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साभार : अमर उजाला |
हम- डा. सा’ब लगातार हल्की खांसी बनी है..
डा. - वैसे अब आप भले चंगे हैं.. कुछ दवाएं लिख देता हूं.. हल्की फ़ुल्की खांसी बनी रहेगी ! घबराएं न .
हम - घबराना तो पड़ेगा ही... लोग कह रहे हैं.. आचार-संहिता लग चुकी है.. क्या केजरी बाबू की मानिंद खौं-खौं किये जा रहे हो...
डा. - वैसे अब आप भले चंगे हैं.. कुछ दवाएं लिख देता हूं.. हल्की फ़ुल्की खांसी बनी रहेगी ! घबराएं न .
हम - घबराना तो पड़ेगा ही... लोग कह रहे हैं.. आचार-संहिता लग चुकी है.. क्या केजरी बाबू की मानिंद खौं-खौं किये जा रहे हो...
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चेला- असल में अब उनको खासी आने लगी है.. वो खांस खखार के खास बन रहे हैं.. जैसे बहू-बेटियों वाले घरों में जेठ-ससुर टाईप के लोग खास खखार के खास बनते हैं.. पर गुरू आप काहे सियासी बात कर रए हो.. अरे आचार-संहिता लग गई सरकारी लोग ऐसा नहीं करते.. !
हम- भई, इसी डर से तो हम अपनी खांसी का इलाज़ करवा रए हैं.. डाक्टर भंडारी जी ने लम्बी पर्ची लिखी है. हमारी खांसी कहीं आचार-संहिता का उल्लंघन न हो जाए.
बातों बातों में हमारा फ़ोन कट गया मित्रो ... सच्ची बात तो ये है कि अब केजरी बाबू की खांसी कहर बरपाने पे आमादा है.
खैर छोड़िये जब चर्चा निकल ही पड़ी तो सच्चे आम आदमी की चर्चा भी कर ली जावे. हमारे एक बड़े अफ़सर को एक चुगलखोर के सिखाए पूत ने फ़ोन पे चुगलियाया - सा’ब, आपका एक मातहत अफ़सर, गायब है . हमारे बड़े अफ़सर भी मस्त बतियाते रहे उनकी चुगलखोरी का मज़ा लेते रहे.. फ़ोन पर चुगलखोर की चुगली समाप्त होते ही बोले- भाई, उनसे मिलना है... ?
चुगलखोर - जी सा’ब,
सा’ब - तो, फ़लां अस्पताल के पलंग नम्बर ... में चले जाओ ... श्रीमान जी, वो सा’ब वहीं भर्ती है.. देखो जीते जी आपके काम आ जाए ..
चुगलखोर के दिल में बैठा आम इंसान जाग उठा फ़ट से उसने बता भी दिया कि किसने उसे चुगली के लिये उकसाया है..
मित्रो ये हालिया दिनों में मेरे साथ घटी सत्य घटना हैं. पर मैं उन गिरे चरित्र वालों का नाम लिख कर उनको अमर न बनाऊंगा . क्योंकि राम के साथ आज़ भी रावण जीवित है . मेरे कथानक में धूर्त ज़िंदा नहीं रहेंगें.. बस उनको क्षमा करने की याचना करता हूं .