3.11.09

काव्य पहेली देखें सुधि पाठकों की पसंद कौन हैं.?

रेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं

"......................................."

के बाद चतुर्थ पंक्ति के लिये मुझे न तो भाव मिल पा रहे थे न ही शब्द-संयोजना संभव हो पा रही थी. किंतु मेरी बात को पूरी करने वाले मित्र को यह चार पंक्तियां सादर भेंट कर दी जावेंगी इस से मेरा हक समाप्त हो जाएगा आपको भी यदि कोई पंक्ति सूझ रही हो तो देर किस बात यदि आप प्रविष्ठि न देना चाहें तो आप अपनी पसंद के कवि का नाम ज़रूर दर्ज़ कीजिए 
"समस्या-पूर्ती" हेतु मिसफिट पर आयोजित प्रतियोगिता काव्य पहेली के लिए प्राप्त प्रविष्ठियों पर आपकी पसंद क्रमानुसार दर्ज़ कीजिये तब तक आता है जूरी का निर्णय
                                                          प्रतिभा जी की पंक्ति जोडने  से पद को  देखिये
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
कि कुछ पग बस जीत दूर है..
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समीर भाई की पंक्ति जुडते ही पद का स्वरुप ये हुआ है
 हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
हरेक लश्कर है रोया रोया.
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  अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की पंक्ति जुडते ही
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
''हो जायेगा पत्थर इन्सां गोया |''
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राजीव तनेजा जी जो कवि हो गये है इस बहाने

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
अपना भविष्य आप बनाएँ
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पहेली सम्राठ ताउ राम पुरिया उवाच

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
परेशानी का बीज खुद ही बोया बोया.
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एम. वर्मा जी की पंक्तियां जोडते ही पद हुआ यूं

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
काटोगे वही जो बीज बोया
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बवाल
  हरेक लश्कर है खोया खोया
    हरेक लश्कर है सोया सोया
    चलो जगाएं इन्हैं उठाएं.....
    है गर्म पानी लहू समोया   
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1.11.09

काव्य पहेली

सुधि सहयोगियो/सहयोगिनो
सादर अभिवादन इस पद की चौथी पंक्ति पूरी कीजिए सबसे उपयुक्त पंक्ति जुडते ही पद घोषित विजेता का हो जाएगा . झट सोचिए पट से टाईप कर दीजिए
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
................................

29.10.09

अफसर और साहित्यिक आयोजन :भाग एक

::एक अफसर का साहित्यिक आयोजन में आना ::
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पिछले कई दिनों से मेरी समझ में आ रहा है और मैं देख भी रहा हूँ एक अफसर नुमा साहित्यकार श्री रमेश जी को तो जहां भी बुलाया जाता पद के साथ बुलाया जाता है ..... अगर उनको रमेश कुमार को केवल साहित्यकार के रूप में बुलाया जाता है तो वे अपना पद साथ में ज़रूर ले जाते हैं जो सांकेतिक होता है। यानी साथ में एक चपरासी, साहब को सम्हालता हुआ एक बच्चे को रही उनकी मैडम को सम्हालने की बात साहब उन्हें तो पूरी सभा सम्हाले रहती है। एक तो आगे वाली सीट मिलती फ़िर व्यवस्था पांडे की हिदायत पर एक ऐसी महिला बतौर परिचर मिलती जिसे आयोजन स्थली का पूरा भौगौलिक ज्ञान हो ताकि कार्यक्रम के दौरान किसी भी प्रकार की शंका का निवारण सहजता से कराया जा सके। और कुछ लोग जो मैडम की कुरसी के उस सटीक एंगल वाली कुर्सी पर विराजमान होते हैं जहाँ से वे तो नख से शिख तक श्रीमती सुमिता रमेश कुमार की देख भाल करते हैं । उधर कार्यक्रम को पूरे यौवन पे आता देख रमेश जी पूरी तल्लीनता से कार्यक्रम में शामिल रहतें हैं साहित्यिक कार्यक्रम उनके लिए तब तक आकर्षक होता है जब तक शहर के लीडिंग अखबार और केबल टी वी वाले भाई लोग कवरेज़ न कर लें । कवरेज़ निपटते ही रमेश कुमार जी के दिव्य चक्षु ओपन हो जातें हैं और वे अपनी सरकारी मज़बूरी का हवाला देते हुए जनता से विदा लेते हैं । रमेश कुमार जैसे लोगों को इस समाज में साहित्य समागम के प्रमुख बना कर व्यवस्था पांडे जन अपना रिश्ता कायम कर लेतें हैं साहित्य की इस सच्ची सेवा से मित्रों मन अभीभूत है .................शायद आप भी ..........!!
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25.10.09

प्रयाग राज़ की मीट : आप अपनी कुंठा में हमें शामिल मत कीजिए

ब्‍लागरों की ब्‍ला-ब्‍ला सच बला बला के रूप में मुझे तो दिखाई दे रही है मुझे तो अंदेशा है कि इस पोस्ट को लिखा नहीं लिखाया गया है सो मित्रों आज पांडे जी के ज़रिये को साफ़ साफ़ बता दूँ की मुझे जबलपुर को लेकर किए गए इस कथन से आपत्ति है जो उन्हौनें लिखा हिन्‍दूवादी ब्‍लागरों को दूर रखकर आयोजक सेमिनार को साम्‍प्रदायिका के तीखे सवालों पर जूझने से तो बचा ले गये लेकिन विवाद फिर भी उनसे चिपक ही गये। सेमिनार से हिन्‍दूवादी या, और भी साफ शब्‍दों में कहें तो धार्मिक कटटरता की हद तक पहुंच जाने वाले तमाम ब्‍लागर नदारद रहे। यहां न तो जबलपुर बिग्रेड मौजूद थी और न साइबर दुनिया में भी हिन्‍दूत्‍तव की टकसाली दुनिया चलाने में यकीन रखने वाले दिखायी पडे। इस सवाल पर जब कुछ को टटोला गया तो कुछ ब्‍लागरों ने अपने छाले फोडे और बताया कि दूसरे ब्‍लागरों को तो रेल टिकट से लेकर खाने-पीने और टिकाने तक का इंतजाम किया गया लेकिन उन्‍हें आपैचारिक तौर से भी नहीं न्‍यौता गया। अब वे आवछिंत तत्व की तरह इसमें शामिल होना नहीं चाहते है। उन्‍होंने इस आयोजन को राष्‍टीय आयोजन मानने से भी इंकार कर दिया। अब उनकी इस शिकायत का जवाब तो भाई सिद्वार्थ शंकर ही अच्‍छी तरह से दे सकते हैं।

जहां तक वांछित अवांछित होने का निर्णय है सो सभी जानतें हैंकौन इस देश में "सत्यनाराण की पोथी बांच के "देर रात जाम चटकाते सर्वहारा के बारे में चिंतितहोता है [चिंतित होने का अभिनय करता है ] जबलपुर ने कामरेट "तिरलोक सिंह जी "को पल पल मरते देखा है. रहा हम पर तोहमतों का सवाल सो आप गोया परसाईजी से लेकर ज्ञानरंजन जी तक की सिंचित साहित्यिक पौध को अपमानित कर रहें हैं . यानी उन दौनों को भी........?

अब बताएं आज सुबह सुबह वज़न मशीन पर हम खड़े हुए तो हमारा वज़न उतना ही निकला जितना चार दिन पहले था किंतु जबलपुर ब्रिगेड और साम्प्रदायिकता को युग्मित कर आपका वज़न ज़रूर कम हुआ है.....?
हजूर इधर अनूप जी से रात को ही बात हुई थी मेरी व्यस्तता और नेट की खराबी के कारण प्रयाग के बारे में मुझे ज़्यादा कुछ जानकारी नहीं थी सो मित्रों उनने मीट के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी पर पंडित जी ने यह नहीं बताया की हमको क्यों नहीं न्यौता गया हिमांशु जी निकले तेज़ चैनल अन्दर की ख़बर ले आए। अरे भैया हिन्दुस्तान में ब्लागिंग के विकास पर कोई रपट देते तो मालिक हम सच आपको नरमदा के पवित्र जल से अभिषिक्त कर देते पर आपने हमें कुतर्कों विरोध करने परही साम्प्रदायिक करार दिया सो जान लीजिए यहां "धुँआधार" भी है ....आगे.....बला बला......ब्ला ...ब्ला ......।
कृपया माफ़ करें जो सच है बोल दिया



19.10.09

क्षणिकाएं

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एक  
##############
एक कोयला जो
उपयोगी तो है किन्तु
शीतलता में हाथ काले कर ही देता है
जलते ही आग से हाथ जलाता है ...?
मित्र
अगर
उसे सलीके से उपयोग में लाओ तो
कल तुम कह न सकोगे
"एक कोयला .........."
##############
दो
##############
तुम जो देश को
कानून को मुट्ठी में
कस कर घूम रहे हो
कभी सोचते होगे की सर्व शक्ति मान हो ?
मित्र सच कहूं
पराजय के लिए एक आह ही काफी होगी

16.10.09

शापित-यक्ष

       दीवाली के पहले गरीबी से परेशान  हमारे गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे ने विचार किया इस बार लक्ष्मी माता को किसी न किसी तरह राजी कर लेंगें . सो बस सारे के सारे लोग माँ को मनाने हठ जोगियों की तरह  रामपुर की भटरिया पे हो लिए जहां अक्सर वे जुआ-पत्ती खेलते रहते थे पास के कस्बे की चौकी पुलिस वाले आकर उनको पकड़ के दिवाली का नेग करते ये अलग बात है की इनके अलावा भी कई लोग संगठित रूप से जुआ-पत्ती की फड लगाते हैं..... अब आगे इस बात को जारी रखने से कोई लाभ नहीं आपको तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे की  कहानी सुनाना ज़्यादा ज़रूरी है.
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                      तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम - नौखे की बात की वज़नदारी को मान कर  "रामपुर की भटरिया" के  बीचौं बीच जहां प्रकृति ने ऐसी कटोरी नुमा आकृति बनाई है बाहरी अनजान  समझ नहीं पाता कि "वहां छुपा जा सकता है. जी हां उसी स्थान पर ये लोग पूजा-पाठ की गरज से अपेक्षित एकांतवासे में चले गए ..हवन सामग्री उठाई तो लंगड़ के हाथौं  से गलती से घी ज़मींन में गिर गया . बमुश्किल जुटाए संसाधन का बेकार गिरना सभी के क्रोध का कारण बन गयाकल्लू ने तो लंगड़ को एक हाथ रसीद भी कर दिया ज़मीं के नीचे घी रिसता हुआ उस जगह पहुंचा जहां एक शापित-यक्ष बंधा हुआ था .उसे शाप मिला था की  सबसे गरीब व्यक्ति के हाथ  से गिरे  घी की बूंदें तुम पर गिरेंगीं तब तुम मुक्त होगे सो मित्रों यक्ष मुक्त हुआ मुक्ति दाता लंगड़ का आभार मानने उन तक पहुंचा . यक्ष को देखते ही सारे घबरा गए कल्लू की तो घिग्घी बंध गई. किन्तु जब यक्ष की दिव्य वाणी गूंजी "मित्रो,डरो मत, तो सब की जान में जान आई.
यक्ष:तुम सभी मुझे शाप मुक्त किया बोलो क्या चाहते हो...?
मुन्ना: हमें लक्ष्मी की कृपा चाहिए उसी की साधना में थे हम .
यक्ष: ठीक है तुम सभी चलो मेरे साथ 
  सभी मित्र यक्ष के अनुगामी हुए पीछे पीछे चल दिए पीपल के नीचे बैठ कर यक्ष ने कहा :-"मित्रो,मैं पृथ्वी भ्रमण पर निकला था तब मैनें अपनी शक्ति से तुम्हारे गांव के ज़मींदार सेठ गरीबदास की माता से गंधर्व विवाह किया था उसी से मेरा पुत्र जन्मा है जो आगे चल के सेठ गरीबदास के नाम से जाना जाता है."
                    यक्ष की कथा को बडे ही ध्यान से सुन रहे चारों मित्रों के मुंह से निकला :-"तो आप ही हमारे बडे ज़मींदार हैं ?"
 "हां, मैं ही हूं, घर-गिरस्ति में फ़ंस कर मुझे वापस जाने का होश ही न रहा सो मुझे मेरे स्वामी ने पन्द्र्ह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस  रात जब भारत आज़ाद हुआ था शाप देकर "रामपुर की भटरिया में कैद कर दिया था और कहा था जब गांव का सबसे गरीब आदमी घी तेल बहाएगा और उसके छींटै तुम पर गिरेंगे तब तुम को मुक्ति-मिलेगी
 आज़ तुम सबने मुझे मुक्त किया चलो.... बताओ क्या चाहते हो ?
 सभी मित्रों ने काना-फ़ूसी कर "रोटी-कपडा-मकान" मांग लिए मुक्ति दाताओं के लिये यह करना यक्ष के लिए सहज था. सो  उसने माया का प्रयोग कर  गाँव के ज़मींदार के घर की लाकर  तिजोरी बुला   कर ही उन गरीबों में बाँट दी  . जाओ सुनार को ये बेच कर रूपए बना लो बराबरी से हिस्सा बांटा कर लेना और हां तुम चारों के लिए मैं हर एक के जीवन में एक बार मदद के लिए आ सकता हूं.
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                        उधर गांव में कुहराम मचा था. सेठ गरीब दास गरीब हो गया. पुलिस वाले एक एक से पूछताछ कर रहे थे. इनकी बारी आये सभी मित्र बोले "हम तो मजूरी से लौटे हैं." किन्तु कोई नहीं माने झुल्ला-तपासी में मिले धन को  देख कर सबको जेल भेजने की तैयारी की जाने . कि लंगड़ ने झट यक्ष को याद कर लिया . यक्ष एक कार में गुबार उडाता पहुंचा और पुलिस से रौबीली आवाज़ में बोला "इनको ये रूपए मैंने इनाम के बतौर दिए हैं."ये चोर नहीं हैं.
रहा सवाल सेठ गरीब दास का सो ये तो वास्तव में गरीब हैं
हवालदार ने कहा :-सिद्ध करोगे
यक्ष: अभी लो  गाँव के सचिव से  गरीबी रेखा की सूची मंगाई गई जिसमें सब से उपर सूची अनुसार सबसे ऊपर सेठ गरीब दास का नाम था
  सूची में जो नाम नहीं थे वो लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे के...?

                                                    गिरीश बिल्लोरे"मुकुल"
                                                   जबलपुर मध्य-प्रदेश
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Wow.....New

Is everything predestined ? Dr. Salil Samadhia

आध्यात्मिक जगत के बड़े से बड़े प्रश्नों में एक है  - क्या सब कुछ पूर्व निर्धारित है ?  (Is everything predestined ? ) यदि हां , तॊ...