12.3.08

"माँ,मैं तेरी सोनचिरैया...!"

जबलपुर की कवयत्री प्रभा पांडे"पुरनम" की कृति,माँ मैं तेरी सोनचिरैया


का
विमोचन,09।02.2008. को होम साइंस कालेज , जबलपुर में हुआ

10.3.08

होली पर आमंत्रण

मेरे जबलपुर में होली के शुब अवसर पर आप सभी लोग मय-[बचे-हुए-बाल सहित ] बाल-बच्चों के सादर आमंत्रित हैं। मुख्य समारोह पाते नामक संस्था के स्थायी पते tहाने के बाजू में ,mitr - निवास पर होगा । जिसके इंत"ज़ाम" अली होंगे "राजेश पाठक "चतुर" यूँ तो इनका उपनाम "प्रवीण" है समानार्थी शब्द का इस्तेमाल करने की इजाज़त हमने हिरण्यकश्यपों से ले ली है । किसी ..ने कोई असहमति नहीं जतायी। सबको मालूम है के वे चतुर ही हैं। अब कितना बड़ा "...हाउस" चला रहे हैं बरसों से ।स्वागत की हमने पूरी-पूरी व्यवस्था कर रखी है मुख्य रेलवे स्टेशन से ही आपका स्वागत शुरू हों जाएगा आपको जी हाँ ... आपको इतना करना है कि डा०सन्ध्या जैन तथा डा० ठाकुर "दादा" को उनके फोन नम्बर पे फोन लगाइये वे फोन पे आपको कह देंगे:- "संस्कार-धानी" में आपका स्वागत है...!!" बाद,kavita,भी सुनाएंगे ऐसी इससे बेहतर भी
ये शब्द सुने बिना आप स्टेशन से बाहर न जाएं बाहर आपको क्या करना है कृपया रिजर्वेशन तो करा आइये फिर बताउंगा आपको क्या करना है...?

लगता है हमारी पहली न्यौतार को आमंत्रण मिल गया ये अपने कपूत भटकाव Kaput Bhatkav वाले कपूत भैया इनके क्विक रिस्पांस पर हम व हमारी कमेटी इनका " तहे...दिल से शुक्रिया अ...द...दा .करती .है...कपूत जी:-"थैंक्स फॉर क्विक रिस्पोंस"तडाक से तपाक से ज़बाव दे दिया लगता है कपूत ने रिज़र्वेशन करा लिया आमंत्रण तो बड़ा होलियाना ,सौ-पाप छोड़ के आपको जबलपुर आना है...!!अब आप तो पकडे गए आमंत्रण के पहले पन्ने पे ही जकडे गए......?आप हमारी "पहली-न्योतार" ,आपका जबलपुर है ज़रूरी चाहे..साली रोके...या....आपकी अपनी चाँद चकोरी ...!!"

ANDE PE BAITH KE DADA KAVITAA SUNAAENGE



2008-03-10-kavita....

6.3.08

"guest-corner" [अतिथि कोना]:[01]डाक्टर संध्या जैन "श्रुति"

इस पन्ने पे आपकी मुलाक़ात होगी महिला-साहित्यकारों से पहला क्रम जबलपुर की राष्ट्रपति पुरूस्कार प्राप्त शिक्षिका डाक्टर संध्या जैन "श्रुति" को समर्पित है समर्पित करने जैसी कोई बात है नही उनको आज मैंने बुलवाया सम्पूर्ण चर्चा के लिए ।
नेट से दूर रहने वाले जबलपुर के साहित्यकारों को वेब-डिजायनर,दस-बीस हजार का खर्चा बताते हैं कवि साहित्यकार कोई पूंजी-पति नही होता जो बेवजह वेब पर इतना भी खर्च करेगा क्यों....?
खैर छोडिए, आज इस कोने की अतिथि-लेखिका,को फिल्म-फेयर अवार्ड के दौरान प्रसिद्ध अभिनेताओं -के द्वारा हिंदी के प्रति अपमान जनक व्यवहार से क्षोभ है वही फिल्म-फेयर अवार्ड समारोह जिसमे हिंदी फिल्मों के गीतकार प्रसून जोषी ने अवार्ड पाने के बाद अंगरेजी में ही आभार व्यक्त किया।
डाक्टर जैन ने दो किताबें लिखी हैं "आकाश-से-आकाश तक" कथा संग्रह,मिलन,जबलपुर ने प्रकाशित की थी । चौबीस कहानियों में सभी कहानियाँ एक से बढकर एक हैं।
पूर्णिमा वर्मन जी ने मुझे दूर से.....[यानी शारजाह से ] दूर तक पहुँचने का रास्ता दिखाया "शायर-फेमिली" वाली श्रद्दा जैन , पारुल…चाँद पुखराज का वाली पारुल जी , सभी ने सहारा दिया अंतर जाल से जुडे रहने के लिए सव्य-साची का आशीषा जो हूं - जो कहानी कहते-कहते सो गयी माँ .....? मैं तो अपनी जिन्दगी में मातृ-शक्ति का ऋणी हूँ.... यदि महिला रचनाकारों के लिए जो भी कुछ कर रहा हूँ वो मेरा दायित्व है ...अस्तु अब आगे चलें Udan Tashtari जी की टिप्पणी से उत्साहित हूँ सो दीदी के बारे में आगे लिख रहा हूँ ..........
संध्या दीदी यदि वर्ष 1960 के अक्टूबर माह की पहली तारीख को जन्म न लेकर अगले दिन जन्मतीं तो दुनियाँ भर में गांधी जी के साथ उनका जन्म दिन भी मनाया जाता है....एम० ए० हिन्दी साहित्य,तथा परसाई पर डाक्टरेट पाने वाली संध्या जी की पहली कृति "आकाश से आकाश तक " में शुभ कामना में ज्ञानरंजन जी ने कहा कि -" इन कहानियों में एक ऐसी स्त्री हस्तक्षेप करती जिसके भीतर पुराना मर्म,भावनात्मकता,आदर्श और आवेग,संवेदनात्मक-विचलन कुछ बचा हुआ है,समाप्त नहीं हुआ...!
प्रथम कथा संग्रह में संध्या जी जो मध्यम दर्जे के शहर की,मध्यम-वर्गी , परिवार की पृष्ठ भूमि का गहरा प्रभाव ज्ञान जी ने देखा । साथ मध्य-वर्गीय केनवस् से मोह छोड़ने की सलाह देकर आश्वस्त करते हैं कि संध्या मोह छोड़ के प्रथम पंक्ति में आजाएंगी"
मेरी राय दादा ज्ञान जी से भिन्न है मैं न तो मध्यम वर्ग के प्रति पूर्वाग्रही हूँ और न ही पूर्वाग्रही होने की सलाह दूंगा ।
डाक्टर त्रिभुवन नाथ शुक्ल जी हिन्दी विभाग प्रमुख की पाठकों को सलाह "संक्रमण की स्थिति में श्रुति की कहानियों का स्वागत होगा "में दम लगती दिखाई देती है......!
प्रसिद्ध व्यंग्य कार श्रीराम ठाकुर "दादा" भी इनके लेखन को जिम्मेदारी भरा लेखन मानतें है.
{शेष जारी => }

10.2.08

प्रेमिका और पत्नी



प्रिया बसी है सांस में मादक नयन कमान
छब मन भाई,आपकी रूप भयो बलवान।
सौतन से प्रिय मिल गए,बचन भूल के सात
बिरहन को बैरी लगे,क्या दिन अरु का रात
प्रेमिल मंद फुहार से, टूट गयो बैराग,
सात बचन भी बिसर गए,मदन दिलाए हार ।
एक गीत नित प्रीत का,रचे कवि मन रोज,
प्रेम आधारी विश्व की , करते जोगी खोज । ।
तन मै जागी बासना,मन जोगी समुझाए-
चरण राम के रत रहो , जनम सफल हों जाए । ।

दधि मथ माखन काढ़ते,जे परगति के वीर,
बाक-बिलासी सब भए,लड़ें बिना शमशीर .
बांयें दाएं हाथ का , जुद्ध परस्पर होड़
पूंजी पति के सामने,खड़े जुगल कर जोड़

इस सप्ताह वसंत के अवसर पर मेरी भेंट स्वीकारिए

पूर्णिमा वर्मन ने अनुभूति में सूचीबद्ध कर लिया है है उनका आभारी हूँ । अनुभूति अभिव्यक्ति वेब की बेहतरीन पत्रिकाएँ है इस बार के अंक में भी हें मेरी उपस्थिति इस तरह दोहों में-
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
राजनारायण चौधरी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल बस एक चटका लगाने की देर है॥
नीचे चटका लगा के मुझ से मिलिए
गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल''

श्रीराम ठाकुर "दादा"

"दादा,वहाँ न जाइए,जहाँ मिलै न चाय "
ये मेरी जमात के किन्तु मेरे से आयु में बड़े चाय के शौकीन साहित्य सेवक हें दुनियादारी और साहित्य की दुकानदारी से दूर दादा सोहागपुर के वासिंदे होते अगर टेलीफोन विभाग में न होते ।
जबलपुर रास आया आता भी न तो भी क्या करते रोटी का जुगाड़ सब कुछ रास ले आता है। हम तो दादा के दीवाने इस लिए हें क्योंकि दादा साफ सुथरे ईमानपसंद सुदर्शन भाल वाले साहित्य के वटवृक्ष हें । इन्हौने सबको पढ़ा है लिखा अपने मन का।
ठाकुर दादा प्रायोजित सम्मानों के लिए दु:खी हें। आज के दौर के साहित्य के लिए आशावादी तो हें किन्तु दूकानदारी यानी "आओ सम्मान-सम्मान,खेलें " के खेल से बचाते रहते हें अपने आप को ..... इनको शुरू में कविताई का शौक था परसाई जी ने कहां भाई गद्य लिख के देखो लिखे और जब चौके-छक्के, लगाए तो हजूर छा गए अपने "दादा" .....! सौरभ नहीं अपने ठाकुर दादा....!!
इनकी अगुआई में पाठक-मंच की गोष्टीयां होती हें कुछ दिनों से बंद क्यों ....? ये न पूछा गया मुझसे। वो यही कहते यही न "कि लोगों के पास टाइम नहीं है...!"
ठाकुर दादा को आप चाय पर बुलाइए,
07612416100 ये न० घुमाइये
दादा अपनी चमकती चाँद लेकर आएँगे
कुछेक व्यंग्य सुनाएंगे आप व्यंग्य पर और आपके बच्चे शायद दादा की चाँद
पर मुस्कुराएंगे ........
दादा बी०एस० एन० एल० रिटायर हों गए हें
अब फ़ुल टाइम कटाई करने के लायक हों गए हें...
आप चाहें तो दादा को चाय पे बुला लेना
एक दिन के लिए सही दुनिया की तक़लीफों को भुला देना ।

दादा की होलियाना कविता सुनाने kavita,पर चटका लगाएं


या यहाँ


2008-03-10-kavita....

9.2.08

गुरु का सायकल-लायसेंस ....!!


मेरा भतीजा गुरु जिसे स्कूल में चिन्मय के नाम से सब जानतें है जब चार बरस का था ...सायकल खरीदने के लिए रोज़ फरमाइश करता था । हम नहीं चाहते थे कि चार साल की छोटी उम्र में दो-पहिया सायकल खरीदी जाए..मना भी करना गुरु को दुखी करना ही था ।सो हमने उसे बहलाने के लिए उसे बताया कि "सरकार ने सायकल के लिए लायसेंस का प्रावधान किया है...!"
जिसे बनाने में तीन चार महीने लगते हें। बच्चे भी कितने भोले होते हें हमने भोलेपन का फायदा उठाना चाहा और लायसेंस बनाने का वादा कर दिया सोचा था गुरु भूल जाएगा इस बात को किन्तु रोज़ रोज़ की मांग को देखते हुए मैंने अपने मित्र अब्दुल समी के साथ मिल कर एक लायसेंस बनाया । जो एक आई डी कार्ड था जिस पर गुरु का फोटो चस्पा था उस पर सिक्के से एक गोल सील लगाईं गई था.. और लिखा था- “आँगन में इस लायसेंस के धारक बच्चे को आँगन में सायकल चलाने की अनुमति दी जाती है.  

उस दिन लायसेंस पाकर खूब खुश हुआ था गुरु । हाथ मे लायसेंस और सायकल के सपने । आज गुरु 10 साल का है बड़ी सायकल चलाता है उसके पास लायसेंस सुरक्षित है। खूब हंसता है जब लायसेंस देखता है ।

18.1.08

डाक्टर विजय तिवारी "किसलय"

कवि हैं मित्र हैं अच्छे आदमी हैं ।HINDI SAHITYA SANGAM JABALPUR INDIA के मालिक हैं । हिन्दी में लिखने की आदत नही लिंक नही है इनके पास सो रचना लेकर आ गए मेरे पास बसंत मिश्रा जी के साथ।
इनसे मेरी खूब नौक-झौंक होती है। मेरी इनसे कम ही पटती है। किन्तु ये मुझे प्रिय हैं ऐसा क्यों है मुझे नहीं मालूम......शायद इस लिए कि ये इतने अच्छे हैं कि जब मैं संकट में होता हूँ तो ये हनुमान जैसे आ खडे होते हैं......या इस लिए कि ये ये ही वो अकेले हैं तब मुझसे मिलने अकेले नागपुर पहुंचे थे.... बीमार काया मानो नीरोग हों गई थी ...... या इस लिए कि इनसे मेरा कोई पारिवारिक नाता तो नहीं फिर भी अंतस के संबंध हैं ।
राजशेखर की राजधानी "तेवर " जबलपुर शहर के १३ किलो मीटर दूर है वहीं पैदा हुए हैं ये भाई साहब ..... तीखे पनागर की हरी-मिर्च जैसे मीठे कटंगी के रसगुल्ले जैसे काम काज में कैसे हैं इसका निर्णय किसलय जी के बॉस कर सकतें हैं अथवा घर में सुमन दीदी...।? मैं कौन होता हूँ निर्णय करने वाला....!
खैर छोड़िए मुझे तो माँ की याद में लिखी उनकी इस कविता ने भावुक कर दिया है आप भी देखें
ममता के आँचल में मुझे फिर से सुलाने आ जाओ
बचपन की प्यारी स्मृतियाँ आँखें नम कर जातीं हैं।
गलती कर पहलू में तेरे ,छिपाना याद दिलातीं हैं।
इन खट्टी-मीठी बातों की कथा सुनाने आ जाओ।
ममता......................................!
भले नयन से दूर हों लेकिन , मन से कभी रहा न दूर ।
मुझे ख़बर है तनिक कष्ट भी,तुमको कभी कहाँ मंजूर॥!
इस भौतिक दूरी का माँ तुम अंत करानें आ जाओ....!
ममता..................................!
माना तेरी उम्मीदों पे , खरा नहीं माँ उतारा मैं....!!
जननी तुमको आभास तो है.... मैं नित पीडा से गुजरा हूँ....!!
हाथों से स्पर्शी तुम् मुझे लगाने आ जाओ ...!
ममता..................................!
मैं जन्मा तुम ने पीडा सह ईश्वर को ही आभार कहां....
उसकी सेवा मैं कर न सका , तब साँसों का आधार रहा ।
कैसे कृतग्ज्ञता व्यक्त करूं तुम राह सुझाने आ जाओ .....?
ममता..................................!!
ये गीत डाक्टर विजय तिवारी का है।
सम्पर्क २४१९ विसुलोक, मधुवन कालोनी ,जबलपुर म० प्र०
फोन: 09424325353,
07612649350,
ये भाई साहब बडे मजेदार हैं.....इनकी पत्नी सुमन मेरी दीदी हैं इस लिए मैं इनको "जी जा " कहता हूँ जो विजय जी के लिए दुआ ही है... कोई किसी को जी जा कहे उसके लिए दुआ ही तो है।

28.12.07

ब्लोंग-दमदार है....और रहेंगे

ज्योतिष और भारत-अरब विद्वान ईसा मसीह किस भाषा में बात करते थे? <= इनको पढिये आगे बढ़िए तो ये शैलेश भारतवासी भाई साहब Raviratlami Ka Hindi Blog के अलावा कई पागलों की तरह लगें हैं ,कई-कई रात थका देने वाली राते ये दीवाने नेट के इतिहास में अपना नाम जोड़ रहें हैं...? कई और है जैसे ये=>महेंद्र मिश्रा.. भाई साहब हैं तो मेरे शहर के किन्तु इनकी उड़ान दुनिया भर की । यूनुस खान का हिंदी ब्‍लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog RADIOVANI वाले यूनुस जी तो कमाल के कारनामें होते हैं बस और क्या कहूँ आप खुद समझदार हैं.....मोहल्ला भर के लोग हिंदी किताबों का कोना इस लिए खोजतें हैं ताकी उनको कोई सस्ता शेर मिल जाए । और न मिले तो न्योत रहें हैं अपने यशवंत भैया http://bhadas.blogspot.com/ भडासी तो बन ही सकतें है।
मैं आरकूटिंग से अंतर जाल पे आया आभास जोशी के लिए मेरा भतीजा वी० ओ० आई० में तब था उसने जिसने शान की जगह ले ही है । चिट्ठों की चीर फाड़ करते कराते ब्लॉगर बन ही गया । सभी नेट पर आने वालों को मेरा अभिवादन
ब्लॉगर और ब्लोंग आने वाले कल सूचना तंत्र का सबसे लोक-प्रिय और शक्ति शाली संचार औज़ार होगा प्रेस,मीडिया,किताबें, निर्भीक पत्रकारिता , पोल-खोल, और जाने क्या सब इसमें होगा । ये घबराहट एक हिंदुस्तानी की डायरी: हम ब्लॉगर साहित्य से बहिष्कृत हैं क्या? बेमानी है... । चलिए तब तक चक्रधर की चकल्लस का मज़ा लेतें है । आप चाहें तो गुनगुनाइये छू लेने दो नाज़ुक
हम इंतज़ार करेगें
बार बार तोहे का समझाऊं
अब क्या मिसाल दूं
या चाहें तो सो जाइए..... मुझे भी सोना ही है.... कल बात करतें है.... टेक केयर शुभरात्री तब तक मैं विकास परिहार... का कबाड़खाना खंगाल लेता हूँ ... आप भी हों आना यहाँ खूब मसाले दार है... भैया जी भी मेरे शहर में ग्वालिअर से आकर हंगामा करने आमादा हैं।


चिट्ठाजगत

26.12.07

दिनेश जी और विजय भैया "मौन साधक" ही तो हैं....!"










पंडित दिनेश पाठक हीरा गुप्त जी के मित्र एवं पत्रकारिता के आधार स्तंभ इसी बरगद ने म० प्र० की पत्रकारिता को परिभाषित करनें में सहज अवदान अपने कर्म से दिया है..........सम्मानित हुए दाँऐ सम्मान ग्रहण करते हुए पत्रकार श्री विजय तिवारी ये
दौनों महानुभाव सम्मान से बचाते रहे खुद को सदा एक ही बात संस्थाओं को कहते रहे भाई.... हमसे योग्य हस्ताक्षर हैं इस प्रदेश में । हम नहीं माने और न मानना ज़रूरी ही था . हम मानते भी क्यों .दौनों की स्वाध्यायनिष्ठ ही वृत्ती जो गुप्त जी के अनुरूप है आम लोगों से परिचित तो कराना ही था इस खबर से . की मौन साधकों की कमी नहीं है इस दुनियाँ में .सादा जीवन उच्च विचार के पर्याय बने इन व्यक्तित्वों को मेरा नमन हम सबका नमन ...... शतायु हों

हीरा लाल गुप्त स्मृति समारोह " फोटो ०१ "


सव्य-साची माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे

स्व० हीरा लाल गुप्त "मधुकर"













Wow.....New

Is everything predestined ? Dr. Salil Samadhia

आध्यात्मिक जगत के बड़े से बड़े प्रश्नों में एक है  - क्या सब कुछ पूर्व निर्धारित है ?  (Is everything predestined ? ) यदि हां , तॊ...