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शनिवार, अप्रैल 14, 2012

अपराजेय योद्धा डॉ. भीमराव अंबेडकर: सुनीता दुबे




भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार, दलितों के मुक्ति संग्राम के अपराजेय योद्धा, भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 120 वर्ष पूर्व 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के इंदौर के पास महू में हुआ था। दलित चेतना के अग्रदूत बाबा साहेब अम्बेडकर ने वर्ण-व्यवस्था के दुष्चक्र में फंसे भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को दशकों पूर्व जिस तरह आत्मसम्मान की राह दिखाई वह आज अपने मुकम्मल पड़ाव पर पहुंचने को आतुर है। इस युगदृष्टा ने अपनी गहरी विश्लेषणात्मक दृष्टि और स्वानुभूत पीड़ा के मेल से जो बल हजारों वर्षों से दलित-दमित जातियों को दिया वह एक युग प्रवर्तक ही कर सकता है। 
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के अनुपालन में मध्यप्रदेश शासन द्वारा अपने इस गौरवशाली सपूत की जन्म स्थली अम्बेडकर नगर (महू) में बने स्मारक पर प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इसमें देश-प्रदेश के मूर्धन्य व्यक्तियों सहित तकरीबन एक लाख लोग भाग लेते हैं। वर्ष 2007 से आयोजित इस महापर्व के लिये राज्य शासन द्वारा व्यापक प्रबंध किये जाते हैं। यहां मकराना के सफेद संगमरमर एवं मंगलुरु के ग्रेनाइट से निर्मित अम्बेडकर स्मारक स्थापत्य कला की बेजोड़ कृति हैं। एक ओर स्मारक बौद्ध धर्म के सांची जैसे प्राचीन स्मारक की याद दिलाता है वहीं दूसरी ओर इसकी वलयाकृति संसद भवन का आभास कराती है। अम्बेडकर जयंती पर व्याख्यानों के लिये यहां बहुधा 75 हजार वर्गफीट का विशाल पंडाल बनाया जाता है। इस अवसर पर राष्ट्रीय एकता एवं समरसता सम्मेलन का आयोजन किया जाता है और दलितोद्धार, समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को राष्ट्रीय अम्बेडकर सम्मान से विभूषित किया जाता है।
बौद्ध पुनरुत्थानवादी डॉ. भीमराव अम्बेडकर को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश शासन द्वारा सांची के समीप 65 एकड़ भूमि पर बौद्ध विश्वविद्यालय खोलने की कार्यवाही की जा रही है। यह देश का पहला बौद्ध विश्वविद्यालय होगा। प्रदेश के बजट का पन्द्रह प्रतिशत दलित कल्याण की योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है क्योंकि प्रदेश में दलित वर्ग के लोग कुल आबादी का पन्द्रह प्रतिशत हैं।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया। बौद्ध महाशक्तियों के दलित आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय भी बाबा साहेब को ही जाता है। उनका मानना था कि जाति प्रथा सामाजिक विकास में बाधा है। समाज जाति प्रथा की परम्पराओं पर नहीं बल्कि विवेक पर आधारित होना चाहिये। डॉ. अम्बेडकर ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष पद पर रहते अछूतोद्धार के लिये अनेक सांविधानिक प्रावधान किये। उन्होंने सार्वजनिक जलाशयों, शालाओं, मंदिरों में दलितों को प्रवेश दिलाने के लिये दस वर्षों तक संघर्ष किया। डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। उनका कहना था बौद्ध धर्म में आध्यात्मिक विवेक- समता, बन्धुता, स्वतन्त्रता, प्रज्ञा और करुणा है। उनके साथ तीन लाख अनुयायी भी बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए।
'दलितों के मसीहा' डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा सुधारने के लिये भी अनेक उल्लेखनीय प्रयास किये। कामकाजी महिलाओं के लिये 'मातृत्व अवकाश' का विचार डॉ. अम्बेडकर ही पहले पहल सामने लाये थे। वे एक बहुत अच्छे अर्थशास्त्री भी थे। सामाजिक अनर्थ को मानवीय अर्थ देने की उनमें अद्भुत क्षमता थी। डॉ. अम्बेडकर ने राष्ट्रीय लाभांश, रुपये की समस्या, प्राचीन भारतीय व्यापार, भारतीय मुद्रा और बैंकिंग इतिहास, प्रान्तीय वित्त का विकास और विकेन्द्रीकरण तथा भारत में लघु जोतों की समस्या समाधान जैसे विषयों पर पुस्तकें लिखीं। डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि भारतीय जनता की भलाई के लिये रुपये की कीमत स्थिर रखी जानी चाहिये लेकिन रुपये की यह कीमत सोने की कीमत से स्थिर न रखते हुए सोने की क्रय शक्ति के मुकाबले स्थिर रखी जानी चाहिये। साथ ही यह कीमत भारत में उपलब्ध वस्तुओं के मुकाबले स्थिर रखी जानी चाहिये ताकि बढ़ती हुई महंगाई की मार भारतीयों पर न पड़े। रुपये की अस्थिर हर कीमत के कारण वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ती हैं लेकिन उतनी तेजी से मजदूरी अथवा वेतन नहीं बढ़ता।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर संविधान और अंतर्राष्ट्रीय कानून के महान विशेषज्ञ थे। भारत का संविधान, जो 'गिलक्राइस्ट' जैसे राजनीति-विज्ञों द्वारों विश्व का सर्वोत्तम संविधान माना गया है, के निर्माण में अपने योगदान के लिये चिरस्मरणीय रहेंगे। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन तथा तत्कालीन भारत के महान नेताओं ने संविधान सभा के लिये उनके द्वारा किये गये कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि 'उनके कार्यकलापों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण संविधान बनाने तथा संविधान सभा में उनका योगदान दीर्घकाल तक स्मरणीय रहेगा। अछूत वर्गों के लोग उन्हें इजराइल के मोजेज के समान अपना मसीहा और उद्धारक मानते हैं। वेवरली निकोल्स ने उन्हें 'भारत के सर्वाधिक बुद्धिसम्पन्न लोगों में एक' कहा है। जबकि भारत के भूतपूर्व गवर्नर जनरल लार्ड केसी ने उन्हें 'विद्वता और ज्ञान का स्रोत' कहा है।
          डॉ. बाबासाहेब का जन्मोत्सव उनके योगदान को श्रद्धांजलि स्वरूप नमन करने का पावन अवसर होता है। इसे इस वर्ष भी पूरी गरिमा के साथ मनाया जायेगा। सामुदायिक सहभागिता और सहभागिता से समारोह को भव्य स्वरूप मिलता है। राज्य सरकार इस कार्य में पूरा सहयोग करेगी।- मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान

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