8.3.11

उसे मुक्ति नहीं चाहिये


जी
उसे नहीं चाहिये
उसने कब
 मांगी है तुमसे मुक्ति
वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
वो जो साहस और दु:साहस का अर्थ देती है
वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है
वो क्या है क्या नहीं है
तुम क्या जानो
मत लगायो कयास
मत करो 
उसे संज्ञा  देने का प्रयास 
वो  वो है 
 जिसकी वज़ह से तुम मैं हम सब हैं 

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मुकुल जी!
आपने बहुत सुन्दर और सशक्त रचना लिखी है!
महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
वो जो साहस और दु:साहस का अर्थ देती है
वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है

sahi hai... bahut sunder

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सुंदर भाव हैं कविता के।
आभार

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा भाव!

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर सन्देश देती रचना के साथ आपको वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत बहुत शुभकामनायें।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वाह...महिला दिवस पर प्रस्तुत एक श्रेष्ठ रचना...बधाई...

नीरज

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर भाव लिए रचना

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

उस के बिना कुछ भी नहीं..

मनीष सेठ ने कहा…

mahila divas par umda rachana.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
शुभकामनायें एवं साधुवाद !

Anupama Tripathi ने कहा…

वो
सदा चाहती है बंधन
बनाए रखती है अनुशासन..
वो जो साहस और दु:साहस का अर्थ देती है
वो जो नाव है
पार कराती है धाराएं
कभी पतवार बन
खुद को खेती है

बहुत सटीक सुंदर रचना है -
बहुत सही लिखा है
नारी बंधन ही चाहती है -
लेकिन बेड़ियाँ नहीं ....!!

Wow.....New

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