18.3.13

पलाश से संवाद !

श्रीमति रानी विशाल जी के
ब्लाग  काव्यतरंग से साभार

                     पलाश तुम भी अज़ीब हो कोई तुम्हैं  वीतरागी समझता है तो कोई अनुरागी. और तुम हो कि बस सिर पर अनोखा रंग लगाए अपने नीचे की ज़मीन तक  को संवारते दिखते हो. लोग हैरान हैं... सबके सब अचंभित से तकते हैं तुमको गोया कह पूछ रहे हों.. हमारी तरह चेहरे संवारों ज़मीन को क्यों संवारते हो पागल हो पलाश तुम ..
                      जिसके लिये जो भी हो तुम मेरे लिये एक सवाल हो पलाश, जो खुद तो सुंदर दिखना चाहता है पर बिना इस बात पर विचार किये ज़मीन का श्रृंगार खुद के लिये ज़रूरी साधन से करता है.. ये तो वीतराग है. परंतु प्रियतमा ने कहा था –
आओ प्रिय तुमबिन लौहित अधर अधीर हुए
अरु पलाश भी  डाल-डाल  शमशीर हुए.
रमणी हूं रमण करो फ़िर चाहे भ्रमण करो..
फ़ागुन में मिलने के वादे प्रियतम अब तो  तीर हुए ...!!
                  मुझे तो तुम तो वीतरागी लगते हो.. ये तुम्हारा सुर्ख लाल  रंग जो हर सुर्ख लाल रंग से अलग है.. अपलक देखता हूं तो मुझे लगता है... कोई तपस्वी युग कल्याण के भाव  लिये योगमुद्रा में है. तुम चिंतन में होते हो पलाश और फ़ागुन की मादक बयार के सताये  प्रेमी तुमको चिंतनरत देख चिंतित नज़र आते हैं. ऐसा भ्रम मत फ़ैलाओ पलाश तुम योगी हो. यदि तुम योगी न होते तो वेदपाठी ब्राह्मण  पुत्र तुम्हैं याज्ञिक  न मानते .
                    मन कवि के विचार प्रवाह तब अचानक और तीव्रता से प्रवाहित होने लगे जब वन पथ से गुज़रती गाड़ी से दाएं-बांए एक पूरा विस्तृत पलाश वन दिखा अलमस्त पलाश जिसे कुछ लोग कहते हैं.. दहकते पलाशों से झरित रोगन सारी वन भू को रंगोली की तरह सजाया.. ! 
            तुमको किंसुक , पर्ण , याज्ञिक , रक्तपुष्पक , क्षारश्रेष्ठ , वात-पोथ , ब्रह्मावृक्ष , ब्रह्मावृक्षक , ब्रह्मोपनेता , समिद्धर , करक , त्रिपत्रक , ब्रह्मपादप , पलाशक , त्रिपर्ण , रक्तपुष्प , पुतद्रु , काष्ठद्रु , बीजस्नेह , कृमिघ्न , वक्रपुष्पक , सुपर्णी कहा जाता है.. तुम लता, वृक्ष , और क्षद्म रूप में प्रकृति को सजाते हो. तो कहीं वैद्य के लिये तुम से सर्वसुलभ कोई वनस्पति नहीं होती जो कई रोग से मुक्ति दे. 
      तुम्हारी जड़ के रेशे अघोर-तापस की जटाओं से कम नहीं हैं पलाश. वनचारी जानते हैं कि नारियल के तंतुओं को तुम्हारी जड़ में छिपे रेशे मात देते हैं. उनसे ऐसी डोर बुनी जाती जो लोहे के तारों से को भी पराजित करतीं हैं. तुम्हारी छाल के रेशों से पाल-नौकाओं, जहाज़ों की दरारों से आते पानी को रोकना प्राचीन सभ्यता को ज्ञात था.  
            पर्ण विहीन होते होकर माधव महीने में तुम ऐसा अदभुत रूप रखते हो कि सदेह बैरागी भी भावातुर हो जाए. चलो पलाश इस बार इतना ही .. तुम मेरी नज़र और नज़रिये से भले वीतरागी हो पर प्रणयातुर कामिनी और उसके प्रियतम के लिये प्रेमातुर ही आभासित होना.. प्रेम के प्रतीकों में कमी आ जाएगी जो आज़ के हिंसक एवम कुंठित समय के लिये अधिक घातक होगा. और हां कवियों को भी माधव माह में तुम्हारे बिना कौन सा प्रतीक मिलेगा तुम उन सबकी दृष्टि में अनुरागी थे हो और बने रहना ..........  
     

11.3.13

भारतीय राष्ट्रीय खाद्य पदार्थ कसम

                  राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसम,पापा कसम, आदि कसमें भारत का  लोकप्रिय खाद्य पदार्थ हैं. इनके खाने से मानव प्रजाति को बहुत कुछ हासिल होता है. चिकित्सालय में डाक्टर बीमारी के लिये ये खाना वो मत खाना जैसी सलाह खूब देते हैं पर किसी चिकित्सक ने कसम नामक खाद्य-पदार्थ के सेवन पर कभी एतराज़ नहीं जताया. न तो किसी वैद्य ने न हक़ीम ने, और तो और  चौंगा लगा के  फ़ुटपाथ पे ज़वानी बचाए रखने वाली दवा बेचने वाले भाईयों तक ने इसको खाने से रोका नहीं. 
  यानी कुल मिला कर क़सम किसी प्रकार से नुक़सान देह नहीं डाक्टरी नज़रिये से. क़ानूनी नज़रिये से देखिये फ़िल्मी अदालतों में कसम खिलावाई जातीं हैं. हम नौकरी पेशा लोगों से सेवा पुस्तिका में कसम की एंट्री कराई जाती है. और तो और संसद, विधान सभाओं , मंत्री पदों अन्य सभी पदों पर चिपकने से पेश्तर इसको खाना ज़रूरी है. 
    कसम से फ़िलम वालों को भी कोई गुरेज़ नहीं वे भी तीसरी कसमकसम  सौगंधसौगंध गंगा मैया के ... बना चुके हैं. गानों की मत पूछिये कसम  का स्तेमाल  खूब किया है गीतकारों ने. भी. 
          मान लीजिये कभी ये  राम धई, राम कसम, अल्ला कसम, रब दी सौं, तेरी कसम, मां कसम, जैसी जिन्सें आकार ले लें और ऊगने लगें तो सरकार कृषि विभाग की तर्ज़ पर "कसम-विभाग" की स्थापना करेगी बाक़ायदा . सरकार ऐसा इस लिये करेगी क्योंकि - यही एक खाद्य-पदार्थ है जो सुपाच्य है. इसे खाने से कब्ज़ जैसी बीमारी होना तो दूर खाद्य-जनित अथवा अत्यधिक सेवन से उपजी बीमारियां कदापि न तो अब तक किसी को हुई है न इन के जिंस में बदल जाने के बाद किसी को हो सकती है. चिकित्सा विज्ञान ने तो इस पर अनुसंधान भी आरंभ कर दिये हैं. बाक़ायदा कसम-मंत्रियों  का पद भी ईज़ाद होगा. इसके लिये विधेयक संसद में लाया जावेगा. 
      पैट्रोल-डीज़ल-गैस की तरह इनकी कीमतों में बदलाव जब जी चाहे सरकार कर सकती है. 
 कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको कसम खाना भी नहीं आता दिल्ली वाले फ़ेसबुक स्टार 
   राजीव तनेजा  इनमें से एक हैं सौगंध राम की खाऊं कैसे ? वे लिखते हैं अपनी कविता में 
कारस्तानी कुछ बेशर्मों की 
शर्मसार है पूरा इंडिया, 
अपने में मग्न बेखबर हो ?
वीणा-तार झनकाऊं कैसे ?
सौगंध राम की खाऊं कैसे..?

                             इस तरह की लाचारी उनकी होगी जिनके पास हमारे मुहल्ले के पार्षद उम्मीदवार राम-रहीम की कसम खाने में *सिद्धमुख हैं. इस मामले में वे पूरे सैक्यूलर नज़र आते हैं आप समझ गए न कसम क्यों खाई जाती है.. कसम भी सेक्यूलर होती है.. ये तय है.. कभी कभी नहीं भी होती. 
   
             खैर ये जब होगा तब सोचिये अभी तो इससे होने वाले लाभों पर एक नज़रफ़ेरी कर ली जाए 
  1. सच्ची-कसमें- ये तो केवल झुमरी तलैया वालों ने खाई थी . हमेशा फरमाइश करते रहने की .  इस प्रकार की कस्में अब दुनियां के बाज़ार से लापतागंज की ओर चलीं गईं हैं. लापतागंज है कहां हमको नहीं मालूम.. जैसे झुमरी-तलैया के बारे में बहुत कम लोग जानतें हैं.. कई तो उसे काल्पनिक स्थान मान चुके है वास्तव मे विकीपीडिया के अनुसार "झुमरी तिलैया भारत के पूर्वांचल में स्थित झारखंड प्रांत के कोडरमा जिले का एक छोटा लेकिन मशहूर कस्‍बा है। झुमरी तिलैया को झुमरी तलैया के नाम से भी जाना जाता है। यहां की आबादी करीब 70 हजार है और स्‍थानीय निवासी मूलत: मगही बोलते हैं। झुमरी तलैया कोडरमा जिला मुख्‍यालय से करीब छ: किमी दूर स्थित है। झुमरी तलैया में करीब दो दर्जन स्‍कूल और कॉलेज हैं। इनमें से एक तलैया सैनिक स्‍कूल भी है।
    दामोदर नदी में आने वाली विनाशकारी बाढ़ को रोकने के लिए बनाए गए तलैया बांध के कारण इसके नाम के साथ तलैया जुड़ा है। इस बांध की ऊंचाई करीब 100 फीट और लंबाई 1200 फीट है। इसका रिजरवायर करीब 36 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। काफी हरा-भरा क्षेत्र होने के कारण यह एक अच्‍छे पिकनिक स्‍थल के रूप में भी जाना जाता है।
    झरना कुंडतलैया बांध और ध्‍वजाधारी पर्वत सहित यहां कई पर्यटन स्‍थल भी हैं। इसके अलावा राजगिरनालंदा और हजारीबाग राष्‍ट्रीय पार्क अन्‍य नजदीकी पर्यटन स्‍थल हैं। झुमरी तलैया पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्‍टेशन कोडरमा है जो नई दिल्‍ली-कोलकाता रेलमार्ग पर स्थित है।
    झुमरी तलैया को अक्‍सर एक काल्‍पनिक स्‍थान समझने की भूल कर दी जाती है लेकिन इसकी ख्‍याति की प्रमुख वजह एक जमाने में यहां की अभ्रक खदानों के अलावा यहां के रेडियो प्रेमी श्रोताओं की बड़ी संख्‍या भी है। झुमरी तलैया के रेडियो प्रेमी श्रोता विविध भारती के फरमाइशी कार्यक्रमों में सबसे ज्‍यादा चिट्ठियां लिखने के लिए जाने जाते हैं।" वैसे ही लापतागंज जहां  भी है है तो ज़रूर .... वहां सच्ची कसमें मौज़ूद हैं
  2. झूठी कसमें :-  ये हर जगह मौजूद हैं आप के पास भी.. मेरे पास भी .. इसे खाईये और अच्छे से अच्छा मामला सुलटाइये. सच मानिये इसे खाकर आप जनता को पटाकर आम आदमी (केजरी चच्चा वाला नहीं )   से खास बन सकते हैं. याद होगा  श्री 420 वाले राजकपूर साहब ने मंजन इसी प्रकार की कसम खाकर बेचा था. आज़कल भी व्यापारिक कम्पनियां राजू की स्टाइल में पने अपने प्रोडक्ट बेच रहीं हैं. क्या नेता क्या अफ़सर क्या मंत्री क्या संत्री अधिकांश  के पेट इसी से भरते हैं . खबरिया बनाम जबरिया चैनल्स की तो महिमा अपरम्पार है कहते हैं .. हमारी खबर सबसे सच्ची है.. ! देश का बच्चा बच्चा जानता है कि सच क्या है . 
  3.  सेक्यूलर कसम :- इस बारे में ज़्यादा कुछ न कहूंगा. हम बोलेगा तो बोलेगे कि बोलता है. 
  4.  दाम्पत्य कसम  :- अक्सर पति पत्नी एक दूसरे के सामने खाते हैं जो उन सात कसमों से इतर होतीं हैं.. जो शादी-नामक भयंकर घटना के दौरान खाई जाती है.इस तरह की कसम पतिदेव को ज़्यादा मात्रा में खानी होती है. पत्नी को दाम्पत्य कसम  कभी कभार खानी होती है . 
  5. इन लव  कसम  :- यह कसम यूं तो विवाह जोग होने के बाद आई एम इन लव की स्थिति में खाना चाहिये परंतु ऐसी कसम आजकल नन्हीं पौध तक खा रही है. एकता कपूर जी की कसम आने वाले समय में बच्चे ऐसी कसमें पालनें में खाएंगे. 
  6. सियासी-कसम  :-  सियासी कसम के बारे में भगवान कसम कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा ...!! 
                        जो भी हो हम तो कसम के प्रकार बता रहे थे भगवान कसम  भाववेश में कुछ ज़्यादा ही कह गए. माफ़ी हो. मुद्दे की बात ये है कि जो भी आजकल कसम खा रहा नज़र आए तो समझिये वो झूठा है. सच्ची वाली कसमें तो लापतागंज चलीं गईं. 

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नोट- 
·        *सिद्धमुख =सिद्धहस्त की तरह का शब्द है. जिन लोगों में मुंह से हर काम निपटाने का हुनर आता है उनके मुंह  सिद्धमुख होते हैं. 

·        इस आलेख का सारा कंटेंट होली का माहौल बनाने के लिये है जिसे बुरा लगा हो वो ऐसे आलेख न पढ़ने की कसम खा सकता है.  
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यशभारत जबलपुर ने इसे प्रकाशित किया 17-03-2013 के अंक में

8.3.13

डिंडोरी में पूरे उत्साह से मनाया गया महिला दिवस


मान.न्यायाधीश श्री वीरेंद्र सिंह राजपूत जी
अतिरिक्त जिला एवम सत्र न्याया.
नगर पंचायत अध्यक्ष
श्रीमति सुशीला मार्को
एकीकृत बाल विकास सेवा परियोजना डिण्डौरी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का
आयोजन विधिक सहायता प्राधिकरण डिण्डौरी महिला शक्ति संगठन पतांजली योग संस्थान डिण्डौरी
एवम  नव-गठित महिला सशकितकरण विभाग डिण्डौरी के संयुक्त तत्वधान में आयोजित हुआ कार्यक्रम अध्यक्षता करते हुए एडीसनल डिसिट्रक्ट जज श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत ने कहा महिला दिवस पर विधिक सेवा प्रधिकरण द्वारा जागरूकता शिविर लगाकर हम दूर गांव तक महिलाओं के हितों के संरक्षण के लिए बनाये गये कानूनों एवं प्रक्रियाओं की जानकारी उपलब्ध करा रहे है। किसी भी प्रकार के महिला विरोधी उपराध के रोक थाम तथा उससे बचाव के लिए पक्षकार को जरूरी  खर्च एवम अधिवक्ता उपलब्ध कराने का कार्य भी विघिक सेवा प्रधिकरण के द्वारा
किया जाता है।
मान. न्यायाधीश श्री मनोज तिवारी
               श्री मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी श्री मनोज तिवारी ने कहा की महिलाओं एवं बच्चों के लिए मौजूदा लाभ ,करने में बाल विकास सेवाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। दहेज एवं बाल विवाह संबंधि कानूनों का प्रचार-प्रसार का बहुत जरूरत है । जिला सजिस्टार एवं ग्राम न्यायालय प्रमुख श्री सुरेन्द्र मेश्राम ने विधिक सहायता कार्यक्रम के संबंध में विस्तार से जानकारी दी।
अथितियों का स्वागत 
अथितियों का स्वागत 
               मुख्य अतिथि श्रीमति सुशीला मार्को, ने महिलाओं में स्वास्थ्य एवं शिक्षा के संबंध में चर्चा करते हुए कहा की महिला
बाल विकास की सेवाएँ महिलाओं की मजबूती देने के लिए चलार्इ गर्इ है। गांव-गांव तक महिलाओं
के लिए सरकार एवं जिला प्रशासन द्वारा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं  जिसका लाभ निचले
स्तर पर डिण्डौरी जिले में संतोष पूर्ण ढंग से पहुचाया जा रहा है।

               राष्ट्रपति पुरुस्कार प्राप्त शिक्षिका सुश्री पुष्पा सिहारे ने सामाज, शासकीय विभाग और आम जनता से महिलाओं की आत्मनिर्भरता पर ध्यान देने के महत्व को रेखांकित किया।  अतिथि वक्ता श्रीमति सुधा जैन, श्रीमति ममता शुक्ला, श्रीमति अनीता उपाध्याय, श्रीमति सपना जैन, श्रीमति लक्ष्मी अहिरवार ने स्व-रचित कविता के साथ नारी शक्ति  आव्हान किया कि महिलाओं के विरूद्व समाज में व्याप्त नजरिये को बदलना होगा तथा स्वयं आगे बढ़ कर महिलाओं को अपराधों के  विरूद्व जूझना जरूरी है।  जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी, रिछारिया ने कहा कि डिण्डौरी जैसे जिले में महिला जागरूकता बढ़ी है। महिलाएँ अब घरेलू हिंसा के विरूद्व सामने आने लगी है। जिले में 130 महिलाओं ने डी.आर्इ.आर. दाखित कराए है । श्रीमति कल्पना तिवारी ने विभागीय कार्यक्रमों जैसे मोर डुबुलिया, प्रोजेक्ट-प्रोत्साहन, वाहन-चालक प्रशिक्षण, नवाचार जो शुद्व रूप से महिलाओं के लिए क्रियांवित किए गए साथ ही महिला कल्याण को लेकर राज्य सरकार सजग एवं सतत कार्यशील है।   सुश्री फिरौजा सिद्वकी एडवोकेट, श्रीमति वसुधा दुबे एडवोकेट, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ) ने अपनी अभिव्यकियों में कहा की मौजूदा कानूनों के सफल क्रियांनवयन हेतु महिलाओं को स्वयं ही सतर्क और सजग रहना चाहिए  दिन भर चली संगोष्ठी में श्रीमति मंजूषा शर्मा, श्रीमति सुलभा बिल्लौरे आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए महिलाओं ने अपनी भावनाएं वक्तव्यों एवम कविता के माध्यम से व्यक्त कीं.
                      कार्यक्रम का शुभारंभ दीप-प्रज्जवलन से हुआ। कार्यक्रम में दो वर्षीय नन्ही बालिका वेदांगी  नानोटे  ने कविता सुनाकर उपस्थित जनों  का मन मोह लिया। अतिथियों का स्वागत पर्यवेक्षक श्रीमतिदर्शलता जैन, पार्वती धुर्वे, कमला मरावी, तीजा धुर्वे, केतकी परस्ते, तारेश्वरी धुर्वे, कृष्णा धुर्वे, चन्द्रवती मरावी कौतिका धारणे, उर्मिला जंघेला, सुश्री लेखनी दुबे, श्री एन.एस.पूसाम, श्रीमति किरण पटेल, श्री शैलेश दुबे, श्री सलीम अहमद मंसूरी, भवानी शंकर झारिया, सुखराम सिंह परस्ते, धनीराम, ओमकार, सुरेश, नूर मोहम्मद, ने अतिथियों का पुष्प गुच्छों से स्वागत किया  कार्यक्रम का संचालन श्रीमति दर्शलता जैन एवं आभार प्रदर्शन श्री एस.सी. करवाडे जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी द्वारा किया गया ।
जनसंपर्क वेब साइट पर 

7.3.13

छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी


वही  क्यों कर  सुलगती है   वही  क्यों कर  झुलसती  है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है !
वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला
वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!
 
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?
मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ?
तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं.

विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख  माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है.
आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ  तो  होगी  इधर  सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर  में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और  उजला सा फ़लक भी है !
        * गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर

3.3.13

नारी : रहम की मोहताज नहीं, असीमित शक्तियों का भण्डार :रीता विश्वकर्मा

रीता विश्वकर्मा
स्वतंत्र पत्रकार/सम्पादक
(ऑन लाइन हिन्दी न्यूज पोर्टल)

जिस तरह भक्त शिरोमणि हनुमान जी को उनकी अपार-शक्तियों के बारे में बताना पड़ता था और जब लोग समय-समय पर उनका यशोगान करते थे, तब-तब बजरंगबली को कोई भी कार्य करने में हिचक नहीं होती थी, भले ही वह कितना मुश्किल कार्य रहा हो जैसे सैकड़ो मील लम्बा समुद्र पार करना हो, या फिर धवलागिर पर्वत संजीवनी बूटी समेत लाना हो...आदि। ठीक उसी तरह वर्तमान परिदृश्य में नारी को इस बात का एहसास कराने की आवश्यकता है कि वह अबला नहीं अपितु सबला हैं। स्त्री आग और ज्वाला होने के साथ-साथ शीतल जल भी है। 
आदिकाल से लेकर वर्तमान तक ग्रन्थों का अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि हर स्त्री के भीतर बहुत सारी ऊर्जा और असीमित शक्तियाँ होती हैं, जिनके बारे में कई बार वो अनभिज्ञ रहती है। आज स्त्री को सिर्फ आवश्यकता है आत्मविश्वास की यदि उसने खुद के ‘बिलपावर’ को स्ट्राँग बना लिया तो कोई भी उसे रोक नहीं पाएगा। स्त्री को जरूरत है अपनी ऊर्जा, स्टैमिना, क्षमताओं को जानने-परखने की। काश! ऐसा हो जाता तो दिल्ली गैंगरेप जैसे काण्ड न होते। समाज में छुपे रहने वाले दरिन्दों की विकृत मानसिकता का हर ‘सबला’ मुँह तोड़ जवाब दे सकती है, इसके लिए उसे स्वयं को पहचानना होगा। साथ ही समाज के स्त्री-पुरूष दोनों को रूढ़िवादी विचार धारा का परित्याग करना होगा। 
पूरी दुनिया में आधी आबादी महिलाओं की है बावजूद इसके हजारों वर्षों की चली आ रही परम्परा बदस्तूर जारी है। सारे नियम-कानून महिलाओं पर लागू होते हैं। जितनी स्वतंत्रता लड़को को मिल रही है, उतनी लड़कियों को क्यों नहीं? बराबरी (समानता) का ढिंढोरा पीटा तो जा रहा है, लेकिन महिलाओं पर लगने वाली पाबन्दियाँ कम नहीं हो रही हैं। लड़कों जैसा जीवन यदि लड़कियाँ जीना चाहती हैं तो इन्हें नसीहतें दी जाती हैं, और इनके स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं। उन पर पाबन्दियाँ लगाई जाती हैं। बीते महीने कश्मीर की प्रतिभाशाली लड़कियों के रॉक बैण्ड ‘परगाश’ पर प्रतिबन्ध लगाया गया। ऐसा क्यों हुआ? यह बहस का मुद्दा भले ही न बने लेकिन शोचनीय अवश्य ही है। 
समाज के मुट्ठी भर रूढ़िवादी परम्परा के समर्थक अपनी नकारात्मक सोच के चलते लड़कियों की स्वतंत्रता को परम्परा विरोधी क्यों मान बैठते हैं? क्या स्त्री-पुरूष समानता के इस युग में लड़के और लड़कियों में काफी अन्तर है। क्या लड़कियाँ उतनी प्रतिभाशाली और बुद्धिमान नहीं हैं, जितना कि लड़के। वर्तमान लगभग हर क्षेत्र में लड़कियाँ अपने हुनर से लड़कों से आगे निकल चुकी हैं और यह क्रम अब भी जारी है। आवश्यकता है कि समाज का हर वर्ग जागृत हो और लड़कियों को प्रोत्साहित कर उसे आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करें। आवश्यकता है कि हर स्त्री-पुरूष अपनी लड़की संतान का उत्साहवर्धन करे उनमें आत्मविश्वास पैदा करे जिसके फलतः वे सशक्त हो सकें। दुनिया में सिर ऊँचा करके हर मुश्किल का सामना कर सकें। लड़की सन्तान के लिए बैशाखी न बनकर उन्हें अपनी परवरिश के जरिए स्वावलम्बी बनाएँ। लड़का-लड़की में डिस्क्रिमिनेशन (भेदभाव) करना छोड़ें। 
गाँव-देहात से लेकर शहरी वातावरण में रहने वालों को अपनी पुरानी सोच में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। लड़कियों को चूल्हा-चौके तक ही सीमित न रखें। यह नजरिया बदलकर उन्हें शिक्षित करें। सनद लेने मात्र तक ही नहीं उन्हें घर बिठाकर शिक्षा न दें लड़कों की भाँति स्कूल/कालेज अवश्य भेजे। अब समाज में ऐसी जन-जागृति की आवश्यकता है जिससे स्त्री विरोधी, कार्यों मसलन भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा स्वमेव समाप्त हो इसके लिए कानून बनाने की आवश्यकता ही न पड़े। महिलाओं को जीने के पूरे अधिकार सम्मान पूर्वक मिलने चाहिए। जनमानस की रूढ़िवादी मानसिकता ही सबसे बड़ी वह बाधा है जो महिला सशक्तीकरण में आड़े आ रही है। महिलाएँ चूल्हा-चौका संभाले, बच्चे पैदा करें और पुरूष काम-काज पर निकलें यह सोच आखिर कब बदलेगी?
मैं जिस परिवार से हूँ वह ग्रामीण परिवेश और रूढ़िवादी सोच का कहा जा सकता है, परन्तु मैने अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति से उच्च शिक्षा ग्रहण किया और आज जो भी कर रही हूँ उसमें किसी का हस्तक्षेप मुझे बरदाश्त नहीं। कुछ दिनों तक माँ-बाप ने समाज का भय दिखाकर मेरे निजी जीवन और इसकी स्वतंत्रता का गला घोंटने का प्रयास किया परन्तु समय बीतने के साथ-साथ अब उन्हीं विरोधियों के हौंसले पस्त हो गए। मैं अपना जीवन अपने ढंग से जी रही हूँ, और बहुत सुकून महसूस करती हूँ। मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि हर स्त्री (महिला) सम्मानपूर्वक जीवन जीए क्योंकि यह उसका अधिकार है। 
इतना कहूँगी कि गाँवों में रहने वाले माँ-बाप अपनी लड़की संतान को चूल्हा-चौका संभालने का बोझ न देकर उन्हें भी लड़कों की तरह पढ़ाए-लिखाएं और शिक्षित बनाएँ ताकि वे स्वावलम्बी बनकर उनका नाम रौशन कर सकें। माँ-बाप द्वारा उपेक्षित लड़की संतान ‘डिप्रेसन’ से उबर ही नहीं पाएगी तब उसे कब कहाँ और कैसे आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। जब महिलाएँ स्वयं जागरूक होंगी तो वे समय-समय पर ज्वाला, रणचण्डी, गंगा, कावेरी, नर्मदा का स्वरूप धारण कर अपने शक्ति स्वरूपा होने का अहसास कराती रहेंगी उस विकृत समाज को जहाँ घृणित मानसिकता के लोग अपनी गिद्धदृष्टि जमाए बैठे हैं। आवश्यकता है कि स्त्री को स्वतंत्र जीवन जीने, स्वावलम्बी बनने का अवसर बखुशी दिया जाए ऐसा करके समाज के लोग उस पर कोई रहम नहीं करेंगे क्योंकि यह तो उसका मौलिक अधिकार है। न भूलें कि नारी ‘अबला’ नहीं ‘सबला’ है, किसी के रहम की मोहताज नहीं।

26.2.13

यहां चंदा मांगना मना है !

साभार नवभारत टाइम्स 
                      पिछले कई बरस से एक आदत लोगों में बदस्तूर देखी जा रही है. लोग हर कहीं चंदाखोरी ( बिलकुल हरामखोरी की तरह ) के लिये निकल पड़ते हैं. शाम तक जेब में उनके कुछ न कुछ ज़रूर होता है. भारत के छोटे-छोटे गांवों तक में इसे आसानी से देखा जा सकता है. 
               कुछ दिन पहले एक फ़ोन मिला हम पारिवारिक कारण से अपने कस्बा नुमा शहर से बाहर थे ट्रेन में होने की वज़ह से सिर्फ़ हमारे बीच मात्र हलो हैल्लो का आदान-प्रदान हो पा रहा था. श्रीमान जी बार बार इस गरज़ से फ़ोन दागे जा रहे थे कि शायद बात हो जावे .. क़रीबन बीसेक मिस्ड काल थे. डोढी के जलपान-गृह में रुके तो  फ़ुल सिगनल मिले तो हम ने उस व्यक्ति को कालबैक किया. हमें लग रहा था कि शायद बहुत ज़रूरी बात हो  सो सबसे पेश्तर हम उन्हीं को लगाए उधर से आवाज़ आई -भैया, आते हैं रुकिये.. भैया.! भैया..!! जे लो कोई बोल रहा है ?
कौन है रे..?
पता नईं कौन है.. 
ला इधर दे.. नाम भी नईं बताते ससुरे.......!
हल्लो...... 
जी गिरीश बोल रहा हूं.. नाम फ़ीड नहीं है क्या.. बताएं आपके बीस मिस्ड काल हैं.. 
                                                              सुनते ही श्रीमान कें मुंह में मानो लिरियागो सीरप  गिर गया उनके हिज्जे बड़े हो गये लगभग हक़लाले से लगे फ़िर  मासूम बनने की एक्टिंग कर बोले-  अरे सर ,माफ़ करना जी धूप में पढ़ने में नहीं आ पाया खैर मैंने फोन लगाया था !
हम- जी बताएं क्या सेवा करूँ ?
उधर से एक दन्त-निपोरित हंसी के साथ घुली आवाज़ सुनाई दी - सर, हमारे मंडल  के लोग सागर जाएंगे..
हम-  जाएं हमारी हार्दिक शुभकामनाएं
वो - धन्यवाद, .. आप एक गाड़ी का किराया दे देते ..?
     हमारे भाई साहब ने   कभी ऐसा हुक़्म नहीं दिया इस चंदाखोर ने क्या समझ रखा है. 
      हद हो गई अब इनकी   इनकी मंडली का झौआ भर कचरा सागर जाएगा  किराया हम दें .. बताओ भला जे कोई बात हुई..? आप भी सोच रहे हैं न यही सोचिये सोच ही पाएंगे कर कछु न पाएंगें !
    हम ने साफ़ तौर पे इंकार कर दिया. हम जब अवकाश से  वापस लौटे तो श्रीमान का एक लग्गूभग्गू हमारे दफ़्तर में आ धमका बोला - हज़ूर को खफ़ा कर दिया जानते हैं आप 
 तो...?
तो क्या... अब आप ही जानें 
                        तभी हमने अपने उस आस्तीन के सांप से पूछा जो दफ़्तर में हम कब आते हैं कब जाते हैं की खबर मुफ़्त मुहैया कराता है - प्रदेश में कितने जिल्ले हैं ..
कर्मचारी बोला - सर पचास... 
मैने उसे ही लक्ष्य कर कहा - हां, पूरे पचास... जिले हैं समझे रामबाबू....... 
कर्मचारी - जी , हज़ूर पूरे पचास... जिले हैं समझा अच्छे से 
 उधर लग्गू-भग्गू की हवा निकस गई.. बिना कुछ बोले निकल पड़ा 
               और फ़िर हमने एक पर्ची कम्प्यूटर से निकलवाई जिसमें लिखवाया   " यहां चंदा मांगना मना है !" और एन दफ़्तर के दुआरे  चस्पा करा  दी.अंत में हमारे इस तरह के असामाजिक आचरण से खफ़ा लोगों को विनम्र श्रृद्धांजली के साथ 














24.2.13

आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये


                                                                                         
                उसे मालूम न था कि हर  अगला पग उसे मृत्यु के क़रीब ले जा रहा है. अपने कल को सुंदर से अति सुंदर सिक्योर बनाने आया था वो. उस जानकारी न थी कि कोई भी सरकार किसी हादसे की ज़िम्मेदारी कभी नहीं लेती ज़िम्मेदारी लेते हैं आतंकी संगठन सरकार तो अपनी हादसे होने की वज़ह और  चूक से भी मुंह फ़ेर लेगी. संसद में हल्ला गुल्ला होगा राज्य से केंद्र पर केंद्र से राज्य पर बस एक इसी  आरोप-प्रत्यारोप के बीच उसकी देह मर्चुरी में ढेरों लाशों के बीच पड़ी रहेगी तब तक जब तक कि उसका कोई नातेदार आके पहचान न ले वरना सरकारी खर्चे पे क्रिया-कर्म तो तय है.
  
काजल कुमार जी
की आहत भावना 
                               आम भारतीय अब समझने लगा है कि  आतंकवाद से जूझने शीर्षवालों के पास कोई फ़ुल-प्रूफ़ प्लान नहीं है. यदि है भी तो इस बिंदु पर कार्रवाई के लिये कोई तीव्रतर इच्छा शक्ति का आभाव है. क्यों नहीं खुलकर जनता के जानोमाल की हिफ़ाज़त का वादा पूरी ईमानदारी से किया जा रहा है या फ़िर  कौन सी मज़बूरियां हैं जिनकी वज़ह से हम आतंक के खिलाफ़ की एक कारगर मुहिम को अंज़ाम देने में हिचकिचा रहे हैं. बेशक़ अब तो ऐसा लगता है कि किसी भी शीर्षस्थ के हृदय में  कोई कोना नहीं जहां मानव प्रजाती की रक्षा के लिये एक विचार हो.ऐसी विषम परिस्थितियां उस पर  राज्य का राष्ट्र की सरकार पर राष्ट्र की सरकार का राज्य की सरकारों के बीच होते संवादों पर व्यंग्यकार कार्टूनिष्ट काजल कुमार अत्यधिक उद्वेलित हैं वे जो कह रहें हैं उनके कार्टून के ज़रिये पार्श्व में अंकित कार्टून देखते ही लगता है कि वे बहुत आहत हैं. आहत सारे भारतीय हैं.. सारे कवि लेखक चिंतक विचारक, यहां तक कि वो भी जो रोज़िन्ना पसीना बहाता है दो जून की रोटी कमाता है. व्यवस्था  से खुद को दूर कर रहा है... भयातुर है उसमे एक भावना घर कर रही है कि उसे हमेशा छला और ठगा जाता है कौन जाने एक और कल भी ऐसा ही आए. लेखक चिंतक,विचारक, कवि, कार्टूनिष्ट, या आम-आदमी मूल्य हीन है. इनकी आवाज़ की की़मत..? कुछ भी नहीं ये रोयें या झीखें.. इनके मरने न मरने से किसी देश का क्या बनेगा बिगड़ेगा भला आप ही बताइये. देश में आतंक का जन्म  होने के कारण को खोजती व्यवस्था गोया उसे एक ब्लैकहोल मान चुकी है. 
                                          एक सरकार के लिये उसकी रियाया की रक्षा करना उसका मूल दायित्व होता है. बिना किसी लाग लपेट के कहा जाए तो सरकार को मां के उस आंचल की मानिंद मानती है रियाया कि जब भी ज़रा भी आपदा हो मां का आंचल सबसे पहले उसके बच्चे को ढांकता है. पर न केवल भारत वरन विश्व की  सरकारें जाने किस मोह पाश में बंधीं हैं कि अपनी रियाया की रक्षा के सवाल पर अपनी सफ़ाई देतीं फ़िरतीं हैं. 
                                           उधर पड़ोसी मुल्क की हालत हमसे गई गुजरी है वहां की सरकार तो सत्ता में आते ही बदहवास हो जाती है. बस अब कुछ भी नहीं लिखा जाता जाने कल का अखबार क्या खबर लाता है.. सोचता रहूंगा बिस्तर पर लेटे लेटे 
 शायर शिकेब  ने कहा था 
जाती है धूप उजले परों को समेट के 
ज़ख्मों को अब गिनूंगा मैं बिस्तर पे लेट के
और उनसे विनम्र माफ़ी नामे के साथ कहना चाह रहा हूं 
जाती है धूप गर्द में दहशत लपेट के
ज़ख्मों को गिनूंगा मैं बिस्तर पे लेट के !
सुना है शाह बेखबर है नीरो के जैसा


  
      

21.2.13

अधमुच्छड़ ज़ेलर जो आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.


175643_Chesapeake Bay Perfect Crab Cakes                     कई वर्षों से हमारी समझ में ये बात क्यों न आ रही है कि दुनिया बदल रही है. हम हैं कि अपने आप को एक ऐसी कमरिया से ढांप लिये है जिस पर कोई दूजा रंग चढ़ता ही नहीं. जब जब हमने समयानुसार खुद को बदलने की कोशिश की है या तो लोग   हँस दिये यानी हम खुद मिसफ़िट हैं बदलाव के लिये .   
शोले वाले अधमुच्छड़ज़ेलर और उनका  डायलाग याद है न ... "हम अंग्रेजों  के ज़माने के जेलर हैं "
                       अधमुच्छड़  ज़ेलर, आधों को इधर आधों को उधर भेजता है.. बाक़ी को यानी "शून्य" को अपने पीछे लेके चलता है.  सचाई यही है मित्रो, स्वयं को न बदलने वालों के साथ निर्वात (वैक्यूम) ही  रहता है. 
                             इस दृश्य के कल्पनाकार एवम  लेखक की मंशा जो भी हो मुझे तो साफ़ तौर यह डायलाग आज़ भी किसी भी भौंथरे व्यक्तित्व को देखते आप हम दुहराया करते हैं. 
     आज़ भी आप हम असरानी साहब पर हँस  देते हैं. हँसिये सलीम जावेद  ने बड़ी समझदारी और चतुराई  से कलम का प्रयोग किया  ( जो 90 % दर्शकों के श्रवण- ज़ायके से वे वाक़िफ़ थे ) और असरानी साहब से कहलवाया. 
   न न आप गलत सोच रहे हैं  अधमुच्छड़  ज़ेलर की खिल्ली उड़ा रहा हूं !! न भई न मैं तो ये बता रहें हैं असली सुदृढ़ व्यक्तियों  का आज़कल टोटा पड़ गया है . सारे चेहरे नक़ली नक़ली से नज़र आते हैं. बाह्य पर्यावरण के कृत्रिम बदलावों का परिणाम इतना गहरा असर छोड़ रहा है कि आपको ठीक से पहचान नहीं पा रहा होगा कोई. जिसे देखो परिवर्तित रूप में मिलेगा. कल हमारे घर के कर्मकांडी संस्कार कराने वाला पंडित जब साउथ एवेन्यू मॉल में मिला अव्वल तो मै चीन्ह न पाया जब उसे पहचाना तो वो  मुझसे सुरक्षित दूरी बनाते हुए निकल गया हां  उसकी तरफ़ से शुद्ध आधुनिक स्टाइलिश अभिवादन अवश्य आया मुझ तक . 
     हम सब पंडिज्जी की तरह के ही तो हैं सामान्यत: एक आभासी एहसास के पीछे भागने वाले सर्च इंजन बन चुके हैं .हमारी सोच मौलिक नहीं रह गई मौलिक चिंतन की खिड़कियां बंद हो चुकीं हैं. अब तो हम कुछेक नाम याद रख लेते हैं इतना ही नहीं जलियांवाला बाग के बारे में हमारी पौध तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के आने से जान सकी .यूं  तो इस अति आधुनिक समाज की कमसिन पौध खूब जानती है कि किस स्मार्ट फ़ोन की कीमत क्या है, किस बाडी स्प्रे से विपरीत लिंग आकर्षित होगा या होगी, छोटे कदम रखने के मायने क्या है.मां बाप को एहसास भी न होगा कि  रोडीज़ में कैसी अश्लील बात कही थी उस लड़की ने जिसे म्यूट किया.  अब  आप बताएं आप सरकार पुलिस, व्यवस्था, भारत राजनीति को कोसते ही रहेंगे या एक बार अधमुच्छड़  ज़ेलर बन के बच्चों पर पैनी नज़र रखेंगे. मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा करेगा हवा में लिख रहा हूं.. शायद एकाध कोई तो होगा जो जो समझेगा इस मिसफ़िट से लगने वाले एहसास को.
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18.2.13

अमिताभ बच्चन पर आरोप है कि उनने स्तर मैंटेन नहीं किया ..?

175643_Chesapeake Bay Perfect Crab Cakesबीमार हूं सोचा आराम करते  करते सदी के महानायक यानी  अमिता-अच्चन- और रुखसाना सुल्ताना की बिटिया अमृता सिंह  अभीनीत फ़िल्म देख डालूं जी हां पड़े पड़े  मैने फ़िलम देखी  बादल-मोती वाली फ़िलम देखी नाम याद आया न हां वही 1985 में जिसे मनमोहन देसाई ने बनाई थी    मर्द    जिसको दर्द नहीं होता ..बादल यानी सफ़ेद घोड़ा जो अमिताभ को अनाथाश्रम से लेकर भागता है वही अमिताभ जब जवान यानी बीसपच्चीस बरस का होने तक युवा  ही पाया . 
          मित्रो हिंदी फ़िल्मो  को आस्कर में इसी वज़ह से पुरस्कार देना चाहिये.. पल पल पर ग़लतियां करने वाली फ़िल्में.. श्रेणी में  सदी का महानायक कहे जाने  का दर्ज़ा अमिताभ बच्चन जी को ऐसी ही फ़िल्मों के ज़रिये मिला. 
OEM parts 120x240     उस दौर की फ़िल्में  ऐसी ही ग़लतियों से अटी पड़ीं हुआ करतीं थीं. भोले भाले दर्शकों की जेब से पैसे निकलवाने और टाकीज़ों में चिल्लर फ़िंकवाने अथवा  दर्शकों की तालियां बजवाने के गुंताड़े में लगे ऐसे निर्माताऒं ने  भारत को कुछ दिया होगा.आप सबकी तरह ही  मैं बेशक अमिताभ की अभिनय क्षमता फ़ैन हूं.. अदभुत सम्मोहन है उनमें आज़ भी पर आनंद 1971   मिली (1975 )अदालत (1977) मंज़िल  (1979) जैसी फ़िल्मों के बाद  फ़ूहड़ एवम बेतुकी फ़िल्मों में अभिनय कर अमिताभ से पैसों के लिये अभिनय करवाया ऐसा मेरा निजी विचार है. अमिताभ पर यह आरोप गलत नहीं कि एक समय ऐसा आया था जबकि उन्हौंने  फ़िल्म चयन में  उनने  अपना स्तर मैंटेंन नहीं रखा. जबकि आमिर खान जो स्वयम निर्माता निर्देशक भी हैं उनका एक स्तर है. वो जो भी विषय उठाते हैं.   अनूठा होता है. ज़रूरी होता है. 
                                 यही एक बात अमिताभ को महानायक के खिताब से दूर करतें हैं. निर्माता-निर्देशकों को पैसों से मतलब अमिताभ जी जैसे प्रतिभावान क्षमता वान कलाकारों की अपनी ज़रूरतें होतीं हैं. कुल मिला कर शो-बिज़नेस के लिये हीरो की लोकप्रियता ( राजेश खन्ना दिलीप कुमार और आज़ आज़ के दौर में सलमान खान ) चाहिये. विषय तो सामान्य रूप से निर्माता निर्देशकों के पास होते नहीं पस किसी फ़ार्मूले पर फ़िल बनाया करते हैं.. वही फ़ूहड़ हास्य देह दर्शन, अथवा वर्जित विषय पर फ़िल्म बनाना  इनकी आदत सी हो चुकी है. वैसे ये मेरे अपने विचार है आप असहमत भी हो सकते हैं मुझे जो कहना था कह दिया.  


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आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश

"आखिरी काफ़िर : हिंदूकुश के कलश" The last infidel. : Kalash of Hindukush"" ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश प...