भीड़ तुम्हारा
कोई धर्म है ..
यदि है तो तुम
किसी के भरमाने में क्यों आ जाती हो..
अनजाने पथ क्यों अपनाती हो
भीड़ ....
तुम अनचीन्हे रास्ते मत अपनाओ
क़दम रखो मौलिक सोच के साथ
पावन पथों पर
मोहित मत होना
आभासी दृश्यों में उभरते
आभासी रथों पर
तब तो तुम सच्ची शक्ति हो !
वरना हिस्से हिस्से अधिनायकत्व
के अधीन कोर्निस करते नज़र आओगे
सामंती ठगों के सामने
सबकी सुनो
अपनी बुनों
चलो बिना लालच के
बिको मत
दृढ़ दिखो
स्वार्थ साधने
बिको मत