18.7.10

मन निर्जन प्रदेश

बिना तुम्हारे
मन एक निर्जन
प्रदेश
जहां दूर दूर तक कोई नहीं
बस हमसाया
तुम्हारी यादें और
आवाज़ बस
चलो इसी सहारे
चलता रहूंगा तब तक जब तक कि तुम से
न होगा मिलन
________________________________

12.7.10

एक गीत..............बहुत पुराना ...............एकल से युगल ..........एक प्रयोग ... .....

आज ज्यादा कुछ नहीं बस एक गीत ----------------बोल बहुत पसन्द हैं मुझे...................पहले मैने गाया इंदौर मे...........



और फ़िर  रचना ने युगल बनाया नासिक से .(125 बार साथ मे ..प्रयास करके )...............



प्रयोग सफ़ल रहा या नही ये तो आप ही बता पायेंगे--------------------------(ध्यान रहे----- हमने गाना सीखा नही है और कोई तकनिकी ज्ञान भी नहीं है हमें,पर प्रयोग करने में पीछे नहीं हटते)

7.7.10

बाक़ी रह जाती है ।

दिन में सरोवर के तट पर
सांझ ढ्ले पीपल "
सूर्य की सुनहरी धूप में
या रात के भयावह रूप में
गुन गुनाहट पंछी की
मुस्कराहट पंथी की बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है ।
हर दिन नया दिन है
हर रात नई रात
मेरे मीट इनमे
दिन की धूमिल स्मृति
रात की अविरल गति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है
सपने सतरंगी
समर्पण बहुरंगी
जीवन के हर एक क्षण
दर्पण के लघुलम कण
टूट बिखर जाएँ भी
हर कण की "क्षण-स्मृति"
हर क्षण की कण स्मृति
बाकी रह जाती है बाकी रह जाती है


2.7.10

याद-------------पुरानी यादों की गठरी से ............................

आज जो गीत आप सुनने जा रहे हैं ,उसके गीतकार हैं--------- ये................ इस गीत की जानकारी मुझे इस ब्लॉग से हुई ..............आभार -----------इनका

आभार अपने उस मित्र का जो इस गीतकार के बारे मे लिखते हैं--"------
"धन्य है राकेश खंडेलवाल , जो बिना किसी सम्मान की इच्छा लिए माँ शारदा की आराधना में लगे हैं .."


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