5.8.11

हम बेहतर बांबी के बाहर तुम महफ़ूज़ अस्तीनों मे.. छिपे रहो.. आलों में चाहे या कि घर के जीनों में..!!

हम बेहतर बांबी के बाहर छुपना तुम अस्तीनों मे..
छिपे रहो.. आलों में चाहे या फ़िर घर के जीनों में..!!
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तुमने हमसे क्या सीखा है तुम ही जानो हम क्या बोलें..
क्यों बोलें भाषा तुम सब सी, काहे गिरहें तुम्हरी खोलें..?
हम विषधर हैं तुम विष डूबे, विष है तुम्हरे सीनों में......!!
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तुमने सारी धरती मापी, जिसका भार है मेरे सर
विषधर कहते हो तुम मुझको, कहा कभी न धरती धर !!
काम हमारा तुम करते हो.. बोते ज़हर ज़मीनों पर ..
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