4.9.11

जनता खुद भ्रष्टाचार पनपाने के जतन में लगी हुई है


                      दरअसल जब से दुनिया बनीं है तब से दुनियां भर की समस्याएं भी बन गईं. समस्या है तो उनका ठीकरा किसके सर फ़ोड़ा जाए यह “खोज” दुनियां को नित-नये काम सुझाती है. अब भ्रष्टाचार को ही लीजिये यह आचरण कहां से शुरु हुआ इस पर विद्वान एक राय हो ही नहीं सकते. कोई कहता है कि ईव ने चाकू न होने की वज़ह से उस फ़ल का बिना काटे स्वाद चखा जिसमें विशेष प्रकार के कीड़े थे जो वे देख न सकीं. कुछ का मानना है कि भगवान की भूल की वज़ह से यह भाववाचक संग्या तेज़ी से हार्ट-टू-हार्ट हैल गई. लेकिन वर्तमान समय में इसे अन्ना के पीछे खड़ी हम भारतीयों की जमात ने नेताओं एवम कर्मचारियों के माथे पे दे मारा. बावज़ूद इसके कि बिना दिये कुछ मिलता नहीं का अनुपालन करती जनता खुद भ्रष्टाचार पनपाने के जतन में लगी हुई है. शादी के लिये लड़के का सौदा करना, खम्बों से बिजली चुराना, अपने फ़ायदे के लिये येन केन प्रकारेण किसी की भी दीवार पोत देना. दूसरों के भ्रष्टाचार को बुरा खुद के  किये भ्रष्टाचरण को अच्छा बताने वाले लोग उस समय सब कुछ भूल जातें हैं जब अपनी “बकत” बनाने के लिये इन सभी आचरणों का सहारा लेते हैं. एक व्यक्ति बेचारा समझता है कि दुनियां में जिसे कोई कष्ट होता है उसका कारण उस व्यक्ति का पाप करना है.. एक बारउस व्यक्ति के मित्र  किसी षड़यंत्र का शिकार बनाया गया तो वह व्यक्ति मित्र का उल्लेख कर कर के अपने नैतिकता मय यशस्वी जीवन गाथा का यश गान कर रहा था .. मित्र को उसके कार्यों की सतत रिपोर्ट मिल रही थी.मित्र भी  वैराग्य भाव से  उसे देखता रहा कभी उसका प्रतिकार नहीं किया करता भी क्यों उसे मालूम था कि :-“सलीब पर ईसा का टांगा जाना, राम का चौदह बरस के लिये वनवास भोगना उनके पाप का का परिणाम नहीं था  ”  
                           लोकपाल या जन लोकपाल बिल पास होगा इससे इस देश में कोई खास फ़र्क नहीं पड़ने जा रहा है. मारा सबसे कमज़ोर ही जाएगा जो उसकी नियति है.
                       है न सच्ची और खरी बात. हां,अन्ना ने जो करवाया उससे एक बात अवश्य सामने आई कि लोग भ्रष्टाचार से आज़िज़ आ चुके हैं. पर आत्म चिंतन कितने कर रहे हैं इस बात पर गौर करना ज़रूरी है.      
          यह परामर्श सभी के लिये है कि हमें भ्रष्टाचरण के प्रति घ्रणा होनी  और हम आत्म-चिंतन भी करें साथ साथ 

2 टिप्‍पणियां:

Archana Chaoji ने कहा…

सही कहा..आत्मचिंतन जरूरी है,और क्योंकि भॄष्टाचार से पहले अपना भॄष्ट-आचरण सुधारना उससे ज्यादा जरूरी है ..

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

इस विषय से अधिकांश लोग कतरा रहे हैं चलो केवल सरकारी भ्रष्टाचार नहीं हर ओर से हटाओ इसे

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