यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
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एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
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युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
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सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो ‘सियासी-पलती आग ?
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तुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
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रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
________________________अब सुनिये एक गीत
सादर
अर्चना-चावजी
10 टिप्पणियां:
achchhi rachna..
geet ka antim band bahut sunder..
गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ....।
रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
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बहुत सुंदर ...........शुक्रिया
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे, ज़िंदा न ईमान रहे
प्रेरणादायी पंक्तियां
...बहुत सुंदर गीत, बधाई।
vaah ji
गंभीरता लिए सुंदर भावाभिव्यक्ति ......
सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे, ज़िंदा न ईमान रहे..
बढ़िया....
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
बहुत खूब!
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क्रिएटिव मंच आप को हमारे नए आयोजन
'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में भाग लेने के लिए
आमंत्रित करता है.
यह आयोजन कल रविवार, 12 दिसंबर, प्रातः 10 बजे से शुरू हो रहा है .
आप का सहयोग हमारा उत्साह वर्धन करेगा.
आभार
दिल की गहराइयों को छू लेने वाली इस गंभीर ,संवेदनशील रचना के सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए आभार और बधाई.
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