22.12.17

कलाकार की सफलता के सूरज के 9 अश्व


मेरे एक मुम्बइया परिचित ने गलती से अपनी कलाकृति मुझे भेज दी मैनें जबलपुरिया स्नेहवश नहीं जान बूझकर कहा -वाह क्या बात है इसे अपने चैनल पर पोस्ट कर दूं । श्रीमन मेरे झांसे में आए सो हाँ कह दिया फिर तुरन्त कॉलबैक किया - अरे भाई हमने कर दिया है आप परेशान न हों ।
 मित्रो व्यक्ति कितना सतर्क रहें मुम्बई वालों से सीखो हमारे जबलपुरी कलाकार बहुत भोले हैं । उनको समझना चाहिए कि जब रोटियों की ज़रूरत होती है तो ये तालियाँ किसी काम की नहीं होतीं ।
     मेरे कलाजगत के मकसद परस्तों के साथ कि बार मुठभेड़ हो चुकी है ।
      मेरे परिचित एक युवा ने मुझे सपत्नीक घर आकर अपनी आर्थिक तंगी का किस्सा सुनाया सो मैने उनको संस्थान से काम दिलाने का वादा कर उनको काम भी दिलाया । भाई को जब ये लगा कि मेरा काम उनके बिना नहीं चल पाएगा तो भाई ने एक बार छोटे से काम के लिए इतना बड़ा बिल दिया जो किसी भी हालात नें उस काम के लायक तो न था ।
       इस बीच भाई ने अनवांछित मांग का प्रपोगन्दा शुरू कर दिया । मेरे अधिकारी ने उसे विवादों से बचने के लिए भुगतान कर दिया पर मुझे कलाजगत के इस भ्रष्टाचार पर बहुत दर्द हुआ । आज भी है । उसी व्यक्ति ने मुझसे मेरी कविता मांग कुछ पोस्टर बनाए जब मैंने अपनी लेखनी की कीमत मांगी तो मुकर गए ज़नाब हालांकि मुझे शब्दों की कीमत से कोई लेना देना न था पर उसे एहसास दिलाना था कि पवित्रता सार्व श्रेष्ठ है आप अगर तूलिका और रंग का सम्मिश्रण केनवस पर मुंह मांगे बेच सकते हो तो शब्दों का भी मूल्य होता है ।
  मित्रो कलाजगत रहस्य का जगत भी है । पता नहीं किसे कब और कितना दे दे गीत संगीत के मशीनीकरण ने सारेगामा को नेपथ्य में पटक दिया तो देह प्रदर्शन एवम आयातित विचारकों ने सकारात्मक रंगकर्म को तो मानो बंधक बना लिया । कविताई में सियासत चुट्कुले बाजों का राज़ गई तो पेंटर वो छा रहा है जो न्यूड बना रहा है या शास्त्रीय लोक कला को ताक में रख अधकचरे चित्र दे रहा गई । उस पर एक बात और आजकल मौलिक सृजन कर्ताओं का टोटा है । नकलचियों की तादात इतनी है कि कला जगत में विकास के मार्ग अवरुद्ध होते जा रहे हैं ।
टीवी चैनल्स ने हर विधा का अंत करने का ठेका सा ले लिया है
 चैनल्स केवल पैसों के लिए रियलिटी शो पेश करतें हैं । डांस जे नाम पर कसरतें गायन के नामपर फ़िल्मी गीतों पर तीनचार जजेस की मूर्खताएं नाट्य एवम अभिनय का तो कुछ न पूछिये  विषय ऐसा उठाते हैं हैं जो केवल सीमा हीन होकर वर्जनाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करे ,,,, युवा उस ऐन्द्रजाल में फंसकर मूल साधना से भटक जाते हैं । संगीत के कुछ ही साधक हैं जो रोटी में घी लगाकर अपने फ़्लैट में मुम्बइया हो पाए हैं शेष आज भी एड़ियां घिस रहे हैं ।
एक युवा जोड़ा एक दिन मेरे संस्थान में आया बेचारा सोच रहा था कि हम उनकी कुछ सहायता करेंगे पर हम अपने सीमित साधनों से उनको क्या देते उनको दुनियाँ का राज़ समझ आया दौनों एक स्वर में बोले- सर आज समझे कि रोटी कितनी मुश्किल से हासिल की जाती है । बच्चे रूमानियत और प्रेम से पगे थे । घर लौट गए माँ बाप ने अवश्य उनको गले  लगाया होगा ।
 
 संतवृत्ति के साधकों को भी देखा है रोजिन्ना नाम छपाउँ सृजकों को भी । संतवृत्ति के कलाकार केवल साधक होते हैं कला के सतत अन्वेषण और अध्यवसाय में लगे ये गन्धर्व सामवेद वर्णित कला के निष्णात होकर भी मासूम होते हैं ।
 लेकिन नाम के लिए दौड़ने वाले उफ़्फ़ विश्व में गोया सीधे इंद्र सभा से भेजे गए हों । वैसे इनका अधोपतन एक दशक से भी कम अवधि में हो ही जाता है ।
मित्रो फिर भी कोशिश कर रहा हूँ बेहतरीन कलाकार समाज को दूं जो सच्चे गंधर्व साबित हों
     कलाकर की सफलता के सूरज के 9 अश्व
1:- कभी भी बेवजह किसी को प्रमोट न करो उसका टेलेंट बोलेगा ।
2:- प्रसिद्धि का लोभ प्रतिभा का अंत कर देता है
3:- अपने शहर के कूड़े कर्कट को भी सम्मान न दे सको तो सद्भाव ही दो
4:- जिस पायदान पर पैर रख के आए हो उससे उतार के दिनों के लिए सलामती की दुआ करो
5:- ग्लैमर वर्ल्ड कभी भी आपको हारा जुआरी साबित कर सकता है ।
6:- मेंटर्स भी मुंह देखा प्रमोशन न करें जबरन अपने ही स्टूडेंट्स को जिताएं न
7:- माँ बाप और मुगालते में न रहें कि उनकी संतान/शिष्य-शिष्या ही श्रेष्ठ  कलाकार है । बैजू बावरा की कथा याद रखें
8:- हार जाने पर विजेता को सम्मान दें न कि खोट निकालें
9:- कलाकार खुद को सबसे नया साधक माने
      

1 टिप्पणी:

Rambharat ने कहा…

आपके ब्लॉग पोस्ट लिखने का अंदाज बहुत ही अच्छा है। आप जिस सरल भाषा का उपयोग लेख लिखने के दौरान करते हैं, वह काबिले तारीफ है। आपके द्वारा दी हुई जानकारी मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी, ऐसी मैं उम्मीद करता हूं। आप ऐसे ही भविष्य में बेहतरीन लेख लिखते रहिए ऐसी हमारी कामना है। धन्यवाद☺

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