मीडिया व्यूह:,की पोस्ट बेहद समयानुकूल पोस्ट है,भारत में बुद्धू बक्से की उलज़लूल से अब ज़ल्द निजात दिलाने अब सरकार को आगे आना ही होगा । मेरे दृष्टिकोण से हिन्दी के अहर्निश जारी रहने वाले चैनल्स को सरकारी लगाम लगानी बेहद ज़रूरी है, मनोरंजन के नाम पे देश में चलाए जा रहे नोट-कमाओ अभियान के कई पहलू जब आम दर्शक के सामने आएँगे तो सब के सामने इस व्यापार में संलग्न व्यक्तियों की घिग्घी बंधना तय शुदा है ।
जहाँ तक मुझे ज्ञात है अब टेलिविज़न के कई चैनल केवल व्यापारी से हो गए हैं , इनको न तो सामाजिक न आर्थिक और न ही किसी नैतिक मूल्यों की रक्षा से कोई लेना देना है । समय आ गया है अब की सरकार कठोरता से बिना किसी पूर्वाग्रह के एक आचार संहिता बनाए जो इन वाहियाद हरक़तों पे सख्त नज़र रखे। चैनल'स की गला काट स्पर्धा के चलते कलाकारों की कला घुटन का शिकार हुईं है कई एस० एम० एस० के ज़रिए वसूली न करा पाए वे नकार दिए गए कहीं-कहीं यहाँ तक हुआ की जिनको हम महान कलाकार समझतें हैं वे ठेठ गंवारूपन का एहसास दिला गए खुदा इन्हें नसीहत दें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Wow.....New
धर्म और संप्रदाय
What is the difference The between Dharm & Religion ? English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...
-
सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
-
संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
-
मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...
1 टिप्पणी:
सही कह रहे है..मिडिया व्यूह भी पढ़ा.
एक टिप्पणी भेजें