ये विषय नही कि संस्थान के पास क्या है,उसका क्या होगा, उसे कौन संचालित करेगा.चर्चा तो इस बात की होनी चाहिये कि बाबा ने कितने जीवनो को पारस-मणि सा स्पर्श दिया और लोहे से सोने सा बना दिया...? किसी भी योगी की आध्यात्मिक शक्ति को न देख पाना हमारे चिंतन की अपरिपक्कवता ही है. लोग मंदिर की भव्यता से ईश्वर की शक्ति को तौलते हैं . किसने कहा ईश्वर सिर्फ़ भव्य मंदिरों में ही मिलते हैं.भक्त के मन में भगवान का स्वरूप किसी "धनाड्य" सा होगा तभी भक्त प्रभावित होगा ऐसा सोचना भी मिथ्या है.सत्य साई बाबा के लोककल्याण की अवधारणा का समापन उनके शारीरिक अवसान के बाद भी जारी रहेगा.क्योंकि बाबा का देह त्याग एक लीला मात्र है. वे आध्यात्मिक रूप से आत्माओं में सृष्टि के अनंत विस्तार तक रहेंगें.
बाबा को आप सतही अपनी आंखों से देखना है न कि सतही खबरों के ज़रिये तभी तो बाबा की उस सम्पत्ति की चर्चा कर सकोगे जो मानव कल्याण के लिये बिखरी पड़ी है. जो हुआ है. बाबा के आश्रम की चिंता तुम मत करो बस चिंतन करो
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5 टिप्पणियां:
जी, मुझे भी यही लग रहा है कि लोग (खबरिया चैनल और नेता) बाबा के कल्याणकारी कार्यों के विषय में सोचने के स्थान पर उनके ट्रस्ट का वारिस तलाशने की जल्दी में लगे हैं...
i like this post chacha its reality of indian culture
यह चित्र मे जो बाबा हे इन की तो कोई सम्पति थी ही नही यह फ़कीर थे मस्त मलंग जो मिला उसे भी बांट दिया यह सच मे पुजनिया थे, ओर जिस के पास समपति हे वो पुजनिया नही, ओर मेरी नजर मे वो सम्पति एक कुडे से बढ कर नही,
सत्य साई के मार्गदर्शन में काम होता था और होगा भी
सम्पत्ति दूसरे अवतार के लिये भी सेकण्डरी थी है भी.
हमे बाबाओं के आध्यात्मिक स्वरूप पर आस्था है. सच यही है
bilkul sahi kaha hai aapne .sadhu sant ki sampatti to unke dwara kiye gaye achchhe kaam hain .bahut sarthak post .aabhar
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