अब अगर लाल किले की प्राचीर से इनसाइडर विज़न ये है कि सब कुछ स्वदेशी
हो अथवा स्वदेश में ही हो तो इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती है .
प्रधान सेवक ने अपने व्याख्यान में यह भी कहा कि – अफ़सर, सही वक़्त पर
आफ़िस आते हैं ये कोई खबर नहीं. मीडिया को सतर्क होकर खबर देने का संदेश देते हुए
एक लाइन में सनसनाती क़लम को नक़ार दिया. यानी चौथे स्तम्भ को भी विकास के सार्थक
प्रयासों के सापेक्ष चलने का आग्रह करना वर्तमान परिवेश में अनिवार्य था.
बेटियों की चिंता, भ्रूण-हत्या, सांसदों से आदर्श-ग्राम का आग्रह भाषण
ऐसी विशेषताएं थीं जिससे सामाजिक एवम अधोसंरचनात्मक विकास को दिशा मिलेगी.
प्रधान सेवक का इनसाइडर विज़न भाव, कर्म, परिणाम की
प्रथम सूचना दे रहा है. अब बारी है हमारी कि हम कितना सोच रहे हैं.. देश के बारे
में विकास के बारे में..