यहाँ भी देखिये
तुम तो अविरल हम भी अविचल !!
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अश्व बने सुर-सातों जिसके
तुम सूरज का तेज़ संजोकर !
चिन्तन पथ से जब जब निकले
गये सदा ही मुझे भिगोकर !!
आज़ का दिन तो बीत गया यूं जाने कैसा होगा फ़िर कल !!
सुर सरिता की सहज .......!
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जीवन पथ जो पीर भरा हो
नयन नीर सावन सा झर झर !
कितने परबत पार करोगे
ये सब कुछ साहस पर निर्भर ..?
दीप शिखा तुम मुझे बताना कहां हैं परबत किधर है समतल...........?
सुर सरिता की सहज .......!
भूलो मत कुरुक्षेत्र युद्ध एक प्रमाण मीत !
जननी हैं ,भगनी है, रमणी हैं नारियां -
सुन्दर प्रकृति की सरजनी हैं नारियां
हैं शीतल मंद पवन,लावा ये ही तो हैं
धूप से बचाए जो वो छावा यही तो हैं !
5 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण!!
बहुत ही सुन्दर कविता . बधाई
क्या सच में तुम हो???---मिथिलेश
सुन्दर..
bahut sunder geet, ham se puchha hota toh ham batate parvat aur samtal kaha hai deep shikha ko faltu pareshan kiya.
बहुत भावपूर्ण सुन्दर गीत..
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