22.9.08

प्रीति का चित्रहार






अहमदाबाद,नहीं सूरत से प्रीति हैं
बेहद गंभीर चित्रकार
गहनों की डिजायनर समय निकाल के नेट पर आकर मित्रों से चर्चा में व्यस्त हो जातीं हैं
ब्लॉग पर कविताओं की तलाश करते करते उनने मुझे मित्र बना लिया
हार्दिक शुभ कामनाएँ
कवि,चित्रकार एवं एक आत्म विश्वाशी मौन साधिका
"प्रीति को "

19.9.08

रिएलटी शो के फंडे

मीडिया व्यूह:,की पोस्ट बेहद समयानुकूल पोस्ट है,भारत में बुद्धू बक्से की उलज़लूल से अब ज़ल्द निजात दिलाने अब सरकार को आगे आना ही होगा । मेरे दृष्टिकोण से हिन्दी के अहर्निश जारी रहने वाले चैनल्स को सरकारी लगाम लगानी बेहद ज़रूरी है, मनोरंजन के नाम पे देश में चलाए जा रहे नोट-कमाओ अभियान के कई पहलू जब आम दर्शक के सामने आएँगे तो सब के सामने इस व्यापार में संलग्न व्यक्तियों की घिग्घी बंधना तय शुदा है ।
जहाँ तक मुझे ज्ञात है अब टेलिविज़न के कई चैनल केवल व्यापारी से हो गए हैं , इनको न तो सामाजिक न आर्थिक और न ही किसी नैतिक मूल्यों की रक्षा से कोई लेना देना है । समय आ गया है अब की सरकार कठोरता से बिना किसी पूर्वाग्रह के एक आचार संहिता बनाए जो इन वाहियाद हरक़तों पे सख्त नज़र रखे। चैनल'स की गला काट स्पर्धा के चलते कलाकारों की कला घुटन का शिकार हुईं है कई एस० एम० एस० के ज़रिए वसूली न करा पाए वे नकार दिए गए कहीं-कहीं यहाँ तक हुआ की जिनको हम महान कलाकार समझतें हैं वे ठेठ गंवारूपन का एहसास दिला गए खुदा इन्हें नसीहत दें

आइए इधर भी, भैया

चिट्ठा चर्चा, में स्वर्गीय-श्री प्रह्लाद नारायण मित्तल से मुलाक़ात कीजिए,उड़न तश्तरी ब्लॉग-"आलसी काया पर कुतर्कों की रजाई" डाल कर गज़ब तीर चला दियामुझको नहीं पता कविता क्या हैं फ़िर भी लिखे जा रहे हैं उधर लोग बाग़ एक परम स्वादिष्ट कविता , परोसे जा रहें हैं साक़ी शराब दे दे .----कुछ लोग ये गा-गा कर दिन को नशीला बनाने आमादा हैं.बेट्टा, ब्लागिंग छोड़ो ,मौज से रहो, अब भैया का नारा देकर पंडित जी ने गज़ब ढा दिया आँख की किरकिरी-की ताज़ा पोस्ट की "ईश्वर धर्म और आस्था के सहारे मृत्यु का इंतज़ार ही क्या हमारे बुज़ुर्गों के लिए बच गया काम है ?" की इस पंक्ति ने आंख्ने भिगो दीं .शीतल राजपूत के चिट्ठे का स्वागत ज़रूरी है,कुछ दिनों से ब्लॉगन-ब्लागन वार देख के मन खट्टा तो हुआ था किंतु जब ये मारें लातई-लात कहावत देखी तो लगा शायद कोई रास्ता काढ़ लिया जाएगामाँ कविता प्रति इसे मेरा आभार मानिए .तैयार रहिये अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों की बरसात के लिए , बांचते ही अपन की बांछें खिल गई अपन भी टिप्पणी पाने की दावेदारी बनाम लालच से भरा ब्लागिया दिल लेकर आज की पोस्ट लिख रहें हैं

16.9.08

चलो इश्क की इक कहानी बुनें


हंसी आपकी आपका बालपन
देख के दुनिया पशीमान क्यो...?

रूप भी आपका,रंग भी आपका
फ़िर दिल हमारा पशीमान क्यों।

निगाहों की ताकत तुम्हारी ही है
इस पे मेरी ये आँखें निगाहबान क्यों..?
तुम यकीनन मेरी हो शाम-ए-ग़ज़ल
इस हकीकत पे इतने अनुमान क्यों ?
चलो इश्क की इक कहानी बुनें
जान के एक दूजे को अंजान क्यों ?

15.9.08

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी
गली गली को छान रहें हैं ,देखो विष के व्यापारी,
************************************************
मुखर-वक्तता,प्रखर ओज ले भरमाने कल आएँगे
मेरे तेरे सबके मन में , झूठी आस जगाएंगे
फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************
कैसे कह दूँ प्रिया मैं ,कब-तक लौटूंगा अब शाम ढले
बम से अटी हुई हैं सड़कें,फैला है विष गले-गले.
बस गहरा चिंतन प्रिय करना,खबरें हुईं हैं अंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************

लिप्सा मानस में सबके देखो अपने हिस्से पाने की
देखो उसने जिद्द पकड़ ली अपनी ही धुन गाने की,
पार्थ विकल है युद्ध अटल है छोड़ रूप अब श्रृंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,

14.9.08

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी











अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी
गली गली को छान रहें हैं ,देखो विष के व्यापारी,
************************************************
मुखर-वक्तता,प्रखर ओज ले भरमाने कल आएँगे
मेरे तेरे सबके मन में , झूठी आस जगाएंगे
फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
************************************************
कैसे कह दूँ प्रिया मैं ,कब-तक लौटूंगा अब शाम ढले
बम से अटी हुई हैं सड़कें,फैला है विष गले-गले.
बस गहरा चिंतन प्रिय करना,खबरें हुईं हैं अंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
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लिप्सा मानस में सबके देखो अपने हिस्से पाने की
देखो उसने जिद्द पकड़ ली अपनी ही धुन गाने की,
पार्थ विकल है युद्ध अटल है छोड़ रूप अब श्रृंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,

हिन्दी-दिवस



आप भी इसका इस्तेमाल करें

हिन्दी,मराठी,गुजराती,बंगाली,कन्नड़,तमिल,उर्दू,उड़िया,पंजाबी,
इन भाषाओं को लेकर कोई भी बच्चा कभी किसी अन्य
बच्चे से नहीं लड़ा,"
बच्चों से सीखने के इस दौर में
आप भी इन के बीच जाइए
सदभाव के सत्य से परिचय पाइए
################
देश में लिंग परीक्षण,दहेज़ सामाजिक असमानता जैसे कई विषय हैं जिन पर आज से ही आन्दोलन चालू करने ज़रूरी हैं, किंतु भारतवासियों राज़ की बात है हमारे लोग स्थान,भाषा,धर्म,रंग,के लिए आंदोलित हैं .... ईश्वर इनको सुबुद्धि दे जो हमारे देश में कई देश बना रहें हैं .....हमारे तुम्हारे का बेसुरा राग गा रहे हैं
################
माँ, यकीन करो,मुझे अपनी किसी भी मौसी की भाषा से कोई गुरेज़ नहीं है माँ वो भी तो माँ...सी ही है....!
है न......?
माँ,
यू पी का भैया,मराठी काका,पंजाबी पापाजी,सब आएं है तुम्हें देखने जब से तुम बीमार हो माँ इन से इनकी भाषा में ज़बाब दूँ कैसे ...?
माँ बोली-बेटे,संवेदना,की कोई बोली भाषा नहीं होती उनको मेरे पास भेज दो मैं बात कर लूँ ज़रा उनसे ?
फ़िर सारे लोग मेरी मरणासन्न माँ के पास आए किस भाषा में कुशल-क्षेम की कामना व्यक्त हुई मुझे समझ में नहीं आई....!
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सव्यसाची अब मेरे साथ नहीं हमारे साथ नहीं हैं राज़ की बात ये है की वे सब लोग मेरी माँ को आज भी याद करतें हैं !
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भारत के निर्माण में बिहार,यू.पी.मध्य-प्रदेश,पंजाब,महाराष्ट्र,गुजरात,यानी सभी राज्यों का योगदान है आप को ऐसा क्यों लग रहा है कि केवल आप ही.....!
गाड़ीवान रात भर के सफर पर बैलों से पूछता है:-भाई,नंदियो रात में तुमको बेहद थकान हो गयी लगता है..?
बैल इस बात का ज़बाव देते इसके पहले उसका चितकबरा संकर नस्ल का स्वामी-भक्त बोल पडा-"स्वामी ये तो सो गए थे मैं जागा था....गाड़ी तो.....मैं ही "
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