जी
उसे नहीं चाहिये
उसने कब
मांगी है तुमसे मुक्ति
वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
वो जो साहस और दु:साहस का अर्थ देती है
वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है
वो क्या है क्या नहीं है
तुम क्या जानो
मत लगायो कयास
मत करो
उसे संज्ञा देने का प्रयास
वो वो है
जिसकी वज़ह से तुम मैं हम सब हैं
12 टिप्पणियां:
मुकुल जी!
आपने बहुत सुन्दर और सशक्त रचना लिखी है!
महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
वो जो साहस और दु:साहस का अर्थ देती है
वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है
sahi hai... bahut sunder
सुंदर भाव हैं कविता के।
आभार
बहुत उम्दा भाव!
सुन्दर सन्देश देती रचना के साथ आपको वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत बहुत शुभकामनायें।
वाह...महिला दिवस पर प्रस्तुत एक श्रेष्ठ रचना...बधाई...
नीरज
सुंदर भाव लिए रचना
उस के बिना कुछ भी नहीं..
mahila divas par umda rachana.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
शुभकामनायें एवं साधुवाद !
वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
वो जो साहस और दु:साहस का अर्थ देती है
वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है
बहुत सटीक सुंदर रचना है -
बहुत सही लिखा है
नारी बंधन ही चाहती है -
लेकिन बेड़ियाँ नहीं ....!!
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