19.3.14

छै: नारे चऊअन...या नौ छक्के चऊअन....?

 कोई न उठा था उस दिन इस बच्चे को एसी कोच में 
सफ़ाई करते रोकने से .. टी. वी. वाले सियासी विषय
 इससे अधिक गम्भीर हैं क्या..
                       सैपुरा (शहपुरा-भिटौनी) में मन्नू सिंग मास्साब की हैड मास्टरी  वाले बालक प्राथमिक स्कूल में एडमीशन लिया था तबई से हम चिंतनशील जीव हूं. रेल्वे स्टेशन से तांगे से थाने के पीछे वाले स्कूल में टाट पट्टी पर बैठ पढ़ना लिखना सीखते सीखते हम चिंतन करना सीख गए. पहली दूसरी क्लास से ही  हमारे दिमाग में चिंतन-कीट ने प्रवेश कर लिया था.  चिंतनशील होने की मुख्य वज़ह हम आगे बताएंगे पहले एक किस्सा सुन लीजिये        एक दिन  रजक मास्साब हमसे पूछा - कै छक्के चौअन....?
 चिंतन की बीमारी
              चिंतनशील होने के कारण हम एक घटना पर चिंतनरत थे इसी वज़ह उस वक़्त दूनिया (पहाड़ा) दिमाग़ में न था .  पाकिस्तान से युद्ध का समय था पड़ौसी कल्याण सिंह मामाजी ने मामी को डाटा - ब्लेक आउट आडर है तू है कि लालटेन तेज़ जला रई है गंवार .. बस उसी सोच में थे कि कमरे के भीतर जल रहे लालटेन और ब्लेकआऊट का क्या रिश्ता हो सकता है.. कि मामा जी ने मामी की भद्रा उतार दी . मामाजी इतने गुस्से में थे कि वो मामी की शिकायत लेकर मां के पास आए और बोले- इस गंवार को बताओ दीदी, इंद्रा गांधी बोल रईं थी कि जनता मुश्किल समय में हमारा साथ दे और ये है कि.. मां हंस पड़ी उल्टे कल्याण मामा की क्लास लेली - पागल तुम हो पाकिस्तान का घुसपैठिया विमान एक तो शहपुरा-भिटौनी तक आ नहीं सकता. दूसरे आ भी गया तो उसे कल्याण तेरे घर के लालटेन की लाइट कैसे दिखेगी बता रेल्वे क्वार्टर में पक्की छत है कि नईं चल जा भाभी को अब ऐसे न झिझकारना. दिमाग में सवाल उठ रहे थे कि पाक़िस्तान का जहाज़ लालटेन ब्लैक आऊट जे सब क्या है.. चलो आज़ मास्साब से पूछूंगा . कि यकायक एक आवाज़ ठीक सर के ऊपर से हमारी खोपड़ी में जा टकराई - गिरीश, कै छक्के चौअन....?    
मेरा ज़वाब था - छै: नारे चऊअन...!!
                            मास्साब- हम पूछ कछु रए तुम बता कछु रए..सो रए का .  सटाक एक चपत गाल पै आंखन में आंसू मन में उदासी लिये हम सही उत्तर देने के बावज़ूद सोचने लगे  ये मास्साब लोग चपतियाने का मौका नहीं तज़ते .  एक तो रामचरन  तांगेवाले बड़े प्यार से अपने एन अपने बगल में बिठाते थे जो घोड़े के दक्षिणावर्त्य के एकदम समक्ष का हिस्सा उस पर घोड़े को वायु-विकार की बीमारी थी . हमसे पीछे बैठने वालों तक घोड़े के दक्षिणावर्त्य से निकसी हर हास्यस्पद ध्वनियां सहज सुनाई देती थी उस पर रामचरन बच्चों को नेक सलाह देते थे.... घोड़ा पादे तो हंसियो मति.. बाक़ी बच्चे चिल्लाते थे .. नईं तो चाचा.. दाद हो जाएगी न... फ़िर तांगे में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती . अपुन का हाल तब बुरा हो जाता था.. न तो हंस पाते न रो पाते न गुस्सा कर पाते ..ये सब घटनाएं दिमाग पर असर करतीं थीं . जमादारिन के बच्चे को न छूने की हिदायतें.. ? मामी को हमेशा डांट मिलना, पुरुष रेल कर्मियों का दारू पीकर जलवा बिखेरना.. ये सब अजीब लगता था 
    औरतें तब भी रोतीं थीं.. बच्चे आज भी पन्नी बीनते हैं. ट्रेन में पौंछा मारते हैं चाय पिलाते हैं... गाली भी खाते हैं.. बताओ भाई.. किसी विदेशी को "गली का करोड़पति कुत्ता" बनाने का आमंत्रण देती इस व्यवस्था के बारे में कितना चिंतन करतें हैं हम आप शायद बहुत कम .. इस आलेख के साथ लगी फ़ोटो में एक बच्चे को हमने ए.सी. कोच में पौंछा लगाते देखा. हम विचलित थे.. आज़ ये तस्वीर पुराने फ़ोल्डर में नज़र आई सोशल साईट पर भी दे डाली.. एक महाशय का कमेंट मिला "यही धंधा है इनका...
सहानुभूति के लिए अथवा चंद लाइक पाने के लिए फोटो भले ही लगा दीजिये... ऐसे हजारों बच्चे, जवान, बूढ़े और विकलांग हैं जिनके लिए भारतीय रेल जीवन रेखा है और ये वहीँ से कमाते हैं...
मैं जब रेवाड़ी से दिल्ली अप-डाउन करता था तब कम से कम दस ऐसे भिखारी जैसी शक्लों को जानता था जो ऐसे ही दरिद्र बनकर शाम को पांच-सात सौ कमाकर जाते हैं...
"
             हम लोग इतने नैगेटिव हो गए हैं कि सिर्फ़ विरोध करते हैं  केवल विरोध से  आत्म चिंतन की सकारात्मकता शून्य हो जाती है . कुंठा के बिरवें रोंपना कहां तक ठीक है.. अगर  आप को मेरा विचार पसंद नहीं तो मेरी सोच और सकारात्मक सोच बदल दूंगा क्या.. लोग जिसे धंधा कह कर छुटकारा पाना चाहते हैं वे क्या खाक राष्ट्रवादी होंगे..!! खैर बेचारे क्या जानें कि उनकी नज़र में इन धंधेबाज बच्चों की वज़ह से ही उनका घर चलता है.. ! 

17.3.14

सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! (बुंदेली प्रेम गीत )

नीरो नै पीरो न लाल

रंग ले अपनई रंग में ..!!
*********
प्रीत भरी पिचकारी नैनन सें मारी
मन भओ गुलाबी, सूखी रही सारी.
हो गए गुलाबी से गाल
रंग ले अपनई रंग में ..!!
*********
कपड़न खौं रंग हौ तो रंग   छूट  जाहै
तन को रंग पानी से तुरतई मिट जाहै
सखियां फ़िर करहैं सवाल-
रंग ले अपनई रंग में..!!
*********
प्रीत की नरबदा मैं लोरत हूं तरपत हूं
तोरे काजे खुद  सै रोजिन्ना  झगरत हूं
मैंक दे नरबदा में जाल –
रंग ले अपनई रंग में..!!

********

16.3.14

हमाई ठठरी बांधत बांधत बे सुई निपुर गये

रमपुरा वारे कक्का जू
                      रमपुरा वारे कक्का जू की का कहें दद्दा बे हते बड़े ताकत बारे . नाएं देखो तो माएं देखो तौ जिते देखो उतै... जो मिलो बा ई की ठठरी बांध देत हते .बूढ़ी बाखर के मालक कक्का जू खौं जे दिना समझ परौ के उनको मान नै भओ तौ बस तन्नक देर नईयां लगत है ठठरी बांधबे में. एक दिना में कित्तन की बांधत है  बे खुदई गिनत नईंयां गिनहैं जब गिनती जानै. न गिनती न पहाड़ा जनबे वारे कक्का रोजई ग्यान ऐसों बांटत फ़िरत हैं कि उनके लिंघां कोऊ लग्गे नईं लगत ...!!
    चुनाव नैरे आए तौ पार्टी ने टिकट दै दई और कक्का जू खौं खुलम्मखुला बता दओ कि  कोऊ की ठठरी न बांधियो चुनाव लौं. जा लै लो टिकट चुनाव लड़ लौ.. कोऊ कौ कछु कहियो मती, झगड़्बौ-लड़बौ बंद अब चुनाव लडौ़ समझे.. !
कक्का जू :- जा का सरत धर दई .. हमसे जो न हु है.. 
        पार्टी लीडर बोलो :- कक्का जू, तुम जानत नईं हौ, जीतबे के बाद तुमाए लाने मुतके मिल हैं.. सबकी बांध दईयो . रहो लड़बो-झगड़बो तो दरबार मैं जान खै माइक तोड़ियो, मारियो, कुर्सी मैकियो, जो कन्ने हो उतई करियो दद्दा मनौ जनता से प्यार-दुलार सै बोट तौ लै लो .
           कक्का जू  खौं कछु समझ परौ बस बे मान गए . नाम टी वी पै सुनखैं पेपरन मै देख कक्का जू बल्ली घांई उचकन लगे.  
                 डोल नगाड़े बजावा दए खूब जम खैं धूमधड़ाका भओ. कक्का की बाखर के आंगे लोग जुड़े .. धक्का मुक्की जूतम पैज़ार, नाच गाना , को विबिध-भारती टाईप कौ पंचरंगी कारक्रम देख बे ठठरी नै बांध सके कौनऊ की. 
जैंसे जैंसे बोट पड़बे की तारीक पास आन आन लगी कक्का जू खौं मुतके सीन दिखा दए जनता नैं. 
कोऊ बोलो कक्का.. लौंडोहीं गुण्डई सै मन भर गओ का . कक्का के मन में ऐंसी आग लगी कि कछु न पूछो..! मन मसोस के आ रह गए.. चुनाव न होते तौ बे तुरतई सबरे मौंबाज समझ जाते कि कक्का कया आयं.. मन मार खैं माफ़ी मांगी लोगन खौं अद्धी और नोट दिखान लगे .. लैबो तो दूर दूर सै देख के सबरे भाग गए. कक्का हो गए हक्का बक्का लगे मनई मन कोसबे चुनाव आयोग खौं.. ! कक्का की दसा देख चेला-चपाटी बोले -"कक्का जू कल हमाई मानों तुम हाथ जोड़िओ हम लट्ठ दिखाहैं.."
    कक्का मान गए... मनौ जनता हती कि कक्का खौं निपोरबे की जुगत लगाए बैठी .. अंगुली दिखाय के डपट दओ.. जनता नै . 
भई जा बात हती कि कल्लू की मौड़ी नै कालेज़ पढ़ाई करबे के बाद गांव खेड़न मैं "समझाऊ-कार्यक्रम" चला दओ . सरकारी दफ़तरन की मदद मिली फ़िर का भओ कि कक्का जू लोगन कौं ठठरियात रहे उनखौं पतई नैं लग पाओ कि जमानो बदल गओ .. एक मौड़ी उनखौं निपोरबे तैयार हो गई..  चुनाव भए.. बोटैं परीं.. कक्का निपुर गये.. न बे दरबार मे जा पाए न दरबारी-दंगल को हिस्सा बन पाए.. न सिरकारी भत्ता ले पाए.. 
  सच्ची बात जईया.. तुमौरे सुई न डरियो भैज्जा-भौजी.. कक्का काकी, टुरिया- मुन्ना हरौ, सब जाईयो जब बोटें परैं.
  इस आलेख में उल्लेखित चरित्र का किसी एक गांव, और कक्का जू से सम्बंध नहीं है. अगर ऐसी कोई वास्तविकता पाई जावे तो संयोग मात्र होगा . 
साभार :- राजस्थान निर्वाचन आयोग, जिला स्वीप-समिति डिंडोरी 

14.3.14

होलिका - शक्ति सम्पन्न सत्ती : प्रजापति


हमारे महामानवों ने सभी तीज-त्यौहारों को पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए
शुरू किए हैं। होलिका दहन में पर्यावरण, आध्यात्मिक का गूढ़ रहस्य छिपा
हुवा है। होलिका दहन से पर्यावरण सुधार व शारीरिक स्वास्थ्य को लाभ होता
है। होलिका दहन से शक्ति सम्पन्न की नीति अनिति अपनाने से भस्म हो जाने
की शिक्षा मिलती है।
वर्तमान में कुड़ा-करकट इकट्ठा करके होलिका दहन करना नितान्त आवश्यक है।
होलिका दहन के समय दुषविचारों, दुष्कर्मों को जलाने व सत्कर्मों को
अपनाने की भावना रखनी चाहिये। होलिका दहन से विशेष तौर से महिलाओं को
शिक्षा लेनी चाहिये कि शक्ति सम्पन्न सत्ती होलिका भी असत्य का साथ देने
से जल जाती है। सत्य फिर भी जीवित रहता है।
हम वर्षों से पर्यावरण सन्तुलन व सुरक्षा का कार्य कर रहे हैं। जिसका गूढ
रहस्य है प्राणियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना। स्वस्थ प्राणियों से
असीम शान्ति कायम हो सकेगी- प्रजापति
होली का दहन का प्रचलन कब से शुरू हुआ क्यों शुरू हुआ? इस बारे में अनेक
तरह के विचार प्रकाशित हो रहे हैं कई किवदन्तियां प्रकाशित होती है कई
ग्रन्थों में होलिका दहन के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है साथ ही
देश-काल के अनुसार भी होलिका दहन के तौर-तरीके अलग-अलग हैं। हम इन सब
बातों की ओर न जाकर सीधे हमारे महामानवों द्वारा शुरू किये गये
तीज-त्यौहारों का प्रचलन पर्यावरण व स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ के लिए शुरू
किया है उसी ओर विशेष ध्यान दिलाना चाहेगें साथ ही आध्यात्मिक गूढ़ रहस्य
के बारे में भी जानकारी देना चाहेगें। होलिका दहन-सर्दऋतु में कई कीटाणु
पैदा हो जाते है जो पर्यावरण व स्वास्थ्य को भारी क्षति पहुंचातें है ऐसे
में इन कीटाणुओं को नष्ट करने में ग्राम-नगर की सफाई को मध्यनजर रखते
हुवे होलिका दहन करना नितान्त आवश्यक है। होलिका दहन में जो भी
कूड़ा-करकट पड़ा होता है उसे जलाना चाहिये।
इस प्रकार शीत काल में जो कीटाणु पैदा होकर वनस्पति व प्राणियों को
नुकसान पहुंचाते है वे अनावश्यक कीटाणु जल जाते है और वह ग्राम, नगर की
एक तरह से सफाई पूर्णतः हो जाती है। लेकिन वर्तमान में इस प्रकार की
कार्यशैली अपनायी नहीं जा रही है प्रशासन भी किसी भी तरह की सफाई की ओर
विशेष ध्यान नहीं देता जबकि सरकार व प्रशासन को चाहिये कि प्रत्येक
तीज-त्यौहार पर ग्राम-कस्बा-नगर आदि को एक बार तो पूर्णतः स्वस्छ करें।
लोग घर की सफाई करके जो कुड़ा-करकट बाहर फैंकते है वह भी यूं ही बिखरा
पड़ा रहता है। इस प्रकार वर्तमान में जो होलिका दहन हो रहे हैं वह आडम्बर
के रूपक बन गये है।
होलिका दहन का आध्यामिक रहस्य
होलिका एक शक्तिसम्पन्न नारी थी जिसे वरदान प्राप्त था कि सत्य का साथ
देते रहने से तुम आग में भी नहीं जलोगी। लेकिन होलिका मूल बात भूल गई और
भूल गई यह भी कि भतीजा भी पुरूष की श्रेणी में ही आता है और इस प्रकार
असत्य का साथ देकर जल गई और सत्य जीवित रह गया।
होलिका दहन से महिलाओं को शिक्षा
आज दहेज लोभी भेडि़ये अबोध कमजोर महिलाओं को निर्ममता से जला रहे हैं ऐसी
परिस्थितियों में आज की महिलांए होलिका की तरह दृढ़ निष्ठावान चरित्र
वाली होकर शक्ति सम्पन्न बनकर सत्य का साथ देती रहे तो उसे प्रताडि़त
करने व जलाने का दुःसाहस करने वाले खुद जलकर भस्म हो सकते हैं।
होलिका की भस्मी से पिडोलिया पूजन
होलिका दहन की भस्म से दूसरे दिन बालिकांए पिण्डोलिया बनाकर सोलह दिन तक
पूजती है इसका महज यही कारण है कि होलिका एक महान शक्तिसम्पन्न सत्ती थी
और सत्ती की भस्मी का पूजन करते हुवे यह विचार करते रहना चाहिये कि
होलिका की तरह हम भी महान शक्ति सम्पन्न बने और जो गलती सत्ती होलिका ने
की थी वह गलती हम नही करें।
इस प्रकार के विचार होलिका दहन के समय भी अपनाने चाहिये।
ज्वारा बोने व पूजन करने के गूढ़ रहस्य
होलिका दहन से स्वाभाविक तौर से धुआं उठता है और अग्नि से कई
कीटाणु-जीवाणु मरते है इस प्रकार वातावरण शुद्ध तो होता है परन्तु फिर भी
दुषित धुएं का भी कुप्रभाव रहता है ऐसे समय में घर पर ज्वारा बोने से
दुषित वायु का प्रभाव कम हो जाता है।
ज्वारा का विसर्जन
ज्वारा को पानी में विसर्जन करना चाहिये ताकि पानी की पौष्टिकता बढ़े या
फिर ज्वारा को पीस कर रस निकाल कर पी लेना चाहिये।
प्राचीन काल में तो पानी में डालने की प्रथा थी परन्तु वर्तमान में
ज्वारा को कुड़े करकट में फैंक दिया जाता है इस प्रकार बेशकीमती चीज को
फैंककर पर्यावरण को नुकसार पहुंचाया जा रहा है। अतः इस प्राचीन परम्परा
का महत्व समझते हुवे पर्यावरण पे्रमी वर्ग की महिलाओं पुरूषों को पहल
करनी चाहिये।
अब जरा सोचिये कि जो महामानवों ने हमारे तीज-त्यौहारों में जो प्रथा शुरू
की थी उनमें आज बढ़ते प्रदूषण में दोष आ जाने पर और अधिक प्रदूषण को
बढावा मिल रहा है। अतः हमें अभी से पर्यावरण व स्वास्थ्य को लाभ में रखते
हुवे तीज-त्यौहारों में जो खान-पान बनाने का महामानवों ने रिवाज शुरू
किया था उन्ही पकवानों को मध्यनजर रखकर पकवान बनाने चाहिये। इस प्रकार कम
खर्च में हम बढ़ते प्रदूषण को रोकने में पूर्णतः सक्षम होगें। अब हम
चेतावनी भी देना चाहेगें कि आज प्रदूषण का साम्राज्य हर क्षेत्र में
विकराल रूप धारण कर चुका है और जिसमें मानसिक प्रदूषकों की संख्या बढ़ती
जा रही है जिस कारण आज चारों ओर अशान्ति ही अशान्ति व अन्धकार का भविष्य
बन गया है इसे समाप्त करना है तो एक मात्र इसका उपाय है पाक्षिक खेजड़ा
एक्सपे्रस, प्रकृति शक्ति पीठ द्वारा चलाये गये घर-घर तुलसी पौघ लगाओ
अभियान को सफल बनाना।
अतः घर-घर तुलसी पौध लगाओ अभियान को सफल बनाईये और असीम, सुख- शान्ति
वैभवशाली बनिये। तथा तुलसी पौध का दान करे तुलसी पौध दान से सभी प्रकार
के कष्ट दूर होते है यह दान श्रेष्ठतम पवित्र दान है। -प्रजापति

11.3.14

भीड़ तुम्हारा कोई धर्म है ..?


भीड़ तुम्हारा
कोई धर्म है ..
यदि है तो तुम
किसी के भरमाने में क्यों आ जाती हो..
अनजाने पथ क्यों अपनाती हो
भीड़ ....
तुम अनचीन्हे रास्ते मत अपनाओ
क़दम रखो मौलिक सोच के साथ
पावन पथों पर
मोहित मत होना
आभासी दृश्यों में उभरते
आभासी रथों पर
तब तो तुम सच्ची शक्ति हो !
वरना हिस्से हिस्से अधिनायकत्व
के अधीन कोर्निस करते नज़र आओगे
सामंती ठगों के सामने
सबकी सुनो
अपनी बुनों
चलो बिना लालच के
बिको मत
 दृढ़ दिखो
 स्वार्थ साधने
बिको मत

6.3.14

हल्की खांसी और आचार-संहिता


साभार : अमर उजाला
हम- डा. साब लगातार हल्की खांसी बनी है..
डा. - वैसे अब आप भले चंगे हैं.. कुछ दवाएं लिख देता हूं.. हल्की फ़ुल्की खांसी बनी रहेगी ! घबराएं न .
हम - घबराना तो पड़ेगा ही... लोग कह रहे हैं.. आचार-संहिता लग चुकी है.. क्या केजरी बाबू की मानिंद खौं-खौं किये जा रहे हो...
डाक्टर सा’ब हंसे और लिख मारा पर्चा. हम दूकान से दवा लेके निकले रास्ते में आम आदमी नामक जीव-जन्तु तलासते तपासते हम और  रास्ते भर मन में  उछलकूद मचाते विचार एक अज़ीब सी स्थिति के शिकार से घर की तरफ़ भागे चले आ रहे थे कि मित्र ( जो मित्र होकर हमको अपना गुरु मान लेने का अभिनय कर रहे हैं कई दिनों से ) ने फ़ुनियाना शुरु किया ..... सेल फ़ोन पर हमने उनके नम्बर के साथ "नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छिपी रहे.." वाला रिंगटोन सेट किया था.. सो समझ गये किस का फ़ोन है.. हमने फ़ोन न उठाया. फ़िर सोचा चलो बतिया लेते हैं.. सो बतियाने लगे . हमने उनसे पूछा- भई बताओ, ये केजरी बाबू खास से आम और अब आम से खास कैसे बने ?

चेला- असल में अब उनको खासी आने लगी है.. वो खांस खखार के खास बन रहे हैं.. जैसे बहू-बेटियों वाले घरों में जेठ-ससुर टाईप के लोग खास खखार के खास बनते हैं.. पर गुरू आप काहे सियासी बात कर रए हो.. अरे आचार-संहिता लग गई सरकारी लोग ऐसा नहीं करते.. !
हम- भई, इसी डर से तो हम अपनी खांसी का इलाज़ करवा रए हैं.. डाक्टर भंडारी जी ने लम्बी पर्ची लिखी है. हमारी  खांसी कहीं आचार-संहिता का उल्लंघन न हो जाए. 
बातों बातों में हमारा फ़ोन कट गया मित्रो ...  सच्ची बात तो ये है कि अब केजरी बाबू की खांसी कहर बरपाने पे आमादा है. 
     खैर छोड़िये जब चर्चा निकल ही पड़ी तो सच्चे आम आदमी की चर्चा भी कर ली जावे. हमारे एक बड़े अफ़सर को एक चुगलखोर के सिखाए पूत ने फ़ोन पे चुगलियाया - सा’ब, आपका एक मातहत अफ़सर, गायब है . हमारे बड़े अफ़सर भी मस्त बतियाते रहे उनकी चुगलखोरी का मज़ा लेते रहे.. फ़ोन पर चुगलखोर की चुगली समाप्त होते ही बोले- भाई, उनसे मिलना है... ?
चुगलखोर - जी सा’ब, 
सा’ब - तो, फ़लां अस्पताल के पलंग नम्बर ... में चले जाओ ... श्रीमान जी, वो सा’ब वहीं भर्ती है.. देखो जीते जी आपके काम आ जाए ..
     चुगलखोर के दिल में बैठा आम इंसान जाग उठा फ़ट से उसने बता भी दिया कि किसने उसे चुगली के लिये उकसाया है.. 
                      मित्रो   ये हालिया दिनों में मेरे साथ घटी सत्य घटना हैं. पर मैं उन गिरे चरित्र वालों का नाम लिख कर उनको अमर न बनाऊंगा . क्योंकि राम के साथ आज़ भी रावण  जीवित  है  . मेरे कथानक में धूर्त ज़िंदा नहीं रहेंगें.. बस उनको क्षमा करने की याचना करता हूं .  





27.2.14

"फ़ेसबुक पर महाशिवरात्रि की धूम से नंदी भाव-विभोर !!"


 परम आदरणीय महान भारतीयो

                      "हैप्पी महाशिवरात्रि " 
  आज़ फ़ेसबुक पर आप सभी ने जिस तरह महाशिवरात्रि की धूम से मैं शिववाहन नंदी हार्दिक रूप से अभिभूत हुआ हूं. प्रभू को फेसबुक पर देख अभिभूत हूँ आज मैने गणेश जी के एंड्रायड पर प्रभू को पृथ्वी लोक की लीला का अवलोकन कराया . प्रभू एवम मां पार्वती भी अतिशय प्रसन्न हैं. 
हे भारतीयों इनका नाम ही भोले भंडारी है.. यथा नाम तथा गुण वाले प्रभू ने माता पार्वती से कहा -"हे देवी एक ओर जहां पृथ्वी लोक से चुनावी अटपट-चटपट-गटपट संवाद सुनाई दे रहें हैं कहीं कुंठित अनुगुंठित, अवगुंठित गठबंधनो का समाचार दिखाई सुनाई दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय जन इस पर्व को बड़े उत्साह से मना रहे हैं एक दूसरे को Wish U Very Happy Mahashivratri…….कह रहे हैं...!!"
           देवी पार्वती ने जब व्यग्र होकर पूछा- प्रभू, इन दिनों शिवाष्टक, पुष्पदंत विरचित शिवमहिम्न्स्त्रोत, शिवलीलामृत, रावण विरचित शिवतांडव   की ध्वनीयां सुनाईं नहीं दे रहीं..
    इस पर प्रभू मुस्कुराए और उनने कहा- देवी, धरा पर ध्वनि आधिक्य के कारण ऐसी ध्वनियों की संभावना कम ही मानो . 
  हे भारतीयो, देश में "हैप्पी.... ये...दिन /  हैप्पी.... वो...दिन" कहने का अवसर जब भी मिले अवश्य कहिये भले आप किसी को हैप्पी रखें या न रखें परंतु आपके ऐसे कह देने मात्र से एक पुण्य आपके एकाउंट में जमा हो जावेगा. ऐसे अवसर निरंतर आते हैं उनका लाभ उठाते रहिये . 
पुन: शिवरात्री की हार्दिक शुभकामानाएं....
                                                    Wish U Very Happy Mahashivratri…….
आपका स्नेही
"नंदी"
अंत में उड़नतश्तरी के एकमेव स्वामी समीरलाल विरचित 
पैग़ाम 


                                



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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...