29.4.11

दिल्ली ब्लागर्स मीट : प्रेस कान्फ़्रेंस लाइव जबलपुर एवम इंदौर से

गिरीश बिल्लोरे मुकुल द्वारा जबलपुर से सुनने के लिये चटका लगाएं
                                  "लाइव" पर

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अर्चना चावजी इंदौर से  



            

दिल्ली पहुंच कर अन्ना ने चूलें सरकार की हिला दीं थीं ब्लागर ब्लागरा भी ..


                                                           हां तो भाईयो और ब्लागर भग्नियो जो ( मानें ) दिल्ली पहुंच कर अन्ना ने चूलें सरकार की हिला दीं थीं ब्लागर ब्लागरा क्या करेंगे.. जी सम्मेलन की घोषणा होते ही कितने सीनों पे नागिन फ़िलम छाप धुन पै  सांप लोट रए हैं सबरे ब्लागरन को पता है.पर जे जान लो भैया रवींद्र परताप जी  और अगरवाल साब  ने पूरे देस और बिदेस से ज़हर निकालने वाले सपेरे बुलाय लिये. जिनका काम है  ज़हर से  "ज़हर-रोधी" बनाना . सांप भैये  आप तो जिसकी आस्तीन में रहते हो रहो सीनों पे न लोटो वरना ज़हर से हाथ धो लोगे.   खास खबर ये है कि अविनाश  जी और पता नहीं कौन कौन  दिल्ली चलो का हल्ला महीनों से नुक्कड़ पे आके मचाए पड़े थे उधर भाई रवीन्द्र प्रभात की किताबें लिखने की   मौन  साधना अलग जारी थी. बस्स इस आह्वान का असर दिखा अंदर की बात तो जे है भैया कि अन्ना हज़ारे तक दिल्ली आ गये और बस हिला दीं चूलें सरकार की ऐसा माना जा रहा है... और खास खबर ये है कि लारा मेमसाब पर इस आह्वान का असर कुछ ज़ियादा ही हुआ उनने कसम खाई कि 29 अप्रैल 2011 से पूरे देश में ब्लागर्स के वास्ते  आह्वान करेंगीं   नारा देंगी  "दिल्ली चलो "समीर बाबू कनाड़ा से सोच रए हैं के   दिल्ली में बस जाने को जी चाहता है. हजूर बस एक बार चुनाव लड़ लिये होते तब्ब तो पक्का था कि आप दिल्ली में इच्च होते..सुना है कुछ लोग जो सम्मेलन को फ़ेस न कर पाए वे  फ़ेस बुक में...पद्मावलि (पद्मावति नहीं) बारे  पद्म भैया सुनिये हमारे राशी फ़ल में जात्रा के लिये मनाही है पर हम आयेंगे ज़रूर आएंगे पक्के में आएंगे  . संगीता  ताई से तोड़ निकलवाएंगे पक्के में. जी और तो और हम वेबकास्टिंग करेंगे ललित भाई  के अलावा सवा लाख पे भारी श्री बी एस पाबला  श्री संजीव तिवारी  से  मिलना भी होगा और देखिये हम लोग ऐसे दिखेंगे
वेबकास्टिंग के लिये किस ब्लाग पे चटका लगाना है..?

जी डा०विजय तिवारी किसलय के बताए अनुसार मुझे बताया "वेबकास्टिंग जिसकी चर्चा देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं में भी की गई है.  इतना ही नहीं उक्त कार्यक्रम का लाइव प्रसारण http://www.nukkadh.comhttp://sanskaardhani.blogspot.comतथा http://editers.blogspot.com/ , http://hindisahityasangam.blogspot.com/ पर  दिनांक 30 अप्रैल 2011 .को शाम तीन बजे से उपलब्ध होगा. 
 "

इस पर एक रपट देखिये भाई पियूस पाण्डे साब की कतरन भास्कर की
दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय संस्करण में आज दिनांक २९.०४.२०११ को प्रकाशित पीयूष पांडे का विस्तृत विवेचन हिंदी ब्लॉग सम्मलेन के बहाने 
नुक्कड़ से साभार 








28.4.11

नाव गाड़ी का रिश्ता

पाकिस्तान में मिली ये तस्वीर नाव गाड़ी का रिश्ता  बयां कर रही है. यही  हक़ीकत है पाकिस्तान की हमेशा नाव पर गाड़ी होती है. नाव जो हमेशा डूबती-उतराती नज़र आती है.पर चल रही है परम आत्माओं के सहारे जो विश्व के हर हिस्से को हिला देने की जुगत में तत्पर.   अब तो जागो पाक़िस्तान ... विश्व को बता दो तुम भी नेक नियत देश हो... तुम्हारे दामन के दाग धोने के लिये इससे बेहतर वक़्त कब आएगा. तब जब विश्व एक बड़े सामाझिक परिवर्तन के लिये तत्त्पर है. 














एक रपट किसलय जी के सेलफ़ोन से 

26.4.11

तुमने किसका गीत ये गाया ,अपने सुर में आज़ पिरोकर किसका ओढ़ लबादा आये- कहो कहां से आये होकर !













सागर पाखी अपने पर को फ़ैला कर मापें जब सागर,
तब जानो सागर नन्हा है- आतुर वे भरने को गागर !
लघु विशाल का भेद निरर्थक देखो तो साहिल पे  जाकर.
इनसे भी ज़्यादा है मापा- जलचर ने अंतस तक सागर !!
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तुमने किसका गीत ये गाया ,अपने सुर में आज़ पिरोकर
किसका ओढ़ लबादा आये-    कहो कहां से आये    होकर !
बंद करो खोने का रोना- मिथ्या गीत नहीं सुनना है-
नित नूतन कुछ कुछ पाया है, हमने जग में खुद को खोकर !!

अपना उदर भरा करते हो इस उस के मुख छीन निवाला
अपनी ठिठुरन मिटा रहे क्यों- मेरे तन से  छीन दुशाला .
चिंगारी से डरने वालो क्या मशाल लोगे हाथों में-
हमको देखो जल जल हमने रोज़ राह में किया उज़ाला !!
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25.4.11

बाबा की उस सम्पत्ति की चर्चा करो जो मानव कल्याण के लिये बिखरी पड़ी है

ये  विषय नही कि संस्थान के पास क्या है,उसका क्या होगा, उसे कौन संचालित करेगा.चर्चा तो इस बात की होनी चाहिये  कि बाबा ने कितने  जीवनो को पारस-मणि सा स्पर्श दिया और लोहे से सोने सा बना दिया...? किसी भी योगी  की आध्यात्मिक शक्ति को न देख पाना हमारे चिंतन की अपरिपक्कवता ही है. लोग मंदिर की भव्यता से ईश्वर की शक्ति को तौलते हैं . किसने कहा ईश्वर सिर्फ़ भव्य मंदिरों में ही मिलते हैं.भक्त के मन में भगवान का स्वरूप किसी "धनाड्य" सा होगा तभी भक्त प्रभावित होगा ऐसा सोचना भी मिथ्या है.सत्य साई बाबा के लोककल्याण की अवधारणा का समापन उनके शारीरिक अवसान के बाद भी जारी रहेगा.क्योंकि बाबा का देह त्याग एक लीला मात्र है. वे आध्यात्मिक रूप से आत्माओं में सृष्टि के अनंत विस्तार तक रहेंगें.   
  बाबा को आप  सतही अपनी आंखों से देखना है न कि सतही खबरों के ज़रिये तभी तो बाबा की उस सम्पत्ति की चर्चा कर सकोगे  जो मानव कल्याण के लिये बिखरी पड़ी है. जो हुआ है. बाबा के आश्रम की चिंता तुम मत करो बस चिंतन करो 



24.4.11

बस एक बार बाबा की विभूती चखो तो समझ जाओगे तुम क्या हो बाबा क्या हैं

आज़ से ३१ वर्ष एक माह पूर्व की वो सुबह हां याद आया  मार्च १९८० के एक गुरुवार  एक सुबह यानी  चार से पांच के बीच का वक़्त था , जाग तो चुका था मैं साढ़े तीन बजे से , लग भी रहा था कि लगा कि आज़ का दिन बहुत अदभुत है. था भी, मुझे नहीं मालूम था कि आज़ क्या कुछ घटने  वाला है. गंजीपुरा के साहू मोहल्ले वाली गली में अचानक एक समूह गान की आवाज़ गूंजती है बाहर दरवाजा खोल के देखता हूं बाबा के भक्तों की टोली  अपनी प्रभात फ़ेरी में  नगर-संकीर्तन करती हुई निकलती है. श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा.. जैसे कई भजन पूरे पथ संचलन में.  गाते जा रहे थे भक्त गण .. साई कौन है ? इस पड़ताल में लग गया मैं. मार्च अस्सी की मेट्रिक की परीक्षा के बाद पड़ताल करना शुरु किया. वैसे मेरे कई मित्र जैसे अविजय उपाध्याय, शेषाद्रि अय्यर, जितेंद्र जोशी (आभास-जोशी के चाचा मेरे मौसेरे भाई), मुकुंद राव नायडू ,सत्य साई सेवा समिति की  बाल विकास के विद्यार्थी थे.बाबा के बारे में इतना जानता था कि वे मेरे नाना जी के आध्यात्मिक गुरु हैं. उनके घर से समिति के काम चला करते थे.  करंजिया के श्रृंखला बद्ध  आलेखों ने मेरे  किशोर मन पर एक नकारात्मक छवि बना दी थी बाबाओं के प्रति. उन में  साई प्रमुख थे.मैं बाबा का विरोधी हो गया मन ही मन जैसे बाबा ने कुछ छीन लिया हो मेरा . 
 फ़िर एक दिन नानाजी मिलने जब गया तो नाना जी कम्बलों को व्यवस्थित कर रहे थे. मैने पूछा :-"नानाजी ये क्यों. इत्ते सारे कम्बल क्यों खरीदे "
नानाजी ने बताया आज़ रात को हम लोग बस स्टैंड, रेल्वे-स्टेशन, सड़क किनारे जहां भी कोई ठण्ड में ठिठुरता , "नारायण" मिलेगा उसे ओढ़ा देंगे.
नारायण..?
हां, नारायण जो दु:खी , अकिंचन है उसमें भगवान है, वही भगवान है.. उसकी सेवा ही तो प्रभू की सेवा है. 
         जिस गुरु के इस दिशा दर्शन का इतना अदभुत असर वो तो महान होगा ही. बस जरा सा आकर्षण पैदा हुआ. पर विश्वास न विश्वास अभी भी न जमा सका. मुझ पर स्वामी शुद्धानंद के "प्रपंच अध्यात्म योग" का असर था.   "प्रपंच अध्यात्म योग" और " सत्यसाई  के चमत्कार" दो अलग अलग बात थी मेरे लिये. मुझे चमत्कारों में भरोसा न था. मुझ पर यह विचार हावी था कि बाबा बस चमत्कार करते हैं. वो तो कोई भी ज़ादूगर कर देता है. बाबा की पड़ताल करनी थी सो सोचा कि बिना इनके चेलों के बीच घुसे बाबा को जानना असम्भव है. रेल्वे के राज़ भाषा अधिकारी श्री आर बी उपाध्याय के कछियाना स्थित निवास पर जाना आना शुरु कर दिया.    
                                 मुझे मालूम था कि मेरी आस्था बाबा के लिये तब तक न जागेगी जब तक  कि उनके सामाजिक पहलू का अंवेषण कर न लूंगा . "आस्थावान होना और पिछलग्गू होना अलग अलग तथ्य हैं. नेता गण भली भांति जानते हैं. नहीं जानते हों तो अब जानलें. 
       हां तो हर शनिवार भजन में जाना और  ये देखना कि कौन कौन आता है क्या क्या करता है. भजन में एक प्रोफ़ेसर राव साहब आते थे, पता नही कितने अफ़सर, कितने क्लर्क, कितने मास्टर, कितने गरीब जो सिर्फ़ बाबा के प्रति आराधना के स्वर बिखेरते थे और भजन के बाद विभूति प्रसाद मिलता था. मैं बेमन से विभूती लेता था . दूसरे ही भजन में किसी ने कानों में कहा –“बस एक बार बाबा की विभूती चखो तो समझ जाओगे तुम क्या हो बाबा क्या हैं ?”
आर बी उपाध्याय जी के घर जिनको हम चाचाजी कहते हैं के घर भजन में. इनका एक बेटा है अभिनव  (अभिनव उपाध्याय)जिसे आपने देखा होगा जगजीत सिंह जी के कंसर्ट में तबला बजाते हुए. उसकी तबले की थाप वाह जैसे गंधर्व प्रभू की आराधना में संगीत दे रहे हों. मेरी  उम्र से कुछ कम उम्र का युवा होता एक दिव्य चेहरा  जो प्रोफ़ेसर राव के बेटे थे भजन में आया करता थे.. विचार और वाणी की मृदुलता ने मुझे इन युवाओं की ओर आकर्षित किया.ये सारे लोग मौन साधना करते थे कर भी रहे हैं. पर कभी किसी प्रचार का हिस्सा नहीं बनते.  तभी तो  मुझे लगा कि बाबा ने जो कार्य साथ लिये हैं  वो विश्व को बदल सकतें हैं. आंध्र-प्रदेश में वाटर प्रोजेक्ट जो भारत की किसी भी सरकारी व्यवस्था में सहजता से होना सम्भव नहीं था . पुट्टपर्थी का चिकित्सालय, यूनिवर्सिटी, उन सबसे बढ़कर वे भक्त मुझे लुभाने लगे जो सेवा तो कर देतें हैं हर किसी ज़रूरत मंद की पर कभी भी प्रचार का हिस्सा न बनने देते "सेवा को". यही तो जानना चाहता था. बस एक दिन मैने भी किसी के उकसाने पर गा दिया 
"विभूती सुंदर साई नाथ सत्य साईं नाथ 
 साई नाथ साई नाथ सत्य साई नाथ..."
     कभी भी बाबा से न मिला कभी पर्ती नहीं गया पर बाबा  मुझे हमेशा मेरे साथ हैं. मुझे यक़ीन है.यक़ीन की कई वज़ह हैं. उनमें से बाबा से हुए आत्मिक संवाद . जिनको यदि कभी जरूरी हुआ तो अवश्य प्रस्तुत करूंगा. पर यह सच है कि १४ मार्च २००९ को जब "बावरे-फ़क़ीरा" विमोचित हुआ तब अपना भाषण देने जितेंद्र जोशी जी  ने मुझे आहूत किया तब बोलने के लिये जो तय शुदा एजेण्डा लेकर मंच पर गया उससे भिन्न कुछ कहा मैने ... सारा हाल स्तब्ध चकित सुन रहा था पिन ड्राप सायलेंस था तब  मुझे मालूम है कि मैं नहीं एक कोई और था, साथ जो बोल रहा था सामने बैठे मूर्धन्य, आत्मिक जन, परिजन,मित्र, पता नहीं कितने अपनी आंखों से अमृत गिरा रहे थे.  




  • भगवान की सेवा क्या है:-

  1. बच्चों  की जिज्ञासा शांत  करना 
  2. भूखे को सम्मान से आहार देना
  3. रोगी की सेवा करना 
  4. अपने यश पर घमंड न करना
  5. सेवा और दान का बखान न करना 
  6. अपने धर्म का त्याग न करना
  7. दूसरे धर्म का आदर करना 

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