11.4.12

स्त्री की मानवीय पहचान के लिए खतरा है पोर्नोग्राफी :जगदीश्‍वर चतुर्वेदी


पोर्नोग्राफी के विरोध में सशक्त आवाज के तौर पर आंद्रिया द्रोकिन का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। पोर्नोग्राफी की जो लोग आए दिन हिमायत करते रहते हैं वे उसमें निहित भेदभाव,नस्लीयचेतना और स्त्रीविरोधी नजरिए की उपेक्षा करते हैं। उनके लिए आंद्रिया के विचार आंखे खोलने वाले हैं। आंद्रिया ने अपने निबंध ‘भाषा, समानता और अपकार: पोर्नोग्राफी का स्त्रीवादी कानूनी परिप्रेक्ष्य और घृणा का प्रचार’(1993) में लिखा- ‘‘बीस वर्षों से स्त्री आंदोलन की जड़ों एवं उसकी शक्ति से जुड़े व्यक्ति, जिनमें कुछ को आप जानते होंगे कुछ को नहीं, यही बताने की चेष्टा कर रहे हैं कि पोर्नोग्राफी होती है। वकीलों की माने तो भाषा, व्यवहार, क्रियाकलापों में (के द्वारा)।’’

आंद्रिया और कैथरीन ए मैकिनॉन ने इसे ‘‘अभ्यास कहा था जो घटित होता है, अनवरत हो रहा है। यह नारी जीवन का यथार्थ बन गया है। स्त्रियों का जीवन दोहरा और मृतप्राय बना दिया गया है। सभी माध्यमों में हमें ही दिखाया जाता है। हमारे जननांग को बैगनी रंग से रंग कर उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित किया जाता है। हमारी गुदा, मुख व गले को कामुक क्रियाओं के लिए पेश किया जाता है, जिनका गहरे भेदन किया जा सकता है।’’

5 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सत्य वचन. यह वाकई बहुत खतरनाक है.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

स्त्री क्यों मानव की मानवीय पहचान का भी प्रश्न नहीं उठता है क्या?

रविकर ने कहा…

आज शुक्रवार
चर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||

charchamanch.blogspot.com

किलर झपाटा ने कहा…

जगदीश्वर जी को अच्छी पोर्न वेब साई‍ट्स के पते मालुम नहीं है लगता है, वरना वे ऐसी बात ना करते। एम आय राँग ?

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

मौन.................

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