दीक्षित जी के लबों पर मातृभग्नि अलंकरण यूं बसते हैं गोया किसी सर्वग्य विप्र के मुंह में वेद मंत्र. दीक्षित जी एकता नगर के निवासी श्रीमन दीक्षित जी के रहते मुहल्ले की एकता कभी भंग नहीं होती. आठ-दस आवारा किस्म के लौंडे-लपाड़ियों का झुण्ड विप्रवर के इर्द-गिर्द हुआ करता है. कारण कि कभी कभार भाई "अद्धा-पौआ" की भेंट दे देते हैं. अब बताएं... इन लड़कों को अगर मुफ़्त में वो मिल जाए जिसकी वज़ह से ग़ालिब मशहूर शायर हुए. अब इन मुस्टण्डों को दीक्षित साहब को बकौल ग़ालिब
"एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब .देना ही है न . तो क्या देंगे ?" लिहाज़ा हज़ूर का जिस वक़्त आदेश हुआ सेना कूच कर देती. मुए इतनी बात अपने मां-बाप की मानते तो यक़ीनन अब तक किसी रईसजादे के दामाद होते. अब आप इन मयकशों को बुरा न कहिये चचा ग़ालिब कह ही चुके हैं
""ग़ालिब" बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे"
मेरी नज़र से देखिये इनकी हैसियत मालवीय-चौक पे घूमते उस सांड़ से कमतर नहीं जिसके जिस्म के दक्षिणावर्त्य में त्रिशूल का निशान नज़र आता है. ऐसी ही फ़ौज़ लेकर घूमते अपने दीक्षित जी सुरा के नशे में जब घर पहुंचे तो बीवी बच्चों को बिना बिजली के अधजगे पाया बस जाग उठा इनका पौरुष .
पूछा ही होगा-"कम्लैंट कर दी "
हां,
कब ..?
दस बजे
अच्छा सालों ने अभी तक नहीं सुधारी और बस फ़िर क्या था खूते की तलाश थी ही मुसटंडों को गुहारा जा पहुंचे बिजली दफ़्तर
पूछा ही होगा-"कम्लैंट कर दी "
हां,
कब ..?
दस बजे
अच्छा सालों ने अभी तक नहीं सुधारी और बस फ़िर क्या था खूते की तलाश थी ही मुसटंडों को गुहारा जा पहुंचे बिजली दफ़्तर
हां तो भाईयो रात 1:22 बजे हमे भी बंद बिजली चालू कराने बिजली दफ़्तर में फ़ोन लगाया था. उधर से आवाज़ आई जी साहब बताएं..
इधर से हम बोले-"भाई, पोल नम्बर X-35.."
उधर से वो बोला-"सा’ब, स्टाफ़ निकल चुका है, अंसारी साब को भी बता दिया है "
इधर से हम-"अंसारी कौन है बिजली दुरुस्त करेगा क्या..?"
उधर से वो बोला-"सा’ब हमारा अफ़सर है उसका नम्बर लीजिये.."
इधर से हम-"हम क्या करेंगें..!"
उधर से वो- "तो साब जितना मेरा काम था कर दिया बाक़ी अंसारी साब जाने "
अच्छा फ़ोन नम्बर दो देखूं तुम्हारे अंसारी क्या जानते हैं. खुशी खुशी नम्बर देकर मुझसे पिंड छुड़ा ही रहा था कि एक दानवी आवाज़ जिसका हर दूसरा शब्द बिजली वालों की मां-बहन के खिलाफ़ था . बहुत बुरा लग रहा था मुझे सो मैने पूछा- ये कौन है..?
उधर से वो बोला एक उपभोक्ताजी हैं इनकी बिजली बंद है सो यहां गाली-गलौच कर रहें हैं. हमारी मां-बहन ... दूसरी ओर से आवाज़ आई.. "तेरी.. तो..चौबे किससे बतिया रहा है ला मुझसे बात करा.. "
छीन ही लिया होगा उसने फ़ोन और फ़िर फ़ोन पर चीख चीख के बिजली उस बिजली दफ़्तर से लेकर मुख्यालय तक को ये सोच के गरिया रहा था गोया कि दूसरी ओर से फ़ोन सुनने वाले हम यानी इस लेख के लेखक बिजली कम्पनी के प्रवक़्ता हों.
इधर से हम बोले-"भाई हम भी शिकायत ही दर्ज़ करा रहें हैं "
उधर से वो-"स्साले तुम जैसे आराम तलब लोगों की वज़ह से ही बिजली वाले गर्राए हैं आओ मिल के इनकी.?"
उसने फ़ोन फ़टाक से रख दिया बहुत देर तक बिजली न आने की वज़ह से हमने फ़िर से फ़ोन लगाया अब हमको मालूम था चौबे बाबू फ़ोन उठाएंगे .
निहायत अफ़सराना अंदाज़ में हम बोले-"चौबे........... क्या हुआ पोल नम्बर X-35 का..
निहायत अफ़सराना अंदाज़ में हम बोले-"चौबे........... क्या हुआ पोल नम्बर X-35 का..
उधर से चौबे- ”सर, टीम वापस आ गई है, बता रहें हैं केबिल बर्स्ट हुआ है दिन में ही लगेगा”
इधर से हम-भई, तुम लोग पुलिस को क्यों नही बुलाते कौन था वो गंदी गंदी गालियां दे रहा था..?
हवलदार: साब बिजली दफ़्तर से अब स्टाफ़ फ़ोन नहीं करता इंस्पेक्टर : काहे करेगा- हम समझा आएं हैं..हमको बुलवाया तो फ़िर पिटोगे बेहतर है कि गाली से उत्तेजित न होना साभार :JNI सुल्तानपुर |
उधर से चौबे-सा’ब वो एकता नगर वाले दीक्षित जी हैं कुछ लड़कों के साथ आए थे. पुलिस भी क्या करेगी हमको तो रोज़ ड्यूटी पे आना है.
रात भर गर्मी से निज़ात पाने जागता जागता सोच रहा था कितने स्वार्थी हैं हम जो किसी निरीह को गरियाते हैं हैं उसकी मां-बहन के खिलाफ़ अश्लील सम्बोधन करते हैं कहां गया हमारा विप्रत्व क्या इसी दिन के लिये हम आज़ाद हुए थे . मन तो करता है तुम्हारे साथ वही सलूक किया जाए पर न न मुझे तुम्हारी मां-बहन के प्रति उतनी ही श्रद्धा है दीक्षित जी जितनी अपनी . एक बार सोचो कि बिजली दफ़्तर के मज़बूर बाबू की जगह तुम होते और कोई तुम्हारे साथ ऐसा हादसा घटित करता तब.. ?
सूचना
इस आलेख के सभी पात्र एवम स्थान काल्पनिक हैंइनका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं.. यदि ऐसा पाया जाता है तो एक संयोग मात्र होगा
भवदीय:गिरीश बिल्लोरे मुकुल