25.9.09

बिंदु-बिंदु विचार

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कल एक कवि गोष्टी करनी है बताओ किस किस को बुला लूं..?
 मेरे सवाल पर भाई सलिल समाधिया बोले-"क्या बताऊँ आप से बेहतर किसे जानकारी है शहर के कवियों के बारे में मैं तो किसी को जानता नहीं ?
सलिल भाई,मैं सभी को जानता हूँ इसी  कारण पशोपेश में हूँ ....! 
मेरा हताशा भरा उत्तर सुनकर सलिल भाई का ठहाका गूंजने लगा .
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योग निद्रा 
 वो सरकारी आदमी योग निद्रा में लीन अपनी  फाइल पर निपूते की संपदा पर बैठे सांप सा बैठा हुआ था,कल्लू की मौत के बाद अनुकम्पा नियुक्ति के केस में कल्लू की औरत से कुछ हासिल करने की गरज से उसकी फाइल एक इंच भी नहीं खिसका रहा था. एक दिन अचानक बाबू बालमुकुन्द नामदेव का निधन हार्ट अटैक से हो गया और एक नए बाबू ने कुर्सी सम्हाली . दौनों विधवाए की अनुकम्पा नियुक्ति की फाइल को लेकर उसी टेबल के सामने बैठीं थी. और नए गुप्ता बाबू योग निद्रा में थे . 

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23.9.09

बबली जी की टिप्पणी

   "जय माता दी " 
आज़ आपका ब्लाग देखा कई दिनों से बिज़ी था सो नए डवलप्मेंट बीस-पचीस बार घुटना खुजाने के बाद पकड पाया. फ़र्ज़ी नाम से अभद्र टिप्पणी करने वालों की "आत्मा" के मरने की खबर आपको मिल चुकी होगी. वैसे ब्लागिंग में आपसी पीठ खुजाउ प्रवृत्ति को सभी अच्छी तरह समझतें हैं. मुझे तो यकीन नहीं हो रहा आप सरीखे ब्लागर से किसी की कोई "रार" हो सकती है. किंतु आपको एक बात साफ़ तौर पर बता दूं कि "कुछ गुरु चेला" हिंदी-ब्लागिंग की जिस प्रकार दुर्गति कर रहे हैं वैसी कल्पना किसी ने नहीं की थी. मुझे पुख्ता सूचना है कि हिन्दी ब्लागिंग में कुछ  "गिरोह" सक्रीय हैं जो ये सब कराते रहतें है. इससे उनको आनंद की अनुभूति ठीक वैसे ही होती है जैसे की -"किसी गधे को बैसाख माह में दूर तक घास चरने से होती है  "

आप के मुद्दे को लेकर  कल दिनांक 24 /09/09 को  रात्रि आठ बजे  सिटी-काफ़ी हाउस में एक शोक (खोज) सभा रखी गई है जिसका सारा खर्च मैं वहन करने जा रहा हूं आप सभी ब्लागराने-जबलपुर नाव पर बैठकर सादर आमंत्रित हैं.   बबली जी     की इन लाइनों को देखकर लगता नहीं की वे ही "हुन्गामा"  हैं

न तुमसे कोई शिकवा है और न कोई गम,
सिर्फ़ मेरा चेहरा देखा पर दिल नहीं देखा सनम,
याद हर पल आयेगी वो साथ गुज़रे मीठे पल,
जब जब सोचूंगी तुम्हें, आंखों से आंसू आयेंगे निकल !



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 प्रेम-शर्मा जी के आलेख पर टिप्पणी चस्पा कर के किसी विधर्मी ब्लागर ने उनके पुरुषत्व को चुनौती दे डाली. शर्मा जी न केवल सरनेम से शर्मा हैं वे वाकई में अनावश्यक विवादों का जोखिम नहीं उठाते यानि कुल मिला कर सादगी भरी है उनमें....उनके साथ जो हुआ दुखद है . और शर्मा जी को जब पता चला कि टिप्पणी कार का आई पी पता "बबली जी" का है और विवाद में उनका नाम आ रहा है तो "बबली जी " जो एक प्रतिष्ठित ब्लागर हैं को अपना पक्ष रखना ज़रूरी है .... ?
हो सकता है कि वे अभी बिज़ी हों किंतु ऐसा करना {अपना पक्ष रखना} ज़रूरी है.
रहा ब्लागजगत में इस प्रकार की घटनाओं का मामला सो बता दूं कि "कुछ लोग मैने भी चिन्हित किए हैं"-जो इस तरह के विवादों के जनक हैं ........... वैसे मुझे भी यकीन नहीं हो रहा कि बबली जी ये कर सकतीं हैं..... ? किंतु शर्मा जी भी उथले नहीं हैं उनकी सोच साफ़ है.


21.9.09

संस्कार धानी के शताब्दी सूर्य :"छैल कवि "

एक हादसे ने बिस्तर पर लगातार लेते रहने को मज़बूर कर दिया था मुझे 1999 की दीपावली बाज़ार से खरीददारी की गरज से अपने भतीजे भतीजी अंकुर आस्था को लेकर निकला था सारी खरीददारी के बाद जाने कैसे स्लिप हो गया फीमर बोन फ्रेक्चर का कष्ट आज तक साथ है । हाल चाल लेने तो कई लोग आए उनमें गीतकार अभय तिवारी ने सुझाया :-"गिरीश भाई , पड़े पड़े और कमजोर हो जाओगे "
"तो क्या करुँ...?"
"मेरी मदद पलंग पर लेटे-लेटे........कल से मैं स्वतंत्र मत के साहित्यिक पन्ने के लिए सामग्री संग्रह कर के ला दूगां आप करना सम्पादन । उस समय दैनिक अखबार स्वतंत्र मत के साहित्यिक पन्ने के लिए प्राप्त सामग्री में से मेरे पास "श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी द्वारा लिखित "कुछ पांडू लिपियाँ स्केन कर आप सुधि जनों के लिए सादर





18.9.09

" परोसते परोसते भूल गए कि परसाई के लिए कुछ और भी ज़रूरी है !"

प्रगतिशील लेखक संघ जबलपुर इकाई एवम विवेचना ने 22/08/09 को परसाई जी को याद न किया होता तो तय था कि अपने राम भाई अनिल पांडे के घर की तरफ़ मुंह कर परसाई जी को समझने की कोशिश करते . जिनके परसाई प्रेम के कारण तिरलोक सिंह से खरीदा "परसाई-समग्र" आज अपनी लायब्रेरी से गुमशुदा है .हां तो परसाई जी को याद करने जमा हुए थे "प्रगतिशील-गतिशील" सभी विष्णु नागर को भी तो सुनना था और देखे जाने थे राजेश दुबे यानि अपने "डूबे जी" द्वारा बनाए परसाई के व्यंग्य-वाक्यों पर बनाए "कार्टून".कार्यक्रम की शुरुआत हुई भाई बसंत काशीकर के इस वाक्य से कि नई पीडी परसाई को कम जानती है अत: परसाई की रचनाऒं पाठ शहर में मासिक आवृत्ति में सामूहिक रूप हो. इन भाई साहब के ठीक पीछे लगा था एक कार्टून जिसमे एक पाठक तल्लीन था कि उसे अपने पीछे बैठे भगवान का भी ध्यान न था सो हे काशीकर जी आज़ के आम पाठक के लिए कैटरीना कैफ़ वगैरा से ज़रूरी क्या हो सकता है. आप नाहक प्रयोग मत करवाऎं.फ़िर आप जानते हो कि शहर जबलपुर की प्रेसें कित्ते सारे अखबार उगल रोजिन्ना उगल रहीं हैं,दोपहर शाम और पाक्षिक साप्ताहिक को तो हमने इसमें जोडा ही नहीं ! फ़िर टीवी और धर्मपत्नि (जिनके पास पत्नि नहीं हैं उनकी प्रेमिकाऎं जिनके पास वे भी नहीं हैं उनकी "......") के लिये वक्त निकालना कितना कठिन है. आप हो कि बस........?
मित्रो बसंत काशीकर ने परसाई रचनावलि से "संस्कारों और शास्त्रों की लडाई "का पाठ किया.रचना तो सशक्त थी ही वाचन भी श्रवणीय रहा है.फ़िर बुलाए गए अपने मुख्य अतिथि श्री विष्णु नागर जी जो साहित्यकारों खेमेंबाज़ी(जिसके लिए प्रगतिशील कदाचित सर्वाधिक दोषी माने गए हैं) को लेकर दु:खी नज़र आए उनने सूचित किया कि "बनारस के बाद दिल्ली हिन्दी-साहित्य के लिये बेहद महत्वपूर्ण स्थान है वहां भी स्थापित साहित्यकारों के लघु-समूह हैं जो अपने समूह से इतर किसी को स्वीकारते ही नहीं" आदरणीय नागर जी आपको "नैनो-तकनीकी" की जानकारी तो होगी ही. तभी "ममता जी ने अपने प्रदेश में इसका विरोध किया ताकि बंगाल के लोगों की "सोच" में इस तकनीकी का ’वायरस’ प्रविष्ट न हो. लेकिन इस तकनीकी को साहित्यकारों ने सबसे पहले अपनाया".......हमारी संस्कारधानी में तो यह व्यवस्था बकौल प्रशांत कौरव "शहर-कोतवाली,थाना,चौकी,बीट,का रूप ले चुकी है...नए-नए लडकों का साहित्यिक खेमेबाज़ी को इस नज़रिए से देखना परसाई जी की देन नहीं तो और क्या है..? खैर छोडिए भी आपके वक्तव्य में साहित्यकारों की आत्म-लिप्तता के तथ्य का ज़िक्र आया मेरा व्यक्तिगत मत है इसे "आत्म-मुग्धता" मानिए और जानिए..!! आप तो मालवा से वास्ता रखतें हैं वहां की बुजुर्ग महिलाएं कहतीं सुनी जातीं हैं "काणी अपणा मण म सुहाणी.." स्थिति कमोबेश यही तो है. आपने अपने वक्तव्य में कई बार सटीक मुद्दे उठाए जैसे लेखक को उच्चें नाम वाले पाठक की तलाश है जैसे नामवर सिंह जिनके नाम का बार बार उल्लेख करते हुए आपने कहा कि लेखक इस तरह के पाठक चाहतें हैं ! इस वास्तविकता से कोई भी असहमत नहीं. आपसे इस बिन्दू पर भी सहमति रखी जा सकती है "कि प्रकाशक अफ़सर प्रज़ाति के साहित्यकार को मुक्तिबोध का दर्ज़ा दे देता है " वैसे आपको सूचित कर दूं कि मैं भी छोटी नस्ल का अधिकारी हूं अधिकारी तो हूं आपकी सलाह मानते हुए किताब नहीं छपवाउंगा. शायद आप आई०ए०एस० अधिकारी जैसे अशोक बाजपेयी,श्रीलाल शुक्ल,आदि को इंगित कर कह रहे थे सो सहमत हैं सभी. वैसे इन दौनों ने हमारी समझ से कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे साहित्यकार बिरादरी के नाम पे बट्टा लगे . अशोक जी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है किन्तु शुक्ल जी की किताब तो हम अधिकारीयों के लिए महत्वपूर्ण है. अपने भाषण में आपने इस बात का भी ज़िक्र किया कि आपने परसाई जी से कहा था (जिसका आपको मलाल भी है) "कई दिनों से आप बाहर नहीं लेखन पर इसका प्रभाव पडा है ".....अपने कथन में भूल स्वीकारोक्ति का सम्मान करता हूं नागर जी ......
इस सचाई से कोई इंकार ही नहीं कर सकता कि नित नए गैर बराबरी के कारण उभर रहे हैं सर्वहारा को इस्तेमाल पूरी ताकत और चालाकी से किया जा रहा है . किसी साहित्यकार की कलम ने " सर्वहारा-शोषण की नई तकनीकि का भाण्डा नहीं फ़ोडा .
सुधि पाठको विष्णु नागर के बाद बारी आई मेरे मुहल्ले के निवासी जो डाक्टर मलय की बतौर अध्यक्ष उन्हौनें बताया :"परसाई ने स्वयं व्यंग्य को विधा में नहीं रखा वे (परसाई जी) अपने लेखन को इसे "स्प्रिट" मानते थे जबकी मेरा मत है कि उनके लेखन में सटायर-स्प्रिट है अत: व्यंग्य-विधा है" डाक्टर मलय का कहना है कि परसाई जी का मूल्यांकन नहीं किया गया.
कार्यक्रम में कार्टूनिष्ट राजेश दुबे यानि डूबे जी को संचालक भाई बांके बिहारी व्यौहार का सामने आमंत्रित न करना सबको चौंका रहा था कि हिमांशु राय की पहल पर डूबे जी बुलवाए गए उनसे कुछ कहने का अनुरोध हुआ हाथ जोडकर कहा "मैने जो कहना था कार्टूनों के ज़रिए कह दिया"
विशेष-बिन्दू और लोग जो मौज़ूद थे वहां
पूरे कार्यक्रम का सारभूततत्व परसाई जी के मूल्यांकन न किए जाने का बिन्दू रहा.
इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर की प्रस्तुति विवेचना के कलाकारों नें की
वक्तव्यों में लेखन,पठन-पाठन,के संकट के साथ परसाई जी के समकालीन व्यक्तित्वों का उल्लेख किया गया
कार्यक्रम में रजनीश के अनुयायी "स्वामी राजकुमार भारती" उपस्थित थे.
परसाई को औरों के सामने अपने तरीके से परोसने वालों को मलाल है कि उनका मूल्यांकन अभी भी शेष है
परसाई जी इतने मिसफ़िट तो न थे कि आलोचक भाई उनका मूल्यांकन नहीं कर पाए... चिन्ता मत कीजिए महानता के मूल्यांकन के लिए समय सीमा का निर्धारण स्वयम विधाता ने करने की कोशिश नहीं की मामला समय को सौंप दीजिए.
हां एक बात और ये जो आपने सवाल उठाया है कि अब एका नहीं रहा तो आप तो तय कर चुकें हैं मुक्तिबोध के साथ सारे विषय चुक गए हैं जब विषय की यह गति है तो साहित्यिक संगठन की ज़रूरत क्या है ?

16.8.09

मांगो तो हजूर दिल और जाँ सब कुछ तुमको दे दूंगीं



वो दूर से देख मुस्कुराती शोख चंचल नयनो वाली सुकन्या मुझे भा गई ऊपर की जितनी भी तारिकाएँ हैं उनका हुस्न फीका पड़ गया उसके सामने।
मैंने पूछा - मुझे ,कुछ देर का वक्त मिलेगा
क्यों नहीं ! ज़रूर मिलेगा ।
उत्तर में थी मादक खनक ...एक-एक काफी का आफ़र उसमें भी सहज स्वीकृति मैंने फ़िर कहा -आज मेरी छुट्टी है जबलपुर के पास भेडाघाट है चलो घूम आते हैं उसमें भी सहमत लगा आज लाटरी लग गई वीरानी जीवन बगिया में प्रेमांकुर फूट पड़ा .... सोचा आज पहले दिन इतनी समझदार ओर मुझे सहज स्वीकारने वाली अनुगामिनि मिल गई अब जीवन का रास्ता सहज़ ही कट जाएगा।
बातों ही बातों में मैंने कहा: तुम मुझे कुछ देने का वादा कर सकोगी ?
वादा क्या दे दूंगीं जो कहोगे
दिल,
हां ज़रूर
मोहब्बत
ऑफ़ कोर्स
वफ़ा
क्यों नहीं ?
और कभी जब मुझे वक्त की ज़रूरत हो तो
ज़नाब ये सब कुछ अभी के अभी या फ़िर कभी ?
सोच के बताता हूँ कुछ दिन बाद कह दूंगा
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घर में माँ के ज़रिये पापा तक ख़बर की मुझे ".......'' से प्यार हो गया है । अब चाहता हूँ कि मैं शादी भी उसी से करुँ ! घर से इजाज़त मिलते ही मैंने फोन डायल किया....98........... लेटेस्ट रूमानी गीत न होकर "एक मीरा का भजन हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा....''सुन कर लगा आग उधर भी तेज़ है इश्क की जैसी इधर धधक रही है ।
बातों ही बातों में मैंने उससे वो सब दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त की मांग कीउसने कहा शाम को तुम्हारे घर रहीं हूँये सब साथ ले आउंगी
शाम को पापा,माँ,दीदी अपनी होने वाली बहू का इंतज़ार कर रहे थे। मेरे मन में भी चाकलेट के रूमानी विज्ञापन वाले प्यार का जायका ज़ोर मार रहा था। एक खूबसूरत नाज़नीन का घर में आना मेरे लिए दिल,मोहब्बत, वफ़ा और वक्त साथ लाना मेरी उपलब्धि थी ।
सभी सभी उससे बारी बारी बात कर रहे थे अन्त में मुझे मौका मिला . मैने पूछा "वो सब जो मैने कहा था "
"हां लाई हूं न"
सुनहरी पर्स खोल कर उसने मेरे हाथों रख दीं - दिल,मोहब्बत,वफ़ा और वक्त की सीडीयां और पूछने लगी : पुरानी फ़िल्मों के शौकीन लगतें हैं आप . ?
"हां"
अब मुझे फ़िल्म ज़हर और ज़ख्म की सी डी ज़रूर ला देना .
ज़रूर ला दूंगी.... पर एक हफ़्ते बाद कल मेरी एन्गेज़्मेंट है. एन्गेज़्मेंट के बाद हम दौनो हफ़्ते भर साथ रहेंगे एक दूसरे को समझ तो लें .

ब्लागर्स जो सेलिब्रिटीज़ हैं


Wow.....New

अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाल...