15.11.11

हां मुझ में मै ही रचा बसा हूं

जो दर्द पीकर सुबक न पाया 
वो जिसने आंसू नहीं बहाया .
उसी की ताक़त  से हूं मैं ज़िंदा
उसी ने मुझमें है घर बनाया.
न जाने है कौन वो  जो मुझमे
बसा हुआ है रचा हुआ है...
क़दम मेरे जो डगमगाए 
सम्हाल मुझको वो पथ सुझाए 
हां मुझ में मै ही रचा बसा हूं
तभी तो खुद ही सधा सधा हूं
किसी में खुद की तलाश क्योंकर
मैं खुद ही खुद का खुदा हुआ हूं 
मैं रंग गिरगिट सा नहीं बदलता
मैं हौसलों से पुता हुआ हूं









6 टिप्‍पणियां:

Anamikaghatak ने कहा…

bhawpoorna prastuti

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!!

Archana Chaoji ने कहा…

सबसे पहले पढ़ा था तब कोई कमेंट नहीं था ..बहुत जल्दी थी तो कमेंट नहीं कर पाई उस समय .अब देखा तो मेरा कमेंट "Udan Tashtari ji" कर चुके हैं ..खैर .अब भी वही लिख रही हूँ--- बेहतरीन !!!...

संध्या शर्मा ने कहा…

किसी में खुद की तलाश क्योंकर
मैं खुद ही खुद का खुदा हुआ हूं

वाह.... लाजवाब पंक्तियाँ... हौसले से भरी सुन्दर रचना... आभार

Padm Singh ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति

monali ने कहा…

Bahut khoob

Wow.....New

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