7.6.12
5.6.12
शो मस्ट गो आन
साभार:-"Owaisihospital " |
कुछ देर के बाद ही स्ट्रैचर को मरीज़ सहित ओ.टी. में आकस्मिक आपरेशन के लिये ले जाया गया. और अगले पंद्रह मिनिट बाद हताश डाक्टर के मुंह से "सारी" निकलता है. परिजनों में से किसी एक के मुंह से चीख.. और एक धैर्यवान युवक सम्भवत: बेटा तो न था पडौसी सी रहा होगा..(बेटे तो विदेशों में होते हैं ) जेब से रुपये निकालते हुये रिशेप्शन पर कुछ बतियाता है.
फ़र्स्ट फ़्लोर से ग्राउंड-फ़्लोर तक के सारे मरीज़ों के परिजनों के चेहरों पर एक अज़ीब सा भाव था. भयातुर ही तो थे वे ..
पडौसी का बेटा सेल फ़ोन से :- "बोस साहब नहीं रहे.." की सूचना जारी करता है. मेरे लगभग बराबर खड़ा डाक्टर बुदबुदा रहा था..."पता नहीं बाडी कब ले जाते हैं ?" आनन फ़ानन बोस साहब के पडौस वाला लड़का सब कुछ व्यवस्थित कर देता है. बोस साहब जो अब बोस साहब न होकर बाडी थे को घर ले जाया जाता है.
आधे घण्टे बाद एक निर्वात सी स्थिति थी सहमे सहमे चेहरे धीरे धीरे नार्मल होने लगते हैं. जैसे कुछ हुआ ही न हो.
एक युवा बाप के कष्ट को न देख सकने की स्थिति देख कर मुक्ति की कामना करता है उसकी सुर्ख लिपिस्टिक वाली बीवी सहमति जताती है. कुछ लोग बुके लेकर हालिया भर्ती मिश्रा साहब को फ़िल्मी स्टाइल में पेईंग वार्ड में घुसते हैं. विधायक जी सदलबल क्षेत्र के यशस्वी दादाजी के हालचाल लेने उनके कमरे में घुस जाते हैं. मौका मिलते ही वो लड़का उस लड़की से बातें करने लगता है. सच शो फ़िर से चालू हो जाता है कभी न रुकने वाला शो..
तुम जो बिच्छू हो तुम्हारे पास डंक ही एक मात्र विकल्प
साभार: हिंदी-लतीफ़े |
खुद से पूछता हूं
एक हारी देह लेकर
अब तक ज़िंदा क्यों हूं..?
खुद से पूछने का मतलब है
कि -"शायद अब कोई निर्णय लेना है"
मुझे खुल के कुछ कह देना है ..!!
पर नि:शब्द हो जाता हूं ..
तुम्हैं देखकर...
तुम जो मुझे
ग़लत साबित कर खुद से कभी नहीं पूछते
कुछ भी...!!
आज़ भी षड़यंत्रों की बू आई थी
तुम्हारे कथन से
तुम जो
थकते नही हो
गलीच आचरण से..
चलो ठीक है ..
मैंने भी बहते हुए बिच्छूओं को बचाने का लिया है संकल्प..
तुम जो बिच्छू हो तुम्हारे पास डंक ही एक मात्र विकल्प
27.5.12
एक वसीयत : अंतिम यात्रा में चुगलखोरों को मत आने देना
साभार in.com |
आज वह आदमी स्वप्न में खुद को अपनी वसीयत लिखता महसूस करता है. अपने स्वजनों को संबोधित करते हुये उसने अपनी वसीयत में लिखा
मेरे प्रिय आत्मिन
सादर-हरि स्मरण एवम असीम स्नेह ,
आप तो जानते हो न कि मुझे कितने कौए कोस रहे हैं . कोसना उनका धर्म हैं .. और न मरना मेरा.. सच ही कहा है किसी ने कि -"कौए के कोसे ढोर मरता नहीं है..!"ढोर हूं तो मरना सहज सरल नहीं है. उमर पूरी होते ही मरूंगा.मरने के बाद अपने पीछे क्या छोड़ना है ये कई दिनौं से तय करने की कोशिश में था तय नहीं कर पा रहा था. पर अब तय कर लिया है कि एक वसीयत लिखूं उसे अपने पीछे छोड़ जाऊं . इस वसीयत के अंतिम भाग में उन सबके नाम उजागर करूं जो दुनियां में चुगलखोरी के के क्षेत्र में निष्णात हैं.
प्रिय आत्मिनों..! ऐसे महान व्यक्तित्वों को मेरी शव-यात्रा में आने न देना.. चाहे चोरों को बुलाना, डाकूओं को भी गिरहकटों को हां उनको भी बुला लेना.. आएं तो रोकना मत . बेचारों ने क्या बिगाड़ा किसी का. अपने पापी पेट के कारण अवश्य अपराधी हैं ... इनमें से कोई बाल्मीकी बन सकता है पर चुगलखोर .. न उनको मेरी शव-यात्रा में न आने देना.
तुम्हारा ही
"मुकुल "
इन पंक्तियों के लिखे जाने के बाद उस स्वप्न दर्शी ने महसूस किया कि एक दैत्य उसके समक्ष खड़ा है. दैत्य को देख उसको अपने कई गहरे दोस्त याद आए.दैत्य से बचाव के लिये जिसे पुकारने भी कोशिश करता तुरंत उसी मित्र का भयावह चेहरा स्वप्न-दर्शी को दैत्य में दिखाई देता.. अकुलाहट घबराहट में उसे महसूस हुआ कि वो मर गया ..
खुद के पार्थिव शरीर को देख रहा था. बहुतेरी रोने धोने की आवाज़ें महसूस भी कीं.. मर जो गया था किसी से कुछ न कह पा रहा था.किसी को ढांढस तक न बंधा सका.
अपनी देह को अर्थी में कसा देखा उसने. परिजन दिख रहे थी. पर मित्र........ गायब थे.. अचानक उसके सामने वही दैत्य प्रगट हुआ. दैत्य ने पूछा-"क्या, मर कर भी चिंता मग्न हो..!"
स्वप्नदर्शी:-”हां, मेरे अभिन्न मित्र गायब हैं..?"
दैत्य :-"मैने सबको रोक दिया वे चुगलखोरी के अपराध में लिप्त थे न.. तुम्हारी वसीयत के मुताबिक़ वे तुम्हारी शव-यात्रा से वंचित ही रहेंगें.."
स्वपनदर्शी को अपनी वसीयत पर गहरा अफ़सोस हुआ.. रो पड़ा तभी पत्नी ने उसके मुंह से निकलती अजीबो-गरीब आवाज़ सुन कर जगाया.. क्या हुआ तुम्हैं ...?
नींद से जागा वो वास्तव में जाग चुका था............ अपनी वसीयत लिखने की इच्छा खत्म कर दी.. दोस्तों ये ही आज़ की सच्चाई..
सूचना
इस आलेख के सभी पात्र एवम स्थान काल्पनिक हैं इनका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं.. यदि ऐसा पाया जाता है तो एक संयोग मात्र होगा
भवदीय:गिरीश बिल्लोरे मुकुल
21.5.12
बिजली दफ़्तर वाला बाबू जो रोटी के अलावा गाली भी खाता है..
दीक्षित जी के लबों पर मातृभग्नि अलंकरण यूं बसते हैं गोया किसी सर्वग्य विप्र के मुंह में वेद मंत्र. दीक्षित जी एकता नगर के निवासी श्रीमन दीक्षित जी के रहते मुहल्ले की एकता कभी भंग नहीं होती. आठ-दस आवारा किस्म के लौंडे-लपाड़ियों का झुण्ड विप्रवर के इर्द-गिर्द हुआ करता है. कारण कि कभी कभार भाई "अद्धा-पौआ" की भेंट दे देते हैं. अब बताएं... इन लड़कों को अगर मुफ़्त में वो मिल जाए जिसकी वज़ह से ग़ालिब मशहूर शायर हुए. अब इन मुस्टण्डों को दीक्षित साहब को बकौल ग़ालिब
"एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब .देना ही है न . तो क्या देंगे ?" लिहाज़ा हज़ूर का जिस वक़्त आदेश हुआ सेना कूच कर देती. मुए इतनी बात अपने मां-बाप की मानते तो यक़ीनन अब तक किसी रईसजादे के दामाद होते. अब आप इन मयकशों को बुरा न कहिये चचा ग़ालिब कह ही चुके हैं
""ग़ालिब" बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे"
मेरी नज़र से देखिये इनकी हैसियत मालवीय-चौक पे घूमते उस सांड़ से कमतर नहीं जिसके जिस्म के दक्षिणावर्त्य में त्रिशूल का निशान नज़र आता है. ऐसी ही फ़ौज़ लेकर घूमते अपने दीक्षित जी सुरा के नशे में जब घर पहुंचे तो बीवी बच्चों को बिना बिजली के अधजगे पाया बस जाग उठा इनका पौरुष .
पूछा ही होगा-"कम्लैंट कर दी "
हां,
कब ..?
दस बजे
अच्छा सालों ने अभी तक नहीं सुधारी और बस फ़िर क्या था खूते की तलाश थी ही मुसटंडों को गुहारा जा पहुंचे बिजली दफ़्तर
पूछा ही होगा-"कम्लैंट कर दी "
हां,
कब ..?
दस बजे
अच्छा सालों ने अभी तक नहीं सुधारी और बस फ़िर क्या था खूते की तलाश थी ही मुसटंडों को गुहारा जा पहुंचे बिजली दफ़्तर
हां तो भाईयो रात 1:22 बजे हमे भी बंद बिजली चालू कराने बिजली दफ़्तर में फ़ोन लगाया था. उधर से आवाज़ आई जी साहब बताएं..
इधर से हम बोले-"भाई, पोल नम्बर X-35.."
उधर से वो बोला-"सा’ब, स्टाफ़ निकल चुका है, अंसारी साब को भी बता दिया है "
इधर से हम-"अंसारी कौन है बिजली दुरुस्त करेगा क्या..?"
उधर से वो बोला-"सा’ब हमारा अफ़सर है उसका नम्बर लीजिये.."
इधर से हम-"हम क्या करेंगें..!"
उधर से वो- "तो साब जितना मेरा काम था कर दिया बाक़ी अंसारी साब जाने "
अच्छा फ़ोन नम्बर दो देखूं तुम्हारे अंसारी क्या जानते हैं. खुशी खुशी नम्बर देकर मुझसे पिंड छुड़ा ही रहा था कि एक दानवी आवाज़ जिसका हर दूसरा शब्द बिजली वालों की मां-बहन के खिलाफ़ था . बहुत बुरा लग रहा था मुझे सो मैने पूछा- ये कौन है..?
उधर से वो बोला एक उपभोक्ताजी हैं इनकी बिजली बंद है सो यहां गाली-गलौच कर रहें हैं. हमारी मां-बहन ... दूसरी ओर से आवाज़ आई.. "तेरी.. तो..चौबे किससे बतिया रहा है ला मुझसे बात करा.. "
छीन ही लिया होगा उसने फ़ोन और फ़िर फ़ोन पर चीख चीख के बिजली उस बिजली दफ़्तर से लेकर मुख्यालय तक को ये सोच के गरिया रहा था गोया कि दूसरी ओर से फ़ोन सुनने वाले हम यानी इस लेख के लेखक बिजली कम्पनी के प्रवक़्ता हों.
इधर से हम बोले-"भाई हम भी शिकायत ही दर्ज़ करा रहें हैं "
उधर से वो-"स्साले तुम जैसे आराम तलब लोगों की वज़ह से ही बिजली वाले गर्राए हैं आओ मिल के इनकी.?"
उसने फ़ोन फ़टाक से रख दिया बहुत देर तक बिजली न आने की वज़ह से हमने फ़िर से फ़ोन लगाया अब हमको मालूम था चौबे बाबू फ़ोन उठाएंगे .
निहायत अफ़सराना अंदाज़ में हम बोले-"चौबे........... क्या हुआ पोल नम्बर X-35 का..
निहायत अफ़सराना अंदाज़ में हम बोले-"चौबे........... क्या हुआ पोल नम्बर X-35 का..
उधर से चौबे- ”सर, टीम वापस आ गई है, बता रहें हैं केबिल बर्स्ट हुआ है दिन में ही लगेगा”
इधर से हम-भई, तुम लोग पुलिस को क्यों नही बुलाते कौन था वो गंदी गंदी गालियां दे रहा था..?
हवलदार: साब बिजली दफ़्तर से अब स्टाफ़ फ़ोन नहीं करता इंस्पेक्टर : काहे करेगा- हम समझा आएं हैं..हमको बुलवाया तो फ़िर पिटोगे बेहतर है कि गाली से उत्तेजित न होना साभार :JNI सुल्तानपुर |
उधर से चौबे-सा’ब वो एकता नगर वाले दीक्षित जी हैं कुछ लड़कों के साथ आए थे. पुलिस भी क्या करेगी हमको तो रोज़ ड्यूटी पे आना है.
रात भर गर्मी से निज़ात पाने जागता जागता सोच रहा था कितने स्वार्थी हैं हम जो किसी निरीह को गरियाते हैं हैं उसकी मां-बहन के खिलाफ़ अश्लील सम्बोधन करते हैं कहां गया हमारा विप्रत्व क्या इसी दिन के लिये हम आज़ाद हुए थे . मन तो करता है तुम्हारे साथ वही सलूक किया जाए पर न न मुझे तुम्हारी मां-बहन के प्रति उतनी ही श्रद्धा है दीक्षित जी जितनी अपनी . एक बार सोचो कि बिजली दफ़्तर के मज़बूर बाबू की जगह तुम होते और कोई तुम्हारे साथ ऐसा हादसा घटित करता तब.. ?
सूचना
इस आलेख के सभी पात्र एवम स्थान काल्पनिक हैंइनका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं.. यदि ऐसा पाया जाता है तो एक संयोग मात्र होगा
भवदीय:गिरीश बिल्लोरे मुकुल
17.5.12
एक हैलो से हिलते लोग..!!
छवि साभार : समय लाइव |
फ़ूला यानी उसकी सतफ़ेरी बीवी कई बार उसे समझा चुकी थी कि -”अब, क्या करूं तुम पे ईमानदारी का भूत सवार है बच्चों का क्या होगा गिनी-घुटी पगार में कुछ किया करो...! पर बीवी का भी कहा न माना . बार बार के तबादलों से हैरान था. एक पोस्ट पे बैठा बैठा रिटायर हो गया. भगवान के द्वारे पर न्याय का विश्वासी उसे अपने जीवन काल में कभी न्याय मिला हो उसे याद नहीं भगवान की अदालत का इंतज़ार करता वो वाक़ई कितना धैर्यवान दिखता है अब जो बात बात पे उलझा करता था .
सात बच्चों का बाप आज़ औलादों से कोसा जा रहा है-"वर्मा जी भी तो बाप हैं उनके भी तो आपसे ज़्यादा औलादें थीं सब एक से बढ़कर एक ओहदेदार हैं..एक तुम थे कि ढंग से हायरसेकंड्री भी न पढ़ा पाए..वो तो नाना जी न होते तो .!" फ़ूला के मरने के बाद एक एक कर औलादों ने बाप से विदा ली. वार त्यौहार बच्चों की आमद होती तो है ऐसी आमद जिसके पीछे बच्चों का लोकाचार छिपा होता है. बूढ़े को लगता है कि घर में उसके औलादें नहीं बल्कि औलादों की मज़बूरियां आतीं हैं.
अस्सी बरस की देह ज़रा अवस्था की वज़ह से ज़र्ज़र ज़रूर थी पर चेहरा वाह अदभुत आभा मय सच कितना अच्छा दीप्तिमान चेहरा चोरों के चेहरे चमकते नहीं वो चोर न था लुटेरा भी नहीं एथिक्स और सीमाओं की परवाह करने वाला रिटायर्ड बूढ़ा आदमी दुनियां से नाराज़ भी नहीं दिखा कभी होता भी किस वज़ह से उसकी ज़िंदगी को जीने की एक वज़ह थी हर ऊलज़लूल स्थिति से समझौता न करने की प्रवृत्ति . और यही बात इंसान को पुख्ता बनाती है. दफ़्तर से बच्चों के लिये स्टेशनरी न चुराने वाला हर हस्ताक्षर की क़ीमत न वसूलने वाला व्यवस्था से लगातार जूझता रहा. किसी भी हैल्लो पर न हिलने वाले बुज़ुर्ग ने बताया था – क्या बताएं.. एक बार आला अफ़सर से उसके तुगलक़ी फ़रमान को मानने इंकार करने की सज़ा भोगी सड़ता चला गया एक ही ओहदे पर वरना आज मैं “….” होता…!
मैने पूछा-’दादा, क्या हुआ था..?’
वो-“कुछ नहीं मैनें उसे कह दिया था.. बेवज़ह न दबाओ साहब, मैं मैं हूं आप नहीं हूं जो एक हैलो से हिल जाऊं..!”
-मैं-“फ़िर..?”
वो-“फ़िर क्या, बस नतीज़ा मेरा रास्ते लगातार बंद होने लगे कुछ दिन बिना नौकरी के रहा फ़िर आया तो माथे पे कलंक का टीका कि ये.. अपचारी है..?”
आज़ वो बूढ़ा मुझे अखबार के निधन वाले कालम में मिला “श्री.. का दु:खद दिनांक .. को हो गया है. उनकी अंतिम-यात्रा उनके निवास से प्रात: साढ़े दस बजे ग्वारीघाट के लिये प्रस्थान करेगी-शोकाकुल- अमुक, अमुक, तमुक तमुक.. ..कुल मिला कर पूरी खानदान लिस्ट ..”
ड्रायवर चलो आज़ आफ़िस बाद में जाएंगें पहले ग्वारीघाट चलें. रास्ते से एक माला खरीदी . शव ट्रक से उतारा गया मैने माला चढ़ाई चरण-स्पर्श किया बिना इस क़ानून की परवाह किये लौट आया कि दाह-संस्कार के बाद वापस आना है. सीधे दफ़्तर आ गया .
ड्रायवर बार बार मुझे देख रहा था कि मैं आज़ स्नान के लिये घर क्यों नहीं जा रहा हूं…अब आप ही बताएं किसी पवित्र निष्प्राण को स्पर्श कर क्या नहाना ज़रूरी है..?
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