अनुभूति का कचनार विशेषांक में आपका भ्रमण ज़रूरी सा हो गया है ।
आपकी टिप्पणियाँ सादर आमंत्रित हैं
सादर
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सादर
पहली कविता को छापने का जोखिम उठा कर काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन विषय-चयन किया है :-अवनीश गौतम जी ने । तारीफ देखे पहली कविता की प्रविष्ठियाँ चार भागों में छापनी पडी ...... वाह...!....वाह...!!
हिन्द-युग्म
जोखिम भरे काम करने वालों के लिए सराहना ज़रूरी है ......!!
प्रथम भाग में
ममता पंडित दिव्य प्रकाश दुबे सुमित भारद्वाज सीमा सचदेव अजीत पांडेय समीर गुप्ता प्रेमचंद सहजवाला पावस नीर रचना श्रीवास्तव लवली कुमारी हरिहर झा राहुल चौहान सतपाल ख्याल पीयूष तिवारी आलोक सिंह "साहिल" अर्चना शर्मा रंजना भाटिया सजीव सारथी विपुल कमलप्रीत सिंह
दूसरे भाग में
सविता दत्ता शोभा महेन्द्रू देवेन्द्र कुमार मिश्रा महक डॉ॰ शीला सिंह गोविंद शर्मा रश्मि सिंह अभिषेक पाटनी अवनीश तिवारी विजयशंकर चतुर्वेदी आदित्य प्रताप सिंह डा. आशुतोष शुक्ला अमित अरुण साहू रेनू जैन सुरिन्दर रत्ती मंजू भटनागर शिवानी सिंह श्रीकान्त मिश्र 'कान्त' अमिता 'नीर' कु० स्मिता पाण्डेय
तीसरे भाग में
देवेंद्र पांडेय डा. रमा द्विवेदी अशरफ अली "रिंद" ममता गुप्ता रजत बख्शी राजिंदर कुशवाहा गरिमा तिवारी विनय के जोशी डा0 अनिल चड्डा यश छाबड़ा कवि कुलवंत सिंह एस. कुमार शर्मा मीनाक्षी धनवंतरि शुभाशीष पाण्डेय शिफ़ाली पूजा अनिल अविनाश वाचस्पति निखिल सचन सोमेश्वर पांडेय सुनील कुमार सोनू
और ताज़ातरीन चौथे भाग में *** प्रतिभागी रहे
राकेश खंडेलवाल सीमा गुप्ता सतीश वाघमारे संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी ब्रह्मनाथ त्रिपाठी 'अंजान' मैत्रेयी बनर्जी सतीश सक्सेना विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र" आशा जोगळेकर राहुल गडेवाडिकर मधुरिमा कुसुम सिन्हा महेंद्र भटनागर शैलेश भारतवासी मनीष वंदेमातरम स्वाति पांडे तपन शर्मा गोविन्द शर्मा डॉ॰ एस के मित्तल राजीव तनेजा
यानी कुल अस्सी कवितायेँ जमा हुई किसी अखबार को भी इतनी रीडर शिप और पार्टिशिपेशन कविता के मामले में कम ही मिलता है। किसे नामज़द बधाई दूँ ........मेरी समझ में नहीं आ रहा है
केवल इतना कह पा रहा हूँ
बधाइयां
हिंद-युग्म
sachin sharma ने कहा 80 लाख थे, 10 हजार रह गए!भईया इनकी जनरेशन की अब कोई ज़रूरत नहीं हैं । आदम जात में इनकी प्रवृत्ति ज़िंदा रहेगी ही । मौत बनते राजमार्ग! भी सच है राज के रास्ते चलते लोगों की आत्म-सम्मान,संवेदना,ईमान,सब कुछ मर जाता है । ज़िंदा रहती है केवल लिप्सा । लाशों के ढेर पर "राज" निति की बुनियाद इक एतिहासिक सत्य है।
इब्ने-इन्साँ ने खूब कहा -
" अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का "
SUYOG PATHAK ने गया उदय प्रकश जी का गीत स्वयम में ब्रह्म का एहसास दिलाता है।
मुझे मंटो में कोई गंदगी नहीं नज़र आई,लायसेंस पढकर तो आँखे भर आयीं थीं। औरत की जिन्दगी की तस्वीरें जो मंटो ने खींची थीं , उन से समाज में नारी की दशा की सच्ची व्याख्या कर ही डाली। इधर अपने मनोहर श्याम जी तक ने अपनी हद पार कर दीं ,खुशवंत जी की बात करना फिजूल है, मंटो को मेरा सलाम । मुझे जबलापुरिया होने पे गर्व इस लिए है क्योंकि मेरे इस शहर ने सौ केंडल पावर का बल्बःनींद,जबलपुर में बनी मन्टो पर फिल्म बनाई,सआदत हसन मंटो की नज़र नारी के लिए पाजिटिव ही है,
"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार औसत नवबौद्धों की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...