2.1.12

"भारत हमसे क्या चाहता है ?"


साभार : NEWS FLASH

भारत से आपकी अपेक्षाएं आम तौर पर आप जब अपने बच्चे के कैरियर को लेकर आपस में चर्चा करतें हैं तब खुला करतीं हैं. किंतु भारत आपसे क्या चाहता है इस बारे में आप की हमारी सोच लगभग अपाहिज है. अपाहिज शब्द का स्तेमाल इस कारण किया क्यों कि हम-आप केवल व्यवस्था के खिलाफ़ खड़े दिखाई देते  हैं.. अपने देश की तुलना अमेरिका यू के , के साथ कर खुद को दीनहीन मानते हैं. उन देशों के आप्रवासियों के ज़रिये आयातित सूचनाओं की बैसाखियां लगाए हुए हम कितने अकिंचन नज़र आते हैं इसका एहसास कीजिये तो ज़रा आप अपने आप को इस सवाल से घिरे पाएंगे कि - "भारत हमसे क्या चाहता है ?"
आपके पास कोई ज़वाब न होगा कारण साफ़ है कि इस एंगल से हम सोच ही कहां रहें हैं.. अचानक आए सवाल के प्रहार से अचकचाना स्वाभाविक है . जी तो भारत आपसे क्या चाहता है.. आप जो भी है नेता अफ़सर व्यापारी अथवा आम आदमी जो भी हैं देखें भारत आपसे कुछ खास नहीं मांग रहा सच तो सोचिये क्या मांग रहा है..?
कुछ सोचा आपने ? कुछ याद आया आपको ?  न तो सुन लीजिये भारत आपसे न तो विश्व के सापेक्ष किसी तरह के कीर्तीमान मांग रहा है. न ही उसे सदनों किसी भी प्रकार के वाद-विवाद आरोप-प्रत्यारोप चाह रहा है अब तो बेचारा चुप हो गया उसे गोया कुछ नहीं चाहिये देखो न ध्यान से देखो वो तो हमसे केवल "ईमानदार-संतान" होने का कौल मांग रहा है.. शायद हम   दें पाएं.. !! 

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अगली शताब्दी में विश्व में फेहरायेगा भारतीयता का परचम
भले ही हिन्दूवादी लोग भारत में ईसायत व मुसलिम धर्मान्तरण को लेकर काफी चिंतित हैं। परन्तु आने वाली शता ब्दी यानी 22 वीं शताब्दी पूरे विश्व में हिन्दू धर्म की होगी। भले ही भारत में हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने मठाधीश जातिवादी धृर्णित मानसिकता व भगवान को अपने स्वार्थपूति का मोहरा बना कर रखने के कारण आज भी भारत में आम जनमानस हिन्दू धर्म की तरफ मुंह फेरता नजर आता हो या देश की सरकारे विश्व के इस सबसे प ्राचीन भारतीय संस्कृति को दफन करने का आत्मघाति शिक्षा का षडयंत्र करके भारत की संतति को भारतीय मूल्यों से हटा कर पश्चिमी मूल्यों का गुलाम बना रही हो। परन्तु इसके बाबजूद आने वाले शताब्दी भारतीय सनातन संस्कृति की है जो जड़ चेतन में परमात्मा के सबसे बडे समाजवादी कालजयी उदघोष से युगों से पूरे विश्व का पथ प्रर्दशन कर रही है। विश्व में संचार क्रांति और वैज्ञानिक क्रांति के कारण पश्चिमी देशों के प्रबुद्व लोगों को अपने जीवन व जिज्ञाशा के तमाम प्रश्नों का समाधान न तो ईसायत में मिल रहा है व नहीं इसका समाधान मुसलिम धर्म सहित अन्य किसी प्रमुख धर्मो में कहीं दूर-दूर तक मिल रहा है। इसी कारण पश्चिमी देशों के प्रखर स्वतंत्र विचारक व प्रबुद्वजन वैज्ञानिक व जीवन पद्वति के तमाम जिज्ञाशा को शांत करने में सबसे अनकुल पाते हे। इसी कारण विश्व के तमाम प्रबुद्व लोग बढी संख्या में भारतीय जीवन पद्वति को अपना रहे है । मामला चाहे योग का हो या आध्यात्म का विश्व में वर्तमान में भी भारतीय जीवन दर्शन के संतों ने पूरे विश्व को अपने प्रभाव में ले रखा है। इससे ईसायत व मुसलिम धर्मालम्बी मठाधीशों के माथे पर शिकन साफ दिखाई दे रही है। हालत यह हो गयी है कि चर्चो में प्रबुद्व जनों की विमुखता बढ़ती जा रही है।
वहीं दूसरी तरफ भारत मंें देश के हुक्मरानों की पश्चिमी जीवन दर्शन की अंधे मोह के कारण भारतीय जीवन पद्वति को बुजुर्गा संस्कृति का प्रतीक मानते हुए भारतीय शिक्षा व जीवन पद्वति को जमीदोज कर पश्चिमी शिक्षा, चिकित्सा व कानून व्यवस्था को ही नहीं जीवन दर्शन को भी आत्मसात कर दिया। इसकारण आज देश के बच्चों को भारतीय संस्कार देने के बजाय पश्चिमी संस्कार दिये जा रहे है। देश की भावी संतति को देश के इतिहास, संस्कार व संस्कृति से ही नही भाषा व जीवन मूल्यों से षडयंत्र के तहत दूर किया जा रहा है। इस कारण देश में अधिकाश नौजवान या तो पश्चिमी संस्कृति के चकाचैध में न घर के रहते है व न घाट के तथा कुछ इस विकृति संस्कृति की चपेट में आ कर वाममार्गी बन कर भारतीय संस्कृति के सबसे बडे निंदक व तोड़क बन गये है। शर्मनाक बात यह है कि उनको इस चीज का अहसास जीवन पर्यन्त नहीं होता। क्योंकि भारतीय जीवन दर्शन व संस्कृति से उनको मकाले शिक्षा पद्वति ने उनको मन को इतना मलिन कर दिया होता है कि वे भारतीय दर्शन को सबसे निकृष्ठ समझ कर उसका तिरस्कार करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व प्रबुद्व समझते हैं।
इन सबके बाबजूद भारतीय संस्कृति के जीवंत मूल्यों के कारण जिस तेजी से पश्चिमी जगत के प्रबुद्व जन भारतीय संस्कृति की तरफ बढ़ रहे हैं उसे देख कर भारत में भी तेजी से भारतीयता के प्रति लोंगों के विचारों मे ं आमूल परिवर्तन आ रहा है। भारतीय संस्कृति के परिवर्तन का अहसास पहले भले ही हरे राम हरे कृष्णा, बालयोगेश्वर महाराज के डिवाइन आंदोलन से हो गया था परन्तु अब जिस तेजी से बाबा रामदेव ने प्राचीन भारतीय योग विज्ञान तथा रविशंकर आदि संतों के चमत्कारी जीवन दर्शन को सुन कर ही पश्चिमी जगत में एक प्रकार का भूकम्प ही आ गया है। वहां एक प्रकार से भारतीय जीवन दर्शन की सुनामी का प्रकोप इतना प्रबल है कि इससे अपने ढह रहे दुर्गो को बचाने के लिए पश्चिम में ईसायत व अरब में मुसलिम जगत के धर्माेचार्य खुल कर योग को धर्म विरोधी बताने की असफल कोशिश कर रहे हैं। इसके बाबजूद लोग जिस तेजी से भारतीयता को आत्मसात कर रहे हैं उससे लगता है कि आगामी शताब्दी भारतीयता की होगी, हिन्दू धर्म, जैन, बोद्व व सिख धर्म के सांझे स्वरूप भारतीय संस्कृति का परचम विश्व में फेहरायेगा। इससे ही भारतीय चिकित्सा पद्वति आयुर्वेद आदि की तरफ तेजी से विश्व समुदाय का ध्यान आकृष्ठ हो रहा है वह आने वाले समय में भारतीय संस्कृति की दिग्विजयी पताका फेहराने का साफ संकेत दे रहा है। इस विश्व में परचम फहराने की ऐतिहासिक सफलता में एकांश भी देश के हुक्मरानों व धार्मिक मठाधीशों का नही अपितु भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों का आकर्षण का ही एकमात्र योगदान है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो। www.rawatdevsingh.blogspot.com/ email pyarauttrakhand@yahoo.co.in

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

मेरे हिसाब से तो लोगों को शिक्षा, दीक्षा, नैतिक शिक्षा देना चाहिए तभी हम ईमानदार बन सकेंगे.

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