उसे मालूम न था कि हर अगला पग उसे मृत्यु के क़रीब ले जा रहा है. अपने कल को सुंदर से अति सुंदर सिक्योर बनाने आया था वो. उस जानकारी न थी कि कोई भी सरकार किसी हादसे की ज़िम्मेदारी कभी नहीं लेती ज़िम्मेदारी लेते हैं आतंकी संगठन सरकार तो अपनी हादसे होने की वज़ह और चूक से भी मुंह फ़ेर लेगी. संसद में हल्ला गुल्ला होगा राज्य से केंद्र पर केंद्र से राज्य पर बस एक इसी आरोप-प्रत्यारोप के बीच उसकी देह मर्चुरी में ढेरों लाशों के बीच पड़ी रहेगी तब तक जब तक कि उसका कोई नातेदार आके पहचान न ले वरना सरकारी खर्चे पे क्रिया-कर्म तो तय है.
काजल कुमार जी की आहत भावना |
एक सरकार के लिये उसकी रियाया की रक्षा करना उसका मूल दायित्व होता है. बिना किसी लाग लपेट के कहा जाए तो सरकार को मां के उस आंचल की मानिंद मानती है रियाया कि जब भी ज़रा भी आपदा हो मां का आंचल सबसे पहले उसके बच्चे को ढांकता है. पर न केवल भारत वरन विश्व की सरकारें जाने किस मोह पाश में बंधीं हैं कि अपनी रियाया की रक्षा के सवाल पर अपनी सफ़ाई देतीं फ़िरतीं हैं.
उधर पड़ोसी मुल्क की हालत हमसे गई गुजरी है वहां की सरकार तो सत्ता में आते ही बदहवास हो जाती है. बस अब कुछ भी नहीं लिखा जाता जाने कल का अखबार क्या खबर लाता है.. सोचता रहूंगा बिस्तर पर लेटे लेटे
शायर शिकेब ने कहा था
जाती है धूप उजले परों को समेट के
ज़ख्मों को अब गिनूंगा मैं बिस्तर पे लेट के
और उनसे विनम्र माफ़ी नामे के साथ कहना चाह रहा हूं
जाती है धूप गर्द में दहशत लपेट केज़ख्मों को गिनूंगा मैं बिस्तर पे लेट के !
सुना है शाह बेखबर है नीरो के जैसा
2 टिप्पणियां:
ऐसे ही चलेगा क्योंकि अधिकांश लोग इसे नियति मान चुके हैं.
कुछ भी होने वाला नही है,कुछ दिन के बाद सब भूल जायेंगे.
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