2.9.11

मध्य-प्रदेश बाल आयोग:श्रीमति रीना गुज़राल


"मध्य-प्रदेश बाल आयोग :एक परिचय"
          प्रस्तुति:   श्रीमति रीना गुज़राल,सदस्य, बाल आयोग 
                विश्व में सर्वाधिक बच्चों की संख्या भारत वर्ष में है और उनके कल्याण हित संरक्षण और सवंर्धन एवं विकास के लिए संविधान के अनुच्छेद 39 (ङ) तथा (च) अधिकारों का सुनिश्चय किया गया है। संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा अनुच्छेद 21 (क) जोडकर भारत का संविधान बच्चों के शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रुप में प्रस्तुत करता है। इसी तरह अनुच्छेद 51 (क) में एक प्रावधान जोडा गया है जिसमें नैर्सगिक पालकों को बच्चों को शिक्षा दिलाने के कर्त्तव्य के बारे में सचेत करता है। अनुच्छेद 45 में 06 वर्ष तक की आयु पूर्ण करने तक बाल्यावस्था में बच्चों की देखरेख एवं शिक्षा देने के उपबंध को सम्मिलित किया गया हैं । भारतीय संविधान का अनुच्छेद 24 कारखानों ,खदानों में जोखिम भरे कार्यों से 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अलग रखने का निर्देश देता है।
इतना ही नहीं इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा 20 नवंबर 1989 के अंतरराष्ट्रीय अनुबंध में बाल अधिकारों के प्रति भारत ने अपनी प्रतिबद्धता दषिष्त की है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 (2006 के 4) के तहत बच्चों के अधिकारों के संरक्षण ,सुरक्षा ,प्रोत्साहन एवं विकास के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग मार्च 2007 में एक वैधानिक निकाय के रुप में स्थापित किया गया। मध्यप्रदेष में भी बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन किया जाकर जस्टिस शीला खन्ना ने आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार  1 फरवरी 2010 को संभाला। इस अधिनियम में 18 वर्ष से कम आयु के मानव के बच्चों की परिभाषा में रखा गया है।
20 नवंबर 1989 संयुक्त राष्ट्र की संधि में बच्चों के अधिकारों से संबंधित मापदण्ड एवं प्रावधान 30 बिन्दुओं में व्यापक रुप से दर्शित हैं। जिसकस संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-
              माता पिता ,वैध संरक्षक के सामाजिक / आर्थिक स्तर, राष्ट्रीयता ,वर्ण ,जाति लिंग ,भाषा ,धर्म, राजनीतिक विचारधारा के आधार कोई भेदभाव नहीं होगा।  बच्चों के हितों के संदर्भ में संस्थागत ,सार्वजनिक एवं व्यैक्तिक कार्यों एवं िक्रयाकलापों को प्राथमिकता। प्रत्येक बच्चे को उत्तम जीवन जीने का एवं विकास जन्मजाति अधिकार है। बच्चों की मानसिक एवं शारीरिक सुरक्षा कर संपूर्ण विकास भी इसमें शामिल है। बच्चे को अपने नाम पहचान प्राप्त करने का अधिकार आराम विश्राम मनोरंजन ,शारीरिक ,मानसिक आत्मिक नैतिक विकास ,दैनंदिन जीवन स्वतंत्रता से जीने का अधिकार । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वैचारिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी संधि में उल्लेखित किया है।
परिस्थिति वश कुछ बच्चे प्राकृतिक (नैसर्गिक) अभिभावकों से वंचित होते हैं तो सरकार से विशेष संरक्षण एवं सहायता प्राप्त करने का अधिकार सुनिष्चित किया गया है। नैसर्गिक अभिभावक अर्थात् माता पिता , तथा वैधानिक संरक्षक के कर्त्तव्यों को रेखांकित किया गया है। संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रों को यह भी सुनिष्चित करना होगा कि बच्चों के शारीरिक मानसिक शोशण उपेक्षापूर्ण व्यवहार ,तथा यौनिक शोषण से बचाने के लिए समुचित व्यवस्थाऐं की जावें। विशेष श्रेणी के बच्चों जो मानसिक शारीरिक रुप से विकलांग हैं को मुफत चिकित्सा सुविधा शिक्षण एवं जीन यापन करने में मदद दी जावेगी।
अनुबंधित राष्ट्र बच्चों को बीमारियों की रोकथाम तथा जन्म लेने एंव जीने के अधिकार को भी सुनिष्चित करेंगे। संधि में यह भी निष्चित किया गया है कि संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्र कानूनी एवं प्रशासनिक तौर पर एसे प्रावधान करेंगे। जिससे न तो बच्चे की गर्भ में मृत्यु हो न ही जन्म लेने के दौरान।
बच्चों की खरीद फरोख्त ,मादक द्रव्यों के व्यापार ,उपयोग एवं व्यवसाय से दूर रखने के लिए अनुबंधित राष्ट्रों को कानून बनाना अनिवार्य होगा। कोई भी बच्चा एसी किसी संस्था में भरती किया जावे न ही रखा जावे ,जहां हिसात्मक कार्यवाही की जाती है।
अपराधी अथवा दंडनीय कानूनों के उलल्घन के आरेापी बच्चों के सामाजिक स्थापना के लिए ,तथा उन्हें आदर्ष नागरिक के रुप में विकसित करने के लिए प्रयास करने के लिए अनुबंधकर्ता राष्ट्र उत्तरदायी होंगे।
उपरोक्त अंतरराष्ट्रीय संधि पत्र के प्रकाश में भारत में एकीकृत बाल सरंक्षण योजना की व्यवस्था सुनिष्चित की गई है। म.प्र.सरकार ने बाल अधिकार सरंक्षण आयोग अधिनियम 2005 की धारा 13 (1) में आयोग के ढांचे ,कार्यकलापों ,कर्त्तव्यों को विस्तार से उल्लेखित किया है। म.प्र.में गठित बाल संरक्षण आयोग बच्चों के लिए सुनिष्चित अधिकारों को पालन कराने , समस्याग्रस्त बच्चों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में सक्रिय होगा। जिसमें राज्य सरकारों के अतंर्गत आने वाले शासकीय संस्थानों , एजेंसियों ,विद्यालयों ,सुधार गृहों ,बच्चों के संरक्षण एवं विकास के लिए कार्यरत् शासकीय विभागों के कार्यकलापों पर निगाह रख सकेगा।
एक संवैधानिक संस्था के रुप में बाल अधिकारों के किसी भी स्तर पर हुए उल्लंघन के परिपेक्ष्य में प्राप्त शिकायतों , सूचनाओं  पर कार्यवाही कर सकेगा। आयेाग स्वप्रेरणा से भी अधिकारों के वंचन एवं उल्लंघन के मामलों को संज्ञान में ले सकेगा। म.प्र में बाल संरक्षण आयोग 2007 का नियम 10 बाल अधिकारों के प्रति अपने प्रस्ताव ,जांच रिपोर्ट ,अनुसंधान ,अघ्ययन ,रिर्पोटस के रुप में दे सकेगा।
शक्तियां
आयोग को दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के नियम 5 के तहत दीवानी न्यायालय की शक्तियों प्राप्त हैं -
1. किसी भी व्यक्ति को बुलाना ,उसकी उपस्थिति को बाध्य करना तथा उसकी जांच करना ।
2. दस्तावेजों को खोजना एंव प्रस्तुत करना।
3. शपाथ पत्र के तहत साक्ष्य लेना
4. किसी भी कार्यालय एवं न्यायालय से सार्वजनिक अभिलेख की प्रति मंगाना
5. गवाहो या दस्तावेजों की जांच हेतु आज्ञा पत्र जारी करना।
6. क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट को किसी प्रकरण को सुनवाई हेतु भेजना।
7. जांच की समाप्ति के उपरांत कार्यवाही
1. बाल अधिकारों अथवा तत्समय विधि प्रवृत्त विधि के उल्लंघन होने पर अभियोग चलाने की अनुशंसा
2. सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय को उन निर्देशों आदेशों या आदेश पत्रों के लिए प्रार्थना करना जिन्हे ंकोर्ट आवश्यक समझे।
3. सरकार या अन्य प्राधिकारण को पीडित या उसके परिवारजनों को मध्यकालीन सहायता की ,जैसे की उचित हो ,प्रतिपादन के लिए अनुशंसा करना।

प्रक्रिया -
परिवादों के निपटाने की प्रक्रिया के अंतर्गत समस्त परिवादों जो किसी भी प्रकार से प्राप्त हों को पंजीकृत करते हुए उन्हें एक क्रम दिया जावेगा तथा आगामी दो सप्ताह के भीतर सामान्य रुप से दो सदस्सीय न्यायपीठ में प्रकरण की स्वीकृति की जावेगी। परिवाद निपटाने में किसी भी तरह कोई शुल्क नहीं होगा। आयेाग स्वविवेक से तार ईमेल ,फैक्स के माध्यम से भेजी गई शिकायतो को स्वीकृति हेतु विचारार्थ रख सकेगा।

1 टिप्पणी:

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बाल आयोग पर विस्तृत तथा उपयोगी जानकारी प्रस्तुत करने हेतु धन्यवाद.आलेख संग्रहणीय है.

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