23.11.10

सर्किट हाउस भाग:-एक

(सर्किट हाउस में  )
             ब्रिटिश ग़ुलामी के प्रतीक की निशानी सर्किट हाउस को हमारे लाल-फ़ीतों ने  ठीक उसी उसी तरह ज़िंदा रखा जैसे हम भारतीय पुरुषों ने शरीरों  के लिये  कोट-टाई-पतलून,अदालतों ने अंग्रेजी, मैदानों ने किरकिट,वगैरा-वगैरा. एक आलीशान-भवन जहां अंग्रेज़ अफ़सरों को रुकने का इन्तज़ाम  हुआ करता था वही जगह “सर्किट हाउस” के नाम से मशहूर है. हर ज़रूरी जगहों पर  इसकी उपलब्धता है. कुल मिला कर शाहों और नौकर शाहों की आराम गाह .  मूल कहानी से भटकाव न हो सो चलिये सीधे चले चलतें हैं  उन किरदारों से मिलने जो बेचारे इस के इर्द-गिर्द बसे हुये हैं बाक़ायदा प्रज़ातांत्रिक देश में गुलाम के
सरीखे…..! तो चलें
                         आज़ सारे लोग दफ़्तर में हलाकान है , कल्लू चपरासी से लेकर मुख्तार बाबू तक सब को मालूम हुआ जनाब हिम्मत लाल जी का आगमन का फ़ेक्स पाकर सारे आफ़िस में हड़कम्प सा मच गया. कलेक्टर सा’ब के आफ़िस से आई डाक के ज़रिये पता लगा  अपर-संचालक जी पधार रहें किस काम से आ रहें हैं ये तो लिखा है पर एजेण्डे के साथ  कोई न कोई हिडन एजेण्डा  भी होता है  …?   जिसे  वे कल सुबह ही जाना जा सकेगा .
दीपक सक्सेना को ज्यों ही बंद लिफ़ाफ़ा प्रोटोकाल दफ़्तर से मिला फ़टाफ़ट कम्प्यूटर से कोष्टावली आरक्षण हेतु चिट्ठी और मातहतों के लिये आदेश टाईप कर ले आया बाबू. दीपक ने दस्तख़त कर आदेश तामीली के वास्ते चपरासी दौड़ा दिया गया.
चपरासी से बड़े बाबू को मिस काल मारा बड़े बाबू साहब के कमरे में बैठा ही था मिस काल देख बोला :-सा’ब राम परसाद का मिसकाल है..!
दीपक:- स्साला कामचोर, बोल रहा होगा सायकल पंक्चर हो गई..?
मुख्तार बाबू ने काल-बैक किया  सरकारी फ़ोन से . 
’हां,बोलो…!’
 ’हज़ूर, श्रीवास्तव तो घर पे नहीं है..?
लो  साहब से बात करो…मुख़्तार बाबू बोला,
 रिसीवर लेकर दीपक ने अधीनस्त फ़ील्ड स्टाफ़ रवीन्द्र श्रीवास्तव की बीवी को बुलवाया फ़ोन पर :- जी नमस्ते नमस्ते कैसीं हैं आप..?
“ठीक हूं सर ये तो सुबह से निकलें हैं देर रात आ पाएंगे बता रहे थे आप ने कहीं ज़रूरी काम से भेजा है..?”
“अर्रे हां…. भेजा तो है याद नहीं रहा… सारी ठीक है भाभी जी आईये कभी घर सुनिता बहुत तारीफ़ करती हैं आपकी “
“जी, ज़रूर ….
राम परसाद को दीजिये फ़ोन..?”
     कुर्सी पर  लगभग लेटते हुए दीपक का आदेश रामप्रसाद के लिये ये था कि वो दीपक की जगह अब्राहम का नाम भर के आदेश तामीली उसके घर पर करा दे. “
     “अब्राहम… फ़ील्ड से वापस आकर सोफ़े पे पसरा ही था कि     रामप्रसाद की आवाज़ ने उसके संडे के लिये तय किये  सारे कामों पर मानों काली स्याही पोत दी. उसने आदेश देखते ही ना नुकुर शुरु कर दी “अरे रामपरसाद श्रीवास्तव का नाम तुमने काटा मेरा भी काट के शर्मा का लिख दो ”
“सा’ब,रखना हो तो रखो, वरना लो साहब को मिस काल किये देता हूं… कहो तो…?
“अर्र न बाबा, वो तो मज़ाक कर रा था लाओ किधर देना है पावती..?”
   लोकल-पावती-क़िताब आगे बढ़ाते हुए अब्राहम से पूछता है:-सा’ब,वो एम-वे वाता धंधा कैसा चल रा है”
 मतलब समझते ही बीवी को आवाज़ लगाई:-भई, सुनती हो ले आओ एक टूथ-पेस्ट , अपने परसाद के लिये..! पचास का नोट देते हुए –’हां और ये ये लो रामपरसाद, आज़ बच्चों के लिये कुछ ले जाना. दारू मत पीना बड़ी मेहनत की कमाई है.
’जी हज़ूर…दारू तो छोड़ दी ? रामपरसाद ने हाथों में नोट लेकर कहा –अरे सा’ब, इसकी क्या ज़रूरत थी. आप भी न खैर साहबों के हुक़्म की तामीली मेरा फ़रज़ (फ़र्ज़) बनता है हज़ूर .
        हज़ूर से हासिल नोट जेब में घुसेड़ते ही रामपरसाद ने बना लिया बज़ट  , पंद्र्ह की दारू, पांच का सट्टा , दस का रीचार्ज, बचे बीस महरिया के हवाले कर दूंगा. जेब में टूथ-पेस्ट डाल के रवानगी डाल दी.
(क्रमश: )

ज्ञानरंजन


ज्ञानरंजन जी पर  कल दैनिक-भास्कर में प्रकाशित आलेख के लिए भास्कर-परिवार को हार्दिक शुभ कामनायें एवं साधुवाद
साथ ही श्री राजेन्द्र चंद्रकांत राय जी के प्रति भी आभार सहितअखबार की स्कैन प्रति सादर प्रकाशित

22.11.10

मेरी ब्लाग पर कमाई शुरु

भगवान जाने सही है कि नहीं पर कुछ तो है जो हो रहा है. मुझे सही लगा सो सुझा रहा हूं. इस वेब साईट पर तुरंत लाग इन कीजिये आज  दोपहर से साईट पर शामिल होने के बाद आज ही मेरी आय लागिन बोनस 3 डालर के बाद वर्तमान में 3.15 डालर हो गई है . डालर्स की ज़रुरत किसे नहीं है . किंतु तरीके सही क्या हों कमाने के उपलब्ध वेब साइट्स पर जो तरीके सुझाए जा रहे थे इन पर कितना भरोसा किया जाए यह सोचरहा हूँ..?


आपके खाते  में  डालर्स   200 डालर की कमाई के बाद ही मिल सकतें हैं . यानी कुल मिला कर गूगल बाबा से दुगना समय
वेब साईट का नाम है  www.bux4ad.com खुद को www.bux4ad.com   शामिल करने के पहले  देखिये कि क्या इन पर भरोसा किया जा सकता है.

20.11.10

अंतरजाल के ज़रिये एलियन्स से मेरे रिश्ते हैं..?

"मेरा मित्र एलियन के साथ कानाफ़ूसीरत "
          पिछले कई दिनों से अंतर्ज़ाल पर सक्रियता के कारण मेरी पृथ्वी से बाहर ग्रहों के लोगों से दोस्ती हो गई है.  अंतरजाल पर मेरा बाह्य सौर मण्डल के गृहों पर बढ़ते सम्पर्क को देख कर मेरे सहकर्मीं मित्रों छठी इन्द्री  में हलचल हुई. तो उसने विस्परिंग शुरु कर दी कुत्ते की तरह इधर उधर से मेरे बारे में जानकारीयां सूंघता सूंघता एक बार जब वो एक जगह घुस  जहां एलियन मित्र- "कारकून " अपना रूप बदल के बैठा था . चुगली न कर पाने की वज़ह से दुनिया जहांन की बात करते करते भाई के दक्षिणावर्त्य में गोया  दरद महसूस होने लगा . चुगल खोरी जिस गृह की सांस्कृतिक  विरासत में वहां के संविधान में, धर्म में शुमार है से आया था यह जंतु सो मेरे मित्र के मानस में उभरी तरंगों  को पकड़ लिया. सो मित्र से मित्रता गांठ ली और कुछ खिला पिला के अपना साथी बना लिया. और निकल पड़ा उसे लेकर तफ़रीह के बहाने. चलते-चलते भाई लोग कम   आवाजाही  वाले क्षेत्र में पहुंच गये. एलियन ने कुछ और तरंगे पकड़ मित्र के दिमाग की सो बस लगा मेरे मुतल्लिक बात करने -’भई, ककऊ जी, आप किस विभाग के नौकर हैं..?
ककऊ:- (अपमानित सा होकर )नौकर नही हूं, अफ़सर हूं.
कारकून:-  जी माफ़ करना, अफ़सर जी किस विभाग के हो..?
ककऊ:-    "XYZ" विभाग-में  ABO हूं 
कारकून:-  अरे इस में तो फ़ला भी है
ककऊ:- जी, वो साला है पर आप को क्या बताऊं..? अरे, बहुत नाकारा, बेहूदा और गंदा आदमी है..उसकी वज़ह से मेरी तो नाक में दम है.?
कारकून:-  क्यों क्या हुआ ?
ककऊ:-    अरे, छोड़िये भी..? यहां साली दीवारों के भी कान होते हैं 
कारकून:-  (ककऊ को जाल में फ़ंसा देख ) कभी किन्ही जानवरों की आपसी बातैं सुन आपने...?
ककऊ:- न
कारकून:- तो ज़रा आंख बंद करो 
       कारकून से मोहित ककऊ ने आंख बंद कीं अगले ही पल खुद को कुत्ते के रूप में पाया.  लगा चीखने ककउ की चीख पिल्लै की कूं-कूँ सी निकली कारकून को न देख घबराया सो कारकून जो बाजू में ही कुत्ते की तरह था बोला घबराओ मत देखो मैं  खुद एक कुत्ता बना हूँ . ये तो सब आभासी है. वर्चुँल है घबराओ मत .कारकून की बात पर  भरोसा एवं कारकून को स्वयं की तरह कुत्ते के रूप में  देख मेरे मित्र का भय कम हुआ . ककऊ के  विश्वास के आते ही कारकून ने अपने एक देशीय गृह के बारे में सब कुछ बताया.फिर मेरे यानी फलां के बारे में ज़िक्र छेड़ा और गहरी सांस लेकर पूछा -   
कारकून :- अब फलां की बुराई बताओ
ककऊ:- अरे ये जो फलां है न उसका ढिकानी के साथ गहरा चक्कर है. कूब कमाता है भ्रष्ट है स्साला .
कारकून:-  ये ढिकानी तो ठीक है. पर भष्ट माने...?
ककऊ:-   भ्रष्ट माने हराम की कमाई खाने वाला है स्साला ?
कारकून:-  हराम की कमाई न ये शब्द क्या हैं ?
ककऊ:-   तो तुम किसी दूसरी दुनिया से आए हो ?
कारकून:- हां मैं , चुगल-गृह वासी एलियन हूं .
ककऊ:-   जी , तभी तो तुम को मालूम नहीं.
कारकून:- तो आगे बताओ "फलां" के बारे में  ककऊ:-    फलां हमेशा......(इसके साथ ही उसने मेरे बारे में खूब लगाईं बुझाई की यह शिखरवार्ता लगभग दो घंटे चली.   )
कारकून:- भाई बहुत हो गया अब चलूँ ...?
ककऊ:-    मन तो नई भरा पर क्या करें आपको भी जाना है मुझे भी कालो आते रहना पर जाते-जाते मुझे आदमी बना दो
कारकून:-  जब, आदमी के रूप में तुम कुत्ते का सा व्यवहार करते हो तो बेहतर है कि वही बने रहो !
ककऊ:-   अरे , भाई ये क्या लगभग रोता हुआ  एलियन के कदमों में लोट गया. 
कारकून:- अरे हमारे गृह पर तो चुगली एक ऐसा आचरण जिसके ज़रिये किसी के विरुद्ध कोई हिंसा षडयंत्र नहीं करते तुम तो "फलां" जो मेरा नेटियामित्र कई उसी की कबर खोद रहे हो कुत्ते थे कुत्ते बने रहो 
ककऊ:-  तुमको चुगलदेव  की सौगंध
कारकून:- अब तुमने चुगलदेव  की सौगंध दी है है तो माफ़ किये देता हूं        ककऊ को :कारकून ने आदमी का रूप वापस दे दिया और फुर्र से गायब  . कल देर रात कारकून  से चैट  के दौरान घटना का विवरण मिला. सदमें में  हूँ साथियो  उसी सदमें में ये लिखा है कोई भी मित्र इसमें अपने को .......

हिन्दयुग्म से साभार


दोस्तों, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर के एपिसोडों से लगभग अगले 20 एपिसोडों तक, जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर"

TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक-

पिछले एपिसोड में आये एक नए प्रतिभागी महिलाओं को चुनौती देने. चलिए हमारे कहने का असर हुआ, और विश्व दीपक तन्हा जी भी मैदान में कूद पड़े, पर 3 में से 2 जवाब सही दिए, एक जगह चूक कर गए. और उनकी भूल का फायदा उठा कर सीमा जी फिर 2 अंक चुरा लिए. सीमा जी का स्कोर हुआ है अब 12, तन्हा जी ने शानदार शुरुआत की 4 अंकों के साथ. दिशा जी अभी भी 2 अंकों पर जमी है, सभी को आज के लिए शुभकामनायें.

सजीव - सुजॉय, आज का TST ख़ास है कुछ, लेकिन इससे पहले कि मैं ये बताऊं क्यों, मेरी तरफ से और पूरे युग्म परिवार की तरफ से आवाज़ के सबसे लोकप्रिय होस्ट को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ दे देता हूँ, जी हाँ दोस्तों आज सुजॉय का जन्मदिन है, मुबारक हो सुजॉय :)

सुजॉय - धन्यवाद सजीव, और मेरे सभी साथियों का....शुक्रिया.

सजीव - जानते हैं आज के दिन का एक और बहुत बड़ा महत्त्व है. शिरडी के साईं बाबा ने आज ही दिन देह त्याग कर स्वर्ग के लिए पलायन किया था. उनकी स्तुति का ये दिन बेहद ख़ास है देश विदेश में फैले बाबा के असंख्य भक्तों के लिए, आज हम भी TST पर बाबा सो नमन करते हुए एक ऐसा गीत सुनवाने जा रहे हैं, जो नेट पर आज पहली बार बजेगा.

सुजॉय - दोस्तो, आभास जोशी एक उभरते हुए गायक हैं जिन्होंने वॉइस ऑफ़ इंडिया प्रतियोगिता में विशेष जूरी सम्मान हासिल किया, बेहद कम उम्र में उनके गायन के चर्चे मशहूर हो चुके है और अब जल्दी ही बॉलीवुड में भी उनकी दस्तक गूँजेगी...

सजीव - आभास जिन दिनों प्रतियोगिता का हिस्सा थे ये एल्बम "बावरे फकीरा" बाज़ार में आ चुकी थी, इस एल्बम के गीतकार गिरीश बिल्लोरे जी ने हमें बताया कि इस एल्बम की बिक्री से अर्जित आय को विकलांग बच्चों के लिए कार्य कर रही एक संस्था को दान कर दिया गया, यानी कि संगीत माध्यम से समाज के उद्धार का एक अच्छा उदहारण है ये....

सुजॉय - यकीनन, पर इससे पहले कि आज इस एल्बम के शीर्षक गीत को पहली बार नेट पर सुनें, स्वागत करें इस भजन के रचेता गिरीश बिल्लोरे और युवा गायक आभास जोशी का, जो आज हमारे बीच हैं....स्वागत है आप दोनों का TST में...

सजीव - गिरीश जी आपने आभास के उत्थान में अहम भूमिका निभाई है, जहाँ तक मेरी जानकारी है ये आभास का पहला एल्बम है, तो क्या ये एल्बम आपने प्लान की आभास के लिए?

गिरीश -सजीव जी,सबसे पहले हिन्द-युग्म परिवार का हार्दिक आभारी हूँ कि आपने "साईं-बाबा के बताए अध्यात्मिक चिंतन पर केंद्रित एलबम "बावरे-फ़कीरा" के इन्टर-नेट संस्करण की लांचिंग का कार्य किया है" जहां तक आभास के उत्थान में मेरे अवदान को आपने रेखांकित किया है यह आप का बडप्पन है। वास्तव में आभास को सेलिब्रिटि खुद आभास की मेहनत बाबा के आशीर्वाद ने बनाया। मैनें तो बस जो किया स्वर्गीया सव्यसाची मां प्रमिला देवी की प्रेरणा से किया. उसका लाभ आभास को मिला यह मेरा सौभाग्य है.

बावरे-फ़कीरा एलबम की प्लानिग की ज़िम्मेदार दो घटनाएं हैं। शहर के एक सिंगर ने मेरे गीत फेंक दिए थे यह कह कर ये भी कोई गीत हैं। फिर गीत मैनें कम्पोज़ीशन मेरे करीबी परिचित संगीतकार ने गीतों को घर की पुताई में खो दिए कुल मिला कर उपेक्षा का शिकार मेरे भजन पांच साल तक गोया आभास का इंतज़ार कर रहे थे .... 2006 में श्रेयास जोशी ने संगीतबद्ध कर आभास के सुरों को सौंप दिये ये गीत। सजीव जी, मां के निर्देश पर साहित्य से मुझे रोटी नहीं कमाना था सो मैंने अपने एलबम पीड़ित मानवता की सेवा को समर्पित किया जाना उचित समझा।

सुजॉय - आभास आप और तोशी उस मुकाबले में "वाईल्ड कार्ड एंट्री" से आये, निर्णायकों की ख़ास पसंद बने थे आप, इन सब का अब तक आप को क्या फायदा मिलता है जब आप किसी संगीतकार से संपर्क में आते हैं, 2007 में हुए उस मुकाबले से लेकर अपने अब तक के सफ़र के बारे में संक्षेप में हमारे श्रोताओं को बताएं?

आभास -एक अदभुत दौर था। मैं क्या हममें से कोई भी भुला नहीं पा रहा है दर्शकों का प्यार करतें। निर्णायकों की महत्वपूर्ण टिप्पणियां, जो हमारे कैरियर के लिए सहयोगी ही साबित हुईं हैं। सुजॉय जी, 2007 में संग-ए-मरमर के शहर जबलपुर से मायानगरी गया आभास मुम्बई का ही हो गया है। बमुश्किल चार दिन का वक्त मिला है "जबलपुर" आकर दादी का दुलार पाने के लिये। सच मुझे वाइल्ड कार्ड एंट्री और निर्णायकों की पसंद बनने से लाभ ही हुआ है। काम मिला है दो फ़िल्में, बावरे-फ़कीरा के बाद दो और एलबम देश-विदेश में स्टेज़ शोज, कुल मिला कर कम समय में बाबा ने बहुत कुछ दिया सच साई दो दो हाथों से देने वाला दाता है।

सजीव - क्या आपके बाकी प्रतिभागी साथी अभी भी संपर्क में हैं?, इश्मित की मौत का यकीनन आप सब को सदमा होगा ...

आभास -सजीव जी, सभी नेट, फ़ोन के ज़रिये संपर्क में तो हैं..... किन्तु सभी भाग्यशाली हैं यानी सभी व्यस्त हैं अत: मुलाकातें कम ही हो पातीं हैं। इश्मीत की याद आते ही वो दिन इतने याद आतें हैं कि अपने आप को रोकना मुश्किल हो जाता है। कोई न कोई बात आंखों को भिगो ही देती है। 29 जुलाई को इश्मीत जी की पहली पुण्यतिथि पर हम सभी लुधियाना गए थे। मोम से बनाए इश्मीत जी के स्टैच्यू देख कर लगा बस अब इश्मीत उठेंगें और छेड देंगे तान। ईश्वर इश्मीत को एक बार और हमारे बीच भेजे।

सुजॉय - गिरीश जी जैसा की आपने बताया कि आपके एल्बम का एक सामाजिक पक्ष भी था, क्या आगे भी आभास के साथ मिलकर आपकी ऐसी कोई योजना है जिससे संगीत माध्यम से समाज के कल्याण में योगदान हो सके।

गिरीश - जी हां, सच है बाबा के आशीर्वाद से मध्य-प्रदेश राज्य सरकार में बाल विकास परियोजना अधिकारी हूँ। रोज़गार मेरी समस्या नहीं है। सव्यसाची ने कहा था "तुम्हारी कविता समाज का कल्याण करे" सो इस एलबम से प्राप्त आय जबलपुर में आयी लाइफ़ लाइन एकस्प्रेस की व्यवस्था हेतु जिला प्रशासन को दी गई है। आगे भी जो लाभ होगा उससे पोलियो-ग्रस्त बच्चों की मदद जारी रहेगी जिसका ज़िम्मा सव्यसाची कला ग्रुप को सौंपा है। आगे भी मेरा प्लान नेत्रहीन-भिक्षुक के तम्बूरे से बिखरी संगीत रचनाओं को आपके समक्ष लाना यह प्रोजेक्ट भी अब मेरे पास है शीघ्र ही सबके हाथों होगा जिसकी आय नेत्रहीन व्यक्तियों की मदद हेतु होगी।

सजीव - आभास आपकी आवाज़ में एक अलग सी ही कशिश है, हम तो यही दुआ करेंगें कि जल्दी आप हिंदी सिनेमा के जाने माने पार्श्व गायकों की कतार में शामिल हो जाएँ, आपको और गिरीश जी को हमारी शुभकामनाएं।

आभास - उन दिनों जब मैं वी ओ आई का प्रतिभागी था मेरे जितेन्द्र चाचा और गिरीश चाचा ने हिन्द-युग्म की साईट खोल कर बताया था कि आपने मुझे कितना संबल दिया। सच, हिंद-युग्म ने एक ये और काम किया कि नेट पर मेरे गाए एलबम को ज़गह दी, आभार के शब्द कम पड़ रहे हैं। बस कृतज्ञ हूँ कह पा रहा हूँ।

गिरीश - हिन्द-युग्म ने "बावरे-फ़कीरा" के नेट संस्करण की लांचिंग का जो कार्य किया है उसका हार्दिक आभारी हूँ।
गीत सुनने यहां क्लिक कीजिए "बावरे-फ़क़ीरा"

19.11.10

बी एस पाबला जी को मातृ-शोक वरिष्ट ब्लागर श्री महावीर शर्मा नही रहे

                                        
 मित्रो संघर्षों एवम  बेहद कठिनाईओं भरा रहा यह वर्ष   बी एस पाबला जी के लिये. आज दिनां क  18 नवम्बर 2010 को  उनकी सत्तर वर्षीया मातुश्री का दु:खद निधन ब्रेन-हेमरेज से हो गया. मातुश्री को अंतिम बिदाई  रामनगर मुक्ति धाम भिलाई में  19 नवम्बर 2010 को प्रात: 11:00 बजे दी जावेगी.
                                   ब्लाग जगत की ओर से मातुश्री के आकस्मिक निधन पर गहन शोक संवेदनाएं . वाहे गुरु से पूज्य पिता श्री पाबला जी एवम बी०एस पाबला परिवार को गहन दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना  है 

_____________________________________________
       वरिष्ट ब्लागर श्री महावीर शर्मा नही रहे 
20 अप्रेल 1933 को जन्मे श्रीयुत महावीर शरण जी अब इस दुनिया में नहीं है उनके प्रति हमारी  विनत भाव पूर्ण श्रद्धांजलि 

उनका परिचय उनके ब्लाग पर  उनके द्वारा मंथन पर  "आत्म परिचय " के रूप में पोस्ट किया था

महावीर शर्मा
जन्मः १९३३ , दिल्ली, भारत
निवास-स्थानः लन्दन
शिक्षाः एम.ए. पंजाब विश्वविद्यालय, भारत
लन्दन विश्वविद्यालय तथा ब्राइटन विश्वविद्यालय में गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स । उर्दू का भी अध्ययन।
कार्य-क्षेत्रः १९६२ – १९६४ तक स्व: श्री उच्छ्रंगराय नवल शंकर ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में भारतीय घुमन्तूजन (Nomadic Tribes) सेवक संघ के अन्तर्गत राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र के रूप में कार्य किया । १९६५ में इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान । १९८२ तक भारत, इंग्लैण्ड तथा नाइजीरिया में अध्यापन । अनेक एशियन संस्थाओं से संपर्क रहा । तीन वर्षों तक एशियन वेलफेयर एसोशियेशन के जनरल सेक्रेटरी के पद पर सेवा करता रहा । १९९२ में स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के पश्चात लन्दन में ही मेरा स्थाई निवास स्थान है।
१९६० से १९६४ की अवधि में महावीर यात्रिक के नाम से कुछ हिन्दी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित होते रहे । १९६१ तक रंग-मंच से भी जुड़ा रहा ।
दिल्ली से प्रकाशित हिंदी पत्रिकाओं “कादम्बिनी”,”सरिता”, “गृहशोभा”, “पुरवाई”(यू. के.), “हिन्दी चेतना” (अमेरिका),  “पुष्पक”, तथा “इन्द्र दर्शन”(इंदौर),  “कलायन”, “गर्भनाल”, “काव्यालय”, “निरंतर”,”अभिव्यक्ति”, “अनुभूति”, “साहित्यकुञ्ज”, “महावीर”, “मंथन”, “अनुभूति कलश”,”अनुगूँज”, “नई सुबह”, “ई-बज़्म” आदि अनेक जालघरों में हिन्दी और उर्दू भाषा में कविताएं ,कहानियां और लेख प्रकाशित होते रहते हैं। इंग्लैण्ड में आने के पश्चात साहित्य से जुड़ी हुई कड़ी टूट गई थी, अब उस कड़ी को जोड़ने का प्रयास कर रहा हूं।
मेरे ब्लॉगः

_____________________________________________

18.11.10

आचार्य संजीव वर्मा सलिल

http://mahavir.files.wordpress.com/2009/07/sanjivverma1.jpg?w=134&h=165    पेशे से अभियंता आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"  के जीवन का लक्ष्य सतत क्रियेटिविटी थी तो है. गीत,नवगीत,गद्य,पर सतत रचनाएं देते सलिल जी का मुख्य ब्लाग "दिव्य-नर्मदा" है. वास्तु नन्दनी,विज्ञान-विपाशा,मन रंजना,राम नाम सुखदाई , काव्यकालिंदी सहित ढेरों ब्लॉग पर सतत लिखने वाले आचार्य जी को सतत लिखना सोहता है. अन्य वेब साइट्स एवं पोर्टल्स पर भी अक्सर उनको देख सकते हैं आप हम .
उनका एक बाल गीत आओ हिल-मिल खेलें हम लंगड़ी प्रस्तुत है.अर्चना जी के स्वरों में

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...