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मंगलवार, फ़रवरी 26, 2013

यहां चंदा मांगना मना है !

साभार नवभारत टाइम्स 
                      पिछले कई बरस से एक आदत लोगों में बदस्तूर देखी जा रही है. लोग हर कहीं चंदाखोरी ( बिलकुल हरामखोरी की तरह ) के लिये निकल पड़ते हैं. शाम तक जेब में उनके कुछ न कुछ ज़रूर होता है. भारत के छोटे-छोटे गांवों तक में इसे आसानी से देखा जा सकता है. 
               कुछ दिन पहले एक फ़ोन मिला हम पारिवारिक कारण से अपने कस्बा नुमा शहर से बाहर थे ट्रेन में होने की वज़ह से सिर्फ़ हमारे बीच मात्र हलो हैल्लो का आदान-प्रदान हो पा रहा था. श्रीमान जी बार बार इस गरज़ से फ़ोन दागे जा रहे थे कि शायद बात हो जावे .. क़रीबन बीसेक मिस्ड काल थे. डोढी के जलपान-गृह में रुके तो  फ़ुल सिगनल मिले तो हम ने उस व्यक्ति को कालबैक किया. हमें लग रहा था कि शायद बहुत ज़रूरी बात हो  सो सबसे पेश्तर हम उन्हीं को लगाए उधर से आवाज़ आई -भैया, आते हैं रुकिये.. भैया.! भैया..!! जे लो कोई बोल रहा है ?
कौन है रे..?
पता नईं कौन है.. 
ला इधर दे.. नाम भी नईं बताते ससुरे.......!
हल्लो...... 
जी गिरीश बोल रहा हूं.. नाम फ़ीड नहीं है क्या.. बताएं आपके बीस मिस्ड काल हैं.. 
                                                              सुनते ही श्रीमान कें मुंह में मानो लिरियागो सीरप  गिर गया उनके हिज्जे बड़े हो गये लगभग हक़लाले से लगे फ़िर  मासूम बनने की एक्टिंग कर बोले-  अरे सर ,माफ़ करना जी धूप में पढ़ने में नहीं आ पाया खैर मैंने फोन लगाया था !
हम- जी बताएं क्या सेवा करूँ ?
उधर से एक दन्त-निपोरित हंसी के साथ घुली आवाज़ सुनाई दी - सर, हमारे मंडल  के लोग सागर जाएंगे..
हम-  जाएं हमारी हार्दिक शुभकामनाएं
वो - धन्यवाद, .. आप एक गाड़ी का किराया दे देते ..?
     हमारे भाई साहब ने   कभी ऐसा हुक़्म नहीं दिया इस चंदाखोर ने क्या समझ रखा है. 
      हद हो गई अब इनकी   इनकी मंडली का झौआ भर कचरा सागर जाएगा  किराया हम दें .. बताओ भला जे कोई बात हुई..? आप भी सोच रहे हैं न यही सोचिये सोच ही पाएंगे कर कछु न पाएंगें !
    हम ने साफ़ तौर पे इंकार कर दिया. हम जब अवकाश से  वापस लौटे तो श्रीमान का एक लग्गूभग्गू हमारे दफ़्तर में आ धमका बोला - हज़ूर को खफ़ा कर दिया जानते हैं आप 
 तो...?
तो क्या... अब आप ही जानें 
                        तभी हमने अपने उस आस्तीन के सांप से पूछा जो दफ़्तर में हम कब आते हैं कब जाते हैं की खबर मुफ़्त मुहैया कराता है - प्रदेश में कितने जिल्ले हैं ..
कर्मचारी बोला - सर पचास... 
मैने उसे ही लक्ष्य कर कहा - हां, पूरे पचास... जिले हैं समझे रामबाबू....... 
कर्मचारी - जी , हज़ूर पूरे पचास... जिले हैं समझा अच्छे से 
 उधर लग्गू-भग्गू की हवा निकस गई.. बिना कुछ बोले निकल पड़ा 
               और फ़िर हमने एक पर्ची कम्प्यूटर से निकलवाई जिसमें लिखवाया   " यहां चंदा मांगना मना है !" और एन दफ़्तर के दुआरे  चस्पा करा  दी.अंत में हमारे इस तरह के असामाजिक आचरण से खफ़ा लोगों को विनम्र श्रृद्धांजली के साथ 














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