कवि हैं मित्र हैं अच्छे आदमी हैं ।HINDI SAHITYA SANGAM JABALPUR INDIA के मालिक हैं । हिन्दी में लिखने की आदत नही लिंक नही है इनके पास सो रचना लेकर आ गए मेरे पास बसंत मिश्रा जी के साथ।
इनसे मेरी खूब नौक-झौंक होती है। मेरी इनसे कम ही पटती है। किन्तु ये मुझे प्रिय हैं ऐसा क्यों है मुझे नहीं मालूम......शायद इस लिए कि ये इतने अच्छे हैं कि जब मैं संकट में होता हूँ तो ये हनुमान जैसे आ खडे होते हैं......या इस लिए कि ये ये ही वो अकेले हैं तब मुझसे मिलने अकेले नागपुर पहुंचे थे.... बीमार काया मानो नीरोग हों गई थी ...... या इस लिए कि इनसे मेरा कोई पारिवारिक नाता तो नहीं फिर भी अंतस के संबंध हैं ।
राजशेखर की राजधानी "तेवर " जबलपुर शहर के १३ किलो मीटर दूर है वहीं पैदा हुए हैं ये भाई साहब ..... तीखे पनागर की हरी-मिर्च जैसे मीठे कटंगी के रसगुल्ले जैसे काम काज में कैसे हैं इसका निर्णय किसलय जी के बॉस कर सकतें हैं अथवा घर में सुमन दीदी...।? मैं कौन होता हूँ निर्णय करने वाला....!
खैर छोड़िए मुझे तो माँ की याद में लिखी उनकी इस कविता ने भावुक कर दिया है आप भी देखें
ममता के आँचल में मुझे फिर से सुलाने आ जाओ
बचपन की प्यारी स्मृतियाँ आँखें नम कर जातीं हैं।
गलती कर पहलू में तेरे ,छिपाना याद दिलातीं हैं।
इन खट्टी-मीठी बातों की कथा सुनाने आ जाओ।
ममता......................................!
भले नयन से दूर हों लेकिन , मन से कभी रहा न दूर ।
मुझे ख़बर है तनिक कष्ट भी,तुमको कभी कहाँ मंजूर॥!
इस भौतिक दूरी का माँ तुम अंत करानें आ जाओ....!
ममता..................................!
माना तेरी उम्मीदों पे , खरा नहीं माँ उतारा मैं....!!
जननी तुमको आभास तो है.... मैं नित पीडा से गुजरा हूँ....!!
हाथों से स्पर्शी तुम् मुझे लगाने आ जाओ ...!
ममता..................................!
मैं जन्मा तुम ने पीडा सह ईश्वर को ही आभार कहां....
उसकी सेवा मैं कर न सका , तब साँसों का आधार रहा ।
कैसे कृतग्ज्ञता व्यक्त करूं तुम राह सुझाने आ जाओ .....?
ममता..................................!!
ये गीत डाक्टर विजय तिवारी का है।
सम्पर्क २४१९ विसुलोक, मधुवन कालोनी ,जबलपुर म० प्र०
फोन: 09424325353,
07612649350,
ये भाई साहब बडे मजेदार हैं.....इनकी पत्नी सुमन मेरी दीदी हैं इस लिए मैं इनको "जी जा " कहता हूँ जो विजय जी के लिए दुआ ही है... कोई किसी को जी जा कहे उसके लिए दुआ ही तो है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Wow.....New
धर्म और संप्रदाय
What is the difference The between Dharm & Religion ? English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...
-
सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
-
संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
-
मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...
7 टिप्पणियां:
वाह भई वाह, क्या खूब लिखा है....अपनी मन की भावनाओं को इतनी बेपरवाही से खुले छोड़ दिया...यह पढ़ कर उस कागज की कश्ती और बारिश के पानी की भी याद आ गई ।
girish billore"mukul" jee,kisi ki bhi baat ko sahi andaaj se prastut krna to koi aap se seekhe. dhanyawaad.
KISLAY
http://www.google.com/transliterate/indic/
गिरीश भाई ने मेरी कविता "माँ" की ऐसी- तैसी कर दी है. कविता के अंतरे, मात्राएँ,शब्दों को बदल कर मेरी मौलिकता के साथ छेड़-छाड़ की है. इस तरह तोड़ना-मरोड़ना किसी भी साहित्यकार के लिए उचित नहीं है.शायद ये कोई भी साहित्यकार बर्दाश्त नहीं करेगा.
कृपया उक्त कविता का मूल रूप निम्नानुसार देखें :-
माँ
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
बचपन की प्यारी स्मृतियाँ, आँखें नम कर जातीं है.
गलती कर पहलू में तेरे, छिपना याद दिलातीं हैं..
इन खट्टी-मीठी बातों की,कथा सुनाने आ जाओ.
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
तन से दूर भले हूँ लेकिन, मन से कभी रहा न दूर.
मुझे ख़बर है तनिक कष्ट भी,तुमको रहा नहीं मंजूर..
अब तक बढे फासलों का तुम, अंत कराने आ जाओ.
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
घर से दूर बसा हूँ तब से, सोच तुम्हारी बदल गई.
यहाँ हमारी मजबूरी ने, रच दी दुनिया एक नई..
लेकिन सुलह वक्त से कर अब, नेह जताने आ जाओ.
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
माँ तुमसे दूरी को लेकर, बात हमेशा चलती है.
गाँव में रहने की जिद भी, अक्सर मन को खलती है..
मेरे जीवन में खुशियों के, दीप जलाने आ जाओ.
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
माना तेरी उम्मीदों पर, खरा नहीं मैं उतरा हूँ.
लेकिन तुमको कहाँ पता मैं,किस पीड़ा से गुजरा हूँ..
हाथों का स्पर्शी-मरहम, मुझे लगाने आ जाओ.
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
मुझको जीवन देकर तुमने, अपना फ़र्ज़ निभाया है.
तेरी सेवा न कर अब तक, ख़ुद पर क़र्ज़ बढाया है..
कैसे बनूँ कृतज्ञ तुम्हारा, राह बताने आ जाओ.
ममता के आँचल में फ़िर से, मुझे सुलाने आ जाओ
-:डॉ. विजय तिवारी "किसलय "
जबलपुर म.प्र इंडिया
मोबाइल :- ०९४२५३२५३५३.
आशा है गिरीश भाई अन्यथा न लेकर भविष्य में इस तरह की छेड़खानी से बचेंगे
साथ ही इस बात को और टूल नहीं देंगे.
APANE PAHALE KAHAA:-
"girish billore"mukul" jee,kisi ki bhi baat ko sahi andaaj se prastut krna to koi aap se seekhe. dhanyawaad."
FIR KAHAA YE:-"गिरीश भाई ने मेरी कविता "माँ" की ऐसी- तैसी कर दी है. कविता के अंतरे, मात्राएँ,शब्दों को बदल कर मेरी मौलिकता के साथ छेड़-छाड़ की है. इस तरह तोड़ना-मरोड़ना किसी भी साहित्यकार के लिए उचित नहीं है.शायद ये कोई भी साहित्यकार बर्दाश्त नहीं करेगा."
BHAAI VIJAY JEE MANDIR KAA PUJAARE APANE BHAGAVAAN KE SWAROOP KO KAISE BADAL SAKATAA HAI
bhai gireesh jee,
aapne kavya ko ishwar aur swayam ko uska pujari kah kar kam se kam kavya kee garima ko badhane ka sandesh to diya. iske liye dhanyawaad.
Aapke J E E J A J E E
"KISLAY"
गुस्से में कहे इस वाक्य :- "गिरीश भाई ने मेरी कविता "माँ" की ऐसी- तैसी कर दी है..!" पर गौर कीजिए
हम साहित्यकार शब्दों से ही तो खेलतें हैं !
शब्द मेघ प्रसून शूल सब कुछ हो सकतें हैं...!!
एक टिप्पणी भेजें